प्राज्वल शास्त्री साक्षात्कार
मैलिसा फ्रैंकलिन एक कण-भौतिकीविद हैं और हारवर्ड विश्वविद्यालय में भौतिकी की मैलिनक्रोट प्राध्यापक हैं। फ्रैंकलिन उस समूह की सदस्य थीं जिसने टॉप क्वार्क की खोज की थी। टॉप क्वार्क वह कण था जिसकी तलाश कण-भौतिकी के मान्य सिद्धान्त के लिए ज़रूरी थी। इस समूह ने टॉप क्वार्क की खोज के लिए प्रोटॉन्स की टक्कर उनके अत्यधिक ऊर्जायुक्त एंटी-कणों से करवाई थी। यह काम उन्होंने शिकागो स्थित फर्मी लैबोरेट्री के टेवैट्रॉन एक्सलरेटर में किया था। फ्रैंकलिन ने समूह के हारवर्ड घटक का नेतृत्व किया था। वे ॠच्र्ख्र्ॠच् व क्ग्च् समूहों की भी सदस्य हैं जिसने हिग्स बोसॉन की खोज की है। यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं मैलिसा फ्रैंकलिन के साथ प्राज्वल शास्त्री का स्काइप पर रूबरु साक्षात्कार।
मैलिसा फ्रैंकलिन का जन्म कनाडा के एडमंटन में हुआ था और उनकी स्कूली व उच्च शिक्षा टोरोंटो में हुई थी। स्टैनफर्ड विश्वविद्यालय में स्टैनफर्ड लीनियर एक्सलरेटर सेन्टर में मार्टिन पर्ल व गैरी फेल्डमैन के निरीक्षण में काम करते हुए उन्होंनेे कण भौतिकी में पीएच.डी. हासिल की। वहाँ काम करते हुए फ्रैंकलिन पार्टिकल स्मैशर्स (कणों को चकनाचूर करने वाले उपकरण) के निर्माण की प्रक्रिया को बहुत पसन्द करने लगीं। इस लगाव के पीछे दूरगामी लक्ष्य ‘मूलभूत भौतिकी’ ही था। लॉरेंस बर्कली लैब में पोस्ट-डॉक्टरल फैलो तथा इलिनॉय विश्वविद्यालय में फैकल्टी के रूप में रहने के बाद, 1987 में वे जूनियर फेलो (सोसायटी ऑफ फेलोज़) के रूप में हारवर्ड चली गईं और फिर वहीं 1989 में फैकल्टी में शामिल हो गईं। फ्रैंकलिन अपने शिक्षण कार्य में ‘करके सीखो’ को काफी सशक्त ढंग से शामिल करती हैं। वे कैनेडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन के क्वर्क्स एंड क्वार्क्स कार्यक्रम में नज़र आती हैं। गौरतलब बात है कि फ्रैंकलिन पहली महिला फैकल्टी थीं जिन्हें हारवर्ड विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग में स्थाई पद दिया गया था (1992 में)।
प्रश्न - आपके जीवन के बारे में जो कुछ पढ़ा है, उससे मुझे याद आ रहा है कि आपने 13 वर्ष की उम्र में स्कूल छोड़ने का निर्णय लिया था क्योंकि आप सीखने के माहौल से खुश नहीं थीं। उसके बाद आप सीखने के एक वैकल्पिक परिवेश में रहीं। क्या वैसा करना सामान्य बात लगी थी? आपके माता-पिता को चिन्ता नहीं हुई कि आप स्कूल से बाहर हैं? और आपको हमजोली कैसे मिले?
जी हाँ, मैंने परम्परागत स्कूल छोड़ दिया था। मुझमें बिना हिले-डुले 40 मिनट तक भी एक जगह बैठने की क्षमता नहीं थी। इसलिए स्कूल मेरे लिए सीखने का अच्छा परिवेश नहीं था। फिर उस साल गर्मियों में मैं अपनी सायकिल पर घूम रही थी, और मुझे एक बगीचे में किशोरों की एक टोली मिली, जो ज़ोर-ज़ोर-से पढ़ रहे थे - जेम्स जॉयस की फिनेगन्स वेक। मुझे अपना हमजोली समूह मिल गया। पता चला कि वे एक वैकल्पिक स्कूल शु डिग्री करने जा रहे हैं, और उसे अधिकारियों की मान्यता भी मिल गई। मेरे माता-पिता चिन्तित नहीं थे - साठ और सत्तर के दशक में वे चीज़ों को लेकर इतने चिन्तित नहीं हुआ करते थे। नया परिवेश मेरे लिए अच्छा था क्योंकि हम लोग (कक्षा में एक जगह स्थिर बैठने की बजाय) काफी घूमते-फिरते थे। आज भी मैं ज़्यादा व्याख्यान वगैरह नहीं देती - वास्तव में यह (भाषण सुनना) अधिकांश लोगों के लिए सीखने का अच्छा तरीका नहीं होता।
प्रश्न - तो आप वही करती थीं जो आप चाहती थीं, खेलना, गणित करना, पढ़ना, गाना-बजाना?
विचार तो यह था कि समुदाय के लोग आकर हमें सिखाएँ। हमने विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर को बुलाया; जेन जैकब नाम के एक शहर नियोजक ने हमें शहरी नियोजन के बारे में सिखाया, एक यूनानी प्रोफेसर ने हमें यूनानी भाषा सिखाई... इस स्कूल के साथ दो सचमुच के शिक्षक भी जुड़े थे, किन्तु हम कमोबेश जो चाहते, करते थे।
प्रश्न - यानी आपने अपना समरहिल1 बना लिया?
वैसा ही कुछ था, हाँ। और इसलिए मेरे पास हाई स्कूल का प्रमाण पत्र नहीं है।
प्रश्न - भौतिकी में आपकी रुचि कब पैदा हुई, और कैसे?
मैं ऊब गई थी और लंदन चली गई। वहाँ मुझे एक स्कूल में दाखिला लेना पड़ा क्योंकि मैं महज 15 वर्ष की थी। तीन महीने बाद स्कूल ने मुझसे कहा कि मुझे किसी चीज़ पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए क्योंकि जल्दी ही मुझे ए-लेवल परीक्षा में बैठना होगा। मैंने बगैर किसी खास कारण के भौतिकी चुन लिया, किन्तु जब मैं उसे पढ़ने लगी, खासकर क्वांटम यांत्रिकी के बारे में पढ़ने लगी तो मुझे सचमुच रुचि आने लगी!
प्रश्न - तो आप अपने आप ही भौतिकी पढ़ रही थीं?
हाँ, मैं हाइज़ेनबर्ग, उनके जीवन और उनके ज़माने वगैरह के बारे में पढ़ रही थी। मैंने काफी सारा दर्शन भी पढ़ा, और उन दिनों क्वांटम भौतिकविदों की दर्शन में काफी रुचि होती थी और वे दोनों विषयों पर लिखते थे। तो यह मेरे लिए एक विषय से दूसरे में जाने का रास्ता था।
प्रश्न - आगे चलकर आप एक पारम्परिक कॉलेज में गईं - टोरोंटो विश्वविद्यालय? (हाँ) क्या वहाँ प्रवेश के लिए आपके ‘अच्छे अंक’ थे?
नहीं! इसके लिए मुझे लगातार 34 दिनों तक उनसे बातचीत करनी पड़ी थी, उनसे अनुनय-विनय करनी पड़ी थी कि वे मुझे प्रवेश दे दें, क्योंकि मैं ज़रूरी शर्तें पूरी नहीं करती थी। शुरुआती सेमेस्टर कठिन थे क्योंकि मेरे पास उस सबसे निपटने के लिए ज़रूरी पृष्ठभूमि नहीं थी। किन्तु वहाँ कुछ बहुत ही मददगार प्रोफेसर थे जिन्होंने मुझ पर ध्यान दिया। अन्तत: मैं आगे बढ़ गई, और सीखा कि काम कैसे करते हैं, और अच्छे अंक प्राप्त किए।
प्रश्न - जब आप पीएच.डी. के लिए स्टैनफोर्ड गईं, उस समय तक संयुक्त राज्य में अकादमिक जगत पर नारीवाद का काफी असर हो चुका था। क्या भौतिकी में अपने परिवेश पर आपने इस असर को महसूस किया?
स्टैनफोर्ड वास्तव में चाहता था कि उसके पीएच.डी. कार्यक्रम में ज़्यादा महिलाएँ आएँ (उस समय बहुत कम थीं)। यह नारीवादी आन्दोलन का ही प्रभाव था। अलबत्ता, प्रोफेसरों पर उस आन्दोलन का कोई खास असर न था, और न ही उन्होंने उन मुद्दों के बारे में सोचा था, और महिला छात्रों के साथ उनके व्यवहार में यह बात साफ झलकती थी। वैसे भौतिकी की विभिन्न शाखाओं में महिला स्नातक छात्रों का एक समूह ज़रूर था जो काफी समर्थक था। और मैंने देखा कि उनमें से कम-से-कम दो भौतिकी में डटी रहीं और अपने-अपने (शीर्ष) विश्वविद्यालयों में नेतृत्व के ओहदों तक पहुँचीं।
प्रश्न - आपके अनुसंधान में बड़े पैमाने के सामूहिक प्रयासों की ज़रूरत पड़ती है और लम्बे समय तक काम करना पड़ता है और हो सकता है कि इस लम्बी अवधि में कोई ठोस परिणाम हासिल न हों। क्या इसके लिए विज्ञान की एक भिन्न संस्कृति ज़रूरी होती है?
मेरे क्षेत्र में प्रयोग करने के लिए बड़े पैमाने पर संयुक्त प्रयास के अलावा कोई रास्ता नहीं है। हमारे यहाँ एक तरह की समतल प्रजातांत्रिक व्यवस्था है जो अद्भुत है। दरअसल, कुछ लोग तो इस तरह के संयुक्त प्रयासों का ही अध्ययन कर रहे हैं! मेरे ख्याल में जो छात्र मेरे क्षेत्र में डटे रहते हैं, वे वही हैं जो विज्ञान के लक्ष्य को याद रखते हैं, जबकि रोज़-ब-रोज़ छोटी-छोटी चीज़ें करते हैं। बात स्मार्ट होने या न होने की नहीं है। ये तो बस वे लोग हैं जिन्हें सामने विज्ञान का एक बड़ा लक्ष्य (जैसे हिग्स बोसॉन की खोज) होने पर थोड़ी छेड़छाड़ करने में, मरम्मत करने में मज़ा आता है। तो मैं हर रोज़ और हर सप्ताह को एक मिनी-प्रयोग के रूप में देखती हूँ और छोटी-छोटी चीज़ों में मज़ा लेने की कोशिश करती हूँ। और लगता है कि यह कारगर है। तब सबसे बड़ी समस्या दिलचस्पी बनाए रखने की नहीं होती, बल्कि नौकरियों के अभाव की होती है।
प्रश्न - जब आप हारवर्ड में फैकल्टी सदस्य बनीं, तब क्या आपको यह एहसास कराया गया था कि आपका जेंडर सबसे प्रमुख चीज़ है?
मेरा पहला साल उनके लिए अजीब था। एक फैकल्टी सदस्य ने मुझसे कहा था कि मुझे बैठकों में इतना नहीं बोलना चाहिए, किन्तु धीरे-धीरे मैंने उन्हें अपना अभ्यस्त बना लिया है। व्यापक मुद्दों को लेकर भौतिक शास्त्री न तो सबसे उन्नत होते हैं और न ही सबसे अधिक शिक्षित। बदकिस्मती से, हमारे यहाँ ऐसे कोई जागरूकता बढ़ाने वाले समूह नहीं हैं। इसके अलावा, भौतिकी में संस्कृति आक्रामक है - लोगों को लगता है कि आक्रामक होना ही स्मार्ट है। आलोचना, हालाँकि ज़रूरी है, किन्तु अच्छे ढंग से नहीं की जाती। कई युवा महिलाओं को यह पसन्द नहीं है। मगर मैं आशावान हूँ।
मैं इस बात को लेकर भी आशावान हूँ कि हम बेहतर ढंग से पढ़ा सकते हैं। मैं सक्रियता से सीखना-सिखाना करती हूँ।
प्रश्न - क्या आपको लगता है कि ‘करके सीखना’ वैज्ञानिक विधि सिखाने का बेहतर तरीका है?
ज़रूर। मैं अपनी बात के बीच-बीच छात्रों के करने को जोड़ती हूँ। इससे उन छात्रों को मदद मिलती है जो मेरे जैसे हैं, जो एक जगह लम्बे समय तक नहीं बैठ सकते। मैं यह भी मानती हूँ कि भौतिकी की शिक्षा में काफी सारा खुद करने को होना चाहिए और काफी सारे हुनर होने चाहिए, ताकि शु डिग्री से ही उन्हें यह वास्तविक लगे और भौतिकी कम डरावनी हो सके। इस तरह से हम कहीं ज़्यादा लोगों को विज्ञान समझने में मदद कर सकेंगे।
प्राज्वल शास्त्री: इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिज़िक्स, बैंग्लोर में तारा-भौतिकविद् हैं और ब्लैक-होल व निहारिकाओं के सक्रिय केन्द्रों का अध्ययन करती हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद: सुशील जोशी: एकलव्य द्वारा संचालित स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। विज्ञान शिक्षण व लेखन में गहरी रुचि।
यह लेख रेज़ोनेंस पत्रिका के अंक मार्च 2017 से साभार।