आशा कचरु
चित्रः विप्लव शशि

मैं चाहती हूं कि बच्चे मेरे काम को भी जांचना सीखें। वे यह जान लें कि मैं भी गलत हो सकती हूं।

ये बच्चे मेरे गांव रंजोल के हैं, जो आंध्रप्रदेश के मेडक ज़िले में हैवैसे तो मैं उत्तर भारत की हूं। लेकिन पिछले तीन साल से रह रही हूं। पहले मुझे सिर्फ देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली भाषाएं आती थीं, एक जर्मन भाषा को छोड़कर। जर्मन की लिपि रोमन है इसलिए उसे सीखने में दिक्कत नहीं हुई, क्योंकि अंग्रेज़ी के माध्यम से मैं इस लिपि से परिचित थी।

तेलुगु के अक्षर पहचानने में मुझे काफी समय लगा। तीन महीनों तक रोज़ एक घंटा अभ्यास किया। इसमें मुझे किताबों से भी मदद मिली। तेलुगु भाषा में बातचीत तो वैसे भी काफी सीमित थी, क्योंकि मेरे आसपास उर्दू भाषी थे। इसलिए मुझे तेलुगु सीखने और उसके अभ्यास करने के कम ही अक्सर मिलते थे। इन बच्चों के कारण मुझे अपना संवाद सुधारने में काफी मदद मिली है। .

पिछले ढाई सालों से मैं इन बच्चों को ‘जीवन शिक्षा' पढ़ा रही हूं। साक्षरता, गणित, सामान्य ज्ञान के अतिरिक्त मैं गाना, नृत्य और योग भी कराती हूं। इन्हीं रोचक गतिविधियों के कारण वे कक्षा में आने के लिए प्रेरित होते हैं। मैं उनसे हमेशा कहती हूं - “मैं तुमसे तेलुगु सीखती हूं और तुम मुझसे अंग्रेज़ी और हिन्दी।'' इस बात से उनका उत्साह बढ़ता है।

मेरा काम करने का तरीका कुछ इस प्रकार है - मैं चित्र बनाती हूं और उनके साथ दोनों भाषाओं , परिचित (तेलुगु) और अपरिचित भाषा (अंग्रेज़ी या हिन्दी), में उसका नाम लिख देती हूं।

मैं उसके हिज्जे करके एक-एक अक्षर पढ़ती जाती हूं और वे उसे अपनी स्लेट या नोट बुक में लिखते रहते हैं। ये कॉपियां मैं उन्हें एक झोले में से देती हूं जिसमें कुछ अन्य पुस्तकें और खेल भी होते हैं। हम साथ में एक श्यामपट लेकर भी घूमते हैं, जब भी कुछ सीखना हो, बस शुरू हो जाते हैं। फिर सब मिलकर तेलुगु के शब्दों को अंग्रेजी में लिखते हैं। जैसे इल्लू, हाऊस के लिए। इससे तेलुगु अक्षरों की पहचान भी हो जाती है। और मेरा भाषा का अभ्यास भी। कुछ बच्चों को तेलुगु भी ठीक से लिखनी नहीं आती, यह गतिविधि उनके लिए भी लाभदायक होती है।

बच्चे मुझसे पूछते हैं कि क्या हम चित्र बना सकते हैं तो मैं कहती हूं कि इच्छा हो तो बना सकते हो। सभी बहुत शौक से चित्र बनाते हैं और फिर खुशी-खुशी लिखते भी हैं। मैं ऐसे और भी चित्र बनाती हूं जो कि उनके जीवन या परिवेश से संबंधित होते हैं।

इस प्रकार वे अंग्रेजी के अक्षरों से भी परिचित हो जाते हैं और उन्हें लिख भी पाते हैं। साथ-ही-साथ उनकी तेलुगु का भी अभ्यास हो जाता है।

कुछ नई चर्चा के लिए
कभी-कभी सहज ही नई परिस्थितियां उभर के आती हैं तो मैं उनसे संबंधित मसलों पर चर्चा कर लेती हूं। जैसे एक बार मैंने श्यामपट पर सांप का चित्र बनाया तो कुछ बच्चे डरकर भागने लगे। वो इसलिए क्योंकि जिस पेड़ के नीचे हम उस दिन बैठे थे कुछ दिनों पहले उस पर से एक सांप नीचे गिरा था। मैंने बच्चों को यह सांत्वना दी कि सांप मनुष्य से डरते हैं और जब तक हम उन्हें परेशान न करें वे भी कुछ नहीं करते। यह सारी बातें मैंने उनसे टूटी-फूटी तेलुगु में कहीं। बच्चों ने मेरी इस कोशिश में गलतियां बताई और सही वाक्य दोहराए। इस तरह मेरा शब्द भंडार और बढ़ा। फिर एक-एक करके उन्होंने सांपों के साथ हुए अपने अनुभव बताए। किस तरह सांप उनकी झोंपड़ी में आ गया और उनके पिता ने मार डाला आदि। इससे वे अपना डर भूल गए और फिर लिखने में जुट गए।

इस्तेमाल की सामग्री
मैं अंग्रेज़ी और तेलुगु के चित्र कार्ड भी निकालती हूं। बच्चों से कहती हूं कि वे इनमें अपने पहचाने हुए अक्षर ढूंढे। मैं खुद पढ़कर भी उन्हें अक्षरों। की पहचान कराती हूं।
इस प्रकार हर बार नए शब्द और नए अक्षरों से उनका परिचय होता है। कभी-कभी बीच में उन्हें स्लेट पर या रंगीन पेंसिल से कागज़ पर चित्र बनाने के लिए कह देती हूं। वे फूल-पत्ती, पतंग, झण्डा, घर, वाहन जैसे बढ़िया चित्र बनाते हैं। उन चित्रों के बारे में पूछने पर उन्हें नए शब्दों से परिचित करा पाती हूं। साथ ही तेलुगु के शब्द भी पूछती हूं ताकि मेरा शब्द भंडार भी बढ़ता रहे। कभी-कभी तो मैं अचानक ही बच्चों से मिलने चली जाती हूं। वे नमस्कारम् कहते हुए दौड़कर मिलने आते हैं। उन्हें इस तरह मुस्कुराता देखकर मेरा उत्साह बढ़ता है। ऐसी परिस्थितियों में रहने के बावजूद भी इतने भावात्मक चेहरे देखकर एक उम्मीद-सी बंधने लगती है।

मैं उनसे तेलुगु में पूछती हूं, "बागुनारा?'' (कैसे हो?)

कुछ तेलुगु में जवाब देते हैं और बाकी अंग्रेजी में गुड मॉर्निग या ईवनिंग से स्वागत करते हैं। चूंकि उन्हें मालूम नहीं कि दिन के किस पहर में क्या बोलना चाहिए इसलिए वे शाम को भी गुड मॉर्निग कह देते हैं। इसलिए उन्हें दिन के पहरों से परिचित कराती हूं। फिर अंग्रेज़ी के दिन के नाम, तेलुगु लिपि में लिख देती हूं।

कक्षा पांच की एक लड़की थोड़ा शर्माते हुए मेरे लिखे को सुधारती है, ‘ऐसे नहीं मैडम इसे ऐसे लिखना है।'' और श्यामपट पर आकर उसे मिटाकर ठीक कर देती है। फिर उससे पूछती हूं कि क्या अब ठीक लिखा है? वह 'हां' कर देती है और हम दोनों विद्यार्थी बन जाते हैं।

कभी तेलुगु में लिखते समय मुझे उसकी शुद्धता पर शंका होती है लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। महत्वपूर्ण यह है कि बच्चे मेरे काम को जांचना सीखें और जान लें कि मैं भी गलत हो सकती हूं। मुझे भी सब कुछ मालूम हो यह जरूरी नहीं है। वे अपने कहे की जिम्मेदारी लेना सीखते हैं और दूसरों को गलती सुधारने का मौका दिया जाना चाहिए यह भी सीखते हैं।

जब भी मेरे पास खाली समय रहता है मैं उनके साथ बैठती हूं। यहां कक्षा से अलग स्थिति होती है। मेरी जीप देखकर वे दौड़ आते हैं और मुझे घेरकर खड़े हो जाते हैं।

मैं उन्हें बार-बार अवसर देती हूं कि वे मुझे तेलुगु पढ़ाएं और मुझसे सवाल करें। मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि वे शिक्षात्मक ढंग से सवाल कर रहे हैं; बहुत ही सीधे और सरल सवाल जिनका जवाब मैं आराम से दे पाती हूं। ये हैं हमारे भविष्य के शिक्षक मैंने सोचा।

सवाल कुछ इस तरह के थे - तुम्हारे माता-पिता, भाई कहां हैं? दिल्ली कहां? तुम्हारे कितने भाई-बहन हैं? आदि। इसी संबंध में मैं उन्हें भूगोल के बारे में बताती हूं, जैसे आंध्र प्रदेश में रंजोल कहां है आदि।

एक-दो बच्चे शरारत करते हैं बाकी उनकी शिकायत करते हैं। वे उदंड बच्चों की अवहेलना करते हैं। मैं उन्हें समझाती हुई कहती हूं कि पहले हम सभी को स्वयं अपने को देखना चाहिए। इन बातों में समय बरबाद नहीं करना चाहिए कि कौन क्या कर रहा है। मेरी बात को वे ध्यान लगाकर सुनते हैं और फिर से ठीक से ध्यान लगाकर काम करते हैं। लेकिन कुछ देर बाद फिर उनका ध्यान किसी बात से बंट जाता है। इस समस्या से जूझने के लिए मैं उन्हें आंखें बंद करके एक जगह ध्यान केन्द्रित करने को कहती हूं। इस दौरान मैं भी आंखें मूंदकर बैठती हूं। मुझे यह देखकर हैरानी होती है कि सबसे छोटे बच्चे भी कुछ सेकेंड आंखें आधी बंद किए, चुपचाप बैठे रहते हैं - या फिर कभी उन्हें “मैं अंग्रेजी सीखना चाहती हूं, मैं और और सीखना चाहती हूं।'' दोहराने को कहती हूं।

कभी-कभी मैं सरल किताबों में से कहानियां पढ़ती हूं। वे कुछ देर तो पुस्तक के चित्रों को एकटक देखते रहते हैं और फिर अपने तरीके से उस पर कहानियां बनाते हैं। फिर मैं उस कहानी को अंग्रेजी में पढ़ती हूं। पूरी तरह से समझ तो नहीं पाते लेकिन यह उम्मीद है कि वे कुछ परिचित शब्दों का संबंध कहानी की कुछ घटनाओं से बैठा पाएं।

उसके बाद वही कहानी उन्हें तेलुगु में सुनाती हूं। वे मेरी भाषा में गलतियां निकालते हैं और हम लोग मिलकर, सही क्या है, इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। यहां यह भी ज़रूरी नहीं कि उन्हें पूरी कहानी समझ में आए। कहानी के कुछ खास हिस्से चुनकर, उसमें आए नए शब्दों का अर्थ बताकर उन्हें लिखने को कहती हूं। उदाहरण के लिए - यदि किसी चित्र में कोई जानवर कुछ करता दिखाया गया हो तो उसी से संबंधित शब्दों का प्रयोग करती हूं। जिससे वे शब्द सीख पाएं।

कभी उन्हें अपनी कहानियां बनाने के लिए प्रोत्साहित करती हूं। इससे कम बोलने वाले बच्चों को भी बोलने का अवसर मिलता है।

अंग्रेज़ी की कविताएं (राईमुज) सुनाते समय भी इसी तरीके का प्रयोग करती हूं। सिर्फ चित्रों को देखकर और तुकबंदी को सुनकर ही वे पुनः उसे सुनने को और दोहराने को तत्पर हो जाते हैं। इस तरह नए शब्द तो सीखते ही हैं।

ये बच्चे अंग्रेज़ी या प्राईवेट स्कूलों में जाना चाहते हैं, क्योंकि अमीर लोगों के बच्चे वहां पढ़ते हैं, अंग्रेजी बोलते हैं और इन बच्चों का मज़ाक उड़ाते हैं। चूंकि ये लोग तेलुगु बोलते हैं, मैं उन्हें यह बात स्पष्ट कर देती हूं कि अंग्रेज़ी हम पर हुकूमत करने वाले अंग्रेज़ों की . भाषा है। हमारी मातृ भाषा तो तेलुगु है। यह भी कहती हूं कि मैं उन्हें अंग्रेजी भी सिखा दूंगी, उन्हें खुद को पिछड़ा हुआ, नीचा समझने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन ज़रूरी है कि वे पहले अच्छे ढंग से तेलुगु पढ़-लिख और । समझ पाएं। यह बात वे आराम से समझ पाते हैं - शायद इसलिए कि मैं भी तेलुगु सीख रही हूं।

जब जाने लगती हूं तो आवाज़ सुनाई देती है - ‘सीटी मारो', जो दरअसल ‘‘सी यू टुमारो' का उनका रूपांतरण है।


आशा कचरुः प्राकृतिक खेती में रुचि; समय समय पर बच्चों को पढ़ाने की कोशिश।
मूल लेख अंग्रेजी में; अनुवादः शिवानी बजाज; एकलव्य के प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम से संबद्ध। विप्लव शशि बड़ौदा की एम. एस. यूनिवर्सिटी में कला का अध्ययन कर रहे हैं।