जी. ए. कुलकर्णी
बखर बिम्मची यानी ‘बिम्म के किस्से। इन किस्सों का मुख्य पात्र है बिम्म - एक चार-पांच साल का बच्चा। बेहद जिज्ञासु । सवाल इतने कि जवाब देने वाला हाथ जोड़ देता था। घर पर है। मां और एक बड़ी बहन - बब्बी। इन तमाम किस्सों में बिम्म अपना एक कल्पना-लोक तैयार करता है - जहां उसके साथ बातें करने, उसे समझने और उसके सवालों के जवाब देने के लिए एक दादाजी भी हैं । बिम्म को बार-बार इस बात का मलाल है कि मां और बब्बी उसकी बातों पर विश्वास नहीं करते। बच्चों के कल्पना लोक की एक बानगी पेश है - 'बखर बिम्मची' किताब के एक अंश से।
एक बार बिम्म को एक नारंगीरंग का कागज़ का टुकड़ा मिला। किसी ने उस कागज़ पर कुछ लिखकर कागज़ को गंदा कर दिया था। फिर भी बिम्म को कागज़ का वह टुकड़ा पसंद आया था। उस कागज़ का रंग आकर्षक था और उसे छूने पर वह चिकना-चिकना-सा महसूस हो रहा था। बिम्म उस कागज़ को लेकर मां के पास आया और बोला, "मां, इससे मुझे पतंग बनाकर दो न।' घर के कामकाज से थकी-हारी मां ने कहा, “अरे, मुझे कहां आता है पतंग बनाना। अब कल से स्कुल जाना शुरू करती हूं। और तुम्हारे लिए सब कुछ सीखकर आती हूं।''
"स्कुल किसलिए जाना है? तुमको पतंग बनाना आता है। तुम्हें सब कुछ आता है।'' बिम्म ने दृढ़ विश्वास से कहा।
यह सब सुनकर मां ने कागज़ में एक छेद किया, धागा पिरोकर, उसमें गठान लगाई और दो-चार हाथ लम्बे धागे का छोर बिम्म के हाथों में थमाया। फिर बिम्म से बोली, "यह देखो बन गई तुम्हारी पतंग, लेकिन पतंग घर के आंगन में ही उड़ाना, बाहर सड़क पर मत जाना।''
'सड़क पर मत जाना' यह तो बिम्म को रट गया था। आंगन में तुलसी का गमला, और चार दूसरे गमले रखे थे। ये सब ही आंगन की सारी जगह घेर लेते थे। इस भीड़-भाड़ में पतंगबाज़ी का क्या मज़ा आएगा। पिछवाड़े में एक खुली जगह थी जहां एक बड़ासा मकान था। वह मकान हमेशा बंद रहता था, आसपास चहार-दीबारी थी, काफी पेड़ थे। सब ओर काफी घास उग आई थी। इस ऊंची घास में बिम्म पैदल चल सके इतनी घुमावदार पगडंडी मौजूद थी।
इस खुली जगह में आकर बिम्म पतंग लेकर दौड़ने लगा। उसने पतंग को उड़ाने के लिए कई तरीके अपनाए। पतंग को काफी ऊपर से पकड़ा, ऊपर फेंककर देखा लेकिन सारी कोशिशें बेकार रहीं। पतंग खास कुछ उड़ नहीं पाई। आखिरकार हारकर बिम्म घर की ओर चल दिया। अभी कुछ कदम ही चला होगा कि उसे बंद मकान के चबूतरे पर कोई बैठा हुआ दिखा। वहां बैठे बूढ़े व्यक्ति के बाल और दाढ़ी एकदम बर्फ जैसे सफेद थे। आंखों का चश्मा नाक पर काफी आगे टिका था। वो बुजुर्ग चश्मे में से बिम्म को निहार रहे थे। बिम्म ने उनसे पूछा, "दादाजी, आप इस पतंग को उड़ा सकते हैं क्या?"
दादाजी ने हाथ में लेकर उस पतंग का मुआयना किया और बोले, "यह पतंग नहीं उड़ सकती।" "क्यों नहीं उड़ सकती यह पतंग? इसे मेरी मां ने बनाया है।'' बिम्म ने अपनी बात को जोर देकर रखा।
"हां, तुम्हारी मां जैसी पतंग दुनिया में कोई नहीं बना सकता।'' दादाजी ने हंसते हुए जवाब दिया। फिर उन्होंने बिम्म को समझायो, “देखो कुछ पतंग उड़ने वाली होती हैं तो कुछ पतंग उड़ाने वाली होती हैं। तुम्हारी यह पतंग उड़ाने वाली है। यदि कोई तुम्हारी पतंग को पकड़े और धागा तुम्हारे हाथ में बंधा हो तो तुम ऊपर उड़ने लगोगे।'' पतंग के बजाए खुद के उड़ने की बात सुनकर बिम्म ताली बजाने नगा। फिर दादाजी ने पतंग को चबूतरे पर रखा और धागे का एक छोर बिम्म की कलाई से बांधा। अब पतंग पर अपना एक हाथ रखकर बिम्म से बोले, “चलो, अब अपर उड़ो।'
बिम्म को एकदम हल्कापन महसूस होने लगा था। वह ऊपर उठने लगा। जैसे-जैसे वह ऊपर उड़ने लगा धागा भी लंबा होता जा रहा था। उड़ते हुए वो एक नारियल के पेड़ के पत्तों तक पहुंच गया। ऊंचे आसमान में लटके हुए नारियल अब एकदम उसके पास थे। उसने एक नारियल को हाथ लगाकर भी देखा। अमरूद का पेड़ तो एकदम उसके पैरों के नीचे था। उसने एक अमरूद तोड़कर अपने मुंह में डाल लिया। वो हवा में आसानी से चल पा रहा था। धीरे-धीरे उड़ते हुए वह पड़ोस वाले घर की बालकनी तक जा पहुंचा। वहां दीनू की खिड़की खुली थी इसलिए बिम्म ने भीतर झांककर देखा। दीनू टेबल पर रखी किताबों पर सिर रखकर मज़े से सो रहा था। दीनू की यह पढ़ाई देखकर बिम्म को बड़ा मज़ा आया। उड़ते हुए उसने अब आकाश मोगरे के पेड़ की ओर रुख किया।
आकाश मोगरे के पेड़ पर ढेर सारे सफेद फूल खिले हुए थे। बब्बी रोज़ शाम को यहीं आकर नीचे गिरे हुए फूलों को चुनती थी। बब्बी को फुल देने चाहिए ऐसा सोचते हुए बिम्म ने पेड़ की ऊपरी टहनियों से कुछ ताजे फुल तोड़ लिए और अपनी जेब में रख लिए। इसी बीच उड़ते हुए वह दो चिड़ियों से जा टकराया। यह देखकर एक कौआ अपनी पूंछ को तरेरते हुए बिम्म पर चिल्लाया। बिम्म ने कौए को चिढ़ाने वाले अंदाज़ में कहा, “कांव-कवि कौए, मुझे भी उड़ना आता है।"
पेड़ की एक मोटी टहनी पर बैठी गिलहरी अपने अगले पंजों में पकड़ा फल कुतर रही थी। बिम्म को उड़ते देखकर उसने फल कुतरना बंद कर दिया और बिम्म को देखने लगी। लेकिन शायद उसे बिम्म का उड़ना पसंद नहीं आया और वह चीं-चीं-चीं कर चिल्लाने लगी।
धीरे-धीरे बिम्म का हल्कापन कम होने लगा और वो जमीन की ओर उतरने लगा। कुछ पलों बाद वह दादाजी के सामने जमीन पर खड़ा था। दादाजी ने पतंग पर से हाथ हटा लिया और पतंग बिम्म को दे दी।
फिर उन्होंने बिम्म से कहा, “अब घर जाओ।' बिम्म ने तुरंत कहा, "और बड़ी सड़क पर मत जाना।'' दादाजी ने जोरों से हंसते हुए बिम्म की बात का समर्थन किया।
सीढ़ियां चढ़कर बिम्म घर वापस आया तो मां चटाई पर दाल सुखाने के लिए फैला रही थी और बब्बी मां के पास खड़ी थी। बिम्म ने मां से कहा, "मां पतंग ने मुझे खूब ऊपर उड़ाया लेकिन मैं बिल्कुल नहीं घबराया।'' यह सुनकर मां ने भौएं टेढ़ी करते हुए बिम्म की ओर देखा। लेकिन बब्बी से रहा नहीं गया, उसने हाथ नचाते हुए कहा, "पतंग ने मुझे खूब उड़ाया नहीं कहना चाहिए। यह कहना चाहिए कि मैंने पतंग को खूब उड़ाया।'' फिर उसने हंसते हुए कहा, “पतंग भी कभी किसी को उड़ा सकती है क्या? है न! मां?" बिम्म को बब्बी की बात सुनकर गुस्सा आया। जब से बब्बी नए स्कूल में जाने लगी है उसे किताबें रखने के लिए नया बस्ता और पानी के लिए लाल बोतल मिली है, तब से बब्बी के भाव काफी बढ़ गए हैं, उसके पांव जमीन पर नहीं पड़ते। बिम्म ने भी बच्ची को नाक चढ़ाकर चिढ़ाया। लेकिन बब्बी ने बिम्म की इस हरकत को देखा ही नहीं। इसलिए बिम्म का गुस्सा और बढ़ गया - यदि किसी को चिढ़ाओ और सामने वाला नज़रअंदाज़ कर दे तो चिढ़ाने का क्या फायदा?
"हां, बब्बी सही कह रही है। मैं पतंग उड़ाकर आया, यही कहना चाहिए।'' मां ने बिम्म से कहा।।
अब बिम्म से रहा न गया। वो मां से कहने लगा, "मां, सचमुच पतंग ने ही मुझे उड़ाया। पतंग तो बिल्कुल भी नहीं उड़ी। यदि मेरी बातों पर विश्वास न हो तो दादाजी से भी पूछ सकती हो। उड़ते हुए ऊपर जाकर मैंने पेड़ से एक अमरूद भी तोड़कर खाया। और देखो न, मैं बब्बी के लिए आकाश मोगरे के फुल एकदम ऊपर से तोड़कर लाया हूं।'' ऐसा कहते हुए बिम्म ने अपनी जेब से कुछ आकाश मोगरे के फूल निकालकर मां को दिखाए।
"अरे मां, बिम्म नीचे गिरे हुए फूल चुनकर लाया है और यह कहां के दादाजी गढ़ रहा है पता नहीं। निरा मूर्ख है।'' ऐसा कहते हुए बब्बी नाचने लगी।
"यहां बहुत सारी खुली जगह है। हो सकता है कोई बुजुर्ग यहां घुमता हुआ आ गया हो।' फिर उन्होंने बब्बी को आंखों से इशारा करते हुए चुप किया। और बिम्म से कहा, "अच्छा बाबा, पतंग ने ही तुम्हें ऊंचा उड़ाया। तुमने उड़ते हुए आकाश मोगरे के
फुल तोड़े, यह सब सही है। यही कहा था न तुमने? तुम भी अक्लमंद हो और तुम्हारे दादाजी भी अक्लमंद हैं। अब तो तुम खुश हो न?' इतना सब कहकर मां अंदर काम करने चली गई। पीछे-पीछे बिम्म को चिढ़ाते हुए बब्बी भी अंदर चल दी।
लेकिन बिम्म का गुस्सा कम नहीं हुआ था। उसने तय किया कि कल बब्बी को दादाजी के पास लेकर जाऊंगा। फिर उसके फ्रॉक के बटन में पतंग का धागा बांधकर दादाजी उसे भी ऊपर उड़ाएंगे। और डरकर बब्बी ज़ोर-जोर से चिल्लाने लगेगी। कुछ दिनों पहले शाम के समय बब्बी के पांव पर मेंढक चढ़ गया था तो वह इतने ज़ोरों से चिल्लाने लगी थी कि मां रसोई घर से भागी-भागी चली आई थी। फिर चिल्लाने की वजह जानी तो अपना माथा पीट लिया, “उफ! इतनी-सी बात के लिए इतनी ज़ोरों की चीख!'' यह कहते हुए उन्होंने बब्बी को हल्की-सी चपत भी लगाई।
अब जब उसे पतंग उड़ाएगी तो वह और भी जोरों से चीखेगी। उस समय मैं भी नाचते हुए उसे चिढ़ाऊंगा। यह सब सोचते हुए बिम्म बब्बी की तरह नाचने की कोशिश करने लगा।
यह कहानी 'बखर बिम्मची' (बिम्म के किस्सै) किताब में साभार।
प्रकाशक: परचुरे प्रकाशन मंदिर, गिरगांव, मुंबई।
अनुवाद:माधव केलकर। संदर्भ पत्रिका से संबद्ध।
सभी चित्रः आशीष नगरकरः आशीष शौकिया चित्रकार हैं, होशंगाबाद में रहते हैं।