सवाल: साँप सीधा क्यों नहीं चलता?

जवाब: साँप के पास पैर नहीं होते इसलिए चलने-फिरने के लिए वे अपने शरीर का उपयोग करते हैं। आम तौर पर वे अपनी लहरिया गति के लिए जाने जाते हैं, लेकिन साँप बहुत तरह से चल सकते हैं।
साँप सीधी रेखा में क्यों नहीं चलते का एक सीधा-सादा जवाब यह है कि साँप सीधी रेखा में भी चल सकते हैं लेकिन यह उस सतह के प्रकार पर निर्भर करता है जिस पर उन्हें रेंगना पड़ता है। आम तौर पर साँप की यह चाल दिखाई नहीं देती क्योंकि एक सीधी रेखा में चलने की आवश्यकता तुलनात्मक रूप से कम होती है। इसे ‘रेखीय चाल’ कहा जाता है और संकरी जगहों पर चलने का यह एक अच्छा तरीका है। बहुत-से मोटे, भारी शरीर वाले साँप इस तरह से चलते हैं जैसे बोआ कॉन्स्ट्रिक्टर, एनाकोंडा और पायथन।

शरीर की संरचना
साँपों की चाल को ठीक से समझने के लिए ज़रूरी है कि उनके शरीर के भीतर की संरचना को समझा जाए। साँप रीढ़धारी जीवों की श्रेणी में आते हैं। इनकी रीढ़ की हड्डी में 100 से 400 कशेरुक पाई जाती हैं। ये कशेरुक आपस में जुड़कर एक चेननुमा आकृति बना लेती हैं। अगले सिरे की कुछ कशेरुकों को छोड़कर बाकी सबके साथ पसलियों का एक-एक जोड़ा जुड़ा होता है। इन पसलियों का एक सिरा कशेरुक के साथ जुड़ा होता है इसलिए स्थिर होता है जबकि दूसरा सिरा फ्री यानी चलायमान होता है।

रेखीय चाल
माँसपेशी की गतिविधि और त्वचा के समन्वय से पैदा हुई रेखीय चाल की छानबीन सबसे पहले 1950 में एच.डब्लू. लिसमैन ने की थी। उन्होंने अनुमान लगाया कि साँप की माँसपेशियों और पेट की ढीली-ढाली त्वचा के समन्वय से साँप को रीढ़ की हड्डी में घुमाव पैदा किए बिना आगे बढ़ने में मदद मिलती है। उनका मानना था कि ये माँसपेशियाँ त्वचा को सिकुड़ने में मदद करती हैं। मगर बाद में किए ज़्यादा परिष्कृत अध्ययनों से पता चला कि सबसे पहले शरीर के अगले हिस्से की पेटवाली माँसपेशियाँ फैलती हैं और चमड़ी भी आगे की ओर फैल जाती है। फिर चमड़ी का अगला हिस्सा शल्कों की मदद से सतह पर चिपक जाता है और माँसपेशियों में खिंचाव होता है। इसकी वजह से चमड़ी सिकुड़ती है मगर सिकुड़न चिपके हुए बिन्दु से पीछे वाले हिस्से में होती है। तो चमड़ी आगे बढ़ती है और अपने साथ रीढ़ की हड्डी को भी आगे की ओर ले जाती है। यह क्रिया पूरे शरीर में दोहराई जाती है और साँप धीरे-धीरे आगे बढ़ता है। इस क्रिया में जिन माँसपेशियों का इस्तेमाल होता है वे पसलियों को त्वचा से जोड़ती हैं। चूँकि सिर्फ पेट वाली माँसपेशियाँ सिकुड़ती-फैलती हैं इसलिए यह गति किसी कैटरपिलर यानी इल्ली जैसी होती है।
इस तरह से गति करने पर साँप बहुत धीमी रफ्तार से आगे बढ़ता है। मगर यदि जगह बहुत संकरी हो तो यह तरीका बहुत काम का होता है। इसके अलावा, इस तरह चलकर साँप अपने शिकार के पास धीरे-धीरे पहँुचता है और शिकार को उसके आने का पता नहीं चल पाता।
वैसे साँप चलने के लिए कई तरीकों का इस्तमाल करते हैं। वे कौन-सा तरीका अपनाएँगे, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उनके आसपास का वातावरण कैसा है।

सर्पिलाकार चाल
सामान्य सर्पिलाकार चाल में साँप अपने सिर से शुरु करके माँसपेशियों को संकुचित करता है। यदि हम दो बिन्दु A और B की बात करें तो माँसपेशियों में संकुचन करने से पहले साँप A बिन्दु पर शल्कों की मदद से पकड़ बना लेता है। इसके बाद A और B बिन्दुओं के बीच शरीर के एक ओर माँसपेशियों में संकुचन होता है। इस संकुचन की वजह से A और B बिन्दुओं के बीच एक घुमाव बन जाता है और B बिन्दु अपने स्थान से आगे सरक जाता है। अब B बिन्दु को शल्कों की मदद से सतह पर चिपका लिया जाता है और A और B बिन्दु के बीच की माँसपेशियाँ फिर से फैलती हैं तो साँप सीधा हो जाता है और A बिन्दु थोड़ा आगे सरक जाता है (चित्र-2)।
यह क्रिया सिर से लेकर पीछे की ओर कई बिन्दुओं पर दोहराई जाती है और बारी-बारी से शरीर के दोनों बाज़ुओं में होती है। इस प्रकार से साँप च् आकार में लहरें बनाते हुऐ आगे बढ़ता है। आप देख ही सकते हैं कि इस तरह की गति के लिए सतह पर कई खुरदरे स्थान होना ज़रूरी हैं।

साइड-वाइंडिंग चाल
जब ऐसे बहुत सारे खुरदरे स्थान मौजूद न हों, तो साँप इसी प्रक्रिया का एक अन्य रूप अपनाता है। वह मात्र दो स्थानों पर सतह से चिपककर शरीर को मोड़ता है और सीधा करता है। इसे साइड-वाइंडिंग चाल कहते हैं। यह रेटिलसर्प जैसे साँपों को गर्म रेत और चढ़ाई में मदद करता है। इस तरह की गति की विशेषता है कि उस जगह पर साँप के चलने के निशान उस दिशा में नहीं बनते जिस दिशा में साँप गति कर रहा होता है। और दूसरा कि साँप का कोई भी हिस्सा लगातार ज़्यादा समय के लिए ज़मीन के सम्पर्क में नहीं रहता इसलिए तपती हुई रेत पर भी साँप बिना झुलसे चल पाता है।
एक और चाल होती है जिसमें साँप किसी बिन्दु को पकड़कर माँसपेशियों के प्रसार और संकुचन की मदद से आगे बढ़ता है। इसे कंसर्टिना चाल कहते हैं। इस तरह की गति में साँप का पूरा शरीर एक साथ गतिमान नहीं होता। यह चाल प्राय: पेड़ों पर चढ़ने या संकरे बिलों वगैरह में काम आती है।
तो इससे यह पता चलता है कि विभिन्न स्थानों पर साँप अलग-अलग तरीकों से चलते हैं और ज़रूरत पड़ने पर अपनी चाल बदल सकते हैं।


कोकिल चौधरी: संदर्भ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।
साँपों की चाल पर एक अन्य लेख तौबा ये मतवाली चाल संदर्भ अंक-33 (अगस्त-सितम्बर, 2000) में पढ़ा जा सकता है।