सवाल: पेड़ों की इतनी वृद्धि होती है लेकिन हम लोगों की क्यों नहीं?

—शासकीय आश्रमशाला, धानोरा, धारणी

जवाब: यह बहुत ही दिलचस्प सवाल है। इसका उत्तर कई पहलुओं के सन्दर्भ में दिया जा सकता है। शुरुआत हम इस चर्चा के साथ करते हैं कि पेड़ों का विकास पशुओं से भिन्न है क्या, और यदि है तो कैसे।

पेड़ों का विकास
आम तौर पर पेड़ों की वृद्धि पूरा जीवनभर जारी रहती है क्योंकि उनमें विशेष मेरिस्टेमैटिक कोशिकाएँ होती हैं। उनमें निरन्तर विभाजन जारी रहता है और इसलिए ये कोशिकाएँ पौधों में निरन्तर वृद्धि का प्रमुख कारण होती हैं।  मेरिस्टेमैटिक  कोशिकाओं  या मेरिस्टेम को पेड़ पर उनके स्थान के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है: एपीकल (जड़ों और तनों की ऊपरी सतह पर स्थित), लेटरल (संवहनी में स्थित)  और  अन्त:  इन्टरकेलरी (इंटर्नोड या तनों के उन क्षेत्रों के बीच जहाँ पत्ते लगे होते हैं, उदाहरण के लिए -- घास)। एपीकल मेरिस्टेम्स से पौधे का प्राथमिक विकास होता है। और लेटरल मेरिस्टेम तने की मोटाई में वृद्धि के लिए ज़िम्मेदार होते हैं।

पेड़ों का विकास अनिश्चित या असीमित होता है। इनमें तने और शाखाओं की संख्या में लगातार वृद्धि होती रहती है। एक पौधे में जीवनभर नए अंग बनते रहते हैं और पुराने अंगों को नए अंगों द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है। आम तौर पर पौधों में निश्चित मौसम के दौरान ही विकास होता है। पेड़ों को अगर पानी या पोषक तत्व नहीं मिलते हैं, तो उन्हें खोजने के लिए वे अपनी जड़ों को थोड़ा और बढ़ा देते हैं। अगर उन्हें पर्याप्त रोशनी नहीं मिलती, तो थोड़ा और लम्बे हो जाते हैं। इन्हीं सब कारणों की वजह से हम पौधे के विकास को ‘प्लास्टिक’ कहते हैं, क्योंकि यह सीमित नहीं होता और जीवनभर विकास जारी रहता है।

अब अगर इस विकास का दूसरा पहलू देखें तो पेड़ों में निरन्तर वृद्धि पौधे के शरीर में दिखती है क्योंकि अधिकांश पौधे मेरिस्टेमैटिक (विभाजन वाले) चरण से बाहर आकर स्थाई ऊतक बनाते हैं। तो क्या फिर पेड़ बढ़ना बन्द करते हैं? उत्तर ‘हाँ’ भी है और ‘नहीं’ भी। पेड़ वर्ष-दर-वर्ष अपने तनों में नए छल्ले जोड़ते हैं और उनके तने व्यापक होते जाते हैं, लेकिन पेड़ ऊँचाई में बढ़ने से ज़रूर रुकते हैं। उदाहरण स्वरूप जब आप एक ही प्रजाति के वृक्षों को खड़ा देखते हैं तो समझ में आता है कि उनकी ऊँचाई लगभग एक-समान है। पेड़ का विकास उनकी उम्र से भी सम्बन्धित होता है। उम्र बढ़ने के साथ पेड़ों की ऊँचाई बढ़ने की दर धीमी हो जाती है। एक निश्चित उम्र के बाद उनकी ऊँचाई और नहीं बढ़ती। इस सन्दर्भ में हम माउन्टेन एश पेड़ के जीवन-चक्र को देख सकते हैं। एक युवा पेड़ के रूप में, यह हर साल दो से तीन मीटर या लगभग सात से दस फुट बढ़ सकता है। लेकिन जब पेड़ 90 वर्ष की आयु तक पहुँच जाता है, तब इसकी वृद्धि लगभग आधा मीटर प्रतिवर्ष तक धीमी हो जाती है - यानी कि एक साल में लगभग एक फुट। जब पेड़ 150 वर्ष का होता है, तब ऊँचाई में वृद्धि लगभग बन्द हो जाती है, भले ही पेड़ 100 साल तक और जीवित रहे। स्थानीय पेड़ों में बरगद का पेड़ भी इसी श्रेणी में आता है। कुछ वैज्ञानिकों का विचार है कि वृक्ष कोशिकाएँ, पशु कोशिकाओं की तरह ही हैं: यानी, उन्हें कुछ निश्चित विभाजनों के बाद बढ़ना बन्द करना होता है। यदि एक पेड़ की कोशिकाएँ विभाजित होना बन्द हो जाती हैं, तब उसकी ऊँचाई बढ़ना भी बन्द हो जाता है। परन्तु प्रयोगों ने अब तक इस सिद्धान्त के बारे में कुछ भी निश्चित रूप से सिद्ध नहीं किया है।

इस विमर्श में एक पहलू यह भी है कि वृक्षों के पास यांत्रिक सीमाएँ भी होती हैं, जैसे कि वे कितना टरगर दबाव उत्पन्न कर सकते हैं और बनाए रख सकते हैं। टरगर दबाव कोशिका के भीतर लगने वाला बल है जो कोशिका की दीवार के खिलाफ प्लाज़्मा झिल्ली को धक्का देता है जिससे पेड़ अपनी संरचना बनाए रख पाते हैं। एक पेड़ की ऊँचाई उसी हद तक सीमित होती है जिस सीमा तक वह पानी को जड़ों से अपनी पत्तियों तक पहुँचा सकता है। एक पेड़ के अन्दर, पानी ऊपर की तरफ जाता है - पत्तियों की ओर खींचा जाता है - जहाँ यह सूक्ष्म छिद्रों के माध्यम से हवा में वाष्पित होता है। कुछ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि एक बार वृक्ष जब वृद्धावस्था तक पहुँच जाता है और अपनी स्वाभाविक लम्बाई हासिल कर लेता है, तो गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे की ओर लगने वाले बल की वजह से, पेड़ को ऊपरी शाखाओं और पत्तियों तक पानी खींचने में और अधिक कठिनाई होने लगती है।

प्राणियों में वृद्धि
इसके विपरीत अगर हम प्राणियों में वृद्धि की बात करें तो उनमें परिपक्वता से पहले निश्चित अवधि के लिए विकास होता है। भ्रूण में सभी अंग बनते हैं। जैसे ही वे परिपक्व हो जाते हैं, वृद्धि बन्द हो जाती है। बाद में, कोई नया अंग जुड़ता नहीं है। इनमें विभिन्न हिस्सों (शरीर के अंगों) की संख्या में वृद्धि भी सम्भव नहीं होती है। अक्सर प्रत्येक प्रजाति के विकास के लिए एक मौसम-विशेष तय होता है। परन्तु यहाँ भी एक रोचक बात यह है कि प्राणियों में भी उम्र बढ़ने के साथ  सभी  प्रकार  का  विकास  नहीं रुकता है। जैसे कि मनुष्यों में बीस वर्ष के आसपास शारीरिक वृद्धि खत्म हो जाती है, फिर भी हम घावों को ठीक करने की क्षमता जीवनभर बनाए रखते हैं, और हमारे सारे अंग भी नई रक्त कोशिकाओं को संश्लेषित करते रहते हैं। हमारे अधिकांश ऊतक और अंग पूरा जीवन कम या ज़्यादा मात्रा में मामूली चोट को ठीक करने में सक्षम रहते हैं। नवजात (नव विभाजित) कोशिकाएँ सामान्य रूप से बढ़ती हैं। हम बस बीस की उम्र के आसपास अन्तिम रूप-आकार ले लेते हैं। यह उम्र अन्य प्राणियों के लिए अलग-अलग होती है। वैसे प्राणियों के जीवनभर विकास जारी रखने में कई समस्याएँ हैं जो कि सम्भवत: निम्नलिखित हो सकती हैं।

सबसे पहले जानवर गैर-प्रकाश संश्लेषक होते हैं, इसलिए वे अपना खाना खुद नहीं बना सकते। अगर हम अपने शरीर के आकार को बढ़ाना जारी रखते हैं तो उम्र के साथ हमें बड़े शरीर को जीवित रखने के लिए अधिक भोजन भी इकट्ठा करना होगा। अगर हम लगातार बढ़ने वाले प्राणियों में से कुछ को उत्कृष्ट शिकारी मानें, तो वे भोजन की कमी से मर जाएँगे क्योंकि भोजन  शृंखला में प्राकृतिक सन्तुलन नहीं बन पाएगा। एक सीमा से ऊपर शरीर जितना बड़ा होगा, उतनी ही अधिक परेशानी होगी। खुद को ले जाने के लिए, अच्छी तरह से चलने के लिए, दो पेड़ के बीच की जगह, या चट्टान में बनी गोह में से निकलने में, अपने आप को शिकारियों से बचाने में, सभी में परेशानी होगी। इसके अलावा आकार की नियत सीमा के अलावा, निरन्तर वृद्धि विकृतियों का कारण भी बन सकती है जो चलने, रक्त परिसंचरण, श्वसन आदि में समस्या पैदा कर सकती हैं। एक अंग दूसरे पर दबाव पैदा कर सकता है, जिससे अंग-विफलता हो सकती है। एक बहुत ही महत्वपूर्ण बाधा होगी, बड़े शरीर को खूब सारी ऑक्सीजन की आपूर्ति कराना। जानवरों की शरीर योजना जटिल होती है इसलिए इनके निरन्तर विकास को रोकने के पीछे विकासवादी प्राकृतिक चयन से जुड़े कारक भी ज़रूर महत्वपूर्ण होंगे।

पौधे के अंग पूरी तरह से एक अलग बुनियादी योजना के तहत विकसित होते हैं, जहाँ एक छोटा विरूपण या विसंगति जीवन-खतरे या चुनौती का कारण नहीं बनती है। तो मोटे तौर पर पेड़ों का विकास पशुओं से भिन्न होता है। अन्तत: कहा जा सकता है कि यह सही है कि पेड़ों में वृद्धि या विकास ज़्यादा होता है, परन्तु एक अलग स्तर पर।


कोकिल चौधरी: संदर्भ पत्रिका से सम्बद्ध हैं।