सम्पूर्णा बिस्वास

नई पाठ्य पुस्तकों की समीक्षा
सामाजिक अध्ययन की नई किताबें पिछली किताबों की तुलना में निश्चित ही बेहतर हैं। मैं अभी दसवीं कक्षा में हूँ और मुझे इस कक्षा में तथा इसके पूर्व नवीं में इन नवीन किताबों को इस्तेमाल करने का मौका मिला। सबसे बड़ा अन्तर किताब की गुणवत्ता और उसके रूपरंग में आया है। बहुतेरे रंग इस्तेमाल किए गए हैं, चित्र और कार्टून भी ज़्यादा हैं और रेखाचित्र भी बेहतर हैं। यह सब करते हुए किताब की अन्तर्वस्तु की गुणवत्ता में कोई कमी नहीं आने दी गई है।

किताब के स्वरूप में हुआ यह परिवर्तन सतही कतई नहीं है। यह सब मानते हैं कि ज़्यादा चित्रों और रंगों से बेहतर समझ बनने में मदद मिलती है क्योंकि ये दिमाग के अधिक हिस्सों को उद्दीपित (stimulate) करते हैं। इसके अलावा इनसे किताब ज़्यादा आकर्षक भी हो जाती है और लोग ऐसी किताबें इस्तेमाल करना कहीं ज़्यादा पसन्द करते हैं।

इतिहास
आठवीं कक्षा की इतिहास की पुरानी किताब वाकई उबाऊ थी। उसमें सिर्फ दो ही रंग इस्तेमाल किए गए थे -- काला और सफेद। और इनके बीच के धूसर रंग की अनेक छटाएँ थीं। नवीं और दसवीं की इतिहास की नई किताबें इससे बहुत अलग हैं। इनके बारे में जो पहली बात गौर करने लायक है कि अब इतिहास की किताब पहले की भाँति खुद इतिहास की किसी वस्तु जैसी नहीं दिखती। ऐसे रोचक अभ्यास दिए गए हैं जिनमें पाठक को चित्रित किए गए काल विशेष की दृष्टि से सोचना और लिखना आवश्यक हो जाता है। उदाहरण के लिए पृष्ठ 144 (एनसीईआरटी, कक्षा 10, भारत और समकालीन विश्व-2 ) पर यह प्रश्न दिया गया है: “कल्पना कीजिए कि आप चाल में रहने वाले युवा हैं। अपने जीवन के एक दिन का वर्णन कीजिए।” या फिर विकल्प के रूप में पाठक को तथ्यों की अपने ढंग से व्याख्या करने को कहा जाता है, उदाहरण के लिए पृष्ठ 24 (एनसीईआरटी कक्षा 10) पर दिया गया यह प्रश्न: “बताएँ कि चित्र 18 में आपको क्या दिखाई पड़ रहा है। राष्ट्र के इस रूपात्मक चित्रण में ह्यूबनर किन ऐतिहासिक घटनाओं की ओर संकेत कर रहे हैं?” इसके अलावा, विषय में आगे बढ़ने पर अतिरिक्त जानकारियाँ - जैसे उस काल के चित्र और उनका चित्रण, या फिर तत्कालीन पत्र एवं अन्य स्रोत - आपकी रुचि जगाने में मदद करती हैं।

हालाँकि इन स्रोतों और बॉक्स में दी गई जानकारियों पर परीक्षा में प्रश्न नहीं पूछे जाते, तथापि इनसे वर्णित समय की बेहतर तस्वीर बनाने में मदद मिलती है। सच तो यह है कि परीक्षा में शामिल न किए जाने के कारण इन्हें मैं मज़े के लिए ही पढ़ जाती हूँ, न कि याद करने के लिए।

आठवीं और उसके बाद की किताबों में एक अन्य मूलभूत अन्तर जो मैंने पाया, वह किताबों की भाषा में था। नई किताबों की भाषा-शैली अधिक बोधगम्य है। करीब-करीब कहानी कहने की शैली का इस्तेमाल किया गया है। उदाहरण के लिए पृष्ठ 36 पर (एनसीईआरटी कक्षा 10), दूसरे अध्याय ‘इण्डो-चाइना में राष्ट्रवादी आन्दोलन’ का नीचे दिया गया गद्यांश देखें।


1926 में साइगॉन नेटिव गर्ल्स स्कूल में एक बड़ा आन्दोलन खड़ा हो गया। विवाद तब शु डिग्री हुआ जब एक कक्षा में अगली सीट पर बैठी वियतनामी लड़की को उठकर पिछली कतार में जाकर बैठने के लिए कह दिया गया, क्योंकि अगली सीट पर एक स्थानीय फ्रांसीसी लड़की को बैठना था। वियतनामी लड़की ने सीट छोड़ने से इन्कार कर दिया। स्कूल का पिं्रसिपल एक कोलोन (यानी उपनिवेशों में रहने वाले फ्रांसीसी) था। उसने लड़की को स्कूल से निकाल दिया। जब दूसरे विद्यार्थियों ने पिं्रसिपल के फैसले का विरोध किया तो उन्हें भी स्कूल से निकाल दिया गया। इसके बाद तो यह विवाद और फैल गया। लोग खुलेआम जुलूस निकालने लगे। हालात बेकाबू होने लगे तो सरकार ने आदेश दिया कि लड़की को दोबारा स्कूल में वापस ले लिया जाए। पिं्रसिपल ने लड़की को वापस दाखिला तो दे दिया लेकिन साथ ही यह ऐलान भी कर दिया कि ‘मैं सारे वियतनामियों को पाँव तले कुचलकर रख दूँगा। वाह! तुम लोग मुझे वापस भिजवाना चाहते हो। अच्छी तरह गाँठ बाँध लो, जब तक एक भी वियतनामी कोचिनचाइना में बसने की जुर्रत करता रहेगा तब तक मैं यहाँ से जाने वाला नहीं हूँ।


यह, ज़्यादा-से-ज़्यादा, एक कहानी है। इसमें ऐसा कुछ नहीं है कि कोई परीक्षा के दृष्टिकोण से इसे पढ़े। लेकिन इससे वियतनाम की स्थिति को अच्छी तरह से समझने में बहुत मदद मिलती है। दूसरी ओर, आठवीं की किताब प्रमुखत: तथ्यों का संकलन थी। यदि आप ब्रिटिश शासन के बारे में हर बात बताने वाली किताब चाहते हैं तब तो वह निश्चित ही अच्छी थी, पर अगर आप ऐसी रोचक सामग्री चाहते हैं जो आपको इस विषय के बारे में आगे और जानने के लिए उत्सुक करे तो इसके लिए वह आदर्श साधन कतई नहीं थी।
कुल मिलाकर, नई किताबों से सीखना सुगम हो गया है क्योंकि वे विषय में दिलचस्पी जगा देती हैं, परन्तु यदि आप विषय के प्रति ज़्यादा ही गम्भीर हैं और आपको किसी परीक्षा के लिए रटना है तो पिछली किताब अच्छी थी।

राजनीति विज्ञान
इन किताबों की सबसे अच्छी विशेषता है कार्टून! उन्नी और मुन्नी, तथा राजनीति सम्बन्धी। इनसे पाठ्य सामग्री के बीच में अच्छी राहत मिलती है।
अध्याय के साथ-साथ चलने वाले ये दो कार्टून किरदार, उन्नी और मुन्नी मुझे खासतौर पर अच्छे लगते हैं क्योंकि वे हमें अलग ढंग से सोचने और सवाल करने के लिए प्रेरित करते हैं। जब आप इन्हें पढ़ते हैं तो इनमें से कुछ बेतुके लगते हैं पर यदि उस बारे में गौर करें तो वे सोचने पर मजबूर कर देते हैं। उदाहरण के लिए यह प्रश्न देखें, “यदि जातिवाद और साम्प्रदायिकता बुरे हैं, तो नारीवाद को किस आधार पर अच्छा कहा जा सकता है? हम उन सभी का विरोध क्यों नहीं करते जो समाज को जाति, धर्म या लिंग किसी भी आधार पर विभाजित करते हैं?” और “क्या आप यह सुझा रहे हैं, कि हड़ताल, धरना, बन्द और प्रदर्शन अच्छी चीज़ें हैं? मुझे लगा कि यह सिर्फ हमारे देश में होता है क्योंकि हम अब तक एक परिपक्व लोकतंत्र नहीं बने हैं।” या “क्या इसका यह मतलब है कि, जो भी पक्ष अपने साथ ज़्यादा बड़ी भीड़ जुटा लेता है, वह जो चाहे कर सकता है? क्या हम यह कह रहे हैं कि लोकतंत्र में ‘जिसकी लाठी उसी की भैंस’?” (एनसीईआरटी, कक्षा 10, लोकतांत्रिक राजनीति-2)

‘चलो अखबार पढ़ें/रेडियो सुनें/टीवी देखें’ के अन्तर्गत दी गई सामग्री भी अच्छी है। हालाँकि, विद्यालय में (खासतौर पर दसवीं में) तो शिक्षक पाठ्यक्रम को निपटाने में ही इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें ऐसी सामग्री को ढंग से पढ़ाने की परेशानी उठाने की फुर्सत नहीं रहती। फिर भी यह सामग्री अच्छी व उपयोगी है क्योंकि सिर्फ प्रजातंत्र की सैद्धान्तिक समझ का क्या फायदा यदि हम इसे वास्तव में घट रही घटनाओं से नहीं जोड़ते?

दसवीं की एनसीईआरटी की किताब में एक त्रुटि है जो मैं बताना चाहूँगी। पहले अध्याय में श्रीलंका और बेल्जियम में अलग-अलग सांस्कृतिक समूहों से मिलकर बनी आबादी से जुड़ी समस्याओं की चर्चा की गई है। किताब में यह कहा गया है कि जहाँ समस्या सुलझाने का श्रीलंकाई तरीका -- बहुसंख्यकों (सिंहलियों) की सरकार का शासन और अल्पसंख्यकों (तमिल लोग) के अधिकारों का दमन करना -- असफल हो गया है, वहीं बेल्जियम द्वारा अपनाए गए तरीके ने -- डच और फ्रांसीसी लोगों की सांस्कृतिक स्वतंत्रताओं में सामंजस्य स्थापित करना -- “दोनों प्रमुख समुदायों के बीच नागरिक संघर्ष टालने में मदद की और भाषाई आधार पर देश के सम्भावित बँटवारे को रोका।” पर, यह बहुत सही नहीं है, क्योंकि बेल्जियम में आज भी नागरिक संघर्ष की स्थिति बनी हुई है और इसी भाषाई आधार पर देश राजनैतिक रूप से विभाजित होने की कगार पर है।

हाँ, एनसीईआरटी के बचाव में आप यह ज़रूर कह सकते हैं कि शायद इस पुस्तक के प्रकाशन के वक्त वहाँ ये समस्याएँ न रही हों। फिर भी एनसीईआरटी को ऐसा वर्णन करने से बचना चाहिए। और शायद, यह एक ऐसा समाधान था जो कारगर हो सकता था परन्तु ऐसा हुआ नहीं। हकीकत यही है, कि यह तरीका अपनाने से बेल्जियम की स्थितियों में कोई वास्तविक सुधार नहीं हुआ है। एनसीईआरटी ने यह दर्शाने के लिए, कि सत्ता में सहभागिता अच्छी बात होती है, इस व्यवस्था को उदाहरण के रूप में पेश किया है। लेकिन आखिर में इससे कुछ भी सिद्ध नहीं होता।

आठवीं कक्षा में राजनीति विज्ञान पृथक विषय नहीं था और न ही उसकी अलग से कोई किताब थी। पर आठवीं की किताब में जो नागरिक शास्त्र का खण्ड था, उसकी तुलना में इन नई किताबों का रूपरंग काफी बेहतर है। ज़्यादा रंगों का प्रयोग किया गया है, विशेषकर मानचित्रों में।

नई किताबों में चित्र और पोस्टर भी निश्चित रूप से ज़्यादा हैं। विभिन्न विषय बिन्दुओं को स्पष्ट करने के लिए असल ज़िन्दगी के अनेक उदाहरण इस्तेमाल किए गए हैं जिनसे प्रजातंत्र के बारे में हमारी समझ एक प्रकार से ज़्यादा ‘वास्तविक’ बनती है। हमें जो बताया जाता है, वे केवल याद कर लिए जाने वाले तथ्य भर नहीं हैं; उनका आधार सफल व्यवस्थाएँ और असफल व्यवस्थाएँ हैं। वे वास्तविकता पर आधारित हैं। पाठों को ऐसे प्रत्यक्ष उदाहरणों द्वारा समझाया गया है जिनसे हम खुद को जोड़ पाएँ। चूँकि इसमें बहुत कुछ ऐसा है जो कक्षा से बाहर की दुनिया पर आधारित है और ‘अभी घट रहा है’, अत: इससे कक्षा में बहस का सूत्रपात भी होता है। मैं समझती हूँ कि यह सचमुच ज़रूरी है, विशेषकर राजनीति विज्ञान जैसे विषयों में, क्योंकि किसी मुद्दे पर बहस करने से हमें उसकी सार-वस्तु को कहीं बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है।

भूगोल
राजनीति विज्ञान की तरह, आठवीं कक्षा में, भूगोल की भी अलग से कोई किताब नहीं थी। अत: सारी तुलनाएँ आठवीं की सामाजिक अध्ययन की द्वितीय किताब में दिए गए भूगोल के हिस्से के सापेक्ष की गई हैं। एक बार फिर, किताब के बारे में जो पहली बात आपके दिमाग में आती है वह है उसका स्वरूप। पाई-चार्ट और मानचित्र ज़्यादा आकर्षक हो गए हैं। नई सामग्री जैसे “क्या आप जानते हैं?” बहुत दिलचस्प है। आलेखों में और चित्रों के स्तर में भी सुधार हुआ है।

किताब को और बेहतर बनाने के लिए उसमें पुनर्रचित अभ्यास और वर्ग-पहलियों का समावेश जैसे नए प्रयास देखे जा सकते हैं (कुछ वर्ग-पहेलियों में थोड़े सुधार की आवश्यकता है और मुझे अच्छा लगेगा यदि किताब में इनकी संख्या और अधिक हो)।
एक दिन कक्षा में एक शंका उभरी जो मेरे विचार में आपको जानना चाहिए। किसी ने कहा कि कई अध्यायों में दी गई जानकारियाँ कभी-कभी एक-दूसरे से मेल नहीं खातीं। शिक्षक का कहना था कि सम्भवत: पुस्तक का सम्पादन कुछ हड़बड़ी में किया गया होगा।

भूगोल की किताबों में निश्चित ही सुधार की गुंजाइश है। कुछ वर्ग-पहेलियों (जो अध्याय के अन्त में दी गईं हैं) में काट-छाँट की ज़रूरत है। सम्भवत: कुछ जगहों पर अतिशय गद्य सामग्री को घटाकर उसकी जगह कुछ और चार्ट और आलेख देकर नीरसता से बचा जा सकता है। यह सचमुच और भी बढ़िया होगा यदि पाठ्यक्रम में प्रायोगिक भूगोल, जैसे स्थानों का भ्रमण करना, जैसी गतिविधियों को भी शामिल किया जाए।


सम्पूर्णा बिस्वास: दसवीं की छात्रा हैं। डीपीएस, आरके पुरम, दिल्ली में पढ़ती हैं। ब्लोगिंग में विशेष रुचि। www.rosesnlilies.blogspot.com पर उनका ब्लॉग यानी खुली डायरी उपलब्ध है।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद: भरत त्रिपाठी। इण्डियन इन्सटीट्यूट ऑफ मास कम्यूनीकेशन, नई दिल्ली से पत्रकारिता में पी.जी. डिप्लोमा करने के बाद स्वतंत्र लेखन और अनुवाद करते हैं। होशंगाबाद में निवास।
यह समीक्षा दिसम्बर 2007 में लिखी गई थी। सभी चित्र एनसीईआरटी की समीक्षित पाठ्यपुस्तकों से लिए गए हैं।

समीक्षित पाठ्यपुस्तकें :
- भारत और समकालीन विश्व - 2, इतिहास, कक्षा-10 (एनसीईआरटी, अप्रैल 2007)
- लोकतांत्रिक राजनीति - 2, राजनीति विज्ञान, कक्षा-10 (एनसीईआरटी, अप्रैल 2007)
- समकालीन भारत - 2, भूगोल, कक्षा-10 (एनसीईआरटी, नवम्बर 2007)