प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ रहे बच्चों की गलतियों का एक विश्लेषण
एच. सी. प्रधान
इस लेख में, मैं ऐसे कुछ प्रकार की त्रुटियां प्रस्तुत कर रहा हूं, जो प्राथमिक शालाओं के बच्चे गणित करते समय करते हैं। क्या ये त्रुटियां समझने में असमर्थता के कारण होती हैं या लापरवाही की वजह से होती हैं? या फिर ये त्रुटियां बच्चों की व्यक्तिगत समझ, किसी अवधारणा पर उनके व्यक्तिगत परिप्रेक्ष्य के विकास का रास्ता दिखाती हैं? इन प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए ही हम कुछ त्रुटियों का विश्लेषण करेंगे। सबसे पहले हम संध्या द्वारा हल किए गए घटाने के कुछ सवालों को देखेंगे और समझने का प्रयास करेंगे कि इसके बारे में उसकी समझ कैसी है---
278 352 406
-135 -146 -219
143 206 107
(क) (ख) (ग)
क से हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं। कि संध्या को बिना उधार लिए घटाना आता है।
ख से हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं। कि उसे उधार लेकर भी घटाना आता है।
जब हम अगले सवाल पर पहुंचते हैं तो हमें यह महसूस होता है उसे उधार लेने में कहीं कुछ कठिनाई है। यहां क्या हो रहा है?
ग में जब उसे उधार लेकर 9 को घटाना है तो वह सामने 0 पाती है। इस प्रकार की स्थिति उसके सामने पहले नहीं आई होगी। इसलिए उसे पता नहीं है कि उसे क्या करना है। उसे सिर्फ यही पता है कि उसे उधार लेना है और उधार बाएं से लेना है। इसलिए वह और आगे बढ़कर 4 से उधार ले लेती है। उधार लेने की बात को निपटाने के बाद उसको दहाई संख्या का कुछ करना है क्योंकि उसे 0 में से कोई संख्या घटाना नहीं आता है इसलिए वह बचने का यही रास्ता ढूंढती है कि उत्तर में 0 लिख देती है।
बच्चों के ये हल, सही हों या गलत घटाने के प्रति समझ दिखलाते हैं। ये त्रुटियां लापरवाही वाली गलतियां नहीं हैं। इनके पीछे भी कोई तर्क है, पहले के अनुभव के आधार पर सामान्यीकरण है। यह उसके काम का वास्तव में एक सकारात्मक पहलु है परन्तु उसका सामान्यीकरण गलत है। प्राथमिक स्तर पर बच्चों द्वारा की गई बहुत-सी गलतियां इसी प्रकार की होती हैं। प्राथमिक स्तर का गणित खासतौर से अंक व बीज गणित की रचना ऐसी है कि वह सुत्र-विधि आधारित ही होती है। बच्चों को मात्र सूत्र बता दिए जाते हैं और उनका अनुकरण करने की हिदायत दे दी जाती है। किसी भी सवाल को करते समय बच्चों को बस यह चरण याद रहने चाहिए, चाहे उसके पीछे छिपे तर्क की उसे कोई समझ हो या न हो। कहीं-कहीं पर सवाल से जूझते समय ऐसा हो सकता है कि किसी चरण को अपनाते समय बच्चे को लगे कि उस चरण पर उसकी पकड़ नहीं है, ऐसा ही संध्या के साथ हुआ जब उधार लेते समय उसका शून्य से वास्ता पड़ा। ऐसे में अक्सर कोशिश यह होती है कि किसी पुराने देखे हुए तरीके से बिगड़े लगाकर सवाल हल कर दें।
इसी से बच्ची अपने पुराने अनुभव के आधार पर स्वयं सामान्यीकरण करती है एवं परिकल्पना बना उसे नई परिस्थिति में लागू कर देती है। अक्सर यह तरीका दैनिक जीवन में काम कर जाता है, यदि सामान्यीकरण गड़बड़ हैं तो बात गलत हो जाती है। परन्तु इन गलतियों के चलते हमें बच्चों को और ज्यादा परिकल्पनाएं बनाने से व उनकी जांच-परख करने से नहीं रोकना चाहिए। हमें यह भी पहचानना चाहिए कि इससे त्रुटियां होंगी ही, परन्तु हम शिक्षक होने के नाते इन त्रुटियों को सीखने के उपयोगी साधनों में बदल सकते हैं।
इसी प्रकार के घटाने के कुछ और उदाहरण देखते हैं---
352 406
- 146 - 219
214 213
इस प्रकार की त्रुटि गणितीय साहित्य में 'बड़े से ही छोटा घटाया जा सकता है', बीमारी के रूप में पहचानी गई है। बच्चा वफादारी से सिर्फ इसी नियम को, जो कि उसने सीखा हुआ है, लागू करता है कि छोटी संख्या को बड़ी में से घटाना है और इसी नियम को हर अंक (इकाई, दहाई, सैंकड़ा आदि) पर लागू करता है।
स्थानीयमान की समझ
अब स्थानीयमान से संबंधित एक उदाहरण देखते हैं। दूसरी कक्षा के बच्चों को तीन अंकों की संख्या लिखने को देने पर उनके जवाब लगभग एक ही प्रकार के थे - 476 के स्थान पर 40076, 353 के स्थान पर 30053 आदि। उनकी दहाई की संख्या की जानकारी सहीं थी, जो कि शायद उन्होंने पहली कक्षा में दो अंकों की संख्याओं के अभ्यास में सीखी होगी। कुछ बच्चों से बात करने पर यह मालूम हुआ कि उन्होंने 100, 200, 300, 400 संख्याए रट कर सीखी थीं। इसलिए वे 2 अंकों की संख्या के साथ इन्हें जोड़कर लिख देते हैं, यानी 476 को 40076 लिखते हैं।
अभाज्य संख्याएं
भाजकता में जो महत्वपूर्ण व सामान्य त्रुटियां बच्चे सामान्य तौर पर करते हैं, अब हम उन्हें देखते हैं। सबसे सामान्य त्रुटि यह है कि बच्चे सभी विषम संख्याओं को अभाज्य संख्या मान लेते हैं। शायद उन्हें यह भ्रम इसलिए होता है क्योंकि उन्हें यह बताया जाता है कि 2 को छोड़कर सभी अभाज्य संख्याएं विषम हैं।
आइए, बच्चों के कुछ कथनों पर ध्यान दें। उन्होंने कहा कि 24 के सभी भाजक 1, 3, 4, 6, 12, 24 हैं। बच्चे 2 के अलावा सभी भाजक संख्याएं बता रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा होगा? उन्हें हमेशा से यही बताया गया है कि भाजक संख्याएं लिखते वक्त 1 और दी गई संख्या (24) भी भाजकों में लिखनी होती है, और ऐसा वे वफादारी से कर देते हैं। उसके बाद बाकी की भाजक संख्याएं भाग करके पता करनी होती हैं। ऐसा देखा गया है कि वे भाग करते समय असल में भाज्यता को नहीं देखते बल्कि पहाड़े बोलकर जांचते हैं। भारतीय भाषाओं में बच्चे ज्यादातर 10 तक के पहाड़े बोलते, याद करते व बना लेते हैं।
चूंकि---
3 x 8 = 24,
4 x 6 = 24,
6 x 4 = 24,
12 x 2 = 24 है।
इसलिए पहाड़े बोल कर 3, 4, 6, 12 भाजक के रूप में 'खरे' पहचान लिए जाते हैं, किन्तु 2 1 2 = 24 इस तरह से पहाड़े बोल कर नहीं पहचाना जा सकता। बच्चे क्रम-विनिमय (Commutativity) का भी उपयोग नहीं करते। इसके उपयोग से वे कह सकते थे कि अगर 12 भाजक है तो 2 भी भाजक होना ही चाहिए।
इस 'दिक्कत' की जांच इसी समूह से 36 के भाजक लिखवा कर की गई। इसमें से उन्होंने 2 व 3 दोनों को छोड़ दिया।
भाजकता जांचने में एक और मज़ेदार गलत इस प्रकार है - जब बच्चों को 8 और 9 का महत्तम पूछा गया तो उनमें से काफी बच्चों ने कहा '0'। वे 8 को 2x2x2, 9=3x3 लिखते हैं और इनमें उनको कोई समान गुणन खण्ड नहीं मिलता। क्योंकि कोई भी समान गुणन खण्ड नहीं मिलता वे इसे 'शून्य' या 'कुछ नहीं' मान लेते है।
जो ढूंढ़ा जा रहा है उसकी अनुपस्थिति दर्शाने के लिए 0 लिखने की आदत अन्य परिस्थितियों में भी सामान्य रूप में दिखती है। उदाहरण के लिए बहुत से बच्चे ऐसा लिखते हैं
(15 )/(5×3 )= 0 15/(5×3)= 3
भिन्न का जोड़-घटा
अब एक दूसरा क्षेत्र लें जिसमें भी बच्चे काफी त्रुटियां करते हैं। भिन्न को जोड़ते (घटाते) समय सबसे सामान्य गलती है, हर को हर से और अंश को अंश से जोड़ना (घटाना)। यह गलती बच्चों के उत्तरों में से लिए गए निम्नलिखित नमूनों में भी देखी जा सकती है।
1 3/( 5 ) + 2/( 7 ) = 5/12
2 5/( 6 ) - 1/( 6 ) = 4/( 0 )= 4
3 2/( 7 ) + 2/( 5 ) = 2/12
4 23/( 39 )= 20/( 30 )+1/( 9 )+1/( 9 )+1/( 9 )
इसमें रोचक बात यह है कि (1), (2) व (4) को हल करते समय तरीके में बदलाव हो रहा है। (2) में हर को घटाने पर छात्रा को 6-6 =0 मिला है और अंश 5-1 = 4 है। बच्ची को यहां कुछ कठिनाई महसूस होती है। क्योंकि उसे शायद यह पता है कि हर '0' नहीं हो सकता। इसलिए वह उसे भूल जाती है और एक समस्या रहित उत्तर 4 लिख देती है।(3) में हर को जोड़ दिया गया है और क्योंकि अंश समान है इसलिए उसने उन्हें उत्तर में वैसे ही शामिल कर लिया है। यह हो सकता है उसे समान हर के भिन्नों को जोड़ने की याद आ गई हो। समान हर के भिन्न के जोड़ में हर वैसे ही लिखा जाता है और अंश जोड़ दिए जाते हैं। शायद इस बच्ची ने हर और अंश की भूमिका को उलट दिया है और यह अति सामान्यीकृत धारणा स्वयं कायम की है कि जो समान है उसे वैसे ही लिखना है और जो समान नहीं है उसे जोड़ देना है। (4) में बच्ची ने शायद इस 'गुर' को इस कदर आत्मसात कर लिया है कि वह इसे दिए गए भिन्न को सरल करने के लिए उपयोग कर रही है। साथ ही उसे शायद समान हर वाली भिन्न जोड़ना आता है। इसलिए उसने 3/( 9 )=( 1)/( 9 )+1/( 9 )+1/( 9 ) लिखा है।
धनात्मक एव ऋणात्मक संख्याएं
आखिर में हम धनात्मक व ऋणात्मक चिन्हों वाली संख्याओं के साथ काम करने में हुई त्रुटियों को देखते हैं। एक सामान्य गलत धारणा यह है कि दो ऋणात्मक संख्याओं को जोड़ने (या गुणा करने) पर धनात्मक (या ऋणात्मक) परिणाम आता है, जैसेः
- 3 - 5 = + 8
अक्सर यह तब होता है जब बच्ची यह नियम सीख लेती है कि दो ऋणात्मक संख्याओं का गुणा धनात्मक उत्तर देता है। वह इस नियम का 'गलत' स्थान पर उपयोग करती है। दूसरी ओर यह जानते हुए कि
- 3 - 5 = - 8
बहुत-सी छात्राएं इसी तर्क के आधार पर
(-3) ×(-5) = (-8)
तक पहुंचती हैं।
बच्चों के लिए चिन्ह बाली संख्याओं को सीखने में बहुत बड़ी अवधारणात्मक ‘कमजोरी' संक्रियाओं के चिन्ह (+ जोड़ का ब - घटाने का) को संख्याओं के चिन्ह (+ धनात्मक के लिए और - ऋणात्मक संस्याओं के लिए) से अलग-अलग न कर पाना है।
यह बात 7+ (-3) = 10 में देखी जा सकती है। यहां बच्चों ने संक्रियात्मक चिन्ह को तो जाना है। और काम में लिया है परन्तु संख्यात्मक चिन्ह को छोड़ दिया है।
इसी का एक और रूप है।
7+ (-3) = -10
यहां पर उसने शुरू में 3 के सामने लगे संख्यात्मक चिन्ह को शामिल नहीं किया और फिर उसको शामिल करके आखिर में जोड़ के पहले लगा दिया है। इसी प्रकार की गलती घटाने में भी होती है जैसेः
7- (-3) = 4
गलतियां होने का एक महत्वपूर्ण गुण है कि कोई गलती सीधी व स्पष्ट स्थिति में सामने आए यह जरूरी नहीं है, किन्तु वह किसी अपेक्षाकृत जटिल ब अप्रत्यक्ष स्थिति में सामने आ सकती है। उदाहरण के लिए एक बच्ची को यह मालूम हो सकता है कि
3 - 7 = - 4 या, - 4 + 2 = - 2 और वो फिर भी निम्न त्रुटियां कर सकती है।
अः -4+2+10 = 16
जहां उसने -4+2 = 6 लिया है।
ब: 3-7+10 =14,
जहां उसने 7 और 3 का फर्क लेकर 12 में जोड़ दिया है।
सः 3-7-10 = 4-10 = 6
जहां दोनों चरण में उसने संख्याओं के बीच भीतर की गणना की है।
शुरू कहां से करें
आखिरी चरण तक पहुंचने के लिए किसी बीच के एक परिणाम को संभाल कर रखने की दिक्कत बच्चों के अवधारणात्मक अमों को सामने ले आती है और ऊपर दर्शाई गलतियां पैदा हो जाती हैं। यही बात दूसरे क्षेत्रों में भी पाई जाती है। जैसे कि बच्ची संक्रियात्मक चिन्हों के क्रम पर ध्यान देते हुए
5+3x4 = 10
4x1 5-10 = 20
भी लिख सकती है।
उपरोक्त अनुच्छेदों में हमने विभिन्न प्रकार की त्रुटियों पर बातचीत की है। यह सब उपस्थित परिस्थितियों से जूझने के लिए बने तरीके हो सकते हैं। बच्ची कोई नियम, कोई परिभाषा या कोई अवधारणा जिसकी सूत्र के किसी चरण में उसे जरूरत है, भूल जाती है। ऐसी स्थिति में इस बात का अहसास करते हुए कि वह कुछ भूल रही है, बच्ची नियम का अपना ही रूप गढ़ कर उपयोग कर लेती है या फिर कोई दूसरी ही अवधारणा या नियम लागू कर लेती है। इसकी वजह से गलतियां होती हैं और हर बच्चे द्वारा अपनाया गया विकल्प ज्यादा स्वाभाविक, ज्यादा नैसर्गिक, ज्यादा लुभावना और ज्यादा आसान होता है। हमें यह पहचानने की ज़रूरत है। कि बच्ची अपने पिछले अनुभवों के आधार पर सामान्यीकरण करने की कोशिश करती है और ऐसा करने में कई बार वह अधूरा अथवा कई बार गलत सामान्यीकरण भी करती है। बच्ची द्वारा की गई त्रुटियों को नकारने या उन पर सिर्फ गलत के निशान लगाने के स्थान पर बच्चों के उत्तर के पीछे छिपे हुए तर्क को पहचानना शिक्षकों को बच्चों को सिखाने में मदद करने में उपयोगी होगा।
एच. सी. प्रधान: मुंबई स्थित होमी भाभा सेंटर फॉर साइंस एज्यूकेशन में प्राथमिक गणित के समन्वयक हैं।
यह लेख Edcil दिल्ली द्वारा प्रकाशित 'प्राथमिक शिक्षा के मुद्दे' मई - जून 2001 से लिया गया है।