लेखक :  रूपा सुरेश
अनुवाद: भरत त्रिपाठी

जूनियर स्कूल के लगभग आठ साल के बच्चे रेखागणित की कक्षा में बैठे थे। उन्हें इन कक्षाओं का खूब इन्तज़ार रहता है क्योंकि इन्हीं कक्षाओं में ही उन्होंने जाना था कि कोल्डडिं्रक पीने की नलियाँ, और आइसक्रीम की डण्डियों जैसी वस्तुएँ गणित की पढ़ाई में कितनी सार्थक भूमिका निभा सकती थीं। पिछली कक्षा में इन्होंने चतुर्भुजों के बारे में सीखा था, और अब ये बच्चे आइसक्रीम की डण्डियों से चतुर्भुज बनाने वाले थे।
मैं नीचे बैठकर उन्हें देखने लगी और हर एक बच्चे ने कमरे में अपना एक स्थान चुनकर काम करना शुरु कर दिया। वर्ग, समानान्तर चतुर्भुज, आयत और समचतुर्भुज बनते गए और फर्श घिरता चला गया। मैंने ध्यान दिया कि इस संग्रह में कई बहुभुज भी दिखाई दे रहे थे। कमरे की फर्श ऐसे विशाल कैनवास की तरह दिखाई देने लगी जिस पर बच्चों ने कोई ज्यामितीय आकृति बना रखी हो। एक बच्चा बोला, “यह मेरा हिस्सा है।” दूसरा बच्चा चिल्लाया, “अरे, तुम मेरी जगह में आ गए हो!” फिर कुछ और बच्चों ने भी इसी तरह की बातें कीं। मेरा ध्यान उन बच्चों पर गया जो डण्डियों से रेखाएँ बनाकर अपनी-अपनी सीमाओं को स्पष्ट कर रहे थे। उन्हें इस तरह से सीमांकन करने की ज़रूरत क्यों महसूस हुई होगी? मैं सोच में पड़ गई, लेकिन फिर जल्दी-से इस सवाल को अपने दिमाग से हटा दिया ताकि बच्चों की गतिविधियों पर से मेरा ध्यान भंग न हो। जिन बच्चों ने खुद अपने क्षेत्र की रेखाएँ नहीं खींची थीं वे इस बात से खुश थे कि उनके मित्रों ने खुशी-खुशी उनके लिए यह काम कर दिया था। फिर मुझे बच्चों के बीच इस तरह की बातें सुनाई देना शुरु हुईं, “हम सीमाएँ बना रहे हैं, और उन्हें जोड़ रहे हैं। नहीं। हम हर चीज़ को जोड़ रहे हैं।” कुछ समय बाद, अपने सामने जो देखा उससे मैं बहुत आश्चर्यचकित हुई: सीमाएँ स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं हुई थीं, और फर्श का एक बड़ा हिस्सा उभरकर दिखाई दे रहा था। ऐसा लगा कि बच्चों में अचानक से एक साथ मिलकर काम करने का कोई अनकहा समझौता हो गया हो। और यह समझौता इसलिए था ताकि वे साथ मिलकर ‘आइसक्रीम स्टिक लैंड (आइसक्रीम की डण्डियों से बना शहर)’ तैयार कर सकें।

आइसक्रीम स्टिक लैंड
बच्चे यहाँ मकान, क्रिकेट की पिच, तालाब, सुरंग, स्विमिंग पूल, फायर स्टेशन, अभयारण्य, कूड़ा इकट्ठा करने के लिए जगह, मन्दिर, चर्च, अस्पताल, पार्क आदि बना रहे थे। मैं यह सब पहचान ही नहीं पाती अगर मुझे सी-सॉ झूला दिखाई नहीं देता। बतख का पुल (खिलौने की बतख पुल पर खड़ी थी), नगर का मछली-घर, केकड़ा-घर और एक आमोद-प्रमोद पार्क बनाने में बच्चे व्यस्त हो गए! वे डण्डियों का ढेर लगाते गए, वे अलग-अलग आकार में उन्हें तोड़ लेते और अपनी ज़रूरतों के मुताबिक अलग-अलग कोणों पर झुका लेते। उन्होंने अभयारण्य में खिलौने के जानवरों को भी सजा दिया, और इस आइसक्रीम लैंड के अपने हिस्से को और सजाने के लिए आसपास अन्य वस्तुओं की तलाश करने लगे।

मिलजुलकर किया काम
वे बिना थके काम करते रहे, गणित सिखाने का जो घण्टा है, उसके बहुत आगे तक समय सारणी को उन्होंने विस्मृत कर दिया। मैं उस कक्ष में चल रहे अनेक वार्तालापों को सुनने, और समझने की कोशिश कर रही थी: “अरे यार, किसी ने इसमें लात मार दी।” “मैं मदद करता हूँ, क्या किसी को और डण्डियों की ज़रूरत है?” “अर्जुन, यह द्युति को दे देना।” “हमें डण्डियों का एक और पैकेट खोलना होगा!” मैंने देखा कि एक बच्ची साथियों द्वारा बनाई गई आकृतियों के ऊपर से कूद रही थी। उसने कई बार ऐसा किया। पता नहीं उसके साथियों को यह बात खली क्यों नहीं; शायद वहाँ मैं अकेली थी जिसे पार्क या पुल के गिर जाने का डर था। इस आइसक्रीम स्टिक लैंड की सभी संरचनाओं को नाम दे दिए जाने के बाद, मेरा ध्यान उस आकृति पर गया जिस पर ‘नगर निकास द्वार’ का लेबल लगा था, और इसे देखते ही मुझे इस क्षेत्र का स्वरूप बिलकुल किसी भूलभुलैया जैसा दिखने लगा। थोड़ी देर तक बच्चे इन संरचनाओं के इर्द-गिर्द घूमते रहे, और अपनी प्रदर्शनी को ध्यान से देखते रहे।

शहर के क्षेत्रफल का माप
वे अपने काम से खुश नज़र आ रहे थे और मैंने भी उनके काम की सराहना की। मैंने सुझाव दिया कि वे आइसक्रीम स्टिक लैंड के क्षेत्रफल और परिमाप की गणना कर लें। उनमें से कुछ बच्चे सोचने लगे कि इसे वे किस तरह कर सकते हैं। एक बच्चा बोला, “हमने जूनियर स्कूल के बाहर की क्यारियों को कागज़ के सहारे मापा था।” मेरी मदद से तीन बच्चे वर्ग मीटर बनाने के लिए अखबारों के पन्नों को चिपकाने लगे, और दूसरे बच्चों ने आगन्तुकों के लिए सूचना-तख्तियाँ तैयार कीं। यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि ये बच्चे दूसरे शिक्षकों और बच्चों को अपने इस आइसक्रीम लैंड के दौरे के लिए आमंत्रित करना चाहते थे। वर्ग मीटर की शीट को चार बच्चे लेकर आए, और फिर उसे धीरे-से नीचे उतारते हुए अपने द्वारा बनाई गई संरचनाओं के ऊपर हल्के हाथों से फैला दिया। एक अन्य बच्चे ने मापे गए हिस्से को दर्शाने के लिए चॉक से फर्श पर लाइनें बना दीं। बच्चों ने बारी-बारी से अपने इस आइसक्रीम लैंड को मापा और कुल क्षेत्रफल 10 वर्ग मीटर निकाला। उनका कहना था कि चूँकि उस आकृति का आकार अनियमित था इसलिए उसका एकदम सटीक माप सम्भव नहीं था, नज़दीकी माप ही हो सकता था।

शहर का परिमाप
अब विद्यार्थी इस पर चर्चा करने लगे कि वे परिमाप को कैसे मापेंगे। इस मौके पर मैं भी इस सोच में पड़ गई कि क्या अब वे बच्चे जिन्हें क्षेत्रफल और परिमाप को लेकर भ्रम रहता है, दोनों के बीच के अन्तर को स्पष्ट रूप से देख सकेंगे। उन्होंने तय किया वे डण्डियों की गिनती करेंगे, और फिर प्रत्येक डण्डी की लम्बाई से डण्डियों की कुल संख्या का गुणा कर देंगे। उन्होंने मुझे यह भी बताया कि परिमाप को मापने का एक और तरीका यह है, कि पूरे ढाँचे के किनारे-किनारे एक धागा लगाते जाएँ और फिर उस धागे की लम्बाई नापकर परिमाप प्राप्त हो जाएगा। डण्डियों की संख्या के बारे में सुनिश्चित और सटीक होने के लिए तीन विद्यार्थियों ने आइसक्रीम लैंड की सीमा बनाने वाली डण्डियों की गिनती करना शुरु की। हर बच्चे ने अलग-अलग जगह से गिनना शुरु किया। और जब एक बच्चे की गिनती में डण्डियों की संख्या 121, और दूसरे की गिनती में 122 निकली, तो उन्होंने फिर से गिनती की। अन्तत: इस बात की पुष्टि हुई कि 122 डण्डियाँ हैं। मैंने आइसक्रीम की एक डण्डी की लम्बाई को मापने में एक बच्चे की मदद की। यह लम्बाई 11 से.मी. निकली। सब ज़रूरी आँकड़े मिल गए थे; इनके आधार पर परिमाप 1342 से.मी. निकला।
विशेष सन्देशों वाली सूचना-तख्तियों, मुस्कराते हुए चेहरों और बच्चों के बीच निरन्तर चल रही गपशप द्वारा प्रदर्शनी को देखने आए आगन्तुकों का स्वागत किया गया। बच्चों को निश्चित ही इस प्रक्रिया में बहुत मज़ा आया था। उनके रोमांच और प्रयास से तो यही साबित हो रहा था। उन्होंने इस मौलिक परियोजना के लिए काफी घण्टे लगाए। यह गतिविधि उनके लिए क्षेत्रफल और परिमाप जैसे सिद्धान्तों की प्रासंगिकता को समझने का एक मौका थी। मैं पक्के तौर पर तो यह नहीं कह सकती कि क्या कक्षा का प्रत्येक विद्यार्थी इन सिद्धान्तों को भलीभाँति समझ पाया -- यह तो मैं बाद में ही बता पाऊँगी, शायद तब जब अगली बार मैं उनके साथ इस विषय पर कक्षा में काम करूँगी।

सीखने-सिखाने के उद्देश्य
क्या मेरे सीखने-सिखाने का उद्देश्य पूरा हुआ? क्या मुझे सीखने के नए उद्देश्य मिले? दरअसल, मैं अपनी इस कक्षा के लिए सीखने के जिस उद्देश्य को हासिल करना चाहती थी, वह हासिल हो गया है। बच्चों ने वाकई चतुर्भुज बनाए थे। बच्चों ने न सिर्फ अपना आइसक्रीम लैंड बनाया, बल्कि सीखने के अनेक मौके उपलब्ध करवाए, साथ ही सीखने के अन्य नए लक्ष्य दिमाग में आए; जैसे गणित के सीखे हुए सिद्धान्तों को फिर से पक्का करना और इस आइसक्रीम लैंड का एक मानचित्र बनाना। ध्यान देने वाली बात यह है कि इन लक्ष्यों को सख्त साँचों में ढालने की ज़रूरत नहीं है अन्यथा इसका असर बच्चों द्वारा की जाने वाली गतिविधियों की दशा और दिशा पर पड़ेगा। अगर बच्चों ने कोई गतिविधि शु डिग्री कर दी है, तो उसे अंजाम तक ले जाने के उनके अपने अनेक तरीके भी हो सकते हैं और मैं इस बात को भी ध्यान में रखती हूँ।

किसी भी गतिविधि में सीखने की अनपेक्षित सम्भावनाएँ हो सकती हैं। सीखने के उन परिणामों के अलावा, जो तय किए गए उद्देश्यों से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं, बहुत सम्भव है कि कई परिणाम बाद में सोचने पर ही समझ आएँ। उदाहरण के लिए आइसक्रीम स्टिक लैंड वाली गतिविधि के अन्तर्गत, प्रदर्शनी की योजना बनाना, सीखने का ऐसा परिणाम है जो तत्काल तो दिखाई नहीं देता क्योंकि सम्भवत: इस पर बच्चों द्वारा किए गए काम की कुशलता का पर्दा चढ़ा होता है। बच्चों द्वारा की गई यह गतिविधि कुछ पहलुओं को स्पष्ट करती है।

* बच्चों को खुद अपनी गतिविधियों को सोचने व शुरु करने की स्वतंत्रता देना: बच्चों को ध्यान से देखने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि वे ऐसी गतिविधियाँ तैयार करने में समर्थ हैं जिनमें उन्हें मज़ा आता हो। इसके अलावा, वे इन गतिविधियों को चुनौतीपूर्ण भी बना सकते हैं। राह पर चल रहा कोई बहुत छोटा बच्चा अचानक पास में पड़ी ईंटों की संकरी कतार पर चलने लग सकता है।

कोई बच्चा दो सीढ़ियाँ कूदने में कामयाब होने के बाद तीन सीढ़ियाँ कूदने की कोशिश कर सकता है। कुछ बच्चे मिलकर दौड़ने वाला कोई ऐसा खेल बना सकते हैं जिसके नियम उसे चुनौतीपूर्ण और रोमांचक बनाते हों।

* वे किसी खास बच्चे या फिर पूरे समूह के लिए उपयुक्त गतिविधि तैयार कर सकते हैं, उसका प्रयोग कर सकते हैं और उसमें तब्दीली कर सकते हैं।

* बच्चों की इस बहुमूल्य क्षमता को कक्षा के भीतर भी बढ़ावा दिया जा सकता है। ज़ाहिर है, इसके लिए हमें समय और गुंजाइश, दोनों के प्रति उदार रहने की ज़रूरत है।

* कभी-कभी, जैसा कि आइसक्रीम स्टिक लैंड वाली गतिविधि में हुआ, बच्चों का प्रयास ही गतिविधि को सम्भव बनाता है और इसलिए ऐसे अनुभव की योजना बनाने का दायित्व बड़ों के कन्धों पर नहीं रह जाता। लेकिन, ऐसे में बच्चों के प्रयास के प्रति बड़ों की प्रतिक्रिया बच्चों के अनुभव का निर्माण करने में अहम भूमिका अदा करती है।

* समूह में कार्य करना: आइसक्रीम स्टिक लैंड का निर्माण बहुत कुछ एक-दूसरे को सहयोग देने और एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने की बच्चों की क्षमता पर निर्भर था। उन्होंने इस गतिविधि के दौरान एक-दूसरे से अपने विचार बाँटे, अपनी चीज़ें बाँटीं, और एक-दूसरे को मदद करने के लिए भी आगे आए।

* गतिविधि के दौरान मैंने इस बात पर भी ध्यान दिया कि बच्चे अक्सर अपनी-अपनी निपुणता और कठिनाई के क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए आपस में काम बाँट लेते हैं। ये कौशल मूल्यवान हैं और बच्चों के समूह कार्य में शामिल होने पर इसे और तराशा जा सकता है।

* मेरे उदाहरण में तो बच्चे प्रक्रिया में भाग लेने के लिए बहुत प्रोत्साहित थे। और वे बच्चे भी जो मेरे द्वारा आइसक्रीम लैंड को मापने के सुझाव को लेकर शुरुआत में एकदम से उत्साहित नहीं दिखे थे, धीरे-धीरे उत्साह में आकर भागीदारी करने लगे थे।

* यह भी सम्भव है कि कुछ बच्चे अपनी भागीदारी में थोड़ा निष्क्रिय से होते हैं। समूह में मिलकर काम करने से बच्चों को समूह में किए गए अपने-अपने योगदान के बारे में एक-दूसरे को अपनी प्रतिक्रिया देने का मौका मिलता है, और इससे सभी की भागीदारी बढ़ सकती है।

* सीखे गए सिद्धान्तों को उपयोग में लाने का मौका: शिक्षकों के रूप में, किसी सिद्धान्त विशेष को बच्चों के सामने कैसे रखेंगे, इसे लेकर हम अपनी योजना पर पूरी मेहनत करना चाहते हैं।

* हालाँकि यह एक बारगी का अनुभव भी हो सकता है, पर नए मौके तब सामने आते हैं जब बच्चे पहले पढ़ी हुई किसी चीज़ के महत्व को समझ सकें। ऐसा ही एक मौका आइसक्रीम स्टिक वाली गतिविधि के साथ आया, और सौभाग्य से, यह मौका हाथ से गया नहीं।

* मैं यह कतई नहीं कह रही हूँ कि शिक्षक हाथ धोकर ऐसे मौकों की तलाश में जुट जाएँ। लेकिन, ऐसे मौकों के प्रति सजग और सचेत रहने से हमें उनमें से सही मौकों को चुनने का अवसर मिलता है।

* जब भी सम्भव हो, बच्चों को उनके द्वारा सीखे गए सिद्धान्तों को और मज़बूत करने के लिए उन्हें प्रयोग में लाने की दिशा में प्रेरित किया जा सकता है। हो सकता है कि ऐसे मौकों के लिए बच्चों में प्रेरणा दिखाई न दे। फिर भी, ऐसे मौके उनके लिए सीखने को सार्थक तो बनाते ही हैं।


रूपा सुरेश: बेंगलुरु के सेंटर फॉर लर्निंग (क्.क़.ख्र्.) में पढ़ाती हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: भरत त्रिपाठी: पत्रकारिता की पढ़ाई। स्वतंत्र लेखन और द्विभाषिक अनुवाद करते हैं। होशंगाबाद में निवास।
सभी चित्र: तनुश्री रॉय पॉल: आई.डी.सी., आई.आई.टी. बॉम्बे से एनीमेशन में स्नातकोत्तर। स्वतंत्र रूप से एनीमेशन फिल्में बनाती हैं और चित्रकारी करती हैं।
यह लेख जर्नल ऑफ द कृष्णमूर्ति स्कूल्स, अंक क्रमांक 17, जनवरी 2013 से साभार।