थर्मामीटर को उलटने पर                                                                                                  [Hindi PDF, 1.0 MB]

कुछ अंक पहले हमें इन्दौर के चौइथराम स्कूल के कुछ बच्चों ने सवाल भेजा था - जिसका आशय था कि प्रयोगशाला में इस्तेमाल किए जाने वाले साधारण तापमापी (डॉक्टरी थर्मामीटर नहीं) को यदि उल्टा किया जाए यानी घुण्डी ऊपर की ओर, तो पारा ढुलककर नीचे की ओर क्यों नहीं उतर आता?
इस सवाल का जवाब ढूंढने में बहुत माथापच्ची करनी पड़ी, फिर भी थोड़ा अधूरा ही है यह! इस जवाब को राजश्री राजगोपाल ने तैयार किया है।

सवाल: थर्मामीटर को उलटने पर पारा क्यों नहीं ढुलकता?
जवाब - हमारा रोज़मर्रा का अनुभव यह दिखाता है कि किसी तरल पदार्थ से भरे बर्तन को उल्टा किया जाए तो तरल पदार्थ बर्तन से गिर जाता है, नीचे की ओर लुढ़क जाता है। चाहे तरल कोई भी हो मसलन पानी, दूध, जूस, तेल, गोंद, या कुछ और। इस अनुभव के मद्देनज़र साधारण तापमापी को उलटने पर घुण्डी से पारे का नीचे की ओर न ढुलकना अचंभित करने वाली बात है। आइए, समझने की कोशिश करते हैं कि इस रोचक घटना के पीछे कौन से कारण हैं जो हमारे रोज़मर्रा के अनुभव को भी धता बताते हैं।

किसी भी घटना और उसमें निहित कारणों को समझने के लिए एक बेहतर तरीका तो यही होता है कि कुछ सरल प्रयोग खुद बारीकी से करके देखे जाएं। यही तरीका अपनाते हुए सबसे पहले हम इस घटना को कुछ वैकल्पिक सरल उपकरणों की मदद से आजमाकर देखते हैं। पारे के विकल्प के रूप में हम आसानी से उपलब्ध खाना पकाने वाला तेल इस्तेमाल करेंगे। तेल का कॉलम या स्तम्भ बनाने के लिए एक स्ट्रॉ पाइप लेते हैं। स्ट्रॉ पाइप को खड़ा रखते हुए उसका निचला सिरा अपनी एक अंगुली से बंद कर दीजिए और ऊपरी सिरे से थोड़ा तेल डालिए। स्ट्रॉ का लगभग एक तिहाई हिस्सा तेल से भर दीजिए। तेल डालने के लिए ड्रॉपर का उपयोग भी कर सकते हैं। अब स्ट्रॉ के दोनों सिरों को अंगुलियों से अच्छी तरह से बंद कर देने के बाद स्ट्रॉ को उलट दीजिए। यानी दोनों सिरे बंद रखते हुए ऊपर का सिरा नीचे और नीचे का सिरा ऊपर। क्या तेल नीचे को लुढ़का? इस प्रयोग को दोहराते हुए अपने अवलोकन दर्ज कर लीजिए।

अब हम इस प्रयोग में थोड़ा बदलाव करते हैं। स्ट्रॉ की जगह बॉलपॉइंट पेन की एक खाली पतली रीफिल लेते हैं। इस रीफिल के उस सिरे को काट देते हैं जहां लिखने वाला पॉइंट होता है ताकि रीफिल के दोनों सिरे खुल जाएं। अब इस रीफिल के साथ तेल वाला प्रयोग दोहराते हैं। इस बार आप पाएंगे कि रीफिल में तेल भरना थोड़ा कठिन काम है, इसलिए बेहतर होगा रीफिल का एक सिरा मुंह में लेकर तेल को रीफिल में खींचा जाए। (तेल काफी आसानी से रीफिल में चढ़ जाता है। ऐसा क्यों होता है?) कोशिश कीजिए रीफिल में भी लगभग उतनी ही ऊंचाई तक तेल चढ़े जितना स्ट्रॉ में तेल चढ़ाया था। जब आपको लगे कि तेल उतनी ऊंचाई तक चढ़ गया है तो (मुंह हटाकर!) अपनी अंगुली से रीफिल के ऊपरी सिरे को बंद कर दीजिए और धीरे-धीरे रीफिल को तेल के बाहर निकाल लीजिए। अब रीफिल के दूसरे सिरे को भी अंगुली की मदद से बंद कर दीजिए। रीफिल के दोनों सिरे बंद रखते हुए रीफिल को उल्टा करके देखिए। क्या तेल रीफिल के नीचले सिरे की ओर लुढ़कता हुआ आया?

इसी प्रयोग को करने का एक और आसान तरीका है - रीफिल को तेल में डुबोकर रीफिल के ऊपरी सिरे को अंगुली से बंद कीजिए।
अभी हमने जो प्रयोग करके देखे वे इस घटना के परिप्रेक्ष्य में थर्मामीटर की बनावट के महत्व को उजागर करते हैं। तापमान दिखाने के लिए पारा कांच की जिस पतली नली में खिसकता है वह अत्यंत महीन होती है। इस महीन नली को केशिका या केपिलरी कहते हैं। पारे वाले थर्मामीटर में कांच का एक बल्ब या घुंडी होती है जिसमें पारा भरा होता है और यह घुंडी कांच की अत्यंत महीन केशिका से जुड़ी होती है।

प्रयोगशाला में इस्तेमाल होने वाला साधारण तापमापी बनाते वकत नीचे के इस बल्ब या घुंडी को 200 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है ताकि बल्ब व केशिका में अगर कोई अशुद्धि या गैस हो तो वो बाहर निकल जाए। ऐसा करने पर बल्ब व केशिका के अंदर निर्वात या बहुत ही कम दबाव की स्थिति निर्मित होती है। तत्पश्चात तुरन्त ही केशिका का खुला सिरा पारे में डुबोया जाता है, ताकि पारे की सही मात्रा तापमापी के अंदर पहुंच जाए। दूसरे शब्दों में पारा दबाव में अंतर की वजह से अंदर खिंच जाता है। अंत में केशिका के खुले हिस्से को गर्म करके बंद कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में सही मात्रा में पारा भर देने के बाद, बंद करने से एकदम पहले कुछ मात्रा में हवा अंदर घुस जाती है। साथ ही कम दबाव की वजह से केशिका के खाली हिस्से में कुछ मात्रा में पारे की वाष्प भी मौजूद रहती है। केशिका में उपस्थित इस गैस व वाष्प की, पारे को नीचे लुढ़कने से रोकने में काफी अहम् भूमिका है। आइए देखें यह कैसे होता है।

अब हम तेल वाले शुरुआती प्रयोगों की ओर पुन: लौटते हैं। सबसे पहले प्रयोग में स्ट्रॉ के भीतर तेल के साथ-साथ वायुमण्डलीय दबाव पर हवा भी मौजूद थी। जब स्ट्रॉ को उल्टा करते हैं तो हवा की तुलना में ज़्यादा घनत्व वाला तेल नीचे की ओर लुढ़कता है, वहीं साथ-साथ उस तेल की जगह ऊपर को सरकती हुई हवा ले लेती है।

अब दूसरे प्रयोग को देखते हैं जहां रीफिल में तेल भरा गया था। इस बार जो नली उपयोग में लाई गई, वह स्ट्रॉ के मुकाबले काफी पतली है। जब आंशिक रूप से भरी हुई रीफिल को उल्टा करते हैं तब तेल कोशिश करता है कि नीचे की ओर लुढ़क आए, लेकिन हवा को रीफिल की इस बारीक नली के भीतर इतनी जगह नहीं मिल पाती कि वह उस सिरे की ओर पहुंच सके जो तेल के नीचे खिसकने की वजह से खाली होगा, और तेल को वहां से विस्थापित कर सके। अगर हवा ऊपर की ओर नहीं जा पा रही, ऐसी स्थिति में अगर तेल नीचे की ओर सरकता है तो ऊपर की ओर निर्वात जैसी स्थिति निर्मित हो जाएगी। यह तो संभव नहीं है इसलिए पारा ऊपर ही लटका रह जाएगा।

लगभग ऐसा ही कुछ होता है, जब हम थर्मामीटर को उल्टा करते हैं। यहां भी जब पारा केशिका में नीचे की तरफ खिसकने की कोशिश करता है तो केशिका में मौजूद गैसें व पारे की वाष्प, पारे के नीचे खिसकने से बल्ब यानी घुंडी में खाली होने वाली जगह की ओर नहीं जा पातीं।
इसलिए यदि पारा थोड़ा भी नीचे की ओर सरके तो थर्मामीटर की घुंडी में निर्वात उत्पन्न हो जाएगा। चूंकि केशिका में गैसें व वाष्प मौजूद हैं इसलिए उनके दबाव के कारण पारा तुरन्त ऊपर की ओर धकेल दिया जाएगा। अत: थर्मामीटर को पलटने पर भी तरल पारा वहीं का वहीं ऊपर टिका रहता है, नीचे की ओर खिसककर नहीं आता।

सवाल यह उठ सकता है कि स्ट्रॉ को उलटाने पर तो हवा ऊपर पहुंच गई थी व तेल नीचे सरक आया था तो फिर अन्य स्थितियों में ऐसा क्यों नहीं हो रहा। दरअसल हवा नीचे से ऊपर की ओर जा पाएगी कि नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि जिस उपकरण को हम इस्तेमाल कर रहे हैं उसमें इतनी जगह है कि नहीं कि गैसें/वाष्प ऊपर की ओर जा पाएं; यानी कि नली का व्यास कितना है। और अगर व्यास कम भी है तो क्या उस तरल में से बुलबुले बनकर गैसें/वाष्प ऊपर को जा सकती हैं क्या।

बुलबुले बन पाना इस बात पर निर्भर करेगा कि तरल पदार्थ का पृष्ठ-तनाव कितना है, नली/केशिका कितनी महीन है और केशिका में भरी गैस/वाष्प का दबाव कितना है। इन कारकों का प्रभाव और महत्व देखने के लिए आप भी प्रयोग सोचकर व करके देखिए। उदाहरण के लिए पृष्ठ तनाव का असर देखने के लिए आप पानी व साबुन मिले पानी के साथ प्रयोगों की तुलना करके देख सकते हैं। जैसे कि इस लेख की शुरुआत में हमने चर्चा की थी, ऐसे प्रयोगों व उनके अवलोकनों से ही हम यह तय करने की ओर बढ़ सकते हैं कि किसी घटना पर कौन-कौन से कारक प्रभाव डाल रहे हैं।


चित्रांकन: विवेक वर्मा। विवेक शौकिया चित्रकार हैं, भोपाल में रहते हैं।