दीपावली के दिन घर के दरवाज़े पर आम के पत्तों से तोरण बना रहा था कि अचानक एक पत्ती पर नज़र पड़ी। यह पत्ती कुछ ज्यादा ही फूली-फूली दिख रही थी। मैंने उसे तोड़कर गौर से देखा। ऐसा लगा जैसे पत्ती का फलक यानी बीच का हिस्सा कुछ फूला हुआ है। मैंने सोचा उसके अंदर शायद कोई कीड़ा है इसीलिए ऐसे फूल गई है।

फिर पत्ती को बीच से मोड़कर देखा तो आश्चर्य का ठिकाना न रहा। ऐसा लगा मानो पत्ती की मध्य शिरा ही ऊपर उठ गई। पर यह क्या! मध्य शिरा के साथ कुछ सहायक शिराएं और धारियां भी ऊपर को आ गई। ओफ! ये तो इल्ली (लार्वा) है, बिल्कुल पत्ती के रंग-रूप जैसी।

इल्ली के शरीर पर वैसी ही धारियां थीं जैसी पत्ती की मध्य शिरा एवं सहायक शिराएं होती हैं। मैंने इल्ली को तिनके से पत्ती के किनारे की ओर खिसकाया लेकिन इल्ली ने घूम-फिरकर मध्य शिरा को खोज लिया और फिर से मध्य शिरा की लाइन में सीधी होकर पहले जैसे पत्ती से चिपक गई। मालूम हो जाने के बावजूद फासले से तो पहचानना मुश्किल था।

इल्ली काफी विचित्र थी, इसलिए उसके फोटो खिंचवाए और उसे पालने का तय किया। लगे हाथ सोचा, इसके जीवन चक्र का अध्ययन भी कर लिया जाए।

एक कांच के जार में पत्ती और इल्ली को रख दियाजैसे ही रात शुरू हुई इल्ली ने पत्ती को कुटुर-कुटुर कर खाना शुरू किया और रात भर में आम की आधी पत्ती हज़म कर लीअर्थात यह इल्ली निशाचर निकली। दूसरे दिन उसे आम की ताज़ी पत्ती दी। उसने बड़ी फुर्ती से पत्ती को कुबूल किया और पहले की तरह मध्यशिरा की सीध में छिप गई।

दो-तीन दिन तक पत्तियां खाने के बाद इल्ली सुस्त पड़ने लगी। अगले दिन देखा तो इल्ली की रोएंदार खोल बाजू में पड़ी है और जार में एक फीके हरे रंग की शंखी (प्यूपा) मौजूद है। इल्ली शंखी में तब्दील हो गई थीशंखी के बीच वाले हिस्से में एक सुनहरी चमकदार धारी ऐसी लग रही थी मानो किसी ने चिपका दी हो, तकरीबन 10-12 दिन में शंखी से एक काली तितली निकल आई - एकदम सामान्य-सी तितली!

परिवार और पड़ोसियों ने इस जीवन चक्र और कायांतरण की अवस्थाओं को नज़दीक से देखा। मुझे एकबार फिर समझ में आया कि प्रकृति में जीवों की विविधता और उसके अध्ययन का आनंद है। कुछ अनोखा है।


आलेख एवं फोटो - उमेश चौहान। हरदा ज़िले की टिमरनी तहसील में विज्ञान पढ़ाते हैं।