जब बारिश की बूंदें जमीन पर गिरती हैं तो टकराकर उछल जाती हैं। मगर वे टकराकर गेंद की तरह नहीं उछलती, बूंद तो बिखर जाती है और चारों ओर छींटे उड़ते हैं। क्या चांद पर भी बूंदों के साथ ऐसा ही होगा?
शायद आप कहेंगे कि यह पता करने के लिए तो चांद पर चलना पड़ेगा! लेकिन विज्ञान में कई बार प्रयोगों को प्रयोगशालाओं में ही लगभग मिलते-जुलते हालात निर्मित कर संपन्न किया जाता है और निष्कर्ष तक पहुंचने की कोशिश की जाती है।
तो इस मज़ेदार सवाल का जवाब भी सुन लीजिए - चांद पर बूंद बिखर जाने की बजाए, गेंद की तरह उछलेगी। शिकागो के इलिनॉय विश्वविद्यालय के सिडनी नेजल ने इस बात को समझने के लिए कुछ रोचक प्रयोग किए और उन्हीं के शब्दों में, ‘‘परिणाम अत्यंत हैरतअंगेज रहे।'' दरअसल नेजल और उनके साथी लाई क्सू एवं वेंडी जांग यह जानने का प्रयास कर रहे थे कि एल्कोहल की बूंद जब उछलकर छींटों में बदलती है तो उन बारीक-बारीक बूंदों में कितनी ऊर्जा होती है। दिक्कत यह थी कि छिटकने की क्रिया पर हवा का बहुत असर पड़ रहा था। इसलिए तीनों भौतिक शास्त्रियों ने सोचा कि प्रयोग में हवा के इस असर को न्यूनतम कर दिया जाए। लिहाजा उन्होंने एल्कोहल की बूंद टपकाने के लिए एक निर्वात वर्तन लिया यानी ऐसा बर्तन जिसमें से हवा निकाल दी गई हो। आमतौर पर हमारे आसपास हवा को दवाव '1 बार' के वरावर होता है। 'वार' हवा का दवाव नापने की इकाई है। नेजल और उनके साथियों ने इस बर्तन के अंदर हवा का दवाव 10 मिलीवार तक कम कर दिया। तीनों के अचरज का ठिकाना न रहा जब उन्होंने देखा कि दबाव कम होने के साथ छींटे भी कम होते जाते हैं। जब दबाव करीब 0.2 बार तक कम किया गया तो बूंद गिरकर गेंद की तरह उछलने लगी।
नेजल का कहना है कि यदि हवा न हो तो बूंद सतह से टकराने के बाद छोटी-छोटी बूंदों में नहीं टूटेगी। चांद पर तो वायुमंडल है नहीं, इसलिए वहां भी ऐसा ही होना चाहिए।
---स्रोत फीचर से