स्तनधारियों में चमगादड़ ही ऐसे जीव हैं जो सही मायने में उड़ते हैं। चमगादड़ों का उड़ना जीव वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली रही है। कारण यह है कि चमगादड़ों के जीवाश्म हमें करीब पाँच करोड़ साल पहले अचानक मिलने लगे। इससे पहले किसी बीच की क्रमिक अवस्था के जीवाश्म नहीं मिले हैं। तो यह कैसे सम्भव हुआ कि चमगादड़ यकायक उड़ान भरने लगे? अब लगता है यह गुत्थी सुलझ गई है।
चमगादड़ों के पंख पक्षियों से काफी अलग होते हैं। इनके पंख उँगलियों के बीच तनी हुई चमड़ी से बने होते हैं। मगर चमगादड़ों और अन्य स्तनधारियों के बीच की अवस्था का कोई जीवाश्म नहीं मिलता। ऐसे में यह सोचना शायद ठीक हो कि चमगादड अचानक अस्तित्व में आए हैं।
डेनवर के कोलेरेडो विश्व विद्यालय की केरन सीयर्स ने प्रयोग करके इस मामले को सुलझाने की कोशिश की है। सबसे पहले सीयर्स ने चूहों और चमगादड़ों के भ्रूण विकास के दौरान उँगलियों की वृद्धि की तुलना की। दोनों ही जन्तुओं में उँंगलियाँ उपास्थि कोशिकाओं के एक समूह के विभाजन से बनती हैं। धीरे-धीरे ये कोशिकाएँ परिपक्व होकर हड्डी में बदल जाती हैं। मगर चमगादड़ों में इस समूह का एक महत्वपूर्ण भाग चूहों की अपेक्षा कहीं अधिक बड़ा होता है। इस वजह से इनकी उँंगलियाँ काफी लम्बी हो जाती हैं। इस अन्तर का नियंत्रण एक अकेले जीन बी.एम.पी.-2 द्वारा होता है। बी.एम.पी.-2 जिस समूह का जीन है वह स्तनधारियों की भुजाओं के विकास में अहम भूमिका निभाता है।
सीयर्स ने पाया कि बी.एम.पी.-2 द्वारा बनाया जाने वाला प्रोटीन चमगादड़ों की उपास्थि में तो पाया जाता है मगर चूहों की उपास्थि में नहीं। जब उन्होंने चूहे के बढ़ते भ्रूण को बी.एम.पी.-2 निर्मित प्रोटीन दिया तो उसकी उँंगलियां भी चमगादड़ों की तरह लम्बी हो गईं।
इस आधार पर सीयर्स का मत है कि चमगादड़ों के विकास में महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब किसी कारण से जीन बी.एम.पी.-2 सक्रिय हो उठा। अनुवांशिकी की दृष्टि से यह एक छोटा-सा बदलाव था जिसके असर ऐसे दूरगामी हुए कि चमगादड़ एकदम अलग हो गए।
चूँकि पूरा मामला मात्र एक जीन में बदलाव का है इसलिए यह घटना अचानक ही हुई। अब तक यह माना जाता था कि चमगादड़ प्राइमेट्स के निकट सम्बन्धी हैं। मगर अब हुए जेनेटिक अध्ययन दर्शा रहे हैं कि ये शायद घोड़ों और सुअरों या चूहों और छछूंदरों के अधिक निकट हैं।
-- स्रोत (मार्च 2005) से साभार।