एक हालिया अध्ययन में वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन के कारण बैलीन व्हेल के प्रवास को समझने का प्रयास किया है। इसके लिए उन्होंने व्हेल की त्वचा के छोटे टुकड़ों का इस्तेमाल किया है। यह तकनीक व्हेल के संरक्षण में मददगार साबित हो सकती है जो अभी शिकार से तो सुरक्षित हैं लेकिन संकटग्रस्त हैं। वास्तव में व्हेल की इस प्रजाति (Eubalaena australis) को ट्रैक करना मुश्किल है लेकिन शोधकर्ताओं ने व्हेल की त्वचा के कुछ नमूने तटीय प्रजनन क्षेत्रों से उनकी त्वचा के सूक्ष्म हिस्से को भेदकर प्राप्त किए।
इसके बाद शोधकर्ताओं ने इस नमूने में कार्बन और नाइट्रोजन समस्थानिकों का विश्लेषण किया और इसका मिलान पिछले 30 वर्षों में दक्षिणी महासागर में मैप किए गए समस्थानिक अनुपात से किया। व्हेल जो क्रिल और कोपेपोड खाती हैं उनमें यही समस्थानिक होते हैं। ये लगभग 6 महीने बाद व्हेल की नवीन त्वचा में पहुंच जाते हैं। त्वचा में समस्थनिकों के अनुपात में व्हेल की पिछली यात्राएं रिकॉर्ड हो जाती हैं। टीम ने पाया कि समुद्र का मध्य अक्षांश व्हेल के लिए भोजन का एक महत्वपूर्ण इलाका रहा है। ऐसा लगता है कि दक्षिणी महासागर के कुछ हिस्सों में, व्हेल भोजन के लिए दक्षिण की ओर प्रवास कम कर रही हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन ने अंटार्कटिका के आसपास के इलाकों में क्रिल की आबादी कम कर दी है जिसके चलते उस ओर व्हेल का प्रवास भी कम हो गया है। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - May 2023
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