सुशील जोशी
1962 में आखिरी फूल खिला था मनी प्लांट पर।
पिछले एक-दो वर्षों में मनी प्लांट नामक पौधे को नई शोहरत मिली। एक मशहूर बाबा ने लोगों को विश्वास दिलाया कि घर में मनी प्लांट लगाने से ‘कृपा’ बरसने लगेगी। कृपा की बारिश कहाँ हुई, यह तो पता नहीं किन्तु मनी प्लांट में मेरी रुचि ज़रूर पैदा हो गई। खास तौर से यह जानने की इच्छा हुई कि इस पौधे को यह नाम कैसे मिला।
सबसे पहली बात तो यह समझ में आई कि आम लोगों के साथ-साथ वनस्पति शास्त्री भी इस पौधे के नामकरण को लेकर भ्रमित रहे हैं। यह पौधा फ्रेंच पोलीनेशिया के मूरिया द्वीप का देशज है मगर धीरे-धीरे दुनियाभर में सजावटी पौधे के रूप में लोकप्रिय हो गया है। इसका सबसे पहला नामकरण 1880 में हुआ था और तब इसे पोथोस ऑरियस कहा गया था। मगर कुछ ही समय बाद इसका नाम बदलकर सिंडेप्सस ऑरियस किया गया। फिर जब 1962 में इस पर फूल खिला तो वैज्ञानिकों को अपनी गलती का एहसास हुआ (क्योंकि फूल के आधार पर वर्गीकरण किया जाता है)। तब इसका फिर से वर्गीकरण किया गया और इसे नया नाम दिया गया रेफिडोफोरा ऑरिया। इसमें इसकी प्रजाति नहीं बल्कि वंश बदला गया। मगर फूल के बारीक अवलोकन के बाद एक बार फिर इसका नाम बदला गया। इस बार नाम हुआ एपिप्रेमनम पिन्नेटम। और अन्त में नाम आया एपिप्रेमनम ऑरियस।
लोकोक्तियों में भी इसके कई नाम प्रचलित हैं -- गोल्डन पोथोस, हंटर्स रोब, आइवी ऐरम, मनी प्लांट, सिल्वर वाइन, सोलोमन आइलैंड आइवी और डेविल्स आइवी। भारतीय उपमहाद्वीप में मनी प्लांट नाम ही चल गया।
यह पौधा एकबीजपत्री कुल एरेसी का सदस्य है। इस कुल का एक जाना-पहचाना सदस्य अरबी है। इसकी एक विशेषता यह है कि इसकी पत्तियों में कैल्शियम ऑक्ज़लेट नामक लवण के सुईनुमा रवे पाए जाते हैं, जिन्हें रैफाइड कहते हैं (ऐसे सुईनुमा रवे अरबी की पत्तियों में भी होते हैं और कई बार मुँह में और गले में चुभते हैं)।
न सिर्फ मनी प्लांट कई मामलों में विचित्र है बल्कि एरेसी कुल भी अजीब गुण दर्शाता है। उदाहरण के लिए एकबीजपत्री पौधों (जैसे गेहूँ, ज्वार, मक्का वगैरह) में पत्तियाँ आम तौर पर संकरी होती हैं जबकि मनी प्लांट समेत एरेसी कुल के कई पौधों में चौड़ी पत्तियाँ पाई जाती हैं। एकबीजपत्री पौधों की पत्तियों में शिराएँ (नसें) परस्पर समानान्तर होती हैं मगर मनी प्लांट में ऊपर से देखने पर तो नसें पत्ती के किनारों से काफी अन्दर ही एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं। यहाँ तक कि मनी प्लांट की आन्तरिक रचना में भी एकबीजपत्री और दोबीजपत्री पौधों के मिले-जुले लक्षण पाए जाते हैं। जैसे इसमें वाहक ऊतक की स्थिति एकबीजपत्री और दोबीजपत्री का मिला-जुला रूप है। दोबीजपत्री तनों के समान इसके वाहक बण्डल एक छल्ले की शक्ल में जमे होते हैं मगर कुछ अन्य वाहक बण्डल एकबीजपत्री तनों के समान बिखरे होते हैं। इन लक्षणों के आधार पर वैज्ञानिकों का मत है कि यह उस समय का पौधा है जब एकबीजपत्री और दोबीजपत्री पौधे विकास की अलग-अलग राह पर चल पड़े थे।
मनी प्लांट काफी प्रतिकूल वातावरण में भी उग सकता है। पानी बहुत ज़्यादा नहीं चाहिए और धूप की भी ज़रूरत नहीं होती। छाया वाले स्थानों पर भी यह हरा बना रहता है। दरअसल, इसे सीधी तेज़ धूप मिले तो पत्ते झुलस जाते हैं।
मनी प्लांट के बारे में बताया जाता है कि यह हवा में से कई प्रदूषक पदार्थों को सोखकर वातावरण को शुद्ध बनाता है। इनमें विभिन्न ऐरोमेटिक हाइड्रोकार्बन, फॉर्मेल्डिहाइड वगैरह शामिल हैं। इसलिए इसे घर के अन्दर लगाने की सलाह दी जाती है। वैसे कई देशों में यह एक समस्या बन चुका है। जलकुम्भी के समान यह भी अनियंत्रित ढंग से फैलकर इकोलॉजी पर प्रतिकूल असर डालता है।
मनी प्लांट पर फूल आते आपने नहीं देखे होंगे, और ज़ाहिर है कि वनस्पति वैज्ञानिकों को भी यह सौभाग्य 1962 में एक बार ही मिला था। मनी प्लांट को वनस्पति वैज्ञानिकों ने ‘पुष्पन-शर्मीला’ पौधा नाम भी दिया है।
चिऊ-युए हुंग व उनके साथियों की रुचि मनी प्लांट के पुष्पन की प्रक्रिया में थी। इस टीम का मानना था कि मनी प्लांट में पुष्पन नहीं होता क्योंकि उसमें कुछ जेनेटिक गड़बड़ी है जिसकी वजह से उसमें वह हारमोन ही नहीं बनता जो पौधे को विकास के उस चरण में पहुँचा सके जहाँ वह फूल आने के रासायनिक निर्देश मिलने पर प्रतिक्रिया दे सके। अपनी इस परिकल्पना को जाँचने के लिए उन्होंने कृत्रिम परिस्थिति में मनी प्लांट के पौधों को सम्बन्धित हारमोन उपलब्ध कराया तो उसमें फूल खिले थे।
अब रहा सवाल इस विचित्र पौधे के नाम का। ढूँढ़ने पर पता चलता है कि कई स्थानों पर माना जाता है कि इस पौधे को लगाने से बरकत रहती है। मगर दिक्कत यह है कि भारत में प्रचलित नाम अँग्रेज़ी में है, तो बहुत पुराना तो नहीं हो सकता। कुछ जगह पढ़ने को मिला कि कल्पना की लगाम को थोड़ा ढीला छोड़ेंगे तो इस पौधे की मांसल गोल-गोल पत्तियों को सिक्कों के रूप में देखा जा सकता है। बात कुछ पचती नहीं क्योंकि ऐसा तो कई पत्तियों के साथ सम्भव है।
मुझे ज़्यादा सम्भव व्याख्या यह लगती है: मनी प्लांट के नाम से कई पौधे जाने जाते हैं। इनमें से एक पौधा है जिस पर फूल भी लगते हैं और गोल-गोल सुनहरे रंग की फलियाँ लगती हैं जो सिक्कों जैसी दिखती हैं। इसका वानस्पतिक नाम ल्यूनेरिया एनुआ है।
मेरा ख्याल है कि कभी गलती से यह नाम एपिप्रेमनम ऑरियस पर चस्पा हो गया और तब से चला आ रहा है। अब इस बात की जाँच के लिए काफी खोजबीन की ज़रूरत होगी।
सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।
मनीप्लांट के फूल के बारे में अगले पृष्ठ पर पढ़िए।
मनीप्लांट में फूल वैसे तो मनीप्लांट एक एंजियोस्पर्म के रूप में वर्णित है, अत: कायदे से इस पर फूल खिलना चाहिए। परन्तु न तो जंगली अवस्था में और न ही बाग बगीचों तथा घर में इस पर कभी फूल दिखे। हाँ, एक बार 1962 में ज़रूर दिखे थे— उसके बाद फिर कभी नहीं। यह जिस कुल का पौधा है, उसके अन्य पौधों पर तो फूल आज भी खिलते हैं। कुल का नाम है—अरबी कुल। इसमें विशेष प्रकार के फूल लगते हैं जिन्हें स्पेडिक्स कहा जाता है। यह एक विशेष तरह का पुष्पक्रम है। इसमें एक मांसल मोटे अक्ष पर नर और मादा फूल अलग-अलग समूहों में लगते हैं। इन फूलों में अन्य फूलों की तरह रंगीन पंखुड़ियाँ नहीं मिलतीं, बल्कि उसकी बजाय बड़े आकार का एक स्पेथ पाया जाता है जो मांसल अक्ष को ढँके रहता है। अक्ष पर सामान्यत: ऊपर की ओर नर और नीचे मादा पुष्प लगते हैं। अरबी, एंथुरियम और जिमीकन्द में ऐसा ही होता है । जब मनीप्लांट इसका भाई-बहन है तो इस पर भी इसी प्रकार के फूल आना चाहिए। पर पता चला है कि फूलने के लिए सभी ज़रूरी परिस्थितियों के उपलब्ध कराने के बावजूद यह नहीं फूलता। कारण जानने पर मालूम हुआ कि इसके शर्माने की वजह, इसमें उस जीन का न होना है जो फूल बनाने के लिए ज़िम्मेदार माना गया है। कुछ अनुवांशिक कारण के चलते इसमें गिब्बरेलिक अम्ल (GA) बनाने वाला जीन नहीं है। अत: इसमें फूल बनाने की क्रिया शुरू नहीं होती है। इस जीन का नाम EAG3y1 है। इस जीन की कमी के कारण इसमें सक्रिय GA नहीं बनता। देखा गया है कि यदि इसे गिब्बरेलिक अम्ल दिया जाए तो इसमें भी फूल आते हैं। स्पेडिक्स के रूप में। इसमें पंचकोनीय मादा फूलों के बीच-बीच में नर फूल छिपे पाए गए हैं। —किशोर पंवार |