खोए हुए अंतरिक्ष यात्री
बीसवीं सदी में गणितज्ञ व तर्कवादी, मार्टिन गार्डनर के प्रयासों ने इस परंपरा की नींव रखी कि गणितीय व तार्किक पहेलियां गंभीर चिंतन और इन विषयों को सीखने-समझने का एक जरिया भी हो सकती हैं। इसी सिलसिले को जारी रखते हुए उन्होंने आइजेक एसिमोव की विज्ञान गल्प पत्रिका के प्रवेशांक में सन् 1976 में एक ऐसा स्तंभ शुरू किया जिसमें हर पहेली एक विज्ञान कथा के इर्द-गिर्द बुनी हुई थी।
उस पत्रिका में सन् 1977 और सन् 1981 के बीच प्रकाशित कुछ ऐसी ही पहेलियों को अगले कुछ अंकों में हम परोसेंगे। विज्ञान कथा पर आधारित होने के अलावा इनकी एक और विशेषता है कि हर कहानी तीन-चार हिस्सों में बंटी हुई है। किस्से का हर खंड उसे एक नई ऊंचाई तक ले जाता है और हम इन हिस्सों को इस तरह प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि आपको प्रत्येक भाग के बारे में सोचने और उससे जूझने का पर्याप्त मौका मिले। उम्मीद है कि आप भरपूर कोशिश करने के बाद ही पन्ने पलटकर अगले खंड की तरफ बढ़ेंगे।
मार्टिनगार्डनर की विज्ञान कथा-पहेलियों के पेंगुइन द्वारा प्रकाशित संकलन ‘सायंस फिक्शन पजल टेल्स' से साभार।
जरा सिर खुजलाइए
इस बार की पहेली में डॉ. घोलू और उनके दो साथियों के श्वेतु ग्रह पर खो जाने का किस्सा चार हिस्सों में दिया गया है। हर हिस्से को ध्यान से पढ़िए। आगे के हिस्सों में पिछले वाले सवाल का हल और फिर उस से जुड़ा हुआ एक और सवाल दिया गया है।
भागः1 विख्यात अंतरिक्ष भूगर्भशास्त्री डॉ घोलू, स्पति तारे के पांचवें ग्रह श्वेतु पर कदम रखने वाले पहले इंसान थे। कई महीनों तक उन्होंने और उनके दो साथियों ने अंतरिक्षयान में से उतरकर श्वेतु ग्रह के विभिन्न हिस्सों का मुआयना किया।
श्वेतु ग्रह पृथ्वी से लगभग दुगना है परन्तु वहां जीवन के आधार के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं है। डॉ घोलू ने पाया कि यह पूरा ग्रह ही कच्छ के रेगिस्तान की तरह ही रेतीला व बंजर है। पृथ्वी की तरह ही श्वेतु भी अपने अक्ष पर घूमता है। डॉ घोलू ने अपने यान में उपस्थित दिक्सूचक यंत्र का इस्तेमाल करते हुए इस ग्रह के एक ध्रुव को ‘उत्तरी' और दूसरे को दक्षिणी ध्रुव के रुप में चिन्हित कर दिया। श्वेतु के भौगोलिक व चुंबकीय ध्रुव ठीक एक-दूसरे के ऊपर स्थित हैं।
डॉ घोलू द्वारा भेजे गए अंतिम संदेश में कहा गया था “हम अपना रास्ता खो चुके हैं और अंतरिक्षयान नहीं ढूंढ पा रहे हैं। कल हम अपने कैंप से 10 किलोमीटर दक्षिण की ओर गए, फिर 10 किलोमीटर पूर्व और फिर 10 किलोमीटर उत्तर की ओर। ऐसा करने पर हमने पाया कि हम वापस अपने कैम्प पर पहुंच गए हैं। खाने की सामग्री खत्म हो चुकी है। तुरन्त मदद भेजिए।''
डॉ घोलू से संपर्क करने और उनके स्थान के बारे में जानकारी प्रौप्त करने के समस्त प्रयास असफल रहे इसलिए पृथ्वी से एक सहायता यान तुरन्त रवाना कर दिया गया। दो दिन में यह सहायता यान श्वेतु के पास पहुंचकर उस ग्रह के चक्कर लगाने लग गया था। पास पहुंचते ही डॉ जोखिम सहायता यान को श्वेतु ग्रह पर उस जगह उतारने में जुट गए जो कि डॉ घोलू द्वारा भेजे गए अंतिम संदेश की शर्तों का पालन करता था।
- डॉ जोखिम श्वेतु ग्रह पर कहां उतरे होंगे?
भागः2 देखिए पृष्ठ 26 पर।
जरा सिर खुजलाइए
भागः2 उत्तर ध्रुव पर। डॉ जोखिम को एकदम स्पष्ट था कि अगर डॉ घोलू और उनका दल अपने स्थान से 10 किलोमीटर दक्षिण, फिर 10 किलोमीटर पूर्व और फिर 10 किलोमीटर उत्तर जाने पर अपने शुरुआती स्थान पर वापस पहुंच गया था तो वे यकीनन उस समय उत्तरी ध्रुव पर थे। परन्तु उत्तरी ध्रुव पर उतरने पर उन्होंने पाया कि डॉ घोलू व उनके दल का कोई नामोनिशान ही नहीं था।
यह सोचकर कि पिछले दो दिनों में वे फिर से इधर-उधर भटक गए होंगे उन्होंने उत्तर ध्रुव के आसपास 20 किलोमीटर त्रिज्या का पूरा इलाका छान मारा परन्तु नतीजा सिफर रहा।
अचानक डॉ जोखिम ने अपने माथे पर हाथ मारा, हम लोग गलत जगह पर ढूंढ रहे हैं। श्वेतु पर एक और स्थान है। जो डॉ घोलू के आखिरी संदेश से मेल खाता है।''
ऐसा कैसे हो सकता है?' डॉ. डॉली ने कहा, “अगर उनका शुरुआती स्थान उत्तरी ध्रुव से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है तो उनके द्वारा बताए अनुसार तीन बार 10-10 किलोमीटर चलने पर वे अपने शुरुआती स्थान से कुछ दूर रह जाएंगे। उनका शुरुआती स्थान उत्तरी ध्रुव से जितना दक्षिण की तरफ होगा, उनके अंतिम स्थान की शुरुआती स्थान से दूरी बढ़ती ही जाएगी। श्वेतु-मध्य-रेखा पर पहुंचने पर अंतिम स्थान, शुरुआती स्थान से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर होगा और दक्षिण की तरफ जाने पर तो यह दूरी बढ़ती ही जाएगी!''
-फिर भी डॉ जोखिम को विश्वास था कि वे सही हैं। इस बार उन्होंने कहां खोजा होगा डॉ घोलू को?
भागः3 देखिए पृष्ठ 48 पर।
जरा सिर खुजलाइए
भागः3 डॉ जोखिम श्वेतु के दक्षिणी ध्रुव से 11.59 किलोमीटर की दूरी पर स्थित वृत्त पर किसी भी बिन्दु से शुरू कर सकते हैं। वहां से 10 किलोमीटर दक्षिण जाने पर वे दक्षिणी ध्रुव से 1.59 (यानी 57 ) किलोमीटर की दूरी पर स्थित किसी स्थान पर पहुंच जाएंगे। अब वे 10 किलोमीटर पूर्व की ओर जाने पर दक्षिणी ध्रुव का एक पूरा चक्कर लगा लेंगे। क्योंकि यहां पर 2tR = 2 T X 5 = 10 किलोमीटर। फिर 10 किलोमीटर उत्तर की ओर जाने पर अपने शुरुआती स्थान पर वापस पहुंच जाएंगे।
इस तरह सहायता दल ने डॉ घोलू और उनके साथियों को सही वक्त पर ढूंढकर उनकी जान बचा ली। वापस लौटते समय डॉ. डॉली को अचानक ख्याल आया कि श्वेतु ग्रह पर एक और जगह हो सकती है जहां से अपनी यात्रा शुरू करने पर डॉ घोलू के दिशा निर्देशों का पालन होता था!
- क्या आप यह तीसरी जगह ढूंढ सकते हैं?
भागः4 देखिए पृष्ठ क्रमांक 66 पर।
जरा सिर खुजलाइए
भागः4 डॉ घोलू दक्षिणी ध्रुव के पास स्थित किसी ऐसी जगह से शुरुआत कर सकते थे जहां से दक्षिण की ओर 10 किलोमीटर जाने के बाद, पूर्व दिशा में जाने पर वे दक्षिणी ध्रुव के ठीक दो चक्कर लगा लेते! यह पढ़ते ही आपको ख्याल आ गया होगा कि इसी तरह ऐसे स्थान भी हो सकते हैं कि पूर्व की ओर 10 किलोमीटर जाने पर दक्षिण ध्रुव के तीन चक्कर लग जाएं, 4 चक्कर लग जाएं, ...... n चक्कर लग जाएं। जहां पर n कोई भी धनात्मक पूर्णांक हो सकता है।
यानी कि इस समस्या के अनंत वृत्तों पर स्थित, अनंत हल हो सकते हैं! इन सब अनंत हलों में स्वाभाविक है कि शुरुआती बिन्दु दक्षिण ध्रुव से 11.59 और 10 किलोमीटर के बीच होंगे।
पुनः इस किस्से का एक और प्रचलित स्वरूप है जिसमें एक शिकारी पाता है कि ठीक दक्षिण दिशा में 100 मीटर की दूरी पर एक भालू खड़ा है। इतने में भालू पूर्व की तरफ 100 मीटर चल देता है। जबकि शिकारी अपनी जगह पर खड़ा रहता है। फिर शिकारी अपनी बंदूक ठीक दक्षिण दिशा में दागकर चला देता है जिससे भालू मारा जाता है। तो बताइए कि भालू का रंग क्या होगा?
स्वाभाविक जवाब है सफेद – क्योंकि उत्तर ध्रुव के पास ध्रुवीय भालू ही पाया जाएगा। परन्तु जैसा कि हमने देखा कि यह जगह दक्षिणी ध्रुव के पास भी हो सकती है। फिर भी भालू की रंग सफेद ही रहेगा!
अगले अंक में पढ़िए एक नया किस्सा।