शुभ्रा मिश्रा

एक  दिन  एक  अभिभावक  अपनी लड़की को लेकर स्कूल पहुँचते हैं और लड़की का दाखिला करने का अनुरोध करते हैं। जब शिक्षक ट्रान्सफर सर्टिफिकेट माँगते हैं तो अभिभावक पुराने स्कूल द्वारा पूरी फीस जमा न होने के कारण टीसी के रोके जाने की बात बताते हैं और शिक्षक बच्ची का दाखिला बिना टीसी के स्कूल में कर लेते हैं।
तकरीबन दो महीने के बाद, अगस्त में शिक्षकों को भनक लगती है कि लड़की ने सिर्फ कक्षा दो तक पढ़ाई की है और यहाँ सीधे कक्षा दो से छ: में दाखिला ले लिया है। ऐसा पता चलते ही शिक्षकों ने तुरन्त उस अभिभावक को स्कूल में बुलाया।

हेड टीचर ने अभिभावक से कहा कि एक शिक्षक ने इस लड़की को पढ़ने-लिखने में कमज़ोर पाया और जब तहकीकात की तो पता लगा कि बच्ची बाकी की लड़कियों से उम्र में काफी छोटी है। शिक्षक का कहना था कि इस बच्ची में उस उम्र के अन्य बच्चों की तरह समझ नहीं है।  अभिभावक इस बात से सहमत नहीं थे कि बच्ची की उम्र कम है और उसे काम करने का ढंग नहीं है। दोनों पक्ष अपनी बात पर अड़े थे। उम्र का सबूत था आधार कार्ड जिसमें लड़की की उम्र 13 साल लिखी थी।

यह सब कुछ मेरे सामने हो रहा था। अभिभावक ने मेरी तरफ देखते हुए कहा कि लड़की को बुला लो। लड़की बुलाई गई। देखने से उसकी उम्र 10 साल से ज़्यादा नहीं लग रही थी। लड़की का नाम पूछने के बाद, मैंने उससे ऑफिस की दीवार पर टँगे कैलेण्डर के नीचे हिन्दी में लिखे वाक्यों को पढ़ने के लिए कहा। उसने रुकते हुए पढ़ लिया। फिर सामने टँगी हुई घड़ी में समय देखने को कहा। घड़ी उस समय ग्यारह बजकर सैंतालीस मिनट दर्शा रही थी जिसे लड़की ने पहले साढ़े ग्यारह और फिर बारह कहा। इसके बाद हमने लड़की को जाने के लिए कह दिया।

हेड टीचर ने कहा कि  हमने  तुम्हारा भरोसा करके बिना टीसी के दाखिला किया और तुम सच नहीं बोल रहे हो। हमें इस लड़की से कोई दुश्मनी नहीं है। जब अभिभावक ने चुप्पी साधी तो एक शिक्षिका ने ज़ोर-से एक स्कूल का नाम लेते हुए पूछा कि “क्या यह लड़की उस स्कूल में कक्षा-2 में नहीं पढ़ती थी?” फिर मैंने हस्तक्षेप  किया और कहा कि आप सच कहिए फिर  हम  सब मिलकर कुछ हल निकालेंगे। यह सब सुनकर अभिभावक ने कहा कि लड़की की उम्र आधार कार्ड में गलत चढ़ गई है। जब अभिभावक पास के प्राइमरी स्कूल में दाखिले के लिए गए तो वहाँ के हेड टीचर ने कहा कि बच्ची की उम्र ज़्यादा है इसका जूनियर कन्या में दाखिला करा दो। यह अभिभावक के लिए सहूलियत-भरा था क्योंकि इस स्कूल में दो और लड़कियाँ पढ़ती थीं जिनके साथ बच्ची स्कूल आ-जा सकती थी। और इस प्रकार, पिता ने अपनी बच्ची का दाखिला यहाँ कक्षा-6 में करा दिया जबकि उसने पहले सिर्फ कक्षा-2 तक ही पढ़ाई की थी।

सभी शिक्षकों ने एक सुर में कहा कि  लड़की  का  नाम   काटना   पड़ेगा।  इससे हमारे स्कूल की बदनामी होती है। इस तरह तो सब लोग यहाँ कक्षा-2 के बाद सीधा-ही कक्षा-6 में दाखिला लेने चले आएँगे। इस  पर अभिभावक राज़ी हो गए। लड़की का नाम स्कूल से कट जाएगा और स्कूल मुक्त।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम

सेक्शन 5, अन्य स्कूल में स्थानान्तरण का अधिकार
3. उसी तरह के अन्य स्कूल में प्रवेश चाहने पर, पूर्व में प्रवेश लिए स्कूल के हेड टीचर या स्कूल के इंचार्ज शीघ्र ही स्थानान्तरण प्रमाण पत्र (Transfer certificate, T.C.) जारी करेंगे।
ट्रांसफर सर्टिफिकेट मिलने में होने वाली देरी को दूसरे स्कूल प्रवेश को टालने या नकारने का आधार नहीं बना सकते।
स्कूल द्वारा स्थानान्तरण प्रमाण पत्र जारी करने में होने वाली देरी के लिए हेड टीचर या स्कूल इंचार्ज सेवा नियमों के तहत अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए उत्तरदायी होंगे।
उपरोक्त बिन्दु इस लिंक पर दिए गए मूल अँग्रेज़ी नियम से अनुवाद किए गए हैं।
http://mhrd.gov.in/sites/upload_files/mhrd/files/upload_document/rte.pdf


मैंने   अभिभावक   से अनुरोध किया कि आप आधार कार्ड में सुधार करवाएँ और बच्ची का दाखिला प्राइमरी स्कूल में ज़रूर कराएँ। अगर आप कोई कार्यवाही नहीं करेंगे तो पाँच साल बाद इसकी उम्र अठारह की होगी और आप उसकी शादी कर देंगे, जोकि हर तरह से गलत है। लड़की के शारीरिक और मानसिक विकास के साथ-साथ कानूनी तौर पर भी। अभिवावक ने ‘हाँ’ कर दिया और ऐसा लगा कि अब वो ज़्यादा कुछ सुनने की क्षमता नहीं रखते हैं। अमूमन, सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे सामाजिक व आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग से होते हैं। सामान्यतया इनके अभिभावक दैनिक भत्ते (देहाड़ी) पर खेतों या अन्य किसी जगह पर काम करके अपने परिवार का गुज़ारा करते हैं। मैंने अभिभावक से पता किया कि वह क्या करते हैं और जैसा अपेक्षित था वही उत्तर मिला, “देहाड़ी।” इससे एक बात साफ हुई कि आज का दिन तो उनका गया।

मेरे मन में सवाल आया कि क्या अब यह अभिभावक फिर से किसी और स्कूल में लड़की के दाखिले के लिए जाएँगे? अगर वो ऐसा करते हैं तो एक दिन की और देहाड़ी गई और ऐसा करने से उन्हें क्या मिलेगा? असाक्षर व्यक्ति के लिए इस तरह की कागज़ी कार्यवाही एक अतिरिक्त भारी बोझ ही है और इसीलिए स्वाभाविक है कि वह स्कूल के प्रति उदासीन हो जाता है।
ऐसे अभिभावक के पास बच्ची को स्कूल भेजने का एक भी सार्थक कारण  नहीं है जबकि स्कूल न भेजने के दसों कारण हो सकते हैं जैसे - घर में रहेगी तो घर का काम करेगी, छोटे भाई-बहनों को सम्हालेेगी, एक-दो साल में वो भी माँ-बाप के साथ काम पर जाएगी... और फिर शादी।

इस घटना ने मेरा ध्यान बच्चों के दाखिले को लेकर सामने आए मुद्दों की ओर खींचा जिनके चलते अभिभावकों को कई दिनों तक एक ऑफिस से दूसरे ऑफिस या स्कूल के चक्कर काटने पड़ते हैं। अगस्त में मैं पाँच स्कूलों में गई और इत्तेफाक ही रहा कि जब भी मैं स्कूल में उपस्थित थी किसी-न-किसी स्वरूप में ये मुद्दे सामने आए। गौरतलब है कि ये सभी मामले जूनियर स्कूल में लड़कियों के दाखिले को लेकर थे। जैसे:
1.एक अभिभावक पिछले महीने तक दूसरे प्रदेश में मज़्ादूरी करते थे जो हाल ही में मज़्ादूरी के लिए यहाँ आए। पहले वाले स्कूल से टीसी अभी तक नहीं मिली है और इसलिए उसकी लड़की का नाम लिखने से रोका गया है। जब तक यह प्रक्रिया पूरी होगी तब तक लड़की को घर पर रहना होगा।
2.एक अभिभावक किन्हीं कारणों से अपनी बच्ची का नाम घर के पास वाले स्कूल में नहीं लिखाना चाहते थे और दूसरे वाले स्कूल में इस कारण से बच्ची का दाखिला नहीं किया गया।
3.अभिभावक अपनी बच्ची का नाम सीधे ही इंटर कॉलेज में लिखवाना चाहते थे क्योंकि इससे वह कक्षा-12 तक एक स्कूल से दूसरे स्कूल में दाखिले की प्रक्रिया से बच सकते हैं।

सरकार सर्व शिक्षा अभियान के ज़रिए हर बच्चे को स्कूल तक लाने की जद्दोजेहद में है, वहीं दूसरी ओर एक स्कूल से दूसरे स्कूल में आया बच्चा खास तौर पर लड़की, कागज़ों में गड़बड़ी के चलते स्कूल से बाहर ही रह जाती है। शिक्षा का अधिकार कानून उम्र के हिसाब से कक्षा में दाखिले की बात करता है पर यहाँ दाखिले में हो रही देरी के मामले में ज़िम्मेदारी किसकी है, शिक्षक की या अभिभावक की या मानसिकता की या व्यवस्था की?


शुभ्रा मिश्रा: अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन, ऊधमसिंह नगर, उत्तराखण्ड में कार्यरत हैं।
सभी चित्र: कनक शशि: एकलव्य, भोपाल के प्रकाशन समूह के साथ काम करती हैं।