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जीवाश्मों के अध्ययन में यह पता करना खासा मुश्किल काम है कि प्राप्त जीवाश्म नर का है या मादा का। प्राय: जीवाश्मीकरण के दौरान सारे मुलायम ऊतक नष्ट हो जाते हैं, जिनसे लिंग के बारे में जानकारी मिल सकती थी।
जब भी कोई जीवाश्म मिलता है, तो हम या तो वर्तमान में उपलब्ध उसी किस्म के जीवों से तुलना के आधार पर या कुछ सामान्य जीव वैज्ञानिक धारणाओं के आधार पर उसके लिंग का फैसला करते हैं। उदाहरण के लिए पैरासोरोलोफ्स नामक डायनासौर के जीवाश्म दो तरह के मिलते हैं। इनमें से एक में सिर पर हड्डी का ताज-सा होता है। ऐसा माना गया कि यह नर प्राणी होगा क्योंकि जीव-जगत में देखा जाता है कि आमतौर पर नर में दिखावटी अंग ज़्यादा पाए जाते हैं। यह समझा जाता है कि मादा को रिझाने में नर प्राणी इनका उपयोग करते हैं। मगर यह भी संभव है कि उक्त दो जीवाश्म दो अलग-अलग प्रजातियों से संबंधित हों।
अब तक किसी डायनासौर के लिंग निर्धारण का सबसे सटीक तरीका यह था कि उसके शरीर के अंदर अंडे खोजे जाएं। यदि अंडे मौजूद हैं तो वह जीवाश्म मादा डायनासौर का होगा। लेकिन अब एक नई तकनीक सामने आई है जो उपयोगी होने के साथ-साथ रोचक भी है। वह है जीवाश्म में मेड्यूलरी हड्डी की जांच करना।
मेड्यूलरी हड्डी सिर्फ मादा पक्षियों की टांग की हड्डी के अंदर पाई जाती है। इस हड्डी में काफी मात्रा में कैल्शियम कार्बोनेट होता है और रक्त संचार भी सुविकसित होता है।
सभी जानते हैं कि जब मादा पक्षी अण्डे देने की स्थिति में होते हैं, तब उन्हें कैल्शियम कार्बोनेट की बड़ी मात्रा में ज़रूरत होती है।। उस समय कैल्शियम कार्बोनेट इसी मेड्यूलरी हड्डी में से प्राप्त किया जाता है। यदि ऐसा न हो, तो कैल्शियम कार्बोनेट कंकाल की शेष हड्डियों में से निकलेगा और पूरा कंकाल कमज़ोर पड़ेगा। समय आने पर मेड्यूलरी हड्डी में कैल्शियम कार्बोनेट वापस जमा हो जाता है।
हाल में डायनासौर टी. रेक्स के एक 6.8 करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म की टांगों की फीमर हड्डी के अंदर मेड्यूलरी हड्डी पाई गई है। यह खोज नॉर्थ केरोलिना स्टेट विश्वविद्यालय की मैरी श्वाइट्ज़र ने की है। उन्होंने देखा कि टी. रेक्स मादा की मेड्यूलरी हड्डी आजकल के एमू व शुतुरमुर्ग पक्षियों जैसी होती है। इस खोज से इस बात की पुष्टि होती है कि आधुनिक पक्षियों का विकास डायनासौर से हुआ होगा।
श्वाइट्ज़र का कहना है कि यदि मेड्यूलरी हड्डी मिल जाए तो हम पक्की तौर पर यह कह सकते हैं कि जीवाश्म मादा का है, मगर न मिले तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
- स्रोत फीचर से साभार
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Sandarbh - Issue 52 (December 2005-January 2006)