यूहान हार्शटा

मुझे नाप-तोल लिया गया है और कमी पाई गई है। लगभग दो बज गए हैं।
और दिन का आखिरी पाठ है, और मैं डाइविंग बोर्ड के पिछले हिस्से में, बिलकुल किनारे पर खड़ा हूँ, मेरे सामने दूसरे हैं, वे दूसरे जो कूदने वाले हैं, और जल्दी ही मेरी बारी भी आने वाली है। पर यह असम्भव है। चाहे कुछ भी हो जाए। मैं जानता हूँ।
पर मुझे यह करना ही है। यह आखिरी ड्रेस-रिहर्सल है। अन्तिम मौके से पहले वाला मौका। मुझे डाइविंग बोर्ड के छोर तक चलना है, घुटने झुका, अपनी पूरी ताकत लगा उछलना है और पूल में छलांग लगा, पानी की सतह बेध लतियाते हुए नीचे जाना है, पूल के तल तक पहुँच, उस बेजान प्लास्टिक की पुतली को ढूँढ़ना है, उसे बचा पानी की सतह तक लाना है, तब उसके साथ तैरते हुए उसे ज़मीन की ओर ले आना है, और तैराकी हॉल की फिसलन भरी टाइल्स पर घसीट उसकी जान बचानी है। तो यह मुझे करना है। और जब मैं यह सब कर चुकूँगा तो उसकी बगल में बने वॉटर प्रूफ खाँचे से कागज़ का एक टुकड़ा निकलेगा जिसमें कहा होगा कि वह पुतली ज़िन्दा है और उसकी धड़कनों की गति क्या है, कि वह साँस ले रही है, और यद्यपि वह इतने लम्बे समय से डूबी रही है, फिर भी वह बची रहेगी। अब मेरी बारी है।
सीनियर स्कूल के अन्तिम साल में शारीरिक शिक्षा के लिए यह कर गुज़रना ज़रूरी है। वह घड़ी आ चुकी है, यह महत्वपूर्ण है और मैं इसी एक पल से खौफ खाता रहा हूँ। मुझसे यह नहीं हो सकेगा, फिर भी मुझे उसे बचाना ही है, मुझे उससे कागज़ की वह पर्ची चाहिए, नहीं तो मैं हार जाऊँगा और शारीरिक शिक्षा में गुड़क जाऊँगा, और यह मुझे नहीं पोसाएगा। सो मैं कूदता हूँ, मेरी आँखों में क्लोरीन घुस जाती है, मैं उस हवा के लिए छटपटाता हूँ जो नदारद है, मेरा शरीर हठपूर्वक पानी में खुद-ब-खुद मुड़ता है और मैं ऊपर की ओर उठ आता हूँ, सतह बेधते समय पहले मेरा एक पैर निकलता है, तब सिर पूरी साँस खींचता भी नहीं कि मुझे डाइविंग बोर्ड के पास सफेद पतलून और नीली टी-शर्ट पहने खड़ी शिक्षिका नज़र आती हैं, उनके गले में सीटी झूल रही है, जब वे उसे बजाएँगी तो मेरा काम तमाम समझो, मुझे पानी से बाहर निकल आना होगा, पर वह सीटी बजाती नहीं हैं, वे कहती हैं कि फिर से कोशिश करो और मैं सिर पानी में डुबोता हूँ। दूर नीचे कुछ लाल-सा दिखाई दे रहा है, यह वही होगी, वही जो डूबी है, और मुझे उस तक पहुँचना है, सो मैं लतियाता हुआ नीचे बढ़ता हूँ, मेरे कान दर्द कर रहे हैं, मैं लात पे लात चलाता हूँ, पर मैं नीचे बढ़ नहीं रहा, मेरे फेफड़े पूरी तरह खाली हैं और मैं तकलीफ में हूँ, और मैं नीचे बढ़ रहा हूँ पर तेज़ी-से नहीं, मेरा शरीर सही दिशा से भटकता है, मुड़ता है और मैं उठता हुआ सतह पर आ जाता हूँ, वे सीटी बजाती हैं, अगला परीक्षार्थी!

जब आप अपनी डाइव पूरी कर चुके होते हैं तो चन्द मिनट आपको चैन में छोड़ दिया जाता है, आप खुद को सहज करते हुए बड़ी खिड़की के पास रखी बैंच पर बैठ सकते हैं, उसी खिड़की से सूरज भी आता है और पानी पर चमकता है। मैं बैंच पर बैठता हूँ, काँपता और क्लोरीन को सूँघता हुआ और कतार का अगला लड़का छलांग लगाता है, मैं उसे पूल की ओर गायब होते, डमी थामते और उसे अपने ऊपर डाले वापिस आते देखता हूँ, वह उसे ठुड्डी के ऊपर से पकड़ता है, उसका सिर पानी की सतह के ऊपर किए ज़मीन की ओर लौटता है, पूल के किनारे पहुँच उसे बाहर खींचता है, उसे टाइलों पर लिटाता है, उसकी नब्ज़ जाँचता है, अपने होंठ उसके रबर के होंठों से लगा उसमें प्राण फूँकता है, स्थान चुन उसके हृदय की मालिश करता है, उसे उसकी जान लौटाता है, एक उपहार, टीचर सीटी बजाती हैं, उसके पास जाती हैं, पुतली की कमर से निकली पर्ची जाँचती हैं, वह सही है, उम्दा ग्राफ, वे प्रिंट-आउट फाड़ती हैं, अपनी किताब में उसके नाम के नीचे उसे स्टेपल से लगाती हैं, और उसमें सन्तोषजनक या ऐसा ही कोई ग्रेड लिखती हैं, और पुतली को पानी में फेंक देती हैं, वह अनाटकीयता-से, धीरज-से, फिर से डूब जाती है।
मैं बैंच पर बैठता हूँ, सूरज मेरे पीठ पीछे है और मेरी बाँहों और मेरे बालों में क्लोरीन की गन्ध बसी है, डाइविंग बोर्ड के ऊपर लगी बड़ी घड़ी बता रही है कि केवल पन्द्रह मिनट बचे हैं, और अगर मैं बिलकुल चुपचाप बैठूँ, बिना हलचल के, और यह स्वाँग करूँ कि मेरा वजूद ही नहीं है, तो शायद मुझ पर गौर ही न किया जाए और शायद मुझे दो सप्ताह बाद के अन्तिम प्रयास के पहले आज एक और कोशिश न करनी पड़े। पर मैं यह भी जानता हूँ कि वे इसी के प्रति चौकन्नी रहती हैं, ऐसी ही कमज़ोरियाँ तलाशती हैं, जो बच्चे खुद को छुपाना चाहते हैं, या ढोंग करते हैं कि वे हैं ही नहीं, उन्हें वे ऊष्मा-संसूचकों से पकड़ लेती हैं, उनके चेहरे चिन्ताग्रस्त निराशा से गरमाए होते हैं, वे डाइव नहीं कर सकते, और वे शारीरिक शिक्षा में पास नहीं होंगे।
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और मैं सोचता हूँ : किसी बात की तह में जाना हो, तो सोचो वह कहाँ से आई होगी। जैसे कोई पुराने एलबम को देखता हो, उसके कार्डबोर्ड से बने मोटे पन्ने पलटता हो। शायद यह डर पहले से ही कहीं जन्मा हो, बस गया हो। 1982 का वर्ष है और मैं डूब रहा हूँ, एक ग्रीष्मावकाश में, पश्चिमी तट पर कहीं एक नाव में। हम तट पर लौट आए हैं, चिकनी चट्टानों के पास, डैड ने बोट बाँध दी है। और मैं ज़मीन पर आ गया हूँ। हम सॉसेज भून रहे हैं। पर सरसों की चटनी बोट पर रह गई है, हम उसे भूल आए हैं, और सरसों की चटनी ज़रूरी है, मेरी माँ कहती है, “क्या तुम उसे बोट से नहीं ला सकते?” और बेशक मैं ला सकता था, सो मैं उस भूरी दरी से उठता हूँ जहाँ चट्टान पर हम बैठे थे, मैं बोट तक जाता हूँ, उसे अपनी ओर खींचता हूँ जैसे मुझे सिखाया गया है, रस्सियों पर ज़ोर लगाता हूँ ताकि बोट पास सरक आए, और मैं नाव पर चढ़ता हूँ, सरसों उठाता हूँ, मैं सीढ़ियों पर पैर रखने के लिए पैर फैलाता हूँ, पर सीढ़ी फिसलनी है, मेरी पकड़ सरकती है और मैं बोट के नीचे गायब हो जाता हूँ।
मैं बोट के नीचे गायब हो जाता हूँ, उसके तल की ओर खिंच जाता हूँ, और खुद को बिलकुल नीचे पाता हूँ, पत्थरों पर, और मेरे बगल में समुद्री खरपतवार है, एक सी-अर्चिन है, एक विशाल सी-अर्चिन और उसके पास एक और, एक केंकड़ा मेरी ओर बढ़ रहा है और मेरे ऊपर, वहाँ ऊपर है बोट।
मैं अपने अगल-बगल हाथ ऊपर-नीचे करता हूँ, खुद को ऊपर धकेलने की कोशिश में, कहाँ जाना है यह जानता हूँ, पर वहाँ कैसे पहुँचना है यह नहीं, मैं हाथ फड़फड़ाता हूँ, पर वहीं नीचे अटका हूँ और सतह बहुत ऊपर है, मैं थकने लगा हूँ, मैं फिर बैठता हूँ, ऊपर देखता हूँ बोट की ओर, और एक हाथ नीचे बढ़ता है, बड़ा हाथ जो पानी को चीरता नीचे आता है, और वह हाथ मुझे थाम लेता है, उसके साथ-साथ एक सिर है, वह सिर ठीक मेरी ओर देखता है, डैड मुझे पानी से निकालते हैं, ऊपर तट की ओर, तब बोट से सरसों की चटनी ले आते हैं। मैं तौलियों में लपेट दिया जाता हूँ, मुझे चॉकलेट दिया जाता है, गोकि वह शनिवार नहीं है, और लेमोनेड भी। पर यह जल-भय का केवल सतही, आंशिक स्पष्टीकरण ही हो सकता है। यह स्मृति तो अर्जित है, मुझे तो मुश्किल से यह घटना याद है, कम-से-कम इस तरह तो नहीं।
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मैं जानता हूँ कि मैं इस बात से भी डरा हुआ हूँ कि मैं आगे नहीं बढ़ सकूँगा, मुझे डर है कि मैं यह नहीं कर सकूँगा, सीधी और साफ बात यह है कि मैं मरने से डरता हूँ। पानी में गायब हो जाने से खौफज़दा हूँ। हम यह कई सप्ताहों से कर रहे हैं। ये प्रशिक्षण सत्र। हम मीलों दौड़े हैं, घोड़ियों से कूदे हैं, सिर के बल खड़े रहे हैं, जंगल के बीच साइकिल दौड़ा चुके हैं, मैं मय कपड़े और जूतों के दो सौ मीटर से भी ज़्यादा तैर चुका हूँ, यह परीक्षा इसलिए होती है कि कहीं आप दुर्भाग्य से डेनमार्क वाली फैरी से हिर्टस्हाल्स से दो सौ मीटर की दूरी पर ही गिर न जाएँ। अब केवल डाइव बची है। जीवन रक्षा। और यह मैं कर नहीं पाऊँगा।
डाइव।
डाइव।
डाइव।
यह बेकार है। असम्भव।
फर्श को घूरते, बड़ी खिड़की से बाहर घूरते, सीधे सूरज की ओर घूरते, उसकी चकाचौंध से अन्धा हो, खुद को बैंच पर बिलकुल सिकोड़ कर कन्धे झुका, खुद को गुड़ीमुड़ी समेटने पर, मैं जल्दी ही चेंजिंग कक्ष में जा सकूँगा, कुछ जल्दी, सामान्यत: वे इस पर गौर नहीं करतीं, बस यही आखिरी उपाय बचा है। मेरे पास। पर मैं बैठा रहता हूँ, आखिरी उपाय बचा रखूँगा, हो सकता है दो सप्ताह बाद मुझे इसकी ज़रूरत पड़े, वही तो अहम घड़ी होगी, जब परीक्षा पास करने का बिलकुल आखिरी मौका मिलेगा, तब मुझे या तो यह करना होगा या फेल कर दिया जाऊँगा, मेरी ग्रेड छिन जाएगी, सब कुछ खो बैठूँगा, वहाँ जगह नहीं मिलेगी, उसी स्कूल में जहाँ वह होगी, सब छिन्न-भिन्न हो जाएगा, वह हर चीज़ जो बनाई गई है, रोमन साम्राज्य का ह्रास और पतन।
सो मैं चेंजिंग कक्ष में नहीं जाता, गोकि डबल स्विमिंग के सिर्फ दस ही मिनट बचे हैं, जल्दी ही हम सब कपड़े बदलने के कक्ष में जाएँगे, शावर से हम अपनी आँखों, चमड़ी और शिश्नों में जमी क्लोरीन हटाएँगे, ऊपरी चाम के नीचे वह फिर भी चरपराएगी, पर हम यह जताएँगे कि हम उस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, हम शैम्पू उधार लेंगे, और अपने बाल धो डालेंगे, पूरी चुप्पी या हड़बड़ाहट में कपड़े पहनेंगे, दो बाल सुखाने के यंत्रों के नीचे जगह पाने को झगड़ेंगे जो बेसिन के ऊपर लगे हैं ताकि यथासम्भव अव्यावहारिक रहें, और यान दोनों यंत्रों पर दावा ठोकेगा क्योंकि लड़कों में वह अकेला है जिसके लम्बे बाल हैं, और उसे स्विमिंग कैप इस्तेमाल करनी पड़ती है, वह दोनों ड्रायरों और या बेसिन पर भी काबिज़ हो जाएगा और वह उनको छोड़ेगा ही नहीं, सो हम चेंजिंग कक्ष से निकल आएँगे, ठण्डी फरवरी में मय गीले बालों के, हमारे हाथ हेयर वैक्स से चिपचिपे होंगे, और हम बाहर, पीछे की ओर, लड़कियों से मिलेंगे, हम एक-दूसरे से सुट्टे उधार लेंगे और इस बीच लड़कियों के बाल ठण्ड में कुछ यों अकड़कर जम जाएँगे मानो काँटे हों, और बस में सब क्लोरीन से गन्धाएँगे, हमारी आँखें नर-पिशाचों-सी सुर्ख होंगी, हम आधी बस को अपने जिम-झोलों को गोद में रखे घेर लेंगे और तब इस बात में कोई शंका नहीं रहेगी कि आज मंगलवार है।
स्विमिंग से बचने के असंख्य उपाय हैं। ज़्यादातर का मैं पहले ही इस्तेमाल कर चुका हूँ। मैं अपनी तैराकी की चड्डी भूल आया हूँ, तौलिया भूल आया हूँ, मैंने बीमार होने का नाटक किया है, मितली आने का, मुझे ज़ुकाम हो चुका है, मैं पूल से निकल चेंजिंग कक्ष दौड़ा हूँ, वहाँ अपने कॉनटैक्ट लैंस उतार टीचर के पास वापिस पहुँचा हूँ, पलक खींच उनसे कहा है, “देखिए, मेरा एक कॉन्टैक्ट लैन्स खो गया है, मुझे कुछ नहीं सूझता” और उन्होंने जवाब में ‘ओके’ कहा है और मैं देर से पहुँचा हूँ, अपनी नाक तब तक मरोड़ी है जब तक नकसीर न फूट जाए, मैंने अपने पेंसिल बॉक्स से कैंची निकाल अपना पैर चीरा है, पूल में खून बहे तो छूत का डर रहता है। पर मैं ये सभी बहाने काम में ले चुका हूँ, सो मैं वहाँ बैठा रहता हूँ।
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टीचर फिर से सीटी बजाती हैं, लड़कियों में से एक ने लैदल मेडिकल से आई प्लास्टिक पुतली को अभी-अभी फिर से जीवनदान दिया है, उसकी पीठ थपथपाई जाती है, वह झुकती है, उसका चेहरा लाल हो चुका है, वह साँसें स्थिर करती है, और टीचर अपना रूमाल मीथाइलेटेड स्पिरिट में डुबो कर डूबी हुई लड़की के रबर के होंठ पोंछकर रोगाणुमुक्त करती हैं, उसे फिर सिर के बल पानी में वापिस फेंकती हैं, वह तेज़ी-से डूबती है और अपनी छाती के बल, मुँह नीचे की ओर किए, जा टिकती है, और सारा डाइविंग बोर्ड पर आगे बढ़ती है, वह कक्षा की सबसे पतली लड़की है, वह बमुश्किल सीधा खड़े हो पाती है, वह बीमार है, एनोरेक्सिक, उसे भूख नहीं लगती और कोई कुछ कहता नहीं है, पर सब उसे देख रहे हैं, और मुझे वह बेहद पसन्द है, उसकी तैराकी की पोशाक उसके लिए ढीली है, वह कुछ पल बोर्ड पर खड़ी रहती है और तब कूद पड़ती है, पानी की सतह बिना विरोध टूटती है और वह तल की ओर लुप्त हो जाती है, कुछ ही पलों बाद जब वह डमी को हाथ में थामे सतह पर लौटती है तो सब राहत की साँस लेते हैं, पुतली उससे मोटी है, टीचर ताल की सीढ़ियों के पास तैयार खड़ी हैं, वे पुतली ले लेती हैं, उसे पानी से निकालती हैं और सारा तेज़ी-से सीढ़ियाँ चढ़ आती है, हैरान-सी, मानो पुतली को उसे बचाना हो पर टीचर कहती हैं, “ठीक है, सारा, अच्छा प्रदर्शन रहा” और सारा को समझ नहीं आता कि उसे आगे क्या करना है, वह टीचर की ओर ताकती है, और तब पुतली पर झुकती है, नब्ज़ जाँचती है, अपने होंठ डमी के होंठों से लगाती है और उसकी छाती पर अपना हाथ धरती है, और टीचर कहती हैं, “ठीक है, सारा” और सीटी बजा देती हैं, सारा को जबरन उठकर हट जाना पड़ता है, और टीचर मुझे पुकारती हैं, “फिर से कोशिश करते हैं, करें क्या?”

और सूरज डूब जाता है, बड़ी खिड़की के सामने परदे लस्टम-पस्टम नीचे गिरते हैं, तरण ताल में तूफान आता है, वहाँ से उठी लहरें किनारे बढ़ आने वाली हैं, बच्चों को पानी में ले जाने वाली हैं, नीचे भंवर में घसीटने ही वाली हैं, मैं तेज़ हवा में बैंच को मज़बूती-से पकड़े बैठे से उठता हूँ, मैं डाइविंग बोर्ड की ओर बढ़ता हूँ, टीचर पुतली को उठाती हैं, और मेरे दिमाग में यह खयाल उठता है कि उन्हें उसके होंठ पोंछकर संक्रमण मुक्त नहीं करने चाहिए, उन्हें वह भूल जाना चाहिए, तब ऐसा ही होगा मानो मैंने सारा को ही चूमा हो, और टीचर सच में भूल जाती हैं, मैं डाइविंग बोर्ड पर खड़ा होता हूँ और टीचर कहती हैं, “बाकी सब जाकर कपड़े बदल सकते हैं।” और तब मैं छलांग लगाता हूँ, पर मैं नीचे जा बढ़ ही नहीं पाता, और तल पर वह पुतली है, जिसे सारा ने प्राय: चूमा था, अपने होंठ उस पर लगाए थे, और कामना करता हूँ कि मैं भी वही कर पाता और मुझे सारा को उसके अपने होंठों को चूमने की इच्छा होती, सिर्फ इस प्लास्टिक की पुतली को नहीं, और मैं उससे कहना चाहता हूँ कि मैं उसके लिए हमेशा हूँ गोकि मैं डाइव नहीं कर सकता फिर भी उसके लिए रहूँगा, और मैं जानता हूँ कि तुम बीमार हो, यह मुझे पता है, पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि तुम एक खूबसूरत इन्सान हो और मैं हमेशा तुम्हारे लिए पूरी तरह हाज़िर रहूँगा और मुझे तुम्हारी बनाई तस्वीरें पसन्द हैं, मैंने तुम्हारी स्केचबुक में उन्हें देखा है और मुझे तुम्हारी आवाज़ पसन्द है सारा, और तुम्हारे बारे में गीत लिखे जाने चाहिए और मेरी टीचर पूल के किनारे से चीखती हैं कि मुझे फिर से कोशिश करनी चाहिए और मैं साँस खींचता हूँ, लतियाता हूँ और नीचे की ओर तैरने की कोशिश करता हूँ, पानी को पंजों से नोचते नीचे पहुँचना चाहता हूँ, पर मुझसे नहीं होता, कानों में दबाव बढ़ता है, नीचे बढ़ते हर सेंटीमीटर के साथ मेरा डर गहराता है, मुझे भय है कि मैं कभी सतह पर नहीं लौटूँगा, पर पुतली अब भी कई मीटर दूर है, टीचर सीटी बजा अपना सिर हिलाती हैं, कहती हैं, मुझे अभ्यास की ज़रूरत है, “अगले बुधवार को तुम्हारा आखिरी मौका होगा, इस बीच तुम्हें अभ्यास करना होगा, सभी यह कर सकते हैं,” वे कहती हैं, “पानी से तुम कैसे डर सकते हो भला” और तब मुझे दूसरों के पीछे शावर में जाने दिया जाता है।
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बैठक। सब बाहर फिर से इकट्ठे होते हैं। मानो जो कुछ घटा उसका लेखा-जोखा कर रहे हों, मैं सोचता हूँ कि यह एस.ए. समूह है, यानी सर्वाइवर एनोनिमस, हमें तो नहान घर के बाहर कन्धों पर सलेटी कम्बल लपेटे, हाथों में धुआँती गर्म कॉफी की प्यालियाँ थामे खड़े होना चाहिए था और दया भरी आवाज़ों को हमें आश्वासन देना चाहिए था कि सब कुछ ठीक हो जाएगा और उन्हें पत्रकारों को भगाना चाहिए था, पर ऐसा नहीं होता, हम अपनी टी-शर्टों में धुआँते पाले में गीले और अकड़े बालों के साथ, उँगलियों पर लगे वैक्स के साथ खड़े हैं और सुट्टे मार रहे हैं, मैं जुगत से सारा के पास जा खड़ा होता हूँ, या जताता मानो बस यों ही जा खड़ा हुआ हूँ, ऐसा करना अस्वाभाविक लगे तो भी, मुझे उसकी सहेलियों के बीच घुसना पड़ता है क्योंकि मैं उसे अच्छे से नहीं जानता, हमारे बीच स्वाभाविक प्रतिक्रियाओं का अभाव है, वे हमेशा जबरन और कृत्रिम लगती हैं, यद्यपि हम सालों से एक कक्षा में रहे हैं, वह खुद में इतनी बन्द सिमटी-सी है, उसी दिन से जब वह चार साल पहले यहाँ आई थी।
और वह जानती है, उसे पता ही होना चाहिए कि मैं उसे कितना पसन्द करता हूँ, और मैं उसके पास जमकर खड़ा रहता हूँ, कहने को कुछ सोचने की कोशिश करता हूँ, पर क्लोरीन मेरे दिमाग में भर गई है और मैं खड़ा रहता हूँ, कंकड़ों को अपने जूते से कुरेदता हूँ, दूसरों को सुनता हूँ, सप्ताहान्त पर क्या होने वाला है, वे क्या करेंगे, पर सारा बातचीत को सुन नहीं रही है, वह अपने बस्ते के नीचे अपने पेंसिल केस में छान रही है, लाइटर तलाश रही है, और मुझे अपनी जेब में एक मिल जाता है, मैं उसे लाइटर देता हूँ, वह मेरा शुक्रिया अदा करती है, मैं उसी जेब में सिगरेट ढूँढ़ता हूँ गोकि मैं जानता हूँ कि मेरे पास सिगरेट है नहीं, खत्म हो चुकी है, सो मैं खाली पैक निकालता हूँ, दिखाते-जताते उसे मरोड़ता हूँ और हमारे पीछे रखे कूड़ेदान में फेंकता हूँ, अपने हाथ जेबों में ठूँस लेता हूँ, उसकी ओर देख कहता हूँ, “वह पक्की गाय है, वह टीचर।”
“हाँ,” सारा कहती है।
मुझे बस यही सूझता है, अकेली बात जो कहने को मिलती है, पर यह काम कर जाती है, हमेशा असरदार रहती है, मैं कुछ भी कह सकता था, क्योंकि वह जानती है, मुझे पक्का भरोसा है, वह जानती है कि मैं जानता हूँ और वह मुझे एक सिगरेट देती है।
और मैं उसके साथ होना चाहता हूँ, उसे खाना खिलाना शु डिग्री करना चाहता हूँ, मैं उसके साथ उसके घर में उसके कमरे में बैठना चाहता हूँ, उसे चित्र बनाते, गिटार बजाते, देखना चाहता हूँ, और मैं उसका कमरा देखना चाहता हूँ, वह कमरा जिसे मैंने अपनी कल्पना में कितनी ही बार देखा है, वह कैसा लगता होगा उसकी कल्पना की है, मैं उसके घर के सामने से कई-कई बार गुज़रा हूँ, दूसरी मंज़िल की खिड़की की ओर देखा किया हूँ, जिस पर नीले परदे हैं, और मुझे पता रहा है कि वह उसी का कमरा है, अपने दिमाग में मैं उस कमरे में सैकड़ों बार घुसा हूँ, उसके बिस्तर पर उस वक्त बैठा हूँ जब वह इधर-उधर खदोड़ती रही है, चीज़ों से कुछ करती रही है, मुझसे बतियाती रही है, मैं उसके बिस्तर के किनारे बैठा हूँ, उसकी मेज़ के पास रखी दफ्तरी कुर्सी जिस पर वह अपनी किताबें, सीडी, और कपड़े रखती है, मुझे अच्छी तरह पता है कि कमरा कितना अस्त-व्यस्त है, फर्श पर बिछे कालीन के कोने कैसे गोल मुड़ चुके हैं, वहाँ बिस्तर के पास जिसे वह सुबह अपने पैरों से खींचती है, क्योंकि जब वह उठती है तो फर्श ठण्डा लगता है, मैंने वे परदे भी खींचे हैं, जिन पर चाँद-तारों का बचकाना डिज़ाइन बना है, मैं उसके बिस्तर पर लेटा हूँ, उसके मुँह को चूमा है, उसे बताया है कि मैं उसे प्यार करता हूँ, कि सब, सब ठीक हो जाएगा, वहाँ कितनी ही बार गया हूँ, अक्सर।

वह अपने पैक से मुझे सिगरेट देती है, और मैं कहता हूँ, “शुक्रिया” और उसकी ओर देखता हूँ और वह मुड़कर अपनी दोस्त से कुछ कहती है, और कोई, मुझे लगता है शायद माट कहता है कि मुझे आज न्यूटन को गलत सिद्ध करने के लिए नोबेल पुरस्कार दिया जाना चाहिए था, पर मैं जवाब नहीं देता, मैं सारा को देखता हूँ। और वह बेहद दुबली-पतली है, मैं उसे साथ ले जाना चाहता हूँ, अपनी जेब में, वह अब इतनी पतली है, और वह हर बीतते दिन के साथ कुछ और गायब होती जाती है, उसका चेहरा खुद को मिटा देने की प्रक्रिया में है, उसका चेहरा हमारे सामने ही गायब हुआ जा रहा है और वह वहाँ ठिठुरती खड़ी है, उसे बेहद ठण्ड लग रही है, मैं उसके लिए सिगरेट जलाता हूँ और वह शुक्रिया कहती है और पूछती है कि क्या मैं बाद में कैफे आने वाला हूँ, उसे बेहद ठण्ड लग रही है, मैं यांत्रिक-सा जवाब देता हूँ, “बिलकुल आऊँगा।” आज मंगलवार है, और सप्ताहान्त में युगों देर है, मंगलवार सप्ताह का वह दिन जो इतना उजाड़ दिन हुआ करता है।
तुम बीमार हो। तुम इतनी दुबली-पतली हो, मुझे तुम्हें खो देने का डर सताता है, क्या तुम यह देख नहीं सकतीं, क्या तुम्हें नज़र नहीं आता कि मैं तुम्हारे पास यहाँ बैठा हूँ? मैं लगभग अदृश्य हूँ। पर मैं सिर्फ इतना कहता हूँ, “क्या तुम ठीक हो?”
वह गर्दन हिलाती है, मेरी ओर देखती है, खिड़की से बाहर देखती है, “नहीं,” वह कहती है, “मुझे कल दाखिल किया जाएगा, पर ठीक है, मुझे परवाह नहीं,” वह कहती है, “उन्हें मुझे दाखिल करना ही होगा, यह भी एक दशा है, है कि नहीं, वैसी ही जैसे तुम्हारा पानी से डरना” और मैं सोचता हूँ कि वह अपने प्रति कितनी कठोर है, वह ऐसी क्यों है, और मैं उसके कॉफी के प्याले को देखता हूँ, उसने उसे दोनों हाथों से पकड़ा है, वह प्याले से अपने हाथ गरमा रही है। और कैफे में शोर-शराबा है, वह जो कह रही है उसे सुनने के लिए मुझे ज़ोर लगाना पड़ रहा है, लाउडस्पीकर पर दिन की खास पेशकश और परिवार से बिछड़ गए बच्चों की जानकारी दी जा रही है, वह मुझे चीनीदान देने को कहती है, अपनी कॉफी में शक्कर के तीन चौखटे डालती है, मैं उन्हें प्याले के तल को छूते सुनता हूँ, और अपनी दिमागी आँखों से उन्हें प्याले के पार देखता हूँ, गहरी कॉफी में चीनी के कण विलग होते हैं, और घुलते हैं, और जब वह प्याले से उसे पीती है तो उसके पेट में फिर से मिल जाते हैं, सभी, केवल उन्हें छोड़कर जो प्याले में, प्याले के किनार और उसके होंठों पर चिपके रह जाते हैं, जिन्हें वह बाद में नैपकिन से पोंछ डालेगी, या जो उसकी तश्तरी में रह गए हैं, जब तक सहायक आकर टेबल खाली नहीं करता, और अपने साथ कप, तश्तरी, नैपकिन और बची हुई चीनी, सभी कणों को नहीं ले जाता और उन्हें रद्दी कागज़ के साथ फेंक नहीं देता, वे अपना चौरस आकार फिर कभी नहीं पाएँगे, फिर नहीं जुड़ेंगे।
“तुम्हें डर है कि तुम डूब सकते हो, है ना?”
“हाँ,” मैं कहता हूँ।

हम वहाँ कैफे में शॉपिंग सेंटर में बैठे रहते हैं, और दीवार पर लगा लाउडस्पीकर अनचेंड मेलोडी की धुन घड़धड़ाता है, और मैं बेहद थक चुका हूँ, डरने से आज़िज़ आ चुका हूँ, मैं उस सारे पानी और जिस सबमें मैं नाकाम रहा हूँ उससे आज़िज़ आ चुका हूँ और मैं इतना डरा हुआ हूँ कि सब कुछ ठीक-ठीक नहीं सलटेगा और मेरा कोई भविष्य ही नहीं होगा, और रेडियो अनचेंड मेलोडी उलीच रहा है और वह फिर से ज़ोर-से घड़घड़ाता है, दूसरे लाउडस्पीकर पर एक आवाज़ सर्दियों के स्पोर्ट्स विभाग की खास पेशकश की घोषणा करती है जहाँ सस्ते स्लेज की कीमतें बिलकुल कम हैं, और आयातित अंगूरों, सेबों और टमाटरों, जिन पर सरसों गैस से मिलते-जुलते मिश्रण का छिड़काव किया गया है और जिन्हें आनुवांशिक छेड़छाड़ द्वारा डरावनी फिल्मों के आकार में बड़ा बना डाला गया है और जिन्हें अकल्पनीय कम दरों में बेचा जा रहा है, सभी ग्राहक अपनी कटलरी खड़काते हैं, उनकी छुरियाँ और काँटे प्लेटों पर रगड़ खाती हैं, और वे अपनी कुर्सियाँ मेज़ से दूर और पास खींचते समय घसीटते हैं, वे उठते हैं, कॉफी लाते हैं, और वापिस लौटते हैं, और सब एक-दूसरे  को  उपदेश  देते  हैं,  और लाउडस्पीकर व्यंजन विभाग की एक पेशकश की घोषणा करता है और रेडियो अनचेंड मेलोडी से घरघराता है पेशतर इसके कि एक आवाज़ उसमें बाधा डाल घोषणा करती है कि चार बज चुके हैं और समाचार शरु होने वाले हैं, और मैं टेबल पर उसकी ओर झुकता हूँ और कहता हूँ, “आज शाम तुम क्या कर रही हो” और वह मुझे चूमती है।
पर फिर से कहूँ, वह नहीं चूमती, पर मेरी इच्छा सच में यही होती है कि काश वह मुझे चूमती। इसकी बजाय वह कहती है, “ठीक, तो अब मुझे सच में जाना चाहिए, पर हम बात करेंगे। दो-एक रोज़ में, शायद अगले सप्ताह, ओके?” “ओके।” तब वह उठती है और मेज़ का चक्कर लगा मुझे जल्दी-से गले लगाती है और मैं भी पलटकर भेटता हूँ, दोस्तों की तरह, वह इतनी पतली है और मैं उसे छोड़ना ही नहीं चाहता, पर मुझे इस बात से बड़ा डर लगता है कि मैं उसे तोड़ दूँगा, सो मैं अपनी गिरफ्त ढीली करता हूँ और वह कसमसाकर छूटती है, मेरी बाँहों से निकल जाती है और मैं साँस खींचता हूँ, और कहता हूँ, “मैं तुम्हें सच में पसन्द करता हूँ, सारा” और वह कहती है, “मैं जानती हूँ। मत करो,” वह कहती है, “प्लीज़” और तब “बाय,” वह मुड़ती है और कैफे से बाहर  निकल  जाती  है,  और लाउडस्पीकर घोषणा करता है कि बाल विभाग, बॉल रूम और वीडियो कक्ष बीस मिनट में बन्द होने वाले हैं और जिस किसी का बच्चा गुम हो गया है वह पाँच बजे से पहले तीसरी मंज़िल पर स्थित कार्यालय से उन्हें ले ले, अन्यथा उन्हें गुज़र रही कारवाँ ट्रेन को बेच दिया जाएगा, पर वे बात का आखिरी भाग नहीं बोलते, यह तो मैं ही सोचता हूँ, और मैं उठकर उसी दिशा से जाता हूँ जहाँ से सारा गई है, दूसरी मंज़िल पर जहाँ रिकॉर्ड की दुकान है, और बेतरतीब चुनी रैकों में उन्हें देखता हूँ, पर कुछ अच्छा नहीं मिलता, सब बकवास है और वैसे भी मुझे सच में पता ही नहीं है कि मैं दरअसल क्या सोच रहा हूँ, सो मैं फिर निकलता हूँ, घर की बस पकड़ता हूँ, आज मंगलवार है और कल सारा एक अनिश्चित अवधि के लिए दाखिल कर दी जाने वाली है, सारा विलीन हो जाने वाली है।
रोमन साम्राज्य का ह्रास व पतन।
इस भावना को पछाड़ा नहीं जा सकता।

(...जारी)


यूहान हार्शटा: नॉर्वेजियन उपन्यासकार, लघुकथा लेखक, नाटककार और ग्राफिक डिज़ाइनर। वर्तमान में नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में रहते हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: तेजी ग्रोवर व पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा। तेजी ग्रोवर: हिन्दी कवि, कथाकार, अनुवादक एवं चित्रकार। बाल-साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में गहरी रुचि। कई वर्ष ज़िला होशंगाबाद में किशोर भारती नामक ग्रामीण संस्था में काम।
पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा: सुप्रसिद्ध अनुवादक। शिक्षा और बाल साहित्य के क्षेत्रों में अनेकों पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद किया है। जयपुर में रहती हैं।
सभी चित्र: भारती तिहोंगर: जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली से फाइन आर्ट्स में स्नातक। स्कूल ऑफ कल्चर एंड क्रिएटिव एक्सप्रेशंस, अम्बेडकर यूनिवर्सिटी से विजुअल आर्ट्स में स्नतकोत्तर। स्वतंत्र रूप से चित्रकारी करती हैं।
यह कहानी यूहान हार्शटा के कहानी संग्रह अम्बूलांस से ली गई है।