कुछ दिन पहले की बात है। हमारा सात वर्षीय बेटा स्कूल से काफी खुश-खुश-सा लौटा था। उसके हाथ में स्कूल की वार्षिक पत्रिका थी। पत्रिका में विद्यार्थियों द्वारा लिखे लेख, कविताएं, चित्र आदि थे।
बेटे ने खुशी से पत्रिका का एक पेज खोलकर दिखाया कि इस पत्रिका में उसका बनाया गया चित्र भी प्रकाशित किया गया है। चित्र के नीचे उसका नाम भी लिखा हुआ था। हमारे बेटे की चित्र बनाने में काफी रुचि है और वह अक्सर काफी समय चित्र बनाने में बिताता है।

बेटा-मां दोनों उम्दा मिजाज़ में बातें कर रहे थे। मैंने यूं ही उस स्कूली पत्रिका को काफी ध्यान से देखना शुरू किया। बेटे द्वारा बनाए चित्र को देखा तो लगा यह चित्र तो बेटे की स्टाइल से मेल नहीं खाता। फिर और चित्रों और कविताओं, लेखों वगैरह को ध्यान से देखा तो समझ में आया कि सभी रचनाकारों के नाम तो कम्प्यूटर फॉन्ट में छपे हुए हैं लेकिन मेरे बेटे का नाम काली स्याही से हस्तलिखित है। पास ही एक जगह कुछ काली स्याही से काटा गया दिखाई दिया।
अब मुझे लगने लगा कि हो-न-हो हमारे बेटे ने किसी और के चित्र को अपना बनाया है। कुछ देर बाद मैंने उसके एक सहपाठी से स्कूली पत्रिका लेकर देखी तो साफतौर पर समझ में आया कि मामला किसी और की कृति को अपना बनाने का ही है।

मैं सोचने लगा कि हो सकता है उसके चित्र को पत्रिका के संपादक मंडल ने चयनित नहीं किया होगा लेकिन पत्रिका में अपनी जगह बनाने का यह तरीका उसे कहां से सुझा? बच्चे पर हमने ऐसा दबाव तो कभी भी नहीं बनाया कि उसे प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना ही है, या हर हाल में जीतना ही है।
बच्चे की खुशी, मां का उत्साह देखकर मैं नहीं चाहता कि बच्चे पर यह बात जाहिर हो जाए कि मुझे यह जाल-साजी पता चल गई है। बच्चे को नैतिकता का पाठ पढ़ाना चाहिए या डांटना चाहिए, कुछ भी समझ नहीं आ रहा है! कभी सोचता हूं कि इस मामले को तूल न देकर एक छोटा-सा हादसा समझकर यूं ही खत्म कर देना चाहिए।
आपकी राय में मुझे क्या करना चाहिए? कृपया अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत करवाइए।

---माधव केलकर 


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