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Sandarbh - Issue 102 (Jan-Feb 2016)
Sandarbh - Issue 102 (Jan-Feb 2016)
1 फेल न किया तो क्या किया? - सी.एन. सुब्रह्मण्यम [Hindi,PDF 66KB]
ज़्यादातर शिक्षकों का यह मानना है कि कक्षा-8 तक छात्रों को फेल न करने की नीति के चलते देश में शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है। यही कारण है कि शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 से इस प्रावधान को हटाने के प्रयास युद्ध स्तर पर चल रहे हैं। क्या यह मान्यता सही है या फिर शिक्षक अपनी और व्यवस्थागत विफलताओं को बच्चों के सिर मढ़ना चाह रहे हैं? Read article...
2 पृथ्वी कितनी जवाँ है? : भाग 3 - सुशील जोशी [Hindi,PDF 105KB]
पृथ्वी की उम्र पता करना आसान नहीं था। विभिन्न तरह के तरीकों को आज़माने के बाद जो सबसे आधुनिक और विश्वसनीय तरीका हाथ लगा वो था रेडियोे-विखण्डन की मदद से आयु निर्धारण का तरीका। लेख के इस भाग में इसी पर बात की गई है। Read article...
3 नाक क्यों खुजाते हैं? - जेसन जी. गोल्डमैन [Hindi,PDF 109KB]
हमारी कई ऐसी आदतें होती हैं जिन्हें हम सार्वजनिक रूप से स्वीकारने में कतराते हैं। उनमें से एक है नाक को खुजाना। तो क्या यह एक तरह की बीमारी है या एक तरह की लत या और ही कुछ? Read article...
4 बहुभाषीय कक्षा में व्याकरण के नियमों को ढूँढ़ना - सविता एवं शिवानी [Hindi,PDF 123KB]
हिन्दी भाषी क्षेत्रों के स्कूलों में शिक्षण-प्रशिक्षण का माध्यम हिन्दी भाषा ही होता है। यहाँ रहने वाले गोंडी, पारधी जैसे आदिवासी समुदाय के बच्चों के लिए तो यह दूसरी भाषा है जबकि उनकी मातृभाषा तो इससे अलग है। इस लेख में कक्षा में बच्चों की प्रथम भाषा को एक संसाधन की तरह इस्तेमाल करते हुए व्याकरण के नियमों को खोजने की कोशिश की गई है। Read article...
5 संज्ञानात्मक विकास के सामाजिक आधार... - लॉरा ई. बर्क व एडम विंसलर [Hindi,PDF 134KB]
प्रारम्भिक बाल्यावस्था विशेषज्ञों की मान्यता रही है कि बच्चे जो भी जानते हैं और उनमें जो भी विकास होता है, उसमें सामाजिक तत्वों का कोई हाथ नहीं। वायगोत्स्की के अनुसार संज्ञान का समाज के साथ एक गहरा सम्बन्ध है। सामाजिक अनुभवों से हमारे सोचने के और दुनिया को समझने के तरीकों पर प्रभाव पड़ता है। इस विमर्श को और आगे ले जाता है यह लेख। Read article...
6 फंगसु - मुकेश मालवीय [Hindi,PDF 550KB]
हमारी शिक्षा व्यवस्था एक खास तरह के ज्ञान को ही मान्यता देती है और यही ज्ञान स्कूलों के ज़रिए विद्यार्थियों तक पहुँचाया जाता है। हम सभी इस बात से वाकिफ हैं कि हर परिवेश का अपना स्थानीय और क्षेत्रीय ज्ञान होता है जो बच्चे सीखकर स्कूल आते हैं। क्या स्कूल में इसे मान्यता नहीं मिलनी चाहिए? Read article...
7 विज्ञान शिक्षण में ज्ञान निर्माण - अम्बिका नाग [Hindi,PDF 160KB]
विज्ञान वास्तव में एक तरीका है जिसके ज़रिए हम दुनिया को जानने की कोशिश करते हैं। हमारी विज्ञान की पुस्तकें प्रतिपादित अवधारणाओं के अन्तिम सत्य को ही प्रस्तुत करती हैं। विज्ञान का मज़ा तो उस प्रक्रिया और उन रास्तों को जानने में है जिनसे गुज़रकर इस अन्तिम सत्य तक पहुँचा गया है। Read article...
8 लड्डू और साँप - रिनचिन [Hindi,PDF 250KB]
हमारा समाज न जाने कितने वर्गों में बँटा हुआ है। हर वर्ग का अपना अलग ओहदा और अलग स्थान। शिक्षा को जहाँ इस वर्ग विभेद को पाटना था तो इसके इतर वह खुद इसका शिकार हो गई और इसे स्थापित करने लगी। तभी तो किसी के हिस्से लड्डू आ रहे हैं तो किसी के हिस्से साँप। Read article...
9 सवालीराम [Hindi,PDF 170KB]
कुछ पौधों की पत्तियों व तने से दूध जैसा चिपचिपा पदार्थ क्यों निकलता है? इसका जवाब है इस बार का सवालीराम। Read article...
10 इमला और भाषा शिक्षण - मनोहर चमोली [Hindi,PDF 320KB]
ज़्यादातर सरकारी स्कूलों में इमला को भाषा शिक्षण का एक तरीका माना जाता है। इसके द्वारा बच्चे भाषा से जुड़े प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से कई सारे हुनर हासिल कर सकते हैं परन्तु इमला के परम्परागत स्वरूप में कई सारी कमियाँ हैं। आइए देखें कि कैसे इमला का कुशलतम उपयोग किया जा सकता है। Read article...