विकास की लगातार चलती प्रक्रिया में शिकार होने से बचने के लिए विभिन्न जंतुओं में अलग-अलग तरह की क्षमताएं विकसित हुई हैं। कुछ जीव खतरा भांपकर सिर पर पांव रखकर भाग खड़े होते हैं, वहीं किसी जीव का रंग अपने आसपास के वातावरण से इतना मिलता-जुलता है कि उसे खोज पाना ही मुश्किल हो जाता है। तो कुछ जंतु अपने आसपास के वातावरण के हिसाब से अपना रंग बदल पाने में सक्षम होते हैं। कुछ जीव जहरीले होते हैं, तो कुछ दुर्गध से भरे और कुछ तो दुर्गंधयुक्त द्रब की फुहार अपने दुश्मनों पर छोड़ते हैं।
खैर, जीवों के अपने सुरक्षा कवच हैं जो विकास की लंबी प्रक्रिया के दौरान विकसित हुए हैं। यहां हम ऐसे ही एक जीव के सुरक्षा कवच की चर्चा करेंगे जो खुद को असुरक्षित पाते ही एक तेज़ बदबूदार द्रव पदार्थ को स्प्रे करता है।
कई आर्थोपॉड में एक खास किस्म की ग्रंथि होती है। इस ग्रंथि से निकलने वाले तरल पदार्थ का इस्तेमाल ये अपने दुश्मनों के खिलाफ करते हैं। इन्हीं आर्थोपॉड की जमात में शामिल है। बम्बार्डियर बीटल (Bombardier Beetle)। यह बीटल भी बदबूदार तरल से लैस होता है। यह तरल उसके उदर के सिरे से बाहर निकलता है। किसी संभावित खतरे को देखते ही यह बीटल अपने उदर को मोड़कर, निशाना साधकर जोर से स्प्रे करता है कि दुश्मन हक्का-बक्का रह जाता है। इसके निशाना साधने के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यह एक चींटी पर भी प्रहार कर सकता है।
इसके स्प्रे में बदबूदार और तकलीफ-देह रसायन होते हैं जो शिकारी के मुंह, नाक, आंखों पर खासा असर डालते हैं। बीटल का यह स्प्रे जितना चींटियों के खिलाफ कारगर रहता है उतना ही कुछ और रीढ़धारियों के खिलाफ भी।
कुछ चूहों के खिलाफ यह स्प्रे काम नहीं आता क्योंकि इन चूहों में इस स्प्रे को सहने की क्षमता विकसित हो गई है जिसकी वजह से बीटल द्वारा स्प्रे करने के कुछ क्षणों बाद चूहे इस बीटल को आराम से खा लेते हैं।