जे.बी.एस. हाल्डेन
भावानुवाद: अरविंद गुप्ता
रेखाचित्र: क्वेंटन ब्लेक
बहुत समय पहले की बात है। इंग्लैड में स्मिथ नाम का एक आदमी रहता था। उसकी सब्ज़ी की दुकान थी। स्मिथ के चार बेटे थे। सबसे बड़े लड़के का नाम जॉर्ज था। इसे साफतौर पर राजा के नाम के ऊपर रखा गया था। यह बात तय थी कि बड़ा होकर जॉर्ज ही अपने पिता की दुकान संभालेगा। इसलिए स्कूल में उसने वनस्पति-शास्त्र का एडवांस कोर्स किया। यहां उसने पत्तागोभियों की एक सौ सत्तापन अलग-अलग किस्मों का अध्ययन किया ओर पालक की चवालिस विभिन्न प्रजातियों के बारे में जानकारी हासिल की। उसने जीवशास्त्र के कोर्स में पत्तागोभी में रहने वाली सतत्तर अलग-अलग नस्लों की इल्लियों (कैटरपिलरों) को पहचानना सीखा। उसने पत्तागोभियों पर विभिन्न देशी कीट-नाशकों व छिड़काव किया। इन प्रयोगों के परिणाम काफी आश्चर्यजनक निकले।
साबुन को घोल छिड़कने पर पत्ता-गोभियों में से हरे रंग की इल्लियां बाहर निकलीं। तम्बाकू का रस छिड़कने पर चितकबरी इल्लियां और नमक का घोल छिड़कने पर मोटी-मोटी भूरी इल्लियां बाहर निकलीं। जब वह बड़ा हुआ, तो उसकी सब्ज़ी की दुकान पूरे लंदन शहर में सबसे मशहूर हुई। उसकी पत्तागोभी में कभी भी किसी को कोई इल्ली या कीड़ा नहीं मिला।
परन्तु मिस्टर स्मिथ की सिर्फ एक ही दुकान थी। इसलिए उनके बाकी बेटों को दूसरे धंधों में अपना भाग्य आज़माना था। दूसरे बेटे को लोग ‘जिम’ कह कर बुलाते थे। पर वैसे उसका असली नाम जेम्स था। वह अंग्रेज़ी में तेज़ था और उसने स्कूल में अच्छे निबंध लिखकर सभी प्रतियोगिताओं में इनाम जीते थे। वह स्कूल की फुटबॉल टीम का कप्तान था और हमेशा हाफ-बैक की पोज़ीशन पर खेलता था। वह हाथ की सफाई और जादू के खेल दिखाने में बड़ा माहिर था।
स्कूल के मास्टर कई बार उसकी शैतानियों का शिकार बने थे। एक बार उसने ब्लेकबोर्ड पर लिखने वाली चॉक में छेंद करके उसमें एक माचिस की तीली धंसा दी। अगले दिन मास्टरजी ने जैसे ही बोर्ड पर चॉक से लिखा वह जल उठी। उसके बाद अगले पांच मिनटों तक क्लास में कुछ भी पढ़ाई नहीं हो सकी। दूसरे दिन उसने सारी स्याही की दवातों में मेथिलेटिड स्पिरिट मिला दी। उसका असर यह हुआ कि स्याही पेन से चिपकना ही बंद कर दिया। तब मास्टरजी को सारी दवातों की स्याही बदलनी पड़ी। इसमें लगभग आधा घंटा लग गया। इसलिए उस दिन फ्रेंच की क्लास में कुछ खास पढ़ाई नहीं हो पाई। वैसे भी जिम को फ्रेंच से चिढ़ थी। पर वह कभी भी छोटी-मोटी हरकतें नहीं करता था। मिसाल के लिए उसने कभी भी ताले के छेद में गीला आटा या पुट्टी नहीं भरी। उसने मास्टरजी की दराज़ में कभी करे चूहे भी नहीं छिपाए।
तीसरे लड़के का नाम चाल्र्स था। वह गणित और इतिहास के विषयों में काफी तेज़ था। वह अपनी क्रिकेट टीम में बाएं हाथ का गेंदबाज़ भी था। पर अगर वह किसी विषय में एकदम काबिल था, तो वह था रसायनशास्त्र यानी कैमिस्ट्री। पूरे स्कूल में वह शायद एकमात्र ऐसा लड़का था जिसने कभी पैरा-डीमिथाइल अमीनों बेंज़ेलडीहाइड बनाया हो। इस रसायन को बनाना बेहद कठिन है। वह सड़ी-से-सड़ी बदबुएं पैदा कर सकता था क्योंकि वह उनकी रासायनिक विधियां जानता था। चूंकि वह एक बहुत अच्छा लड़का था, उसने ऐसा कभी नहीं किया। अगर वह गंदी बदबुओं को पैदा करता तो शायद उसे कैमिस्ट्री पढ़ने से रोक दिया जाता। लेकिन वह तो जीवन भर केवल कैमिस्ट्री ही पढ़ना चाहता था।
चौथे लड़के का नाम जैक था1 वह पढ़ने-लिखने में कोई खास लायक नहीं था और नही किसी खेल में बहुत अच्छा था। वह फुटबॉल की किक कभी सीधी नहीं मार पाता और क्रिकेट के मैच में वह एक बार फीडिंग करते-करते ही सो गया था। अगर वही किसी एक चीज़ में उस्ताद था तो वह वायरलैस।
उसने अपने घर में खुद एक वायरलैस सैट बनाया था। केवल उसके वॉल्व उसने बाज़ार से खरीदे थे। इस कहानी की शुरूआत के समय वह वाल्व बनाना सीख रहा था। उसकी एक बूढ़ी नानी भी थीं मटिल्डा। वे बेहद बूढ़ी थीं। लन्दन से लेकर डोवर तक की रेल लाइन उनके बचपन में बिछी थी। चल फिर तो वो सकती नहीं थीं, इसलिए हर वक्त पलंग पर ही लेटी रहती थीं। जैक ने उनके लिए एक जोड़ी ‘ईयर-फोन’ बना दिए थे। उन्हें लगाकर अब वे दिन भर संगीत सुनती रहतीं। ऐसा लगता था कि जैसे उनके जीवन में, महारानी विक्टोरिया के दिनों की बीती बहार अब दुबारा वापस आ गई हो।
जैक बिजली की तमाम जुगाड़ें बनाने में एकदम माहिर था। उसने अपने घर के बिजली मीटर में एक नई जुगाड़ फिट की थी। उसने बिजली के पंखे चलते और बल्ब भी जलते लेकिन मीटर आगे नहीं बढ़ता। हफ्ते भर तक रीडिंग एक ही जगह पर रुकी रही। जब उसके पिता को इसके बारे में पता चला तो वे बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने कहा, “हमें इस तरह के गलत काम नहीं करना चाहिए। यह तो बिजली की चोरी करना हुआ।”
“मेरे ख्याल से इसमें कोई चोरी नहीं है,” जैक ने जवाब दिया, “अव्वल तो बिजली कम्पनी कोई व्यक्ति नहीं है। दूसरी बात यह है कि बिजली हमारे बल्बों आदि से होकर लौटकर मेनलाईन में वापस चली जाती है। हम बिजली को कोई अपने पास थोड़े ही रखते हैं। उसे तो हम केवल चंद क्षणों के लिए उधार लेते हैं।” परन्तु उसके पिता ने जैक से मीटर पर लगी जुगाड़ हटा लेने को कहा। क्योंकि वह एक ईमानदार आदमी थे, इसलिए उन्होंने बिज़ली कम्पनी का सारा हरजाना भी भर दिया। मिस्टर स्मिथ की एक बेटी भी थी। वैसे उसका असली नाम लूसेस था, परन्तु लोग उसे ‘पज़ी’ के नाम से बुलाते थे। वैसे इस कहानी में उसका कोई खास रोल नहीं है। इसलिए मैं उसका ज़िक्र केवल अंत में करूंगा। बचपन में उसके दांत बाहर को निकले हुए थे, पर अंत में वह अपने सही स्थान पर पहुंच गए।
उस वक्त लन्दर के बन्दरगाह में चूहों ने तहलका मचा रखा था। वे बड़े खूंखार किस्म के चूहे थे। उनके दादा-परदादा चाय, अदरक, रेशम और चावल के बोरों में छिपकर स्टीमरों द्वारा हांग-कांग से आए थे। क्योंकि इंग्लैण्ड में पर्याप्त मात्रा में अनाज पैदा नहीं होता है, इसलिए वहां खाने का तमाम माल अन्य देशों से मंगाया जाता है। विदेशों से आया खाने का सारा माल चूहे हज़म कर जाते। वे कनाडा का गेहूं और हॉलेण्ड का पनीर खाते। वे न्यूज़ीलैण्ड से आया मटन और अरजेंटीना का ताज़ा मांस खाते। वे ईरान से आए बेहतरीन कलीनों को कुतर-कुतर कर अपने बिलों में ले जाते और वहां उनसे अपना बिस्तरा बनाते। माल हज़म करने के बाद वे चीन से आए रेशमी रूमालों से अपने हाथ-मुंह पोंछते।
जो व्यक्ति लन्दर के सारे बन्दरगाहों का प्रमुख होता है वह लन्दन पोर्ट अथॉरिटी के चेयरमैन के नाम से जाना जाता है। यह एक बहुत ऊंचा ओहदा है। चेयरमैंन के दफ्तर की शोहरत इंग्लैण्ड की महारानी के महल बकिंघम पैलेस से कुछ कम नहीं थी। इन चूहों के कारण चेयरमैन बेहद परेशान थे। दूर-दराज़ के देशों से आया सारा माल बन्दरगाहों पर उतरता। जब तक कि माल ट्रकों, ट्रेनों और ठेलों में लदकर चला न जाता तब तक उसकी सारी ज़िम्मेदारी चेयरमैन की होती। इसलिए जो कुछ भी चूहे खाते उसका सारा हरजाना चेयरमैन को भुगतना पड़ता। उसने लन्दन के सबसे मशहूर चूहे पकड़ने वालों को बुलाया। परन्तु वह भी सौ-दो सौ चूहे ही पकड़ पाए। इसका कारण था कि यह चूहे बेहद चालाक किस्म के थे। इन चूहों का एक राजा था जो ज़मीन के अन्दर एक बहुत गहरे बिल में रहता था। बाकी चूहे उसके खाने के लिए एक से बढ़ कर एक स्वादिष्ट पकवान लाते थे। उसके लिए स्विटज़रलैण्ड की क्रीम चॉकलेट, फ्रांस से आए मीट के व्यंजन और अलजियर्स से आए पके खजूर आए जाते थे। सभी चूहे अपने राजा का आदेश मानते और उसके बताए अनुसार काम करते। अगर कोई चूहा कभी पिंजड़े या चूहेदानी में पकड़ा जाता तो राजा के विशेष दूत बाकी चूहों को इस खतरे में आगाह कर देते। राजा के पास दस हज़ार बहादुर और शेरदिल चूहों की एक फौज थी। यह सेना किसी भी जानवर से मुकाबला लेने की हिम्मत रखती थी। एक कुत्ता आराम से एक-दो चूहों को तो मार सकता है। लेकिन अगर उस पर एक साथ सौ चूहे हमला कर दें, तो शायद वह तीन-चार को ही मार पाएगा और अंत में खुद ही शहीद हो जाएगा। जिन चूहों के सबसे पैने दांत थे उन्हें खासतौर पर इंजीनियर बनने की ट्रेनिंग दी जाती थी। ये चूहे अपने पैने दांतों से किसी भी चूहेदानी या पिंजड़े के तारों को काट कर चूहों को मुक्त कराते।
एक महीने के अन्दर इन चूहों ने एक सौ इक्यासी बिल्लियों और उनचास कुत्तों को मौस के घाट उतारा। बहुत से कुत्ते-बिल्लियां इतनी ज़ख्मी हुए, कि अगर उन्हें दूर से चूहे की खुशबू भी आती तो वह डर के मारे भाग लेते। उन्होंने सात सौ बयालिस चूहों को छह सौ अठारह चूहेदानियों में से मुक्त कराया था। इसका नतीजा यह हुआ कि चूहे पकड़ने वालों ने चूहे पकड़ने का धंधा ही छोड़ दिया।
कैमिस्ट की दुकान से अलग-अलग किस्म के ‘चूहा मार ज़हर’ लाए गए और उन्हें खाने की चीज़ों में मिलाकर बन्दरगाह में फैलाया गया1 राजा चूहे ने तुरन्त आदेश दिया, “चूहे केवल वह खाना खाएं जो सीधे बोर, डिब्बे या ड्रम से निकला हो। ” इसका असर यह हुआ कि केवल वही चूहे मरे जिन्होंने राजा की बात नहीं मानी। कुछ चूहों ने तो इन अराज़क चूहों की मौत पर खुशी मनाई। कुत्तों, बिल्लियों, पिंज़ड़ों, चूहेदानियों की तरह ही ज़हर भी चूहों को मारने में बेअसर रहा।
इस सबसे चिंतित होकर लन्दर पोर्ट अथॉरिटी के चेयरमैन ने एक बड़ी मीटिंग बुलाई। इसमें उसने सबसे पूछा, “इन चूहों पर काबू पाने के लिए लोग कोई सुझाव दीजिए।” वाइस-चेयरमैन ने इसके लिए अखबार में एक इश्तहार निकालने का सुझाव दिया।
अगले हफ्ते सारे अखबारों में यह इश्तहार छपा। शहर पूरे पन्ने का था और एकदम मोटे-मोटे अक्षरों में छपा था। जिससे इंग्लैण्ड के सभी नागरिक उसे पढ़ पाएं। मिस्टर स्मिथ के परिवार के सभी लोगों ने उसे चाव से पढ़ा। केवल नानी मटिल्डा ही उसे नहीं पढ़ पार्इं। वैसे भी नानी कभी अखबार पढ़ती ही नहीं थीं क्योंकि वो सारी खबरें रेडियो पर ही सुन लेती थीं।
इस इश्तहार के सामने अखबार में छपी बाकी प्रतियोगिताएं एकदम बचकानी दिखती थीं। लन्दर पोर्ट अथॉरिटी के चेयरमैन ने बन्दरगाह को चूहों से मुक्त कराने वाले व्यक्ति को एक लाख पौंड का पुरस्कार देने की घोषणा की थी। साथ में चेयरमैन ने अपनी इकलौती लड़की की शादी भी उस आदमी से करने का वादा किया था। (अगर आदमी पहले से ही शादी-शुदा हुआ तो उसे दुबारा शादी की अनुमति नहीं मिलेगी। तब उसकी पत्नी को हीरे का एक कंगन भेंट किया जाएगा)। इश्तहार में एक लाख पौंड का एक चित्र था, और वे सब सोने की मोहरें थीं, न कि कागज़ के नोट। साथ में चेयरमैन की लड़की का फोटो भी छपा था। वह देखने में बेहद सुन्दर थी। उसके बाल सुनहरे और घुंघराले थे और आंखें नीली थीं। वह वायलिन बजाती थी और उसने तैराकी और स्केटिंग में कई इनाम जीते थे।
प्रतियोगिता में अगर कोई गड़बड़ बात थी, तो वो यह थी कि इसमें भागीदार को चूहे मारने का सारा ताम-झाम खुद लाना था। प्रतियोगिता में भाग लेना इस वजह से एक महंगा कारोबार बन गया था। इसके बावजूद सैकड़ों-हज़ारों लोगों ने इसमें अपना भाग्य आज़माया। अगली सुबह चेयरमैन के पास इतनी सारी चिट्ठियां आर्इं कि उनको ले जाने के लिए तीन अतिरिक्त डाकियों की ज़रूरत पड़ी। चेयरमैन को इतने लोगों ने टेलीफोन किया कि अंत में गर्म होकर टेलीफोन के तार ही गल गए। अगले महीनों तक तमाम लोग अपना भाग्य कई महीनों तक तमाम लोग अपना भाग्य आज़माते रहे। कैमिस्ट, जादूगर, वैज्ञानिक, प्राणीशास्त्री, साधू-माहात्माओं से लेकर इसमें शेर के शिकारी तक शरीक थे। परन्तु कोई भी महारथी चंद चूहों को मारने के अलावा और अधिक कुछ न कर सका। इन लोगों की दखलन्दाजी के कारण जहाज़ों में से माल उतारने में बाधा पड़ने लगी। इस की बज़ाए अन्य बन्दरगाहों से विदेश भेजना पड़ा।
भाग्य आज़माने वालें में जिम, चाल्र्स और जैक स्मिथ भी शामिल थे। जिम ने एकदम साधार-सी दिखने वाली चूहेदानी बनाने की सोची। वह जैसे स्कूल में मास्टरों को फंसाता था, उसने वैसे ही चूहों को फंसाने की ठानी। उसे बन्दरगाह के आस-पास टीन के तमाम पुराने डिब्बों से उसने एक विशेष प्रकार की चूहेदानी बनाई। चूहे डिब्बे के अन्दर की खुशबू सूंघ कर उस पर कूदेंगे ही। परन्तु टीन के ऊपरी हिस्से में तो चूहेदानी का दरवाज़ा था। उसमें से चूहा अन्दर से चला जाएगा लेकिन वह फिर बाहर नहीं निकल पाएगा। लेकिन जिम अपने सारे खाली समय में डिब्बों की चूहेदानियां बनाता रहता। इसके लिए उसने अपने पिता से दस पौंड का कर्ज़ भी लिया। टीन के डिब्बे बनाने वाले एक बेरोज़गार मिस्त्री को भी उसने चूहेदानियां बनाने के काम में लगा लिया था। कुल मिलाकर उन्होंने एक हज़ार तीन सौ चौरानबे चूहेदानियां बनार्इं। इनमें से सत्रह में कुछ नुक्स रह गया, इसलिए उन्हें छोड़ दिया गया।
जिम ने सारी चूहेदानियों को अपने पिता के सब्ज़ी के ठेलों पर लादा और वाइस-चेयरमैन से मिलने को चल दिया। वाइस-चेयरमैन ही चूहा उन्मूलन अभियान की देख-रेख कर रहे थे। उन्होंने कहा, “इतनी चूहेदानियां सभी बन्दरगाहों के लिए तो पर्याप्त नहीं होंगी। इसलिए पहले हम इन्हें केवल एक ही बन्दरगाह में ट्राई-आउट करके देखेंगे।” इसके लिए ‘वेस्ट-इंडिया‘’ नाम का बन्दरगाह चुना गया। यहां पर जमैका और उसके आस-पास के द्वीपों से जहाज़ आते थे। वे अपने साथ-साथ चीनी, रम, शीरा और केले लाते थे। यहां के चूहे तेज़-तर्रार और बड़ी होशियार किस्म के थे। शीरे के ड्रमों और कनस्तरों में से अन्दर-बाहर आना उनका रोज़ का खेल था1 कभी-कभी कुछ मंदबुद्धि और धीमी चाल वाले चूहे शीरे में फंस जाते और वहीं मर जाते। केवल तेज़ छलांग लगाने वाले और होशियार चूहे ही बचते। इसलिए यहां के चूहे कूदने-फलांगने में काफी उस्ताद थे।
जिस ने आधी चूहेदानियों में पनीर और बाकी में मीट के टुकड़े रखे। पहली रात को नौ सौ अट्ठारह चूहे पकड़े गए। इससे जिम बड़ा खुश हुआ और उसे लगा कि अब वह इनाम ज़रूर जीत जाएगा। पर दूसरी रात सिर्फ तीन चूहे ही पकड़े गए और तीसरी रात केवल दो। राजा चूहे ने सभी चूहों को टीन के डिब्बों से बचने की चेतावनी दे दी थी। इसलिए केवल बेवकूफ और आज्ञा न मानने वाले ही चूहे पकड़े गए। चौथी रात चूहेदानियों को विक्टोरिया बन्दरगाह में ले जाया गया। वहां भी केवल चार चूहे ही पकड़ में आए। राजा चूहे की चेतावनी दूर-दराज़ तक फैल चुकी थी। जिम कुछ खास कर नहीं सकता था। वह मुंह लटकाए घर लौट आया। समय बर्बाद करने के साथ-साथ उसने अपने पिता के दस पौंड भी लुटा दिए थे। स्कूल के शरारती लड़के जिम को टीन का चूहा कर कर चिढ़ाने लगे।
चाल्र्स स्मिथ की योजना कुछ अलग ही थी। उसने एक ऐसे जहर का आविष्कार किया जिसमें न तो कोई स्वाद था और न ही कोई खुशबू। मैं आपको उसे बनाने का तरीका नहीं बताऊंगा। क्योंकि हो सकता है कि कोई हत्यारा इस कहानी को पढ़कर, उस ज़हर से कुछ लोगों को खत्म कर दे। चाल्र्स ने इस ज़हर को काफी मात्रा में बनाया। उसने रसायनों को मिलाकर एक ऐसा पदार्थ बनाया जिसमें ‘राकपोर्ट पनीर’ की खुशबू आती थी। सभी लोग जानते हैं कि राकपोर्ट पनीर फ्रांस का सबसे मशहूर पनीर है।
इस रासायनिक पदार्थ का नाम मिथाईल हेप्टाडेसाइल कीटोन है और उसमें से एकदम पनीर की खुशबू आती है। कुछ लोगों को चाहे यह सुगन्ध नापसंद हो परन्तु चूहों को इस खुशबू से बेहद प्यार है। पौंड उधार लिए और उनसे वह बहुत सारा सत्ता और घटिया किस्म का पनीर खरीद लाया। पहले उसने पनीर को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा। फिर उन टुकड़ों को ज़हर में डुबोया और उन पर राकपोर्ट पनीर वाली खुशबू छिड़की गई। इन टुकड़ों को दस हज़ार गत्ते के डिब्बों में रखा गया। उसने सोचा कि अगर टुकड़ों को ऐसे ही खुले में बिखरा दिया गया, तो शायद चूहे उन पर शक करें। लेकिन डिब्बे में पैक किए पनीर के ज़हरीला होने पर कौन चूहा शक करेगा! डिब्बे पतले गत्ते के बने थे जिससे चूहे आसानी से घुस सकें।
पूरे दिन भर दो आदमी, ठेलों पर उन डिब्बों को लाद-लाद कर बन्दरगाह के कोन-कोन में उन्हें फैलाते रहे। चाल्र्स उनके पीछे-पीछे जाता और उन डिब्बों पर पनीर की खुशबू वाला छिड़कता रहता। उस दिन तो लन्दन का समस्त पूर्वी भाग पनीर की खुशबू से महक रहा था। सूरज़ ढलने के बाद चूहे अपने बिलों से निकले और उन्होंने एक-दूसरे से कहा, “यह तो कोई गज़ब का पनीर मालूम होता है। इसके एक छोटे-से डिब्बे की खुशबू, एक पेटी भर साधारण पनीर को मात करती है।” चूहों ने जम कर पनीर को खाया। वह कुछ पनीर राजा चूहे के भोज के लिए भी ले गए। यह राजा चूहे की खुशकिस्मती थी कि उसने तब ही पेट भर कर बादाम और अखरोट खाए थे।
उसके पेट में बिल्कुल जगह नहीं थी। ज़हर को असर करने में कुछ समय लगा और सुबह तीन बजे से चूहों के मरने का सिलसिला जारी हुआ। राजा चूहे का शक एक दम पनीर पर गया। उसने अपने दूतों द्वारा पनीर न खाने का संदेश सारे चूहों में फैलवाया।
एक चूहा बहुत ज़ालिम किस्म का था। अपने खुद के बच्चों को खाने के इल्ज़ाम में उसे मौत की सज़ा हो चुकी थी। राजा चूहे ने उसे थोड़ा-सा ज़हरीला पनीर खाने का आदेश दिया। थोड़ी ही देर में वह चूहा मर गया। इससे पनीर का ज़हरीला होना एकदम सिद्ध हो गया। अब राजा ने और दूतों के ज़रिए अपना संदेश भिजवाया। अगले दिन सुबह चार हज़ार पांच सौ चौदह मरे हुए चूहे पाए गए। तमाम चूहे बिलों में ही मरे पड़े थे। कई चूहों की तबियत काफी खराब थी। चेयरमैन यह देख कर बेहद खुश हुए और उन्होंने चाल्र्स को और पनीर खरीदने के लिए पैसे दिए। परन्तु दो दिन बाद आठ हज़ार डिब्बों में से मात्र दो डिब्बों को खुला पाया गया। मामला साफ था। चूहे, आदमियों को मुकाबले ज़्यादा चालाक निकले। चाल्र्स बेहद दुखी हुआ। वह जीतेगा ही, उसे इस बात का पक्का विश्वास था। इस उम्मीद में उसने शादी की अंगूठी का ऑर्डर दे दिया था और चर्च के पादरी को शादी करवाने के लिए पत्र भी लिख दिया था। उसने सुनार और पादरी को दुबारा पत्र लिखे कि उसने अब शादी करने का इरादा बदल दिया है। सबसे खराब बात यह हुई कि पनीर की खुशबू उसकी चमड़ी के साथ महीना भर तक चिपकी रही। उसे स्कूल ने पास लेने से इंकार कर दिया और घर में उसे कोयले की कोठरी में सोना पड़ा।
अंत में जैक ने अपनी योजना बनाई। इसमें खर्चा कुछ अधिक था। उसने अपने पिता से तीस पौंड का कर्ज़ लिया, लेकिन वह काफी न था। उसने कुछ वायरलैस-सेट मुझे बेचे, और कुछ पैसा मुझ से भी उधार लिया। धीर-धीरे उसकी पैसों की ज़रूरत पूरी हुई। उसने ढेर सारा एकदम महीन लोहे का बुरादा खरीदा व आटे और चीनी में मिलाकर उनके बिस्कुट बनवाए। बिस्कुटों को बन्दरगाह में सभी जगह बिखरा दिया गया। शरू में तो चूहों ने उन्हें छुआ तक नहीं। परन्तु बाद में उन्हें बिस्कुटों में नुकसान नहीं दिखा, तब उन्होंने खूब बिस्कुट खाए। इस बीच जैके ने सात विशालकाय विद्युत-चुम्बकों का जुगाड़ किया। इन्हें अलग-अलग बन्दरगाहों में रखा गया। हरेक बिजली के चुम्बक को एक गहरे गड्ढे में रखा गया। फिर बिजली के तार बिछाए गए, जिससे कि डिस्ट्रिक्ट रेल का इलेक्ट्रिकल इंजीनियर संयोगवश जैक का दोस्त निकला। दोनों की वायरलैस में गहरी रुचि थी। दोस्ती के कारण जैक को रेल्वे से बिज़ली उधार लेने में दिक्कत नहीं हुई। जब चूहों ने लोहे का ढेर सारा बुरादा खा लिया तभी चुम्बकों में से करन्ट बहाया गया1 उसके पहले लोहे, स्टील और निकिल की सभी चीज़ों को बांध दिया गया। उसके क्योंकि सारे जहाज़ लोहे के बने होते हैं इसलिए उन्हें मोटे रस्सों से कस कर बांध दिया गया। उस रात बन्दरगाह पर ड¬ूटी पर आए सभी कर्मचारियों को विशेष प्रकार के, बिना कीलों वाले, जूते पहनने पड़े। वाइस-चेयरमैन की बात अलग थी - वह ड्यूक था, इसलिए उसके जूतों में सोने की कीलें लगी थीं।
आधी रात के बाद करीब डेढ़ बजे के करीब लन्दन की सभी अन्डरग्राऊंड ट्रेनों की ड्यूटी खत्म हुई। तब बिजली का सारा करन्ट जो ट्रेनों को खींच रहा था उसे पहले विद्युत चुम्बक में बहाया गया। पहले तो कुछ जंग लगी कीलें और टीन के डिब्बे की उसकी ओर आकर्षित हुए। फिर कुछ चूहे भी आ चिपके। जिन चूहों के पेट लोहे के बुरादे से भरे थे, वे चुम्बक की ओर खिंचे चले आए। और थोड़ी ही देर में चुम्बक वाला गड्डा भर जाने के बाद करन्ट को दूसरे चुम्बक में छोड़ा गया। इसी तरह एक के बाद एक करके सभी चुम्बकों में करन्ट छोड़ा गया। पहले तो केवल वही चूहे जो अपने बिलों से बाहर थे चुम्बक की चपेट में आए। परन्तु हरेक चुम्बक में थोड़ी-थोड़ी देर बाद दुबारा करन्ट बहाया गया। अब जैसे-जैसे चूहे बिलों से बाहर निकलते वे झट से चुम्बकों द्वारा पकड़ लिए जाते। धीरे-धीरे बहुत सारे चूहे पकड़े गए।
चूहों के राजा को इस गड़बड़ी का आभास हो गया। उसको लगा कि वह खुद बिल की एक दीवार की ओर खिंचा जा रहा है। उसने अपने दूतों को स्थिति की जानकारी लेने बाहर भेजा। लेकिन वे दूत दुबारा वापस ही नहीं आए। अंत में वह हालचाल जानने के लिए खुद ही बाहर निकला। उसे तुरन्त ही एक चुम्बक ने खींच लिया। सुबह होते ही सारे गड्ढ़ों में लबालब पानी भर दिया गया, जिससे कि सारे चूहे डूब कर मर जाएं। मरे चूहों को जब तौला गया तो उनका भार करीब एक सौ पचास टन निकला। किसी ने मरे चूहों को गिना तो नहीं, परन्तु एक अनुमान के अनुसार करीब साढ़े सात लाख चूहे पकड़ में आए।
चूहा-पकड़ों अभियान के दौरान कुछ दुर्घटनाएं भी हुर्इं। रात की ड्यूटी पर आया एक चौकीदार बिना कीलों वाले जूते पहनना भूल गया। वह पैरों के बल चुम्बक की ओर खिंचता हुआ चला गया। गड्ढे के पास आते-आते उसने किसी तरह अपने जूते तो उतार दिए। फिर भी उसकी पैरों की उंगलियों से दो चूहे लटके रह गए। चूहों को चुम्बक ने इतनी ताकत से खींचा कि चौकीदार की उंगलियां टूट कर चूहों के साथ चुम्बक से जा चिपकीं। वह चौकीदार अब छोटे साइज़ के जूते पहनता है। दूसरे चौकीदार की किस्मत कुछ अच्छी रही। महायुद्ध से पहले वह बिलियर्ड का एक अच्छा खिलाड़ी था। परन्तु लड़ाई के दौरान उसके सिर में कुछ लोहे के छर्रे घुस गए थे। बहुत कोशिशों के बाद भी कोई डाक्टर उन छर्रों को निकाल नहीं पाया। इस वजह से वह बिलियर्ड खेलने में असमर्थ हो गया। पर जैसे ही जैक ने चुम्बक में करन्ट बहाया, चौकीदार के सिर में से लोहे के छर्रे बाहरनिकल आए। छर्रे निकलने के बाद उसका दिमाग बिलियर्ड खेलने में दुबारा से काम करने लगा। वह चौकीदार बिलियर्ड का चैंपियन बन गया है।
दूसरी रात चुम्बकों में दुबारा बिजली दौड़ाई गई। इस बार करीब सौ टन चूहे पकड़े गए। चूहों का राजा पहले ही मारा जा चुका था। इसलिए चूहों को सही रास्ता दिखाने वाला कोई रीडर नहीं बचा था।
तीसरी रात भी बहुत सारे चूहे पकड़े गए। इसके बाद जो भी बचे-खुचे चूहे थे, वे मारे इधर-उधर भाग गए। कुछ चूहों ने लन्दन शहर में पलायन किया और वहां के लोगों को परेशान किया। परन्तु बन्दरगाह में एक भी चूहा नहीं बचा। तमाम कोशिशों के बावजूद भी चौथी रात कोे एक भी चूहा पकड़ में नहीं आया। अगले कुछ दिनों तक कुत्ते और बिल्लियों की मदद से चूहों को पकड़ने की कोशिश की गई। लेकिन एक भी चूहा पकड़ में नहीं आया।
जैक स्मिथ को एक लाख पौंड मिले उसकी शादी चेयरमैन की लड़की के साथ एक आलीशान जहाज़ पर हुई। वह चर्चा में शादी नहीं करना चाहता था और रजिस्ट्रार के दफ्तर से उसे नफरत थी। उसने एक बड़ा जहाज़ किराए पर लिया और किनारे से तीन किलोमीटर दूर जाने पर कप्तान ने उनकी शादी की। अगर दूरी ढाई किलोमीटर होती तो कप्तान का ऐसा करना गैरकानूनी होता। उनके दो बेटी और दो बेटे हुए। जैक को बी.बीसी. में एक इंजिनियर की अच्छी नौकरी मिल गई। अगर वह चाहता तो उन एक लाख पौंड से सारी ज़िन्दगी बैठ कर खाता। लेकिन उसे वायरलैस से इतना प्रेम था कि वह जीवन भर उसी से खेलते रहना चाहता था।
जैक की बहन ने ड्यूक से शादी कर ली। इसलिए वह डचेज़ बन गई। उनकी सैंडिल में हीरे की एड़ी है, जो उसके पति के जूते में लगी सोने की कीलों से मेल खाती है। जैक ने अपने दोनों भाईयों-जिम और चाल्र्स को खूब धन दिया, जिससे कि वे अपने शौक के मुताबिक कारोबार कर सकें।
जिम ने पैसों से जादू की छड़ी और काली टोप खरीदी और आगे जाकर एक मशहूर जादूगर बना। बाद में चाल्र्स यूनिवर्सिटी में कैमिस्ट्री का प्रोफेसर बना। मैं भी एक प्रोफेसर हूं और उसे अच्छी तरह से जानता हूं1 उसके बाद सभी ने एक खुशहाल ज़िन्दगी बिताई।
जे.बी.एस. हाल्डेन: (1892-1964) विख्यात अनुवंशिकी विज्ञानी। विकास (evolution) के आधुनिक सिद्धांत को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान।
कम्युनिस्ट विचारधारा के समर्थक हाल्डेन ने जीवन का अंतिम समय भारत में अहिंसा के बारे में लिखते हुए गुजारा।
अरविंद गुप्ता:स्वतंत्र लेखन, दिल्ली में रहते हैं।