दिमाग के बीचों-बीच पड़ी है एक ग्रंथी- पीनियल। आखिर इसका काम क्या है? कुछ जंतुओं में तो इसके काम के बारे में स्पष्टता है तो कुछ में यह अभी भी सवाल बनी हुई है।
जीव शास्त्र पढ़ने वक्त प्राणियों के शरीर में कई सारी अंत: स्रावी ग्रंथियों का जि़क्र आता है – थाइरॉयड, पिटचुटरी, एड्रीनल, . . . और इन सब के साथ-सासथ पीनियल ग्रंथी। पीनियल ग्रंथी की मौजूदगी के बारे में तो आज के लगभग करीब ढाई ह़जार साल पहले अरस्तू को भी मालूम था परन्तु बीसवीं सदी के मध्य तक केवल अंदाज़ लगाए जा रहे थे कि आखिर यह ग्रंथी करती क्या है। क्योंकि बहुत से प्राणियों में पीनियल ग्रंथी को एकदम से निकाल देने के बावजूद उन जीवों पर कोई असर पड़ता दिखाई नहीं देता था। बहुत समय तो पीनियल इसलिए भी आश्चर्य का विषय बनी रही क्योंकि यही एक अंग मस्तिष्क में ऐसा था जिसका कोई जोड़ीदार नहीं था- दिमाग में अन्य सब रचनाएं जोडि़यों में होती है। इस सदी की शुरूआत में मेंढक पर खोजबीन करते हुए अचानक किसी ने पाया कि पीनियल ग्रंथी प्रकाश के प्रति संवेदनशील होती है, इस खोज से अचानक हलचल बढ़ गई और बहुत से लोग यह पता लगाने में जुट गए कि आखिर शरीर के अंदर रोशनी से दूर, खोपड़ी में छिपे हुए एक प्रकाश संवेदी अंग का क्या काम?
इस सब जांच पड़ताल के दौरान समझ में आया कि पीनियल ग्रंथी का इतिहास काफी मज़ेदार है और पेचीदा भी – यहां पर हम जीव विकास के दौरान किसी अंग के लाखों-करोड़ों सालों के इतिहास की बात कर रहे हैं। आइए जानने की कोशिश करें कि इस लंबे दौर में विभिन्न प्रारिणयों में पीनियल ग्रंथी ने क्या-क्या भूमिकाएं निभाई। यह इतिहास पता करने का एक तरीका है प्राणियों के विभिन्न समूहों में आज की स्थिति में पीनियल ग्रंथी का अध्ययन।
कुछ शुरूआती रीढ़धारियो में पीनियल ग्रंथी कुछ-कुछ आंख जैसी दिखती है, एकदम छोटी-सी आंख और यह आंखनुमा रचना प्रकाश के प्रति संवेदनशील भी होती है।
इन प्राणियों में पीनियल ग्रंथी पर प्रकाश पड़ने पर न सिर्फ तंत्रिकाएं उत्तेजित हो जाती हैं बल्कि मेलाटोनिन नाम का हार्मोन भी स्रावित होता है जिका एक प्रभाव है चमड़ी का रंग हल्का पड़ जाना। यह प्रभाव इन शुरूआती रीढ़धारियों में दिखता है। यह दिखाया गया है कि इन प्रणियो में 24 घंटे के अंतराल पर होने वाली बहुत सी नियमित गतिविधियों के नियंत्रंण में पीनियल ग्रंथी का सक्रिय हाथ है।
लेम्प्रे नामक जबड़ा- विहीन मछलियों में तो यह पीनियल ग्रंथी सर पर ऊपर की तरु एकदम चमड़ी पर स्थित होती है। ऐसे में इसे ‘तीसरी आंख’ कहा जा सकता है परन्तु विभिन्न प्रयोगों से यह साबित हुआ है कि लेम्प्रे मछलियों मे यह रचना प्रकाश संवेदी ज़रूर होती है परन्तु आंख की तरह देखने का काम नहीं करती। लेम्प्रे के लार्वा का रंग दिन को गहरा जाता है और रात को हल्का हो जाता है, उनमें यह बदलाव पीनियल ग्रंथी के कारण ही होता है। इसके अलावा ऐसे भी सबूत हैं कि लेम्प्रे मछलियों में पीनियल ग्रंथी कायांतरण और प्रजनन को भी प्रंभावित करती है। अगर लेम्प्रे की लार्वा अवस्था में से यह ग्रंथी निकाल दी जाए तो उनमें कायांतरण नहीं होता वे लार्वा ही बने रहते हैं, मछली नहीं बन पाते।
सरीसृपों, विशेषतौर पर छिपकलियों की कुछ प्रजातियों में भी यह ग्रंथी ‘तीसरी आंख’ के रूप में सर पर मौजूद होती है। उनमें इसकी रचना काफी हद तक साधारण आंख जैसी होती है। पाया गया है कि इनमें यह एक थर्मोमीटर का काम करती है। सरीसृपों में शरीर का तापमान वातावरण के तापमान के अनुसार बदलता रहता है। इसलिए वातावरण के तापमान के बदलाव के प्रति वे अत्यन्त संवेदनशील होते हैं। तापमान कम हो जाने पर उनके शरीर की रासायनिक प्रक्रियाएं मंद पड़ जाती है और वे शीतनिद्रा (हिबरनेशन) में चले जाते हैं; और तापमान ज़्यादा हो जाने पर उनकी जान खतरे में पड़ जाती है।
सरीसृपों में तापमान बढ़ाने के कोई अंदरूनी स्रोत शरीर में नहीं होते, शरीर का तापमान नियंत्रित करने के लिए उन्हें पूर्णत: बाहरी स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस काम को अंजाम देने में पीनियल ग्रंथी प्रमुख भूमिका निभाती है – शरीर के और बाहर के तापमान पर लगातार नज़र रखकर, जिसके आधार पर ये सरीसृप तय करते हैं कि कब छाया की तलाश करना और कब धूप सेंकना ज़रूरी है उनके लिए।
स्तनधारियों की पीनियल ग्रंथी भी मेलाटोनिन स्रावित करती है परन्तु इसमें प्रकाश संवेदी कोशिकाएं नहीं होतीं, और स्तनधारियों की चमड़ी में रंग बदलने की क्षमता रखने वाली कोशिकाएं (क्रोमेटोफोर भी नहीं होतीं। तो फिर स्तनधारियों में पीनियल ग्रंथी का क्या काम?
इस दिशा में हुए प्रयोगों से कुछ अंदाज़ लग पाए हैं कि स्तनधारियों में शायद पीनियल ग्रंथी को आंख से आने वाली तंत्रिकाआं के ज़रिए प्रकाश की उपस्थिति की जानकारी मिलती है, जिससे पीनियल ग्रंथी में मेलाटोनिन हार्मोन उत्पादन की दर तय होती है।
मेलाटोनिन की मात्रा स्तनधारियों के शरीर में जनन ग्रंथियों पर नियंत्रण रखकर प्रजनन की प्रक्रियाओ को प्रभावित करती है, खासतौर पर किसी मौसम विशेष के दौरान प्रजनन करने वाले स्तनधारियों में। मनुष्य में शायद यह नियंत्रण किशोरावस्था से वयस्क बनने के रूप में है क्योंकि उस दौरान मेलाटोनिन के उत्पादन की दर एकदम से कम हो जाती है। और उसके पश्चात वयस्क मनुष्य में पीनियल ग्रंथी कैल्शियम के लगातार जमा होने से एक पत्थरनुमा मोती में तब्दील हो जाती है।
अभी तक जो संकित मिले हैं उनसे ऐसा लगता है कि स्तनधारियों में भी शायद पीनियल ग्रंथी नियमित दैनिक अंतराल पर घटने वाली अन्य प्रक्रियाओं को भी नियंत्रित करती होगी। पीनियल ग्रंथी में उत्पनन होने वाले हार्मोन मेलाटोनिन, सोरोटोनिन और कुछ अन्य रसायन एक तरह से जैविक घडि़यों का काम करते हैं जो कुछ हद तक बाहरी वातावरण से मिलने वाले संकेतो पर निर्भर हैं ओर कई मायनो में स्वतंत्र घड़ी की तरह हैं जो बाहरी संकेतों से अनभिज्ञ अपना समय का मापना जारी रखती हैं। परन्तु इस विषय पर अभी और शौध की आवश्यकता है इससे पहले कि कुछ पक्के तौर पर कहा जा सके।
तो यह है आज की स्थिति – पीनियल ग्रंथी प्राणियों के विभिन्न समूहों में बहुत ही अलग-अलग तरह के कामों को सरंजाम देती है। परन्तु यह भी है कि बहुतेरे समूहों में वह प्रकाश के प्रति संवेदनशील है और कुदेक में उसकी रचना आंख से काफी मिलती-जुलती भी है। यह सब देखते हुए इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता कि लाखों करोड़ों साल पहले कुछेक प्राणियों में पीनियल ग्रंथी एक ‘तीसरी आंख’ के रूप में मौदूद रही हो, देखने के लिए इस्तेमाल होने वाली तीसरी आंख।
(सहयोग – विपुल किर्ती, चेतना खरे)