यूहान हार्शटा
कहानी
मुझे नाप-तोल लिया गया है और कमी पाई गई है। मुझे और सारा को। हमें सिक्के के वज़न चाहिए ताकि हम धरती से उड़ न जाएँ। मैं अपने कमरे में बैठता हूँ और टीवी देखता हूँ, रात तक, सारे सिटकॉम्स जो उन सारे दोस्तों, दम्पतियों और लोगों के बारे में हैं जो हमेशा एक-दूसरे के लिए हाज़िर रहते हैं, मैं समाचार देखता हूँ, जो कुछ भी आ रहा है, मैं पुनःप्रसारण के भी पुनःप्रसारण देखता हूँ और सोचता हूँ कि समय धीमे नहीं गुज़रता, घड़ियाँ ही उसके साथ नहीं चल पातीं, और दो सप्ताह बाद मुझे डाइव कर पाना होगा; अगर नहीं कर पाता तो सब कुछ खो दूँगा, अगर नहीं करता तो शारीरिक शिक्षा पास करने का कोई रास्ता नहीं है, और तब मैं उस स्कूल में नहीं जा पाऊँगा जहाँ वह जाने वाली है, मैं अब तक कूद नहीं लगा पाता गोकि सब यह कर पाते हैं, और प्रेरणा के एक पल में मैं उठता हूँ, बाथरूम की ओर दबे पाँव जाता हूँ और अपनी तैरने की पोशाक, एक साफ तौलिया ले आता हूँ, अपने कमरे में लौट तैयार होता हूँ, और घर मौन है, मेरी बहन के अलावा, वह जगी है, अपने कमरे में बैठी है, संगीत सुन रही है, उसके ईयर-फोन की तीखी ध्वनि बाहर गलियारे में सुनाई दे रही है, मैं उसे डेस्क पर पेंसिल से ताल देते सुन पाता हूँ, पर उसे तालबोध नहीं है और मैं माता-पिता के शयनकक्ष के खुले दरवाज़े पर जाता हूँ, मैं डैड को खर्राटे भरते सुनता हूँ, कमरे से उठती नींद की महक और चादरों की ध्वनि गलियारे में नीचे तक जाती है, मैं जूते पहनता हूँ और बाहर बर्फ में निकल, अपने पीछे दरवाज़ा बन्द करता हूँ।
मैं साइकिल से शहर की ओर बढ़ता हूँ, बर्फ गिरनी बन्द हो चुकी है और बाहर जो इकलौता हिमहल है उसे कोई काम नहीं है, क्योंकि वह बर्फ हटाने के लिए है और हटाने को बर्फ ही नहीं है, बस हल्की-सी हिमी भर है, और मैं स्कूल की ओर साइकिल चलाता हूँ, फुटबॉल के मैदान के पार और नहान घरों के पास अपनी साइकिल पर ताला लगाता हूँ।
मैं पिछवाड़े की ओर जाता हूँ, पिछले दरवाज़े को, पास की फूलों की क्यारी की किनार बनाने को जो पत्थर रखे हैं उनमें से एक मैं उठाता हूँ, खिड़की के काँच पर अपना तौलिया लगा मैं पत्थर से उसे तोड़ देता हूँ, अपना हाथ अन्दर घुसा मैं दरवाज़ा खोलता हूँ, कॉरिडोर में चलता हुआ, चेंजिंग कक्ष की ओर बढ़ता हूँ, यद्यपि आधी रात का समय है अन्दर प्रकाश है, सब कुछ प्रतिबिम्बित हो रहा है, सफेद दीवारें, नीला फर्श, विशाल खिड़कियाँ।
कपड़े बदलने के कमरों में अन्धकार है, मैं बत्तियों का खटका टटोलता हूँ, सिंक के ऊपर एक मिलता है, तैरने के सामान वाला बैग मैं लकड़ी की बैंच पर रख, कपड़े उतारता हूँ, अपना जैकेट हुक पर टाँगता हूँ, पतलून और स्वेटर को तह करता हूँ, उन्हें एक-दूसरे पर रखता हूँ, अपने जूते बैंच के नीचे रखता हूँ, मोज़े उनके अन्दर घुसे हैं, और मैं अपनी तैरने की चड्डी पहनता हूँ और पूल के पास आ जाता हूँ, क्लोरीन की तेज़ गन्ध मुझे मिलती है, पानी पूरी तरह स्थिर है और कमरा नीला है, स्थिर और नीला, हवा ठण्डी है, शरीर के बाल खड़े हो जाते हैं और मैं ठिरे फर्श पर पैर की उँगलियाँ सिकोड़ लेता हूँ। पूल अटेण्डेण्ट के दफ्तर का दरवाज़ा जो पीछे, डाइविंग बोर्ड के पिछवाड़े है, बन्द है, पर उसे खोलना आसान है, उस पर पुराना-सा ताला जड़ा है जो कुछ भी घुसेड़ उमेठने पर खुल जाता है, सो मैं अपने घर की चाबी ही इस्तेमाल करता हूँ, और वहाँ अन्दर, टेबल पर चीर-फाड़ की प्रतीक्षा में रखी लाश की तरह, वह फर्स्ट एड डमी पड़ी है। फिर से डूबने को तैयार, मुझे इस बार उसे बचा ही लेना है। अन्यथा वह वहीं पड़ी रहेगी।
मैं उसे काँख में लेता हूँ, उसने जो ट्रैकसूट पहना है उसके सहारे उठाता हूँ, बत्ती गुलकर अपने पीछे दरवाज़ा बन्द करता हूँ, गर्दन पर लगे बटन को दबा मैं उसे चालू करता हूँ; पूल के पास जाता हूँ और उसे फेंकता हूँ। विशाल, खाली तैराकी हॉल में छपाक की आवाज़ गूँजती है, और लहरें चारों ओर दीवार पर चढ़ते साँपों-सी प्रतिबिम्बित होती हैं। वह मदद के लिए चीख सकती थी, पर वह ऐसा करती नहीं है। वह कर्तव्य-परायणता के साथ, पूर्व अभ्यास के अनुरूप डूब जाती है।
और मैं वहाँ खड़ा हूँ, डाइविंग बोर्ड पर, पानी एक मीटर नीचे है, सब कुछ फिर से शान्त है, और उसके नीचे साढ़े चार मीटर की दूरी और है, वह वहाँ पड़ी है, मेरे द्वारा बचाए जाने के इन्तज़ार में, कोई आए और उसे उठाकर प्रकाश में लाए, फिर से हवा में लाए, और पानी साफ है, क्लोरीन पानी को तल्ख और साफ बनाता है, और वह नीचे धीरज-से अपने लाल ट्रैकसूट में पीठ के बल पड़ी है, उसकी बाँहें बगल में हैं, सफेद स्नीकरों के तस्मे सफाई से बँधे हैं।
अगर पानी के घटक को आप नज़रअन्दाज़ कर दें तो सारा के होंठों ने ही पुतली को आखिरी बार स्पर्श किया है, उन नरम रबर के होंठों को छुआ है जो वहाँ पानी में पड़ी है, और अगर मैं उतना नीचे जा सका तो यह उसे चूमने जैसा होगा, ठीक वैसा नहीं, पर तकनीकी रूप से देखें तो जहाँ तक मैं पहुँच सकता हूँ उसके लगभग पास। उसका थूक अब भी वहाँ नीचे हो सकता है, और पल भर के लिए ऐसा लगता है कि पुतली नीचे पानी में मुस्करा रही है, पफर मछली की तरह होंठ सिकोड़ रही है।
और मैं वहाँ डाइविंग बोर्ड पर, अब सिर्फ मैं ही उसे बचा सकता हूँ, और मैं एक गहरी साँस खींचता हूँ, छोड़ता हूँ, और कूद जाता हूँ, मैं बिलकुल सही तरह से पानी में घुसता हूँ, लतियाना शु डिग्री करता हूँ, पर भय पल भर में उपस्थित हो जाता है, एक गुब्बारे की तरह, और यद्यपि मैं पूरे ज़ोर-से पैर चला रहा हूँ, मैं कहीं नहीं पहुँचता, मैं पाता हूँ कि मेरा शरीर मुड़ रहा है, मुझे ऊपर-नीचे का भान नहीं रहता, भय जकड़ता है, मैं सहज ही साँस खींचता हूँ और पानी निगलता हूँ, मेरा शरीर झटका खाता है, मुझे वह नज़र आती है, उसका हाथ बढ़ता है और वह समुद्री खरपतवार और जन्तुओं को हटा देती है, वह मुझे पुकारती है, पर उसकी आवाज़ पानी में मुझ तक नहीं पहुँचती। उसके मुँह से निकले बुलबुले मेरे चेहरे से मिलते हैं, और मैं पैर चलाता हूँ, मैं अपने हाथ फेंकता हूँ और पानी की सतह फोड़ता हूँ, बाहर हवा में आता हूँ, साँस खींचने की कोशिश में हाँफता हूँ और वापिस ज़मीन की ओर तैर जाता हूँ, टाइलों पर बाँह टिका सुस्ताता हूँ, उसे नीचे धीरज, नाराज़गी और भय से पड़ा देखता हूँ। तब मुझे बाहर के पत्थरों की याद आती है। मुझे भार की ज़रूरत है।
कूदो।
कूदो।
कूदो।
मैं अपने पैर सुखाता हूँ। चेंजिंग कक्ष से बाहर चला आता हूँ, बाहर कॉरिडोर में और घुसने के टूटे दरवाज़े तक, और मैं तीन सबसे बड़े पत्थर अपने साथ पूल तक लाता हूँ, उन्हें ऑफिस में बॉल की खाली जाली में डाल अपने साथ डाइविंग बोर्ड तक घसीट लाता हूँ, जाली का सिरा मज़बूती से हाथ के इर्दगिर्द बाँधता हूँ, एक साँस खींचता हूँ, उसे बाहर छोड़ता हूँ, देर तक साँस रोके रहने का अभ्यास करता हूँ, फिर छोड़ता हूँ और फिर से साँस खींचता हूँ, अपने फेफड़े भर लेता हूँ, और तब खुद को जाने देता हूँ, नीचे की ओर धँसता हूँ।
मैं सतह को अपने ऊपर गायब होते देखता हूँ, मेरा दिल छाती में ज़ोरों से धड़कता है, मेरे कानों में धमाधम होती है और मैं देख पाता हूँ कि मैं नीचे पड़ी पुतली के पास जा रहा हूँ, वह इतनी शान्ति से पड़ी है, ऊपर से आने वाले फरिश्ते की राह देखती, और पत्थर मुझे हौले-हौले नीचे खींचते हैं, मैं पैर से लात लगा नीचे को बढ़ता हूँ, और मेरे चारों ओर शान्ति है, सारे कोने वृत्ताकार हो गए हैं, मैं दूसरी ओर पूल का छोर देख पाता हूँ, जो सबसे छिछला है, अब से पहले अधिकतर समय मैंने वहीं गुज़ारा है, जहाँ मैं सुरक्षित महसूस करता हूँ, मैं नीचे पुतली की ओर तैरता हूँ, पत्थरों से खिंचता हुआ, इतने गहरे मैं पहले कभी नहीं आया हूँ, और जब मैं उसके पास पहुँचता हूँ तो मेरे फेफड़े हवा से भरे हैं, जब मैं तल को छूता हूँ तो मुझे विश्वास ही नहीं होता, सफेद और काली टाइलें, बुलबुले, ऑक्सीजन सब मेरे ऊपर उठ रहे हैं, और पुतली अपने लाल सूट में स्थिर मेरे पास पड़ी है, मानो कुछ हुआ ही न हो, मानो वह हमेशा की तरह शोकातुर हो, बचाए जाना ही उसकी नियति है।
पर अब जब मैं नीचे आ चुका हूँ, मुझे क्या करना है यह अचानक मुझे पता ही नहीं पड़ता। सो मैं उसके पास बैठता हूँ, उसका हाथ अपने हाथ में ले, ढाढ़स बँधाता हूँ, हथेली मुलायम, रबरनुमा है, उसका हाथ, कोहनी, शरीर कठोर प्लास्टिक का, उसकी आँखें बन्द हैं, पलकें दाएँ-बाएँ नाचती हैं। मैं अपने पैर, अपनी टाँगें देखता हूँ, उसकी ओर देखता हूँ, सब कुछ असाधारण रूप से स्पष्ट है, मानो रेखांकित यथार्थ, मानो डिजिटल कैमरे से फिल्माया गया हो, नीले-हरित रंगों में, और मैं उसके मुँह को देखता हूँ, मुँह जिसे सारा ने आज कुछ पहले अपने होंठों से छुआ था, और मैं झुकता हूँ, अपने होंठ उसके होंठों पर रखता हूँ, अपनी आँखें बन्द कर कल्पना करने की कोशिश करता हूँ कि मुझे सारा का स्वाद पता चल रहा है, कि मैं जानता हूँ कि उसका स्वाद कैसा है, उसे चूमने पर वह कैसी लगती होगी। और उसका स्वाद क्लोरीन का है।
मुझे जल्दी ही ऊपर जाना चाहिए, मैं यह जानता हूँ, मुझे बाँह पर बँधे पत्थर खोलने चाहिए, पुतली को साथ ले जाना चाहिए, उसे पुनर्जीवन देना चाहिए, पर मैं करता नहीं हूँ। मैं पूल के तल पर बैठा रहता हूँ और मैं डर नहीं रहा हूँ। जिस हाथ पर पत्थर नहीं बँधे उससे मैं पुतली को उठाता हूँ सो वह भी पूल में सीधी बैठी है, और मैं उसके पास बैठ जाता हूँ, इस तरह कि हम दोनों ताल के दूसरे छोर को देख रहे हों, सबसे छिछले भाग को, जहाँ मैं समय गुज़ारा करता था, और मेरे फेफड़े दुखने लगे हैं, मुझे कुछ हवा छोड़नी होगी, थोड़ी-सी हवा, और बुलबुले उठते हैं और सतह पर फूट जाते हैं, मुझे भी ऊपर उठ जाना है, और पुतली मेरी ओर मुड़कर कहती है, “अच्छा हुआ कि तुम अब आ गए।”
“हाँ,” मैं कहता हूँ, “बेशक मुझे देर-सबेर आना ही था।”
वह आँखें खोलती है, सूनी निगाहों से पानी को घूरती है और कहती है, “मुझे हमेशा अजनबियों के रहम पर निर्भर रहना पड़ा है।” तब वह हँसती है, खिलखिलाहट भरी हँसी जो उसके आसपास के पानी को पूरी तरह सफेद बना डालती है।
मैं ऊपर सतह की ओर देखता हूँ, कि हमारी नाव वहाँ ऊपर है, नौका का तल पानी को काट रहा है, मैं डैडी के हाथ को तलाशता हूँ, पर मुझे वह मिलता ही नहीं, नाव का तला इधर से उधर हिलडुल रहा है, मैं उस तरफ से ऊपर न जा सकूँगा, सो मैं हाथ पुतली के गिर्द डालता हूँ, पानी में खड़ा होता हूँ, और मेरी छाती में दर्द है, मैं फेफड़ों की बची-खुची आखिरी हवा निकालता हूँ, मेरी आँखों के पीछे अँधेरा गहराता है, दृष्टिपटल पर लाल कौंधता है, मानो सिर फट जाने वाला हो, मैं उसे अपने पीछे घसीटता ऊपर ले चलता हूँ, वह अपनी आँखें बन्द कर बेहोश हो जाती है, अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पाती, सो मैं उसे उठाकर चलना शुरू करता हूँ।
मैं ताल के दूसरे छोर की ओर चलता हूँ, हल्के उठान पर चढ़ता हूँ, उस निशान की ओर जो बताता है -आकस्मिक गहरा पानी, मैं अपने पीछे तल से छूते पत्थरों को घसीट रहा हूँ, छिछले पानी की ओर बढ़ रहा हूँ, धीमे-धीमे, और प्रकाश का रंग बदल जाता है, मुझे आवाज़ें सुनाई देने लगती हैं, बाहर की, मैं सतह फोड़ता हूँ, ऊपर आ जाता हूँ, मेरा सिर पानी के बाहर है और मैं पहली बार साँस लेता हूँ, और मैंने एक जान बचा ली है।
विशाल खिड़कियों से नीली बत्तियाँ मेरी ओर कौंध रही हैं, और मैं पुतली को सीढ़ियों के ऊपर खींचता हूँ, जल्दी-से, उसे फर्श पर लिटाता हूँ, और सोचता हूँ, कि वे मेरे लिए आ गए हैं, उन्होंने टूटे दरवाज़े को देख लिया और अब मुझे ले जाया जाएगा और मुझे पूरी रात अपनी तैरने की चड्डी में ही सवाल-जवाब के दौर से गुज़रना होगा।
मेरी कुर्सी पर पानी टपकता रहेगा, पूछताछ कक्ष की काली चमड़े वाली कुर्सी पर, और हर बार जब बूंद काले चमड़े पर टपकेगी तो छपाक की आवाज़ होगी, और वे मुझसे पूछेंगे कि मैंने ऐसा क्यों किया तब तक जब तक मैं जवाब न दे दूँगा और वे मुझे जाने न देंगे, और मैं उन विशाल खिड़कियों के पास खड़ा हूँ, पुतली मेरे पीछे है, और मैं बत्तियों को देखता हूँ, नीली बत्तियाँ बड़ी होती जा रही हैं और मैं लिवा लिए जाने को तैयार हूँ, मैं सब कुछ स्वीकार लेता हूँ, हाँ, मैं ही, अन्दर घुस आया हूँ, हाँ, मैंने ही पुतली चुराई है, हाँ, हाँ, और अब मैं डरता नहीं हूँ, मैंने एक ज़िन्दगी बचाई है। पर बत्तियाँ दिशा बदलती हैं, और साइरन बजने शुरु हो जाते हैं, एम्बुलेन्स सड़क पर गुज़रती है, मैं उसे रफ्तार पकड़ते सुनता हूँ, गति पकड़ वह मेरे कानों और दृष्टि से ओझल हो जाती है, और मेरे पीछे, पुतली लेटी है, आँखें मूंदे, टाइलों पर सुरक्षित, अपने गीले ट्रैकसूट में। मैं उसे यथास्थान वापिस रखता हूँ, कपड़े बदलने के कक्ष में जाता हूँ, कपड़े बदलता हूँ, पत्थरों को बाहर रखता हूँ, साइकिल से घर जाता हूँ, गुपचुप अपने कमरे में घुसता हूँ, बिस्तर में घुसता हूँ, गीले बालों में ही सो जाता हूँ।
घड़ियाँ ही समय का साथ नहीं दे पातीं, और दो सप्ताह बाद मैं उसी तरण ताल में वापिस आता हूँ। स्थानीय अखबारों में सेंध का ज़िक्र होता है, खास गौर करने लायक नहीं, किसी को जाँच करने लायक कुछ नहीं लगता, आखिर कुछ भी तो चोरी नहीं गया है, सब कुछ यथास्थान है, और जिन लोगों ने दो सप्ताह पहले अपनी डाइविंग परीक्षा पास कर ली है उन्हें ताल के छिछले भाग में वॉटर पोलो खेलने की इजाज़त मिल जाती है, जबकि हम तीनों जिन्हें एक और मौका दिया जा रहा है असहाय-से डाइविंग बोर्ड पर खड़े हैं, तख्ते पर बढ़ने को तैयार, सो मैं हूँ, और जुआकिम, जिसे पिछले तीन सप्ताह अपने पिता के साथ बेल्जियम जाने की अनुमति मिली थी, और काथरीना जो कूदने को तैयार है, पर काथरीना हमेशा इससे बच निकलने में सफल रहती है, वह हम सबसे साल भर बड़ी है, और वे कहते हैं कि उसे इस साल फिर से परीक्षा देनी होगी क्योंकि वह इतनी बेवकूफ है कि उसे यह तक नहीं पता कि वह कहाँ रहती है, कम-से-कम हम तो यही अन्दाज़ लगाते हैं क्योंकि उसे हर रोज़ स्कूल तक पहुँचाने और वापिस घर ले जाने के लिए एक टैक्सी आती है, गोकि किसी ने उससे पूछा नहीं है। काथरीना रोकर कूदने से बच जाती है, इस बार भी, उसे वॉटर पोलो खेलने की छूट मिल जाती है, जबकि मुझे और जुआकिम को रुकना पड़ता है। टीचर सीटी बजाती हैं और जुआकिम कूदता है, पानी में गायब होता है, वापिस लौटता है, पुतली के साथ ज़मीन पर आता है, उसे कृत्रिम साँस दे जिलाता है, वह रटता रहा है, पढ़ता रहा है, प्रिंट-आउट निकलता है, उसकी टिप्पणियों के साथ नत्थी किया जाता है और जुआकिम जिसने अपना होमवर्क किया है, फिर चाहे वह बेल्जियम गया हो या नहीं, की पीठ थपथपायी जाती है।
“तो एक बार फिर हम दोनों बचे हैं,” वे कहती हैं। मुझे देखते हुए।
“हाँ,” मैं कहता हूँ।
और कूदता हूँ।
और मैं लम्बे समय तक नहीं लौटता।
मैं पैरों के बल शरीर तानता हूँ, फेफड़ों से पूरी हवा निकाल देता हूँ, खुद को बिलकुल सपाट बना लेता हूँ और पैर चलाता हूँ, धीरे, पर अपने अंग-संचालन में मज़बूती के साथ, मैं इतना ध्यानमग्न हूँ और फिर से नीचे बढ़ता हूँ, नीचे तल की ओर उस लाल ट्रैकसूट की ओर, और जब मैं उसके पास नीचे बढ़ता हूँ तो वह अपनी आँखें खोलती है, एक बार आँख मारती है, और मैं उसे उठा लेता हूँ, एक पल उसे देखता हूँ और उसके इर्दगिर्द बाँहें डालता हूँ, यह जाँचने के लिए देखता हूँ कि वह मुझे देख रही है या नहीं, वह मुझे कोई प्रतिक्रिया दे रही है या नहीं, मैं उसके होंठ छूता हूँ, और तब ऊपर की ओर देखता हूँ, वहाँ रंगों का ढेर लगा है, बच्चों का एक झुण्ड ताल के किनारे एकत्र है, और ठीक उसी पल मैं सतह पर, पुतली के साथ निकल आता हूँ, कोई भी कुछ नहीं कहता, पूरी शान्ति है, और मैं देखता हूँ कि टीचर का चेहरा ज़र्द पड़ गया है, उन्होंने अपनी पतलून और टी-शर्ट उतार दी है, और वे अपने तैरने की पोशाक में खड़ी हैं, अन्दर कूदने को तैयार, मैं अपने पीछे पुतली को ज़मीन पर घसीटता हूँ, अपना पानी निकालने के बाद उसमें जान फेंकता हूँ, उसके होंठ मेरे होंठों से लगे हैं, सही जगह तलाश पाता हूँ, और इस दौरान टीचर मेरे पास हतप्रभ-सी खड़ी हैं, पुतली कृतज्ञतावश अपने शरीर के एक हिस्से से पिं्रट-आउट निकालती है, और टीचर उसे सायास स्टेपल करती हैं, मुझसे पूछती हैं कि क्या मैं ठीक महसूस कर रहा हूँ, क्या मुझे शेष दिन की छुट्टी चाहिए और मैं कहता हूँ, “शुक्रिया,” पलटता हूँ और चला जाता हूँ, कपड़े बदलता हूँ, निकल आता हूँ, बर्फ गिरने लगी है, और बाहर सारा खड़ी है, नई पोशाक में, वह बेहतर लग रही है, कहीं बेहतर, उसका चेहरा जीवन में लौट आने की तैयारी में है, एक नया रोमन साम्राज्य, और मैं कहता हूँ, “तुम लौट आईं?” मैं चेहरे पर मुखौटा लगाए रखने की कोशिश करता हूँ, पर कोशिश त्याग देता हूँ, उसे भेंटने की कोशिश करता हूँ, और सब ठीक हो जाता है। “बढ़िया हूँ, पर कुछ सूझता नहीं, सो मैं रुका रहता हूँ कि वह बोलती जाए, इन्तज़ार करता हूँ कि उसकी आवाज़ सारी जगह घेर ले और वह मुझे बताती है कि वह कल ही लौटी है, कि अब उसे शारीरिक शिक्षा से छुट्टी मिल जाएगी, उसे बदले में कुछ असाइनमेंट करने होंगे, और मैं पूछता हूँ कि क्या वह उस स्कूल में दाखिला लेने की कोशिश करेगी जिसकी बात वह पहले कर रही थी, और वह यह करने वाली है। सो मैं गहरी साँस लेता हूँ, उससे पूछता हूँ कि क्या वह कॉफी पीना चाहेगी, अपनी बाइक की ओर बढ़ता हूँ, हौले-हौले, मानो उससे कह रहा हूँ -- चलो चलें।
यूहान हार्शटा: नॉर्वेजियन उपन्यासकार, लघुकथा लेखक, नाटककार और ग्राफिक डिज़ाइनर। वर्तमान में नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में रहते हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: तेजी ग्रोवर व पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा।
तेजी ग्रोवर: हिन्दी कवि, कथाकार, अनुवादक एवं चित्रकार। बाल-साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में गहरी रुचि। कई वर्ष ज़िला होशंगाबाद में किशोर भारती संस्था के साथ काम।
पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा: सुप्रसिद्ध अनुवादक। शिक्षा और बाल साहित्य के क्षेत्रों में अनेकों पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद किया है। जयपुर में रहती हैं।
सभी चित्र: भारती तिहोंगर: जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली से फाइन आर्ट्स में स्नातक। स्कूल ऑफ कल्चर एंड क्रिएटिव एक्सप्रेशंस, अम्बेडकर यूनिवर्सिटी से विज़ुअल आर्ट्स में स्नातकोत्तर। स्वतंत्र रूप से चित्रकारी करती हैं।
यह कहानी यूहान हार्शटा के कहानी संग्रह अम्बूलांस से ली गई है।