आम तौर पर मधुमेह के रोगियों को चीनी की बजाय सुक्रेलोज़ जैसे कृत्रिम स्वीटनर का उपयोग करते देखा जाता है। इनके बारे में आम मान्यता है कि ये केवल जीभ को मिठास का एहसास कराते हैं, परन्तु शरीर पर इनका कोई अन्य प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन एक हालिया अध्ययन ने दर्शाया है कि स्वीटनर का स्वाद से परे जैविक प्रभाव होता है।
नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में सुक्रेलोज़ की उच्च खुराक से चूहों की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पर गंभीर प्रभाव देखे गए हैं। सुक्रेलोज़ सामान्य शकर (सुक्रोज़) से 600 गुना अधिक मीठा होता है। वैसे शोधकर्ताओं ने मनुष्यों पर इसके प्रभावों का अध्ययन नहीं किया है लेकिन लगता है कि सुक्रेलोज़ की सामान्य खपत शरीर के लिए हानिकारक नहीं होगी।
गौरतलब है कि शकर के विकल्पों (शुगर सब्स्टिट्यूट) को आंत के सूक्ष्मजीवों में परिवर्तन जैसे जैविक प्रभाव दिखने के बाद इन पर विशेष अध्ययन किए जा रहे हैं। प्रतिरक्षा प्रणाली पर सुक्रेलोज़ के प्रभाव को समझने के लिए लंदन स्थित फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट के आणविक जीवविज्ञानी फैबियो ज़ानी और साथियों ने मनुष्यों और चूहों से प्राप्त टी-कोशिकाओं (एक प्रकार की प्रतिरक्षा कोशिका) का संपर्क कृत्रिम स्वीटनर से करवाकर जांच की। उन्होंने पाया कि सुक्रेलोज़ ने टी-कोशिकाओं की प्रतिलिपि बनाने और विशिष्टिकरण की क्षमता को कम कर दिया था।
इसके बाद चूहों को सुक्रेलोज़ की निर्धारित अधिकतम सुरक्षित मात्रा दी गई। इन सभी चूहों में पहले से ही कोई संक्रमण या ट्यूमर था जिससे प्रतिरक्षा प्रणाली की सक्रियता को आंका जा सकता था। पाया गया कि कंट्रोल समूह के चूहों की तुलना में सुक्रेलोज़ का सेवन करने वाले चूहों में टी-कोशिका प्रतिक्रिया कमज़ोर रही। सुक्रेलोज़ देना बंद करने पर उनकी टी-कोशिका प्रतिक्रियाएं बहाल होने लगीं।
हालांकि सुक्रेलोज़ की कम खुराक का परीक्षण नहीं किया लेकिन लगता है कि खुराक कम करने पर प्रभाव जाता रहेगा। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि स्वीटनर अन्य प्रतिरक्षा कोशिकाओं को प्रभावित नहीं करता। एक पिछले अध्ययन में यह भी बताया गया था कि सुक्रेलोज़ कोशिका झिल्ली की तरलता को प्रभावित करता है जिससे टी-कोशिकाओं की परस्पर संवाद क्षमता प्रभावित हो सकती है।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सुक्रेलोज़ का प्रभाव पूरी तरह नकारात्मक नहीं है। उनका मत है कि निकट भविष्य में सुक्रेलोज़ का उपयोग ऑटो-इम्यून समस्याओं के इलाज के लिए किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने टाइप-1 मधुमेह से ग्रसित चूहों पर परीक्षण किया। यह एक ऑटो-इम्यून समस्या है जिसमें टी-कोशिकाएं इंसुलिन निर्माता पैंक्रियास कोशिकाओं पर हमला करती हैं। लगभग 30 सप्ताह बाद स्वीटनर दिए गए मात्र एक-तिहाई चूहों में मधुमेह विकसित हुआ जबकि सामान्य पानी पीने वाले सारे चूहों में मधुमेह विकसित हो गया। मनुष्यों में यदि ऐसा ही प्रभाव देखा जाता है तो इसका उपयोग अन्य प्रतिरक्षा दमन करने वाली औषधियों के साथ करके उनकी खुराक कम की जा सकेगी। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - May 2023
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