सवाल: कुछ पौधों की पत्तियों व तने से दूध जैसा चिपचिपा पदार्थ क्यों निकलता है?

जवाब: बचपन में हम में से कइयों ने ऐसे पौधों के साथ खेला है जिनकी पत्तियों या तने को तोड़ने पर उनसे चिपचिपा दूध निकलता है। कितना मज़ा आता था उस दूध को उँगलियों के बीच रगड़ना, दूध को टपकाना या बहाना और यह देखना कि आसपास के किन-किन पौधों से दूध या चिपचिपा तरल निकलता है। कटहल, बरगद, दूधिया, पपीता, चीकू, अकौआ, ऐलो वेरा और कई कैक्टस - इन सबमें से दूध-जैसा चिपचिपा पदार्थ निकलता है।

वैसे अनौपचारिक अवलोकनों व शोध से समझ में आता है कि इस चिपचिपे दूध की एक मुख्य भूमिका कुछ पौधों को शाकभक्षी जानवरों द्वारा नुकसान से बचाना है। जब कीड़े या अन्य जानवर इन पौधों को खाते हैं, तो इनसे निकले चिपचिपे दूध सेे उनके मुखाँग भी चिपचिपे हो जाते हैं जिस वजह से वे फिर पौधों को अधिक काट-चबा नहीं पाते। कभी-कभी यह दूध इतना चिपचिपा होता है कि कीड़े इस दूध में फँस जाते हैं। अक्सर इस दूध में ऐसे रसायन होते हैं जिनको खाने पर जानवर को खुजली, फुंसियाँ, बदहज़मी, खून की कोशिकोओं को नुकसान, यहाँ तक कि लकवा या मौत भी हो सकती है। ये असर मनुष्यों पर भी हो सकते हैं।

लगभग दस प्रतिशत फूलधारी पौधों (angiosperms) से, यानी कि कुछ 20,000 से ज़्यादा पौधों की प्रजातियों के पत्तों या तने के ऊतक जब फटते हैं तो उनसे दूध-जैसा पदार्थ निकलता है। कुछ जानवरों की चमड़ी फटनेसे जैसे खून निकलता है, कुछ ऐसे ही। और खून की तरह ही, हवा के सम्पर्क में आने पर यह दूध जमकर चिपचिपा हो जाता है।

इस दूध को लेटैक्स (latex) कहते हैं, जो कई रसायनों का मिश्रण होता है (जैसे टर्पीन, फीनॉलिक, ऐल्कलॉइड, शर्करा इत्यादि)। पौधों के घायल ऊतकों से लेटैक्स के अलावा भी अन्य तरल पदार्थ निकल सकते हैं जैसे रैज़िन व गम। ये भी हवा के सम्पर्क में आने से चिपचिपे हो जाते हैं। लेकिन लेटैक्स से ये अलग हैं। लेटैक्स खास कोशिकाओं में बनता है जिन्हें लैटिसिफर कहते हैं और ये पौधे में नलियों द्वारा फैलता है। अन्य तरल पदार्थ कोशिकाओं के बीच की जगह (intercellular spaces) में से निकलते हैं। एक और बात है, लेटैक्स हमेशा दूधिया नहीं होता - कभी-कभी यह साफ/पारदर्शी होता है या पीला, या फिर लाल, जैसे कि भाँग के पौधे में।

लेटैक्स पौधों के तने और पत्तियों से ही निकलता है - जड़ों में से निकलता बहुत कम ही पाया गया है।

चित्र 1 : मिल्कवीड की पत्ती को खाने पर उससे निकले लेटैक्स में फंसी इल्ली. 

चित्र 2 : जब रबड़ के पेड़ से निकलने वाले दूध की व्यावसायिक उपयोगिता समझ में आई तो रबड़ के पेड़ से लेटैक्स इकठ्ठा करने के तरीकों में विविधता आई.

लेटैक्स मौजूद होने के बावजूद कई कीट पौधों को खा लेते हैं। कुछ तो पत्तियों या तने से ऐसी जगह से बह रहा रस (जिसमें ज़्यादातर कार्बो-हाइड्रेट रहता है) चूस लेते हैं जहाँ से लेटैक्स न बहे। तो कुछ कीट पत्ती या तने को पहले चीरकर लेटैक्स बहा देते हैं और फिर उसे खाते हैं। और कुछ कीड़ों-इल्लियों में लेटैक्स के ज़हर को पचाने की क्षमता रहती है।

कई लेटैक्स मनुष्यों के काम आते हैं जैसे रबर, ऐलो वेरा और कई रसायन जिनसे दवाइयाँ बनाते हैं।
तो अगली बार किसी पौधे से दूधिया चिपचिपा पदार्थ निकलता देखें, तो समझ लीजिए पौधा नुकसान से बचने का एक तरीका अपना रहा है।


इस जवाब को विनता विश्वनाथन ने तैयार किया है।
विनता विश्वनाथन: ‘संदर्भ’ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।