अमिताभ मुखर्जी
हम हवा के एक विशाल समुद्र के नीचे रहते हैं। ऊपर की ओर कई किलोमीटर तक वायुमंडल फैला हुआ है। सिर्फ ऊपर ही नहीं, चारों ओर फैली हुई है हवा। जहां भी इसे रास्ता मिलता है, यह घुस आती है। (यही है तरलता का गुण)। इस समुद्र की तह पर रहने के कारण इसका भार हम पर दबाव डालता है। द्रवों की तरह गैसों का दबाव भी निम्न सूत्र से मिलता है।
दबाव = ऊंचाई x घनत्व
कितना है यह दबाव? एक वर्ग सेंटीमीटर पर एक किलोग्राम का वज़न रखने से जितना दबाव उत्पन्न होता है, लगभग उतना। एक वर्ग सेंटीमीटर पर खड़ा हवा का 'स्तम्भ' कई किलोमीटर ऊंचा है, पर हवा का घनत्व पानी के घनत्व से बहुत कम है। एक बर्ग सेंटीमीटर पर खड़ा एक किलोग्राम वज़न का पानी का स्तम्भ कितना ऊंचा होगा?
एक घन सेमी. पानी का वज़न = 1 ग्राम
यानी, स्तम्भ के एक सेंटीमीटर का भार 1 ग्राम है। अतः 1 किलो भार डालने के लिए चाहिए 1000 सेंटीमीटर यानी 10 मीटर ऊंचा पानी का स्तम्भ।
ऊपर बताया गया पानी का स्तम्भ काल्पनिक था। इसको वास्तव में बनाने का प्रयोग इटालीय वैज्ञानिक तोरिंचेल्ली ने पहली बार किया। उन्होंने एक बहुत लम्बी कांच की नली बनाई, जो एक तरफ से बन्द थी। नली को पानी से भरकर उसको पानी भरे टब में उलटा खड़ा कर दिया, यानी नली का सील किया हुआ सिरा ऊपर की तरफ। नली को पानी के टब में डालकर नीचे की टोटी खोल देने पर पानी का स्तर गिरने लगा और तब रुका जब उसकी ऊंचाई 10 मीटर थी।
वायुमण्डलीय दबाब
ऐसा क्यों होता है? इसे समझने के लिए चित्र-1 को देखते हैं। हम तीन बिन्दु चुनेंगे और उन पर दबाव निकालेंगे। पहला बिन्दु 'च' नली में पानी की ऊपरी सतह पर है। इसके ऊपर वाले हिस्से में हवा नहीं है, क्योंकि हवा के वहां पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है। यानी यह स्थान 'वायुरहित' है। सत्रहवीं सदी में लोग इसे 'तोरिंचेल्ली का खालीपन' कहते थे, आधुनिक नाम है 'निर्वात। हवा नहीं इसलिए कोई दबाब भी नहीं है।
अतः 'च' पर दबाव = 0
अब बिन्दु 'छ' को देखिए, जो नली के अंदर और टब के पानी की सतह के स्तर पर है। इस पर दबाव डाल रहा है नली में स्थित पानी। अतः
'छ' पर दबाव = 10 मी. पानी का दबाव
सूत्र के अनुसार:
10 मीटर पानी का दबाव
= 10 मीटर x 1 ग्राम/घन सेंटीमीटर
= 1000 में.मी. x 1 ग्राम/घन से.मी.
= 1000 ग्राम वर्ग से मी,
= 1 कि.ग्रा/वर्ग से.मी.
अंत में बिन्दु 'ज' को लेते हैं, जो नली के बाहर, टब के पानी की सतह पर है। इस पर दबाव है केवल वायुमण्डल का। अत:
'ज' पर दबाव = वायुमण्डल का दबाव
स्थिर स्थिति में (जब पानी न चढ़ रहा है, न गिर रहा है) 'छ' और 'ज' पर दबाव बराबर होंगे। अगर नहीं होते, तो जहां दबाव अधिक है वहां से पानी दूसरी तरफ भागता। (यही है तरलता) अतः हम पाते हैं:
वायुमण्डलीय दबाव = 1 किलोमीटर/वर्ग सेंटीमीटर
10 मीटर लम्बी कांच की नली से प्रयोग करना कठिन भी है और खतरनाक भी। पानी की जगह हम तोरिंचेल्ली का प्रयोग ‘पारे' से कर सकते हैं। 'पारे' का घनत्व पानी से लगभग 13.6 गुना अधिक है। अतः वायुमण्डल के दबाव की बराबरी करने वाला पारे का स्तम्भ लगभग 76 से मी, होगा। पारे से भरी हुई नली का मुंह अंगूठे से या गत्ते से बन्द करके उसको चौड़े बर्तन में भरे पारे की सतह के नीचे ले जाकर खोल दें,
तो टोटी की कोई जरूरत नहीं। यह है वायुदाबमापी या बैरोमीटर।
किस्मत की हवा-कभी नरम कभी गरम
वैसे तो हमने कह दिया "वायुमण्डल का दबाव लगभग 1 किलोमीटर/वर्ग सेंटीमीटर होता है, जो लगभग 76 सेंटीमीटर ऊंचे पारे के स्तम्भ के दबाव के बराबर है।'' पर वास्तव में धरती पर हवा का दबाव हर जगह पर एक सा नहीं होता। अगर हम शिमला, मसूरी जैसी किसी पहाड़ी जगह पर जाएं, तो हम होशंगाबाद से लगभग 2000 मीटर अधिक ऊंचाई पर होंगे। यानी हवा का जो स्तम्भ हमें दबा रहा है, उसकी ऊंचाई इतनी ही कम होगी। अत: ऐसी जगह पर हवा का दबाव कम होगा। (देखिए चित्र-3)
कः हवा का दबाव 'ग' से कम
ख: हबा का दबाव 'ग' से अधिक
अगर हम अपने वायुदाबमापी यन्त्र (बैरोमीटर) को उठाकर 'ग' से पहाड़ पर स्थित 'क' पर ले जाएं, तो दबाब दर्शाने वाले पारे के स्तम्भ की ऊंचाई कम हो जाएगी। इसी तरह अगर हम उसे खदान में स्थित 'ख' पर ले जाएं, तो स्तम्भ की ऊंचाई अधिक होगी। यानी 'ग' की तुलना में 'क' पर हवा का दबाव कम है और 'ख' पर अधिक है। केवल पहाड़ी इलाकों में नहीं, बहुत ऊंची इमारतों पर भी बैरोमीटर दबाव में थोड़ा बहुत अन्तर दिख सकता है।
यह तो हुआ एक जगह से दूसरी जगह जाने पर हवा के दबाब का बदलना। पर एक ही जगह पर समय के साथ वायुमण्डलीय दबाव घटता बढ़ता है। टीवी, या अख़बारों में आपने देखा या सुना होगा - "बंगाल की खाड़ी के ऊपर (या पश्चिमी राजस्थान में) कम दबाव का क्षेत्र बना हुआ है। इसके पश्चिमोत्तर दिशा में (या पूरब दिशा में) चलने की सम्भावना है।" ज़ाहिर है कि जब यह क्षेत्र खाड़ी से उड़ीसा/आन्ध्रप्रदेश तट की ओर जाता है, तो वहां हवा का दबाव कम हो जाता है। तट पर अगर वायुदाबमापी लगाकर बार-बार अवलोकन लेते रहें, तो हम देखेंगे कि उसी जगह पर कुछ समय बाद पारे के स्तम्भ की ऊंचाई कम हो जाएगी।
76 सेंटीमीटर पारे के स्तम्भ को, जो कि वायुमंडल के औसत दबाव को दर्शाता है, वायुमंडलीय दबाव की मानक इकाई माना गया है। इसको 1 बार कहते हैं। दबाव में घट-बढ़ आम तौर पर 3-4 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होती। अतः दबाव के परिवर्तन को मापने के लिए हमें एक छोटी इकाई चाहिए। यह है मिलींबार या मि.बा.।
1 बार = 1000 मिलीबार
प्रश्नः किसी जगह पर बैरोमीटर का पारा थोड़े ही समय में 19 मि.मी. गिर गया। वहां हवा का दबाव कितने मिलीबार कम हुआ?
अक्सर कम दबाव खराब मौसम का सूचक होता है। अगर बैरोमीटर का पारा यकायक गिर जाए, तो समझ सकते हैं कि तूफान आने वाला है। अब इस यन्त्र की उपयोगिता सामने आई। बैरोमीटर हमें आने वाले तुफान का पूर्व संकेत देता है, जिससे हम बचाव के लिए कदम उठा सकते हैं।
अब आप पूछ सकते हैं कि वायुमण्डल का दबाव कम होने से मौसम खराब होने का यह संबंध कहां से आया? हमने अब तक हवा के दबाव के बारे में जो बातें कहीं, क्या उनके आधार पर यह समझा जा सकता है? यों तो मौसम के कई पहलू हैं, जैसे तापमान, हवा में नमी की मात्रा, बादलों का बनना (देखिए संदर्भ का अंक 19) इत्यादि। इसलिए मसला कुछ जटिल है। पर इन सब के अलावा एक मोटी बात है हवा का बहना। आइए इस पर ज़रा गौर करें।
दबाव और बहाव
हमने पहले ही देखा है कि द्रवों और गैसों में तरलता अर्थात् बहने की प्रवृत्ति होती है। इन्हें एक तरफ से दबाया जाए तो ये दूसरी तरफ भागते हैं। इसको एक नियम के रूप में लिखा जा सकता है: द्रवों और गैसों की एक सहज सी प्रवृत्ति होती है ।
अधिक दबाव से कम दबाव की तरफ बहना।
यदि रास्ता मिले तो ये तरल पदार्थ अधिक दबाब से कम दबाव की तरफ बहने लगते हैं।
किसी साइकिल की ट्यूब में या फुलाए हुए फुग्गे (गुब्बारे) में छेद हो जाए तो हवा निकल जाती है यह तो हम सब ने देखा है। यह ऊपर दिए गए नियम का उदाहरण है। ट्युब में पम्प से हवा भरी जाती है। उसका दबाव वायुमण्डल के दबाव से ज्यादा होता है। इसलिए उसकी प्रवृत्ति होती है बाहर (कम दबाव के क्षेत्र में ) आने की। छेद हो जाए या बाल्व की टोटी खोल दी जाए तो उसे रास्ता मिल जाता है और वह बाहर आ जाती है। फुग्गे के साथ भी यहीं होता है। अधिक दबाव बनाए रखने के लिए उसे धागे से बांधना पड़ता है। धागा खुल जाए तो हवा बाहर आ जाती है।
इससे जुड़ा हुआ एक रोचक प्रयोग है। इसके लिए चाहिए एक कांच की बोतल, उसमें लगने वाला दो छेदी कॉर्क, दो कांच की नलियां और एक फुग्गा। कांच की नली की जगह सोड़ा पीने की नली (स्ट्रॉ) से भी काम चल सकता है। फुग्गे को एक नली के सिरे पर बांध कर दोनों नलियों को कॉर्क में पिरो दीजिए। फिर कॉर्क को बोतल के मुंह में फिट कर दीजिए। लाख या मोम से कॉर्क को इस तरह सील कर दीजिए, जिससे नलियों के अलावा हवा के आने-जाने का कोई रास्ता न हो। इस स्थिति में बोतल के अन्दर और बाहर का दबाव बराबर है क्योंकि दबाव को बढ़ाने या घटाने वाली कोई क्रिया नहीं की गई है। अब जिस नली
कुछ सवाल
संदर्भ के अंक 26 में हवा के दबाव से जुड़े कुछ सवाल पूछे गए थे। एक बार फिर याद ताज़ा करने के लिए सवालों को हां दोहराया जा रहा है। अगर आपने उस समय इनके बारे में न सोचा हो तो इस लेख को पढ़ने के बाद इन सवालों के जवाब सोचिए और हमें लिख भेजिए।
पहला सवालः चित्र में दो एक समान बोतल दर्शाई गई है। एक में कॉर्क लगा व दूसरी खुली है। तो हवा का दबाव
(अ) दोनों में बराबर है।
(ब) बोतल 'क' में ज्यादा है।
(स) बोतल 'ख' में ज्यादा है।
दूसरा सवाल: नीचे चित्र में दो वीर दिखाए गए हैं। एक सीधा रखा हुआ है व दूसरा उल्टा रखा है। तो हवा का दबाव
(अ) बीकर 'क' में ज़्यादा है।
(ब) बीकर 'ख' में ज़्यादा है।
(स) दोनों में बराबर है।
तीसरा सवालः एक ढक्कन बंद इंजेक्शन की शीशी तथा एक ढक्कन बंद ग्लूकोज़ की बोतल में हवा -- का दबाव
(अ) दोनों में बराबर है।
(ब) ग्लूकोज़ की बोतल में ज़्यादा है।
(स) इंजेक्शन की शीशी में ज़्यादा है
चौथा सवालः चित्र में दर्शाई कांच की नली में बंधे हुए फुग्गे को फुलाकर उस नली को बंद कर दें। दूसरी नली खुली है तो हवा का दबाव
(अ) शीशी में और फुगे के अंदर बराबर होगा
(ब) फुग्गे में बड़ा होगा
(स) शीशी में ज्यादा होगा
पांचवां सवाल: एक 250 मि.ली. के फ्लास्क तथा एक 250 मि.ली. के बीकर में हवा का दबाव
(अ) 250 मि.ली. के फ्लास्क में ज़्यादा है
(ब) 250 मि.ली. के बीकर में ज़्यादा है
(स) दोनों में बराबर है।
पर फुग्गा नहीं चढ़ाया हुआ है उसके ऊपर वाले सिरे पर मुंह लगाकर हवा को बाहर खींचिए और देखिए क्या होता है! फुग्गे को किसी ने छेड़ा नहीं है, फिर भी वह फूलने लगता है।
प्रश्नः इस स्थिति में फुग्गा क्यों फूलता है? उत्तर खोजते समय याद रखें कि बहाव हमेशा ज्यादा दबाव से कम दबाब की ओर होता है।
ऊपर दिए गए उदाहरणों में दबाव में अन्तर है, पर हवा को बहने से रोकती है कुछ ठोस दीवारें - ट्यूब, फुग्गा, बोतल आदि। लेकिन वायुमण्डल में तो ऐसी दीवारें नहीं होतीं। अतः किसी कारणवश अगर कहीं दबाव कम हो जाए, तो चारों ओर से हवा उस तरफ दौड़ती है। इसलिए दबाव कम होने के साथ तेज़ हवा चलने का हमेशा नाता बना रहता है।
हाल में उड़ीसा में आए भीषण चक्रवाती तूफान में हजारों जानें गईं। ऐसे चक्रवात के केन्द्र में एक कम दबाव का क्षेत्र होता है, जिसके चारों ओर तेज़ हवाओं का इलाका होता है। इस विशेष बनावट का कारण थोड़ा जटिल है। मौका मिला तो इस पर फिर कभी बात करेंगे।
हवा के दबाव के बारे में आपकी शंकाएं कुछ हद तक दूर हो गई होंगी। अब संदर्भ के अंक-26 में दिए हवा के दबाव से संबंधित सवालों पर फिर एक बार विचार कीजिए। उन सब सवालों को पिछले पन्ने पर फिर से दोहराया गया है।
क्या कुछ प्रश्नों के उत्तर मिले? क्या कुछ प्रश्नों के आपके दिए गए उत्तर बदल गए? क्या कुछ नई शंकाएं पैदा हो गई? जो भी हो, हमें संदर्भ के पते पर लिख भेजिए।
अमिताभ मुखर्जी: दिल्ली विश्वविद्यालय में भौतिक शास्त्र पढ़ाते हैं।