मोहम्मद उमर
नाम चतुर्गन पंचयुग कृत द्वौ गुनी बसु भेखि।
सकल चराचर जगत में राम हि देखी।।
इस श्लोक को गौर से पढ़िए और इसका मतलब समझने की कोशिश कीजिए। क्या समझ में आया?
श्लोक में बहुत गहरी बात छिपी हुई है। इसका महत्व हम धार्मिक सन्दर्भों में तो स्पष्ट देख सकते हैं, लेकिन यहाँ मैं इस श्लोक के सहारे आपको गणित चिन्तन की रोचक यात्रा पर ले चलना चाहूँगा। पिछली गर्मियों में शिक्षक प्रशिक्षण के दौरान मुझे राजसमन्द ज़िले के देवगढ़ ब्लॉक के गणित शिक्षकों के साथ काम करने का अवसर मिला। इस दौरान इस श्लोक पर गहराई से सोचने-समझने का संयोग बना। यह लेख इसी श्लोक से जुड़े कुछ अनुभवों और कुछ चिन्तन का मिश्रण है।
अब से कुछ दो साल पहले चित्तौड़गढ़ ज़िले के एक शिक्षक प्रशिक्षण में पहली मर्तबा यह श्लोक मेरे सामने आया था। हमारे प्रशिक्षकजी ने छ: दिवसीय शिक्षक प्रशिक्षण के पहले दिन गणित के महत्व पर बात करते हुए बोर्ड पर दो श्लोक लिखे थे जिनमें से एक श्लोक वह है जिससे लेख की शुरुआत की गई है और दूसरा श्लोक निम्नलिखित है,
यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तथा वेदागशास्त्राणां गणितं मूर्धनि स्थितिम।।
उपरोक्त श्लोक के सन्दर्भ में उन्होंने बताया कि “जिस प्रकार सभी मोरों में शिख पर पंख वाले मोर और नागों में मणि धारण करने वाले नाग का महत्व है, उसी प्रकार सभी वेदों और शास्त्रों में गणित विषय सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।”
हालाँकि, आज हम सब यह मानते हैं कि कोई भी विषय कम या ज़्यादा महत्वपूर्ण नहीं होता है। किसी बच्चे को एक अच्छे और समझदार इन्सान के रूप में तैयार करने के लिए जितना महत्व गणित का है उतना ही महत्व भाषा, विज्ञान तथा सामाजिक अध्ययन जैसे अन्य सभी विषयोंे का भी है।
दूसरे के सम्बन्ध में उन्होंने बताया कि, “यह श्लोक गणितीय रूप से सिद्ध करता है कि सारे जगत मेंे राम ही राम हैं। आप कोई भी नाम लेंगे उसमें राम नाम छुपा हुआ मिलेगा।”
इस श्लोक के अर्थ पर तब बहुत विमर्श नहीं हो सका था। हम सभी लोग बचपन से ही सुनते आ रहे हैं कि ‘कण-कण में व्यापे हैं राम’। श्लोक की दूसरी पंक्ति भी कुछ ऐसा ही अर्थ ‘पूरे जगत में राम ही राम देखा’ बता रही है। उस समय बात कुछ नई नहीं लगी थी। तब इस श्लोक में छिपे अर्थ को न हम लोग पूरी तरह समझ सके थे और न ही हमारे प्रशिक्षक जी बेहतर ढंग से समझा सके थे। बात आई गई हो गई।
इस साल की गर्मियों के शिक्षक प्रशिक्षण में मुझे राजसमन्द ज़िले के देवगढ़ ब्लॉक में रहने का अवसर मिला। यहाँ पर एक बार फिर इस श्लोक से मुलाकात हो गई। इस बार हमारे प्रशिक्षक सुरेन्दरजी थे। सुरेन्दरजी गणित में रुचि रखते हैं और साथ ही संस्कृत भाषा पर भी उनकी अच्छी पकड़ है। उन्होंने बताया कि यह श्लोक गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा है। उन्होंने इस श्लोक में उपयोग किए गए सभी शब्दों का न सिर्फ अर्थ बताया बल्कि कुछ उदाहरणों को लेकर श्लोक में कही गई बात को समझाने का प्रयास भी किया।
सुरेन्दरजी ने बताया कि श्लोक में कहा जा रहा है कि अपने नाम में आने वाले ‘कुल अक्षरों की संख्या’ को चार से गुणा करें और प्राप्त संख्या में पाँच जोड़ दें। अब जो नई संख्या मिली है उसे दो से गुणा करें। इस तरह प्राप्त हुई संख्या को आठ से भाग कर दें। आपको राम नाम मिल जाएगा।
पहली बार में बात स्पष्ट नहीं हो पाई थी। अत: उन्होंने एक उदाहरण लेकर समझाया।
मान लें कि कोई ‘कमल’ नाम का व्यक्ति है। उनके नाम में 3 अक्षर हैं -क, म और ल। श्लोक के अनुसार नाम के अक्षरों को चार से गुणा करना है। फिर प्राप्त हुई संख्या में पाँच का योग कर देना है।
नाम चतुर्गन पंचयुग,
4x3 + 5
इस प्रकार 17 मिलेगा।
अगले चरण में इस 17 को दोगुना करना है। फिर प्राप्त हुई संख्या को 8 से भाग कर देना है।
कृत द्वौ गुनी बसु भेखि,
17 x 2 = 34
34/8
34 को 8 से भाग करने पर शेषफल 2 बच जाएगा।
राम नाम में भी दो ही अक्षर हैं।
इस तरह सभी नामों में राम नाम मिल जाएगा। इसीलिए तुलसीदास जी कह रहे हैं कि उन्हें सारे जग में बस राम ही राम दिखते हैं।
हमारे प्रशिक्षक जी ने कुछ लोगों के नाम बोर्ड पर लिखकर इस बात को सााबित करके भी दिखाया। सम्भागी के रूप में शामिल राजेश सर ने बोर्ड पर जाकर अपना नाम ‘राजेश’ लिखा।
‘राजेश’ शब्द में भी 3 अक्षर हैं। सो राजेश सर को अपने नाम में भी राम नाम मिल गया। कुछ अन्य शिक्षक साथियों ने भी बोर्ड पर आकर अपने-अपने नाम की जाँच-परख की। जहाँ कुछ गड़बड़ होती सुरेन्दर सर मदद करते थे। किसी-न-किसी तरह सब 2 पर जा पहँुच रहे थे। सबके नाम में राम नज़र आ रहे थे। मुझसे भी न रहा गया। मैंने भी अपनी कॉपी पर ही अपना नाम लिख कर हल करना प्रारम्भ किया।
मोहम्मद उमर, 8 अक्षर हैं।
4x8 + 5 = 37
(2 x 37)/8
74/8
मुझे भी शेषफल 2 प्राप्त हो रहा था।
मुझे खुशी हुई कि मेरे नाम ‘मोहम्मद उमर’ में भी राम नज़र आ रहे हैं। लोग बेकार ही धरम के नाम पर लड़ते हैं। यहाँ देखिए कोई अन्तर नहीं है। सब जगह राम ही राम मिल रहे हैं।
मैंने आसपास देखा। अन्य लोग भी अपने-अपने नाम में राम खोजने में लगे हुए थे। थोड़ी ही देर बाद मुझे महसूस हुआ कि मुझसे शायद एक गलती हुई है। मेरे नाम ‘मोहम्मद उमर’ में एक आधा ‘म’ आ रहा है जिसे मैं पूरे अक्षर के रूप में अपनी गिनती में ले रहा हूँ। अपने पड़ोसी शिक्षक से पूछा तो उन्होंने कहा कि ‘म्’ को गिनती में नहीं लेना चाहिए। मैंने अपना हल दोबारा शु डिग्री किया। इस बार अपने नाम में आ रहे ‘म्’ को अनदेखा कर यह मान लिया कि मेरे नाम में 7 अक्षर ही हैं।
4 x 7 + 5 = 33
(2 x 33)/8
66/8
इस बार भी शेषफल 2 प्राप्त हुआ।
कुछ अन्य शिक्षकों ने भी इस प्रक्रिया को अपने नाम तक ही सीमित न रख वस्तुओं के ऊपर भी परख लिया था। ऐसे ही एक शिक्षक ने हम सबका ध्यान इस तरफ खींचा, “सरजी, ‘पंखा’ के लिए भी शेषफल 2 ही आ रहा है। उन्होंने बोर्ड पर आकर हल करके भी दिखाया। ‘पंखा’ शब्द में 2 अक्षर हैं।
4 x 2 + 5 = 13
(2 x 13)/8
26/8
शेषफल 2 प्राप्त हुआ।
पीछे की तरफ से भी एक शिक्षक की आवाज़ आई, “सरजी, अलमारी में भी राम नाम मिल गया है।” हम सम्भागियों को थोड़ा आश्चर्य हुआ कि लोगों के नाम के अलावा, वस्तुओं के नाम में भी राम नाम कैसे मिल रहा है। लेकिन हमारे प्रशिक्षकजी ने बहुत ही सहजता से बताया कि तुलसीदासजी सिर्फ लोगों के नाम की बात नहीं कर रहे हैं। वे तो इस जगत की सभी चीज़ों के नाम में राम के बसे होने की बात कर रहे हैं। आप किसी भी चीज़ का नाम सोच कर देखो। यह श्लोक सभी जगह लागू होगा।
यह सत्र सभी को अच्छा लगा था। सदन में यह स्थापित हो गया था कि तुलसीदासजी ने बहुत ही सही बात कही है। हम सभी के नाम में राम नाम छिपा है। दुनिया की हर चीज़ के नाम में राम नाम पाया जा सकता है।
सरकारी प्रशिक्षणों को कुछ लोग बहुत ही आलोचनात्मक नज़रिए से देखते हैं। मेरे लिए ये सदैव सीखने-सिखाने का एक बेहतर माध्यम रहा है। हर शिक्षक प्रशिक्षण किसी-न-किसी रूप में मुझे कोई-न-कोई नई सीख दे जाता है। इसीलिए मैं हमेशा ही इस तरह के प्रशिक्षणों को बहुत गम्भीरता से लेता हूँ।
प्रशिक्षण से लौटकर मैं इस राम नाम वाली बात पर सोचता रहा। कोई भी नाम लिखने पर शेषफल 2 बच रहा था। ये रोचक भी था, लेकिन समय अभाव के कारण सत्र में ये बात और आगे नहीं जा पाई थी। मुझे लगा कि इस बात को गणितीय नज़रिए से भी परखने की ज़रूरत है। इसमें जो गणितीय रहस्य छिपा है उसे भी खोजने की आवश्यकता है।
शाम को एक बार फिर से सोचना शुरु किया। ऐसा लगने लगा कि शायद सभी जगह ये बात लागू होगी। अगर ऐसा सही है तो एक अक्षर के साथ भी यह सही होना चाहिए। हालाँकि एक अक्षर का कोई नाम नहीं होता है, फिर भी जाँच करना चाहिए। मैंने मान लिया कि कोई नाम है ‘क’। यहाँ एक ही अक्षर है। देखते हैं क्या होता है।
4 x 1 + 5 = 9
(2 x 9)/8
18/8
ओह, यह तो आश्चर्यजनक है। यहाँ भी शेषफल 2 मिल रहा है। तो क्या तुलसीदासजी ने एक ऐसी बात लिख दी है जो हर परिस्थिति में सही साबित हो रही है?
पहली नज़र में तो ये ज़रूर लगने लगा है कि यह बात हर जगह लागू होगी, लेकिन पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि यह बात हर जगह पर लागू होगी ही होगी। गणित में हज़ार बार जाँच कर लेने के बाद भी यह दावा नहीं किया जा सकता कि आगे भी ऐसा ही होगा। सामान्यीकरण करने से पहले हमें उन्हें गणितीय रूप से सिद्ध भी करना पड़ता है। अन्यथा लाख उदाहरणों को परख लेने के बाद भी हम इसे सही नहीं मानेंगे क्योंकि यह सम्भव है कि आगे कहीं जाकर यह खारिज हो जाए।
आइए इसे सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। ऊपर प्राप्त हुए नतीजों को अब हम व्यवस्थित रूप में उपयोग करेंगे। सबसे पहले एक अक्षर के नाम ‘क’ पर आधारित नतीजा ले लेते हैं।
1 अक्षर का नाम ‘क’
4 x 1 + 5 = 9
(2 x 9)/8
18/8
शेषफल 2 मिल रहा है।
इसे व्यंजक के रूप में जमा लेते हैं। व्यंजक का मतलब होता है किसी कही गई बात या विचार को गणितीय प्रतीकों में प्रदर्शित करना।
2(4 x 1 + 5)/8
गौर से देखें तो आप पाएँगें कि यह गणितीय व्यंजक तुलसीदासजी द्वारा कही गई बात, नाम चतुर्गन पंचयुग कृत द्वौ गुनी बसु भेखि का ही गणितीय स्वरूप है।
अब हम 2 अक्षर के नाम ‘पंखा’ से प्राप्त हुए व्यंजक को भी देखते हैं।
2(4 x 2 + 5)/8
इसी तरह तीन अक्षर के नाम ‘राजेश’ से प्राप्त व्यंजक:
2(4 x 3 + 5)/8
चार अक्षर के नाम ‘कमलेश’ से प्राप्त व्यंजक:
2(4 x 4 + 5)/8
किसी पाँच अक्षर वाले नाम से प्राप्त व्यंजक:
2(4 x 5 + 5)/8
हज़ार अक्षरों वाले नाम से प्राप्त व्यंजक:
2(4 x 1000 + 5)/8
और अब, ऐसा नाम, जिसमें अक्षरों की संख्या n है।
2(4 x n + 5)/8
यह एक बीजीय व्यंजक है। ऊपर सब कुछ संख्या में ही था। अत: जाँच करना आसान था। हम 8 से भाग कर देख पाते थे कि सभी जगह शेषफल 2 बच रहा है। इस बीजीय व्यंजक के लिए भी हमें अपनी जाँच करनी होगी।
2(4 x n + 5)/8
(8 x n + 10)/8
(8 x n + 8 + 2)/8
[(n + 1)8 + 2]/8
वाह, क्या बात है। हम नतीजे तक पहुँच गए।
थोड़ी देर के लिए सिर्फ सवाल के इस हिस्से [(n + 1)8 + 2]/8 पर ध्यान दीजिए। यह एक बीजीय व्यंजक है। यदि हम द के स्थान पर बारी-बारी से पूर्ण संख्याएँ यानी 0, 1, 2, 3, 4, 5, 6 आदि रखते हैं तो हर बार हमें एक ऐसी संख्या अवश्य मिलेगी जो 8 के गुणज में 2 का योग करने से बनती है। ऐसी संख्याओं को हम जब भी 8 से भाग करेंगे तो अवश्य ही शेषफल 2 बचेगा।
इसका अर्थ यह हुआ कि एक से लेकर किसी भी संख्या तक के अक्षर वाले नाम लेकर भी हम राम नाम प्राप्त कर सकते हैं। बल्कि हम एक भी अक्षर न लें तो भी हमें शेषफल 2 ही मिलेगा।
विशुद्ध गणितीय रूप में देखें तो जब हम कोई भी अक्षर नहीं ले रहे हैं उस स्थिति में द के स्थान पर 0 रखना होगा।
[(n + 1) 8 + 2]/8
[(0 + 1) 8 + 2]/8
[(1) 8 + 2]/8
(8 + 2)/8
10/8, शेषफल 2
यानी अक्षरों की संख्या यदि 0 भी हुई तो भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। अपने को ‘सकल जगत में राम ही राम’ मिल जाएँगे। तुलसीदासजी के इस श्लोक के पीछे छिपा यह रोचक गणित देखकर मुझे अच्छा लगा। मन में यह ख्याल आया कि तुलसीदासजी ने इस प्रकार के गणितीय ज्ञान और भाषा प्रयोग के मिश्रण से इतने बेहतर ढंग से अपनी बात कह दी थी। उनका अध्ययन कितना व्यापक रहा होगा।
मोहम्मद उमर: अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन, राजसमन्द, राजस्थान में कार्यरत हैं। गणित अध्ययन एवं शिक्षण में विशेष रुचि।
सभी चित्र: तनुश्री रॉय पॉल: आई.डी.सी., आई.आई.टी. बॉम्बे से एनीमेशन में स्नातकोत्तर। स्वतंत्र रूप से एनीमेशन फिल्में बनाती हैं और चित्रकारी करती हैं।