लेखक:   जयश्री सुब्रह्मण्यन                                                                                                                  [Hindi PDF, 90.1 kB]
अनुवाद: टुलटुल बिश्वास

सुबह का पहला पीरियड - चौथी कक्षा में भिन्न। आज सब कुछ आसान है! मैं पहले तुल्य भिन्नों की चर्चा करूंगा, फिर भिन्नों को जोड़ना सिखाऊंगा। बहुत खूब! तिमाही परीक्षाएं पास आ रही हैं और उससे पहले मुझे भिन्नों के साथ सारी क्रियाएं पूरी कर लेनी होंगी। खुद ही से ये बातें करते हुए मैंने स्कूटर स्टैण्ड पर खड़ा किया और जल्दी-से कक्षा में दाखिल हुआ। देर पहले ही हो चुकी थी। कमाल है! आज किसी साक्षात हूर-परी विद्यार्थी ने पहले से चॉक और डस्टर ला रखा था!! रोज़मर्रा की औपचारिकताओं के बाद मैंने अपने जाने-पहचाने अन्दाज़ में शु डिग्री किया, “अपनी गणित की किताब और कॉपी निकालो।” बच्चों ने हुक्म की तामील की। मैंने भी किताब खोली और पेज नं. 25 का चित्र बोर्ड पर उतारकर कहा, “आज हम भिन्नों के बारे में एक नई बात सीखेंगे। हम सीखेंगे कि 1/2 = 2/4 = 3/6 आदि। अगर आप किसी भिन्न के अंश और हर वाली संख्याओं को एक ही संख्या से गुणा करें तो पहले वाला भिन्न और उत्तर वाला भिन्न बराबर होंगे।”

बच्चों ने उत्सुकता से चित्रों पर गौर किया। (देखिए चित्र:1 व चित्र:2)
“पहले चित्र में कौन-सा भिन्न दिखाया गया है?”
“आधा”, “एक बटे दो!”- सारी क्लास ने एक साथ जवाब दिया। मैंने उन्हें सराहते हुए सिर हिलाया और आगे बढ़ा, “चित्र 2 में कौन-सा भिन्न दिखाया गया है?”
“2 बटे 4,” इस बार भी पूरी क्लास एकमत थी।

अमित, जो आमतौर पर गणित की बात शु डिग्री होते ही अपने सपनों की दुनिया में खो जाता है, आज जवाब में अपनी आवाज़ मिला रहा था। आज वह कुछ बदला-बदला-सा लग रहा था! वैसे देखा जाए तो आज सभी बदले-हुए-से लग रहे थे! आज बच्चे कुछ ज़्यादा ही उत्साहपूर्ण और चहकते हुए लग रहे थे - रोज़ के कुनमुनाते चेहरों से बहुत अलग। मुझे पिछले दिन की उनकी गतिविधि आधारित क्लास की याद हो आई। यूं तो मुझे ऐसी चीज़ें अपनी क्लास के कीमती समय की बर्बादी लगती हैं। पर कल उस स्वयंसेवी संस्था वाली अतिउत्साही महिला के कारण मुझे एक गतिविधि सत्र के लिए राज़ी होना पड़ा। वह संस्था ‘हमें सुधारने’ के लिए हमारे स्कूल के साथ काम कर रही है। मुझे इन अमीरज़ादी महिलाओं से बहुत चिढ़ है जिनकी अपनी तो सारी ज़रूरतें पूरी हो चुकी होती हैं और जब उन्हें समय काटना मुश्किल होने लगता है तो वे औरों के पीछे पड़ जाती हैं। हर किसी को और हर चीज़ को सुधारने चली आती हैं। पर हां, यह तो मुझे भी मानना पड़ेगा कि कल का सत्र विद्यार्थियों को बहुत भाया। और क्यों नहीं भाए! कोई जोड़-घटा नहीं, सवाल नहीं बस कागज़ मोड़ो और ऐसी ही और चीज़ें। पर अगर उस सत्र का असर यह है कि मेरी कक्षा में बैठे बच्चे ज़्यादा रुचि ले रहे हैं, तो अच्छा ही है।

“अच्छा,” मैंने कहा, “क्या तुम लोग दोनों चित्रों के रंगीन भाग को देख रहे हो? क्या वे बराबर हैं?”
“नहीं सर! पहले वाले में एक ही रंगीन टुकड़ा है जबकि दूसरे वाले में दो रंगीन भाग हैं,” तीसरी बेंच पर बैठी रेशमा ने कहा। वह कई बार चकरा जाती है और ऐसी बातें करती है।
मैंने कहा, “यह तो सही है, पर क्या रंगीन भाग बराबर नहीं हैं?”
“नहीं सर! बराबर नहीं हैं - एक बराबर दो थोड़े ही होता है,” यह रजत की आवाज़ थी।
मैंने कहा, “मैं यह नहीं कह रहा हूं कि 1 और 2 बराबर होते हैं। पर अगर तुम कोई असली चीज़ के टुकड़े करो, मान लो दो केक को चित्र 1 और चित्र 2 की तरह काटो, तो क्या दोनों के रंगीन भाग लेने से बराबर हिस्से नहीं मिलेंगे?” “क्या आपका मतलब एकदम बराबर है सर?” यह प्रेमा थी। मुझे लगा वह सही दिशा में आगे बढ़ रही है, इसलिए मैंने उसे प्रोत्साहित करते हुए कहा, “हां, प्रेमा एकदम बराबर।”
“फिर तो नहीं सर! अगर आप एक केक को पहले चित्र 1 की तरह दो आधे टुकड़ों में काटें, और फिर चित्र 2 की तरह चार टुकड़ों में काटें, तो पहले वाला आधा हिस्सा बाद के दो चौथाई टुकड़ों के एकदम बराबर नहीं होगा।”

मैंने पूछा कि क्यों और उसने जवाब दिया, “क्योंकि सर, केक का कुछ भाग तो चाकू से चिपका रह जाता है।” अगर उसके चेहरे पर वह अजीब-सी गम्भीरता न होती तो मैं सोचता कि वह बस टाइम खराब करने की कोशिश कर रही है। पर क्लास में सभी उसके तर्कों से सहमत लग रहे थे। न जाने किस सैद्धांतिक दुनिया में गुम थे सब-के-सब।
“सुनिए, अगर आप केक खरीदने बेकरी में जाएं और चित्र 1 जैसा केक मांगने पर दुकानदार आपको चित्र 2 जैसा केक दे दे, तो क्या आप उससे यह कहकर केक नहीं लेंगे कि वह आपको कम सामान दे रहा है?” यह कहकर मैंने उन लोगों को हकीकत के धरातल पर वापस लाने की कोशिश की।
“अ..., मैं ले लूंगी सर, क्योंकि वे लगभग बराबर होंगे,” प्रेमा ने कुछ ढील दी। पर तभी लीसा ने बीच में टोकते हुए कहा, “कल शाम मैं चित्र बनाकर यह पता लगाने की कोशिश कर रही थी कि 1/21 और 1/22 में से कौन-सा बड़ा भिन्न है। दोनों लगभग बराबर हैं। तो सर, क्या हम यह कह सकते हैं -
1/21 = 1/22?
मैंने कहा, “नहीं! समान अंश पर अलग हर, परसों मैंने क्या पढ़ाया था? कौन-सा भिन्न बड़ा है?”
“1/21 बड़ा है और 1/22 छोटा,” फिर पूरी क्लास ने एक स्वर में जवाब दिया।
“सर, अगर मेरे पास 8 केले हैं, और मैं उन्हें दो समूहों में बांट दूं तो हरेक समूह के पास 4 होंगे। पर अगर मैं उन 8 केलों को 4 समूहों में बांट दूं तो दो समूह मिलाकर फिर 4 केले होंगे। यानी वो बराबर होंगे।” आखिरकार राशिद मेरी मदद को आगे आया। मैंने कहा, “शाबाश! अब इसी तरह यहां दिए इन दो चित्रों के बारे में सोचो। ये दोनों बराबर हैं .....”

“सर,” मेरी बात पूरी होने से पहले ही आरती ने मुझे याद दिलाया, “केक वाले उदाहरण में तो ये लगभग बराबर हैं। पर हां, केले वाले उदाहरण में एकदम बराबर हैं।”
“अगर हम कागज़ काटें तो भी यह सही नहीं होगा। जो चित्र मैं एक कागज़ पर बना सकती हूं वह उसके दो टुकड़े कर देने पर नहीं बन सकता।” यह स्नेहा थी जो हर समय चित्रकारी करती रहती थी।
“सर, अगर हम आइने की बात करें तब भी यह सच नहीं होगा। दोनों बराबर कतई नहीं होंगे। कल मैंने घर पर एक आइना तोड़ दिया था और मैंने देखा कि शीशे के दो टुकड़ों में मुझे एक की जगह अब अपने ही दो चेहरे दिख रहे थे। यानी चित्र 1 के आधे भाग में मुझे अपना एक चेहरा दिखाई देगा। पर चित्र 2 के दो चौथाई टुकड़ों में मुझे दो चेहरे दिखेंगे। तो हम उन्हें बराबर कैसे कह सकते हैं? एक आइना दो आइनों के बराबर नहीं होता।” यह हमारे ख्वाबों में खोए रहने वाले अमित थे।

लीला ने उसका साथ देते हुए कहा, “अगर हम कपड़े की बात करें तब भी यह सच नहीं होगा। मेरे पिताजी दजऱ्ी हैं और वे कहते हैं कि जो काम तुम कपड़े के एक टुकड़े से कर सकते हो, उसे दो हिस्सों में काट देने से फिर उनसे नहीं कर सकते।”
आज पता नहीं क्यों सब कुछ हाथ से निकला जा रहा था। बात क्या है? और तो और सारे बच्चे गम्भीरता से ये सारी बातें कह रहे थे। नहीं तो मैं उन पर चिल्ला सकता था। मैंने कहा, “मैं इन सब चीज़ों की बात नहीं कर रहा। सिर्फ इन दो चित्रों के क्षेत्रफल को देखो। अगर तुम चित्र 2 के दोनों रंगीन टुकड़ों को चित्र 1 के रंगीन टुकड़े पर रख दो, तो क्या वे बराबर नहीं होंगे?”
“लगभग बराबर होंगे लेकिन एकदम बराबर नहीं,” जॉनी ने कहा।
“क्या मतलब है तुम्हारा ‘एकदम बराबर नहीं’?” मैंने पूछा।
“सर, दोनों के बीच एक बारीक अन्तर होगा। बाल जितना,” उसने जवाब दिया।
“पर वह तो बहुत बारीक होगा,” मैंने अपना तर्क रखा।
“जितना भी बारीक हो सर, उसकी कुछ तो मोटाई होगी ही, है न सर?” इस बार सबसे शालीन बच्चे रवि की बारी थी।
मैंने तय किया कि चूंकि बात बन नहीं रही है, इसलिए मुझे कुछ आक्रामक रुख अपनाना चाहिए। मैंने कहा, “मुझे लगता है कि हमें यहां दिए चित्रों के आधार पर ही बात करनी चाहिए क्योंकि आप लोगों की समझ में कुछ नहीं आ रहा है। मान लो इस बड़े वर्ग की एक भुजा की लम्बाई 2 से.मी. है तो चित्र 1 के रंगीन हिस्से का क्षेत्रफल कितना होगा?”
“2 वर्ग से.मी. सर,” सबने एक साथ उत्तर दिया।

“ठीक है। अब चित्र 2 के दोनों रंगीन भागों का क्षेत्रफल निकालकर जोड़ लो। क्या उत्तर आया?” मैंने बात आगे बढ़ाई।
“1 वर्ग से.मी. और 1 वर्ग से.मी.। जोड़ने पर बना 2 वर्ग से.मी. सर,” जवाब आया।
“तो क्या अब तुम सब यह मानते हो कि दोनों चित्रों के रंगीन भागों का क्षेत्रफल बराबर है?” मैंने थोड़ा और ज़ोर लगाया।
“केवल क्षेत्रफल बराबर है, सर। पर हम यह कैसे कह सकते हैं कि दोनों बराबर हैं जबकि वे एक-सा काम नहीं कर सकते।” प्रेमा फिर बोल पड़ी।
“दोनों छोटे रंगीन हिस्से भी बराबर नहीं हैं सर। एक पर एक लाइन है जबकि दूसरे पर नहीं।” मुझे लगा मैंने हमारे उभरते कवि विक्रम को कहते सुना, “एक पर तो दाग है जबकि दूसरा बेदाग!”
“हम यहां इन आकृतियों की खूबसूरती पर चर्चा नहीं कर रहे, विक्रम,” मैंने कहा। “मैं सिर्फ उनके क्षेत्रफल की बात कर रहा हूं।”
“पर सिर्फ क्षेत्रफल बराबर क्यों है? दूसरी आकृति में तो एक बारीक लाइन नदारद है। हम उसकी भरपाई कैसे करेंगे?” इस बार मैं देख नहीं पाया कि यह बात किसने कही। बहुत हो चुका था। मैं चिल्लाया “बच्चों, क्या तुम्हें पता नहीं कि एक रेखाखण्ड में सिर्फ लम्बाई होती है, मोटाई नहीं?”

सब तरफ चुप्पी थी। मुझे लगा कि आखिरकार मैं अपनी कक्षा को मना पाया था कि चित्र 2 के दो रंगीन हिस्से चित्र 1 के रंगीन भाग के बराबर थे। मुझे लगा अब मैं बात आगे बढ़ाकर यह स्थापित कर पाऊंगा कि 1/2 और 2/4 बराबर होते हैं। पर तभी एक सकुचाता हुआ हाथ ऊपर उठा, “सर, क्या मैं एक सवाल पूछ सकती हूं?” यह रम्या थी।
“ठीक है, पर जल्दी,” मैंने कहा।
“सर, अगर रेखा की मोटाई शून्य है और अगर एक आयत अनगिनत ऐसे रेखा-खण्डों से बना है, तो उस आयत का कोई क्षेत्रफल कैसे हो सकता है? क्या शून्य धन शून्य धन शून्य ............ अनगिनत बार जोड़ने से कोई धन अंक मिल सकता है?”

हे भगवान! मुझे बचा लो! इस सीधी-सादी क्लास को क्या हो गया है। क्या ऊटपटांग सवाल पूछ रहे हैं! कौन दे सकता है इनके जवाब! ऐसे तो मैं कभी अपना सिलेबस खत्म नहीं कर पाऊंगा। अब कोई गतिविधि सत्र नहीं होगा। पहले तो कभी इन्होंने इस तरह से मुझसे सवाल-जवाब नहीं किए हैं। मैं तेज़ गुस्से से चिल्लाने ही वाला था कि मुझे किसी की आवाज़ सुनाई दी, “वास्तविक जीवन में कुछ भी सटीक नहीं होता। गणितज्ञ वास्तविक जीवन के उदाहरणों का उपयोग सिर्फ एक मोटी दिशा या गाइड के रूप में करते हैं। वे कहते हैं कि वास्तविक जीवन के सभी उदाहरणों में 1/2 और 2/4 के भिन्न, सांख्यिकीय रूप से बराबर प्रतीत होते हैं। तो अगर भिन्नों के समूह के लिए एक तुल्यता के सम्बन्ध को परिभाषित करना हो तो हम कहेंगे कि a/b = c/d होगा यदि ad = bc.....’’ यह आवाज़ तो मेरे कॉलेज के दिनों के भयावह अलजेब्रा टीचर की थी। मैं डरकर चिल्लाया, “नहीं! और नहीं! अलजेब्रा नहीं। मुझे गणित कभी पसन्द नहीं था। और टीचर तो मैं बनना ही नहीं चाहता था। और नहीं सह सकता मैं! मैं इस्तीफा दे दूंगा! आज ही! मुझे छुट्टी चाहिए।”

“हां, ठीक है! इस्तीफा देना है तो दे दो पर अब उठो भी! मैंने तुम्हें कितनी बार कहा था कि पढ़-लिखकर इंजीनियर बनो। तब तो तुम मटरगश्ती करते रहे और अब पछताते हो। अपने दोस्त महेश को देखो। स्कूल में वह अंग्रेज़ी का एक वाक्य भी ठीक से नहीं बोल पाता था। अब हर दूसरे दिन अमरीका उड़ जाता है। अपने मां-बाप को भी घुमा लाया। वह लड़की वासवी। उसने इंजीनियरिंग की और अब अमरीका में ही बस गई है। वह और उसके पति, दोनों डॉलर में कमाते हैं। वहां एक घर बना लिया और यहां दो।”
“अब भी, अगर मेहनत करो तो पैसे कमाने के बहुत तरीके हैं। मैं तो कहता हूं इस नौकरी से छुट्टी करो और ज़मीन-जायदाद का काम शु डिग्री कर दो। मेरा दोस्त है - राम। उसे इस काम का लम्बा तजुर्बा है और वह तुम्हारी मदद करने को तैयार भी है.....।” पिताजी की आवाज़ और उनका रोज़ का भाषण सुनकर मेरी जान में जान आई! मैं घर पर ही था और दिन बस शु डिग्री ही हुआ था। हे प्रभु! कुछ भी नहीं बदला! यह सिर्फ एक बुरा सपना था। अब जल्दी से उठकर, तैयार होकर, नाश्ता करके स्कूल जाना होगा।

“सुबह का पहला पीरियड - चौथी कक्षा में भिन्न। आज सब कुछ आसान है! मैं पहले तुल्य भिन्नों के बारे में बताऊंगा, फिर भिन्नों को जोड़ना भी सिखाऊंगा। बहुत खूब! तिमाही परीक्षाएं पास आ रही हैं और उससे पहले मुझे भिन्नों के साथ सारी क्रियाएं पूरी कर लेनी होंगी। आज मुझे पांच पीरियड पढ़ाना है। शाम को राजेश के साथ जाकर एक फिल्म देखूंगा।” दिन भर की योजना बनाते हुए भी मेरा मन चौथी कक्षा को अनुशासन में रखने का कोई तरीका खोजने में लगा था।


जयश्री सुब्रह्मण्यन: गणित में अध्ययन और अध्यापन के बाद एकलव्य में गणित शिक्षण पर काम कर रही हैं। भोपाल में रहती हैं।
अंग्रेज़ी से अनुवाद: टुलटुल बिश्वास: एकलव्य के प्रकाशन कार्यक्रम से संबद्ध।