लेखक :   बाल फोंडके
अनुवाद : चेतना खाम्बेटे

विज्ञान, वैज्ञानिकों और वैज्ञानिक खोजों व आविष्कारों को लेकर किस्सों की कमी नहीं है। ऐसा लगता है कि विज्ञान के सम्बन्ध में वही किस्से ज़्यादा प्रचलित व लोकप्रिय होते हैं, जिनमें किसी खोज को ‘अनायास’ या ‘संयोग का परिणाम’ बताया जाता है। ऐसे रोचक प्रसंगों से कोई परेशानी नहीं है मगर ये प्राय: विज्ञान की प्रक्रिया व वैज्ञानिकों के कामकाज का एक गलत चित्र प्रस्तुत करते हैं।

आर्किमिडीज़ और सोने का मुकुट भी ऐसी ही एक कथा लगती है। संदर्भ के अंक-49 में इस बात पर विचार किया गया था कि मुकुट में मिलावट पता करने के लिए आर्किमिडीज़ ने किस विधि का सहारा लिया होगा। ईसा पूर्व काल के प्रसिद्ध दार्शनिक आर्किमिडीज़ की यह कहानी सच है या कोरी कल्पना? वैज्ञानिक पद्धति से इस सवाल का जवाब खोजने का सफल प्रयास किया है पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के क्रिस रॉरेस ने! रॉरेस की खोजबीन का ब्यौरा प्रस्तुत कर रहे हैं प्रसिद्ध विज्ञान लेखक और साइन्स टुडे के पूर्व सम्पादक बाल फोंडके।

यूरेका मूल रूप से यूनानी भाषा का शब्द है, लेकिन आज इस शब्द ने विश्व की अधिकतर भाषाओं में जगह बना ली है। कोई क्रान्तिकारी खोज होने पर या किसी अबूझ-सी पहेली का हल अचानक मिलने पर अपने आप ही यह शब्द मुँह से निकल पड़ता है। जैसे बिजली कड़कड़ाने से एक क्षण के लिए सारा आकाश चकाचौंध हो जाता है, उसी तरह कभी-कभी विलक्षण प्रतिभा की एक चिंगारी फूटती है और अज्ञान का अन्धकार छँट जाता है। ऐसे क्षण को ‘यूरेका-क्षण’ या ‘यूरेका-मोमेन्ट’ कहने की प्रथा ही बन गई है।

वैज्ञानिकों के समक्ष एक प्रश्न
यूरेका शब्द को इस तरह लोकप्रिय बनाने का श्रेय आर्किमिडीज़ को जाता है। हम सभी ने यह कहानी पढ़ी-सुनी है कि भीगे-भागे आर्किमिडीज़ निर्वस्त्र अवस्था में सिरेक्यूस की सड़कों पर यूरेका-यूरेका चिल्लाते हुए दौड़ पड़े थे। लेकिन बड़े-बड़े लोगों की ऐसी छोटी-मोटी कहानियाँ हम हमेशा ही पढ़ते-सुनते हैं। हम यह भी जानते हैं कि ये किस्से हमेशा सच नहीं होते। न्यूटन के सिर पर सेब गिरने से गुरुत्वाकर्षण बल की खोज होने की कहानी भी तो हम सुनते आए हैं ना! तो सवाल यह है कि आर्किमिडीज़ की यह कहानी वास्तविक है या एक कपोल कल्पना/दन्तकथा है। यह प्रश्न वैज्ञानिक सोच के कई लोगों के मन में था।

इस किस्से पर सन्देह के कई कारण थे। एक तो खुद आर्किमिडीज़ ने अपनी किसी भी रचना में इस घटना का ज़िक्र तक नहीं किया है। ऐसा तो नहीं लगता कि आर्किमिडीज़ ने प्रसिद्धि से दूर रहने के चक्कर में ऐसा किया होगा क्योंकि अपने ‘उत्प्लावन के नियम’ या ‘लीवर के सिद्धान्त’ के बारे में उन्होंने जगह-जगह पर लिखा है। उनका यह कथन तो कई जगह मिलता है - ‘‘मुझे (पृथ्वी के बाहर) खड़े रहने को थोड़ी-सी जगह दे दो, मैं (लीवर की मदद से) पृथ्वी को सरका दूँगा।’’

विट्रूवियस की पुस्तक
इस घटना का ज़िक्र सबसे पहले यूनानी लेखक विट्रूवियस की किताब में ही मिलता है। यह किताब ईसा पूर्व पहली शताब्दी यानी आर्किमिडीज़ के पूरे दो सौ साल बाद लिखी गई थी। इसीलिए इन दो सौ सालों में मूल घटना में भरपूर ‘मसाला’ जुड़ने की सम्भावना को नकारा नहीं जा सकता।
इसके अलावा यह प्रश्न भी गौरतलब है कि उत्प्लावन के सिद्धान्त को अपनाकर उस समस्या को सुलझाने का आसान रास्ता होते हुए भी आर्किमिडीज़ ने द्रव के विस्थापन को नापने का घुमावदार रास्ता क्यों चुना! तभी तो इस ‘घटना’ की प्रामाणिकता पर शंका जताई गई थी। गैलीलियो ने भी इस पर एक सवाल किया था - क्या आर्किमिडीज़ के समय में द्रव के विस्थापन को सटीकता से नाप सकने वाला अचूक आयतन-मापी मौजूद था?

इन सब सन्देहों के बावजूद इस किस्से की किसी तरह की खोजबीन नहीं की गई। तब पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के क्रिस रॉरेस ने वैज्ञानिक पद्धति अपनाकर इस घटना के ‘सच’ को उजागर करने का बीड़ा उठाया। इसके लिए उन्होंने कुछ ‘ख्याली प्रयोग’ (thought experiments) किए। ख्याली प्रयोग अर्थात् वास्तविक प्रयोग न करके केवल गणितीय गणनाओं या तर्क से ही किसी समस्या का हल निकाल लिया जाए। आइंस्टाइन ने अपने सापेक्षता के सिद्धान्त को समझाने के लिए भी ऐसे कई ‘ख्याली प्रयोग’ किए थे।

मूल कहानी
क्रिस रॉरेस ने वैज्ञानिक प्रयोगों की शुरुआत से पहले मूल कहानी पर एक बार फिर नज़र डालना तय किया।
सिरेक्यूस में हीरो नामक राजा ने अपने आराध्य भगवान को अर्पण करने के लिए सोने का मुकुट बनाने का काम एक सुनार को सौंपा। उस सुनार ने उत्कृष्ट कलाकारी युक्त मुकुट तैयार किया। लेकिन राजा को उस मुकुट में चाँदी की मिलावट होने का शक हुआ। अब चूँकि मुकुट निहायत खूबसूरत था और उससे राजा की धार्मिक भावनाएँ जुड़ी थीं, इसलिए राजा ने अपने शक को दूर करने के लिए उस मुकुट को तोड़-मरोड़ कर या गलाकर मिलावट का पता लगाने का तरीका नहीं अपनाया। बल्कि राजा ने आर्किमिडीज़ को आदेश दिया कि मुकुट को नुकसान पहुँचाए बिना उसमें मिलावट का पता लगाए।

ख्याली प्रयोग

कई बार ऐसा होता है कि किसी अवधारणा या सिद्धान्त को समझने-समझाने के लिए जिस तरह के प्रयोगों की ज़रूरत होती है, वे किए नहीं जा सकते। तब आप कल्पना करते हैं कि यदि ऐसी परिस्थितियों में प्रयोग किया जाए तो क्या परिणाम प्राप्त होंगे। इन्हें ख्याली प्रयोग कहते हैं और विज्ञान की प्रगति में ये काफी महत्वपूर्ण रहे हैं।

आर्किमिडीज़ इस जटिल समस्या को लेकर रात-दिन उधेड़बुन में लगे रहे। इसी उधेड़बुन में मग्न आर्किमिडीज़ एक दिन सार्वजनिक हमाम में नहाने गए। वहाँ जैसे-जैसे वे अपने शरीर को पानी से भरे बड़े-से हौज़ में डुबाते गए, ज़्यादा-से-ज़्यादा पानी बाहर गिरता गया। यह देखकर उनके दिमाग में बिजली कौन्ध गई और उन्हें गुत्थी को सुलझाने की राह मिल गई।
इस अनुभव से वे इतने अभिभूत हो गए कि उन्हें अपनी स्थिति का भी भान न रहा और वे उसी स्थिति में (निर्वस्त्र) ‘यूरेका!’ ‘यूरेका!’ चिल्लाते हुए सड़क पर दौड़ पड़े। इसी तरीके से उन्होंने मुकुट को पानी में डुबोकर उसके कारण बाहर गिरे पानी से मिलावट का पता लगा लिया।

आर्किमिडीज़-कालीन मुकुट
रॉरेस ने अब इस पूरी घटना को खुद दोहराकर देखने का फैसला किया। इसके लिए उन्हें यह मालूम होना ज़रूरी था कि वह मुकुट किस प्रकार का था, उसका आकार कैसा था।
तब रॉरेस ने यह पता लगाने की कोशिश की कि आर्किमिडीज़ के समय में राजा-महाराजा कैसे शिरस्त्राण धारण करते थे। इसी दौरान उन्हें खुद हीरो राजा का एक मुकुटधारी चित्र मिला। इस चित्र से एक बात समझ में आई कि वह मुकुट एक ‘हार’ के जैसा ही था। इसे देखकर रॉरेस के मन में शंका हुई कि इस मुकुट को पानी में डालनेे पर उसके द्वारा हटाए गए पानी की मात्रा क्या नापने जैसी होगी?
अब रॉरेस मेसाडोनिया और डार्डानेल्स इलाकों (जहाँ प्राचीन सिरेक्यूस बसा था) से पुरातात्विक उत्खनन में निकली आर्किमिडीज़-कालीन वस्तुओं की खोज-खबर लेने में जुट गए। उन्होंने पाया कि वर्जिना नाम की जगह से मिला एक हारनुमा मुकुट हीरो राजा के मुकुट से बहुत कुछ मिलता-जुलता था। इसका अधिकतम व्यास 18.5 सेंटीमीटर और वज़न 714 ग्राम था। उस मुकुट का कुछ हिस्सा क्षतिग्रस्त था अत: उसका वज़न 714 ग्राम से ज़्यादा होने की सम्भावना थी। तो रॉरेस ने माना कि हीरो राजा द्वारा बनवाए गए हारनुमा मुकुट का वज़न 1000 ग्राम रहा होगा। हार को जिस बर्तन में डुबाया गया था उसका व्यास मुकुट के व्यास से तो ज़्यादा ही होगा। उन्होंने माना कि उस बर्तन का व्यास 20 सेंटीमीटर रहा होगा। अर्थात् उस बर्तन के मुँह का क्षेत्रफल लगभग 314 वर्ग सेंटीमीटर होगा।

मुकुट में मिलावट
सोने का घनत्व 19.3 ग्राम/घन से.मी. होता है। यानी 1000 ग्राम वज़न वाले हार का आयतन होगा 1000 ÷ 19.3 = 51.8 घन से.मी.। इतने आयतन वाले सोने को उस बर्तन के पानी में डुबोने पर पानी का स्तर 51.8 ÷ 314 = 0.165 से.मी. बढ़ जाएगा।।
अब, मान लें कि उस सुनार ने मुकुट में 30 प्रतिशत की मिलावट की थी। अर्थात् उसने 1000 ग्राम वज़न वाले मुकुट में 300 ग्राम चाँदी मिलाई थी। चाँदी का घनत्व 10.6 ग्राम/से.मी.3 है। तो चाँदी की मिलावट वाले सोने के उस मुकुट का आयतन होगा - (700 ÷ 19.3) अ (300 ÷10.6) = 64.6 से.मी.3। इस मुकुट को पानी में डुबोने पर पानी के स्तर में 64.6 ÷ 314 = 0.206 से.मी. की बढ़ोतरी होगी। इसका अर्थ यह हुआ कि शुद्ध सोने के मुकुट और मिलावट युक्त मुकुट के कारण पानी के स्तरों में हुई वृद्धि का अन्तर होगा -- 0.206 - 0.165 = 0.041 से.मी. या 0.41 मि.मी.। यह अन्तर आधे मि.मी. से भी कम होगा।

आर्किमिडीज़ का तरीका बकौल विटÜवियस

प्रचलित कहानी के अनुसार आर्किमिडीज़ ने मिलावट का पता लगाने के लिए द्रव के विस्थापन का तरीका इस्तेमाल किया था।
यह तो आम जानकारी का विषय है कि वस्तु अपने आयतन के बराबर पानी हटाएगी। यानी यदि दो वस्तुएँ बराबर पानी हटाती हैं तो उनके आयतन बराबर हैं।
विट्रूवियस के मुताबिक आर्किमिडीज़ ने निम्नलिखित तरीके से मिलावट का पता किया था।

आर्किमिडीज़ ने मुकुट के बराबर वज़न का एक सोने का और एक चाँदी का गोला लिया। फिर एक बर्तन में ऊपर तक पानी भरा। इसमें सोने के गोले को डाला और बाहर निकले पानी को नापा। इसके बाद बर्तन में फिर से ऊपर तक पानी भरकर यही क्रिया चाँदी के गोले के साथ दोहराई। देखा कि चाँदी का गोला ज़्यादा पानी हटाता है।

अन्त में मुकुट को पानी में डाला और देखा कि वह सोने के गोले द्वारा हटाए गए पानी से ज़्यादा पानी हटाता है। तो मिलावट की बात साबित हुई।
विट्रूवियस ने अपनी रचना दी टेन बुक्स ऑफ आर्किटेक्चर की नौवीं पुस्तक की भूमिका में इस विधि का वर्णन दिया है मगर यह नहीं बताया है कि आर्किमिडीज़ ने हटाए गए पानी का आयतन कैसे नापा था।
आप देख ही सकते हैं कि इस विधि में त्रुटियों की काफी गुंजाइश है।

इतनी छोटी दूरी नापने के लिए उस समय अचूक साधनों की उपलब्धता सन्देहास्पद ही है। इसके अलावा पृष्ठ तनाव के कारण मापन में होने वाली त्रुटि और जालीदार कलाकारी के बीच अटके हुए हवा के बुलबुलों की वजह से विस्थापित होने वाले पानी की मात्रा में घट-बढ़ हो ही सकती है। और यदि उस मुकुट का वज़न 1000 ग्राम से भी कम मानें या मिलावट 30 प्रतिशत से भी कम हो तो इन दो स्थितियों का अन्तर और भी कम होने की सम्भावना को नकारा नहीं जा सकता।

उत्प्लावन का सिद्धान्त
इतनी उठापटक करने की बजाय यदि आर्किमिडीज़ के ही उत्प्लावन के सिद्धान्त को अपनाया जाए तो पानी में डुबोई गई वस्तु के वज़न में होने वाली कमी को नापकर भी इस समस्या को सुलझाया जा सकता है (देखें बॉक्स)। मान लें, एक तराज़ू लेकर उसके एक ओर वह मुकुट और दूसरी ओर उतने ही वज़न का शुद्ध सोने का गोला लटका दें तो वह तराज़ू सन्तुलित रहेगा। इस तराज़ू को पानी से भरे बर्तन में डुबाने पर भी यदि सन्तुलन बना रहा तो इसका अर्थ है कि सोने के गोले और मुकुट दोनों का आयतन बराबर है। लेकिन यदि सन्तुलन की स्थिति कायम नहीं रहती है और पलड़ा शुद्ध सोने के गोले की तरफ झुक जाता है, तो स्पष्ट हो जाएगा कि हार का आयतन अधिक है। ऐसा होने पर मुकुट में मिलावट का पक्का सबूत मिल जाएगा और किसी तरह की नाप-तौल की भी ज़रूरत नहीं रहेगी।

लेकिन क्या वास्तव में उस तराज़ू के पलड़ों का झुकाव स्पष्ट रूप से दिख पाएगा? यह ख्याल भी रॉरेस के दिमाग में आया। तब उन्होंने फिर एक बार पहले की ही भाँति गणित लगाया। मिलावट युक्त मुकुट का आयतन था 64.6 से.मी.3 अर्थात् इस मुकुट को पानी में डुबोने पर जितना पानी विस्थापित होगा, उसका वज़न होगा 64.6 ग्राम। पानी का घनत्व 1.0 ग्राम/से.मी.3 होता है। अत: उस मुकुट का पानी में आभासी वज़न होगा 1000 - 64.6 = 935.4 ग्राम। दूसरी ओर, शुद्ध सोने के 1000 ग्राम के गोले का आयतन 51.8 से.मी.3 होने से उसका पानी में आभासी वज़न होगा 1000 - 51.8 = 948.2 ग्राम। इन दोनों वज़नों में अन्तर है, 12.8 ग्राम। इस सटीकता से नापने वाला तराज़ू निश्चित ही आर्किमिडीज़ के समय में मौजूद था।

लीवर का सिद्धान्त
रोचक बात यह है कि उस शुद्ध सोने के गोले का वज़न उस मुकुट के वज़न से कम-ज़्यादा हो तब भी आर्किमिडीज़ के ही लीवर के सिद्धान्त का प्रयोग करके उसे सन्तुलन बिन्दु से कम-ज़्यादा दूरी पर रखकर मुकुट व शुद्ध सोने के गोले में सन्तुलन बनाया जा सकता है और मिलावट को पकड़ा जा सकता है (देखें बॉक्स)। 

लीवर के सिद्धान्त का उपयोग

यह रोचक बात है कि आप चाहे जितने वज़न का सोने का टुकड़ा लेकर मुकुट में मिलावट का पता लगा सकते हैं।
लीवर का सिद्धान्त यह है - सन्तुलन बिन्दु के दोनों ओर अलग-अलग वज़न लटके हैं। उन्हें सन्तुलन बिन्दु से अलग-अलग दूरियों पर लटकाकर तराज़ू को सन्तुलित कर लिया गया है। ऐसी स्थिति में -

दाईं ओर लटका वज़न x उसकी सन्तुलन बिन्दु से दूरी =बाईं ओर लटका वज़न x उसकी सन्तुलन बिन्दु से दूरी

अब मान लीजिए कि मुकुट का वज़न x ग्राम है। आपने सोने का टुकड़ा x/2 ग्राम का लिया है। इन्हें सन्तुलित करने के लिए सन्तुलन बिन्दु से मुकुट को सोने के टुकड़े से दुगनी दूरी पर लटकाना होगा।
इन दोनों को पानी में डुबाने पर मुकुट के वज़न में मान लीजिए y ग्राम की कमी होती है, तो सोने के टुकड़े में y/2 ग्राम की कमी होगी। अर्थात पानी में डूबे मुकुट का वज़न होगा x-y ग्राम और सोने के टुकड़े का वज़न होगा x/2-/2 {यानि (x-y)/2}। तो अनुपात अभी भी वही है। और तराज़ू सन्तुलित रहेगी। मगर यदि मुकुट सोने का न हुआ तो यह अनुपात गड़बड़ा जाएगा और तराज़ू असन्तुलित हो जाएगा।

अब ये प्रश्न तो सहज ही दिमाग में आता है कि खुद के खोजे हुए सिद्धान्तों पर आधारित ऐसे सरल तरीके मौजूद होते हुए भी आर्किमिडीज़ विस्थापित पानी नापने के चक्कर में क्यों पड़ेंगे! इसीलिए ‘यूरेका!’ वाली घटना एक अत्यन्त रोमांचकारी दन्तकथा ही हो सकती है, ऐसा निष्कर्ष रॉरेस ने निकाला है।
रॉरेस चाहे जो भी निष्कर्ष दे दें, लेकिन इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि महान विभूतियों की लोकप्रियता को बढ़ाने वाली ऐसी दन्तकथाएँ आपके-हमारे जैसे सर्वसाधारण लोगों के मन में घर कर गई हैं। तो, आगे भी किसी अबूझ और जटिल प्रश्न का जवाब मिल जाने पर ‘यूरेका!’कहकर उछल पड़ने में कोई हर्ज़ नहीं है। हाँ, इस बात पर ज़रूर गौर कर लें कि उस समय शरीर पर कपड़े सही-सलामत हों।


बाल फोंडके: जाने-पहचाने विज्ञान लेखक, हिन्दी में काफी विज्ञान गल्प भी लिखे हैं। साइन्स टूडे, विज्ञान प्रगति एवं साइन्स रिपोर्टर आदि पत्रिकाओं का सम्पादन किया है। विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में उल्लेखनीय योगदान।
मराठी से अनुवाद : चेतना खाम्बेटे - केन्द्रीय विद्यालय, झाबुआ में जीव विज्ञान पढ़ाती हैं।
इसी विषय पर एस. श्रीनिवासन का एक लेख ‘राजा का मुकुट और आर्किमिडीज़ का सिद्धान्त’ संदर्भ के अंक-49 में भी प्रकाशित किया गया था।