इंडोनेशिया में पाया जाने वाला एक तोता है तनिम्बार कोरेला जिसे गोफिन्स कॉकेटू भी कहते हैं (जीव वैज्ञानिक नाम है Cacatua goffiniana)। एकदम सफेद रंग का यह तोता सचमुच एक कारीगर है। यह अपने पसंदीदा फलों को फोड़कर खाने के लिए तमाम किस्म के औज़ार भी बनाता है। और अब पता चला है कि यह अपने काम की योजना भी बनाता है और उस हिसाब से औज़ार साथ लेकर चलता है। इससे पहले मनुष्य के अलावा मात्र एक और जंतु में ऐसा व्यवहार देखा गया है - कॉन्गो घाटी में चिम्पैंज़ियों की एक आबादी में।
सफेद तोते में यह खोज विएना के पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने की है। उन्होंने इस सफेद तोते को उसके प्रिय भोजन काजू का ललचावा दिया। उन्होंने एक पारदर्शी डिब्बे में एक काजू (साबुत, छिलके सहित) एक प्लेटफॉर्म पर रख दिए। फिर एक पर्दा लगाकर उसे ओझल कर दिया। 10 तोतों को वह डिब्बा दिखाया गया और उन्हें दो में से एक औज़ार चुनने का विकल्प दिया गया - एक छोटी नुकीली छड़ और एक अपेक्षाकृत लंबी लचीली स्ट्रॉ।
15 बार किए गए परीक्षणों में अधिकांश पक्षियों ने दोनों औज़ारों का इस्तेमाल किया। उन्होंने नुकीली छड़ को अपनी चोंच में पकड़ा ओर डिब्बे में उपस्थित एक सुराख में से उसे अंदर डालकर पर्दे में छेद किया। लेकिन वह छड़ छोटी थी और काजू तक नहीं पहुंच सकती थी। तो पक्षियों ने उसे छोड़कर लंबी वाली स्ट्रॉ उठा ली जिसकी मदद से उन्होंने काजू को प्लेटफॉर्म से गिराकर उस ट्रे में लुढ़का दिया जहां से वे उसे पा सकते थे।
अब शोधकर्ता यह देखना चाहते थे कि क्या ये पक्षी समझते हैं कि उन्हें इस काम को अंजाम देने के लिए दोनों औज़ारों की ज़रूरत पड़ेगी। इसके लिए शोधकर्ताओं ने डिब्बे को एक सीढ़ी के ऊपर या एक उठे हुए प्लेटफॉर्म पर रख दिया। अब इस तक पहुंचने के लिए तोतों को वे औज़ार साथ लेकर जाना पड़ता - चाहे तो उड़कर या चाहे तो सीढ़ियां चढ़कर।
तोतों को अपना काम पूरा करने के लिए दो बार सीढ़ी चढ़ना नहीं रास आया। हालांकि कुछ ने ऐसा ही किया लेकिन कई पक्षियों ने अन्य युक्तियां खोज निकालीं। जैसे एक तोते ने जल्दी ही ताड़ लिया कि वह नुकीली छड़ को स्ट्रॉ के अंदर पिरोकर दोनों को एक साथ लेकर जा सकता है और डिब्बे पर पहुंचकर उन्हें वापिस अलग-अलग करके इस्तेमाल कर सकता है। करंट बायोलॉजी में प्रकाशित इस अध्ययन में बताया गया है कि अंतत: चार पक्षियों ने यह तरीका खोज निकाला। विभिन्न कारणों से अन्य पक्षी कामयाब नहीं रहे।
कुल मिलाकर इस अध्ययन का निष्कर्ष है कि ये पक्षी भावी कार्य की एक मानसिक छवि बना लेते हैं जिसके बारे में माना जाता था कि ऐसा करना उनके लिए असंभव है। (स्रोत फीचर्स)
-
Srote - May 2023
- रुद्राक्ष के चमत्कार: क्या कहता है विज्ञान?
- वनों की कटाई के दुष्प्रभाव
- एक इकोसिस्टम की बहाली के प्रयास
- बोरॉन ईंधन संलयन के आशाजनक परिणाम
- भारत की सूखती नदियां
- जलवायु परिवर्तन से आर्कटिक कलहंसों को मिला नया प्रजनन स्थल
- प्लास्टिकोसिस की जद में पक्षियों का जीवन
- किलर व्हेल पुत्रों की खातिर संतान पैदा करना टालती हैं
- व्हेल की त्वचा में उनकी यात्राओं का रिकॉर्ड
- दर्पण में कौन है?
- पारदर्शी मछली की इंद्रधनुषी छटा
- किसी अन्य सौर मंडल आया पहला मेहमान
- भ्रूण में जेनेटिक फेरबदल करने वाले वैज्ञानिक का वीज़ा रद्द
- पक्षी भी योजना बनाते हैं
- भौंरे भी नवाचारी होते हैं
- एक सुपरजीन में परिवर्तन के व्यापक असर होते हैं
- घुड़सवारी के प्रथम प्रमाण
- कृषि/पशुपालन में एंटीबायोटिक्स का उपयोग
- महामारियों को लेकर अंतर्राष्ट्रीय संधि
- रोगाणुओं के अध्ययन की उच्च-सुरक्षा प्रयोगशालाओं में वृद्धि
- नई मच्छरदानी दोहरी सुरक्षा देगी
- हूबहू जुड़वां के फिंगरप्रिंट अलग-अलग क्यों?
- सामान्य स्वीटनर प्रतिरक्षा प्रणाली में टांग अड़ाता है
- जियोइंजीनियरिंग अनुसंधान में नई पहल
- कृत्रिम बुद्धि बता देगी कि आपने क्या देखा था
- कैंसर की कीमत
- इमोजी कैसे बनती और मंज़ूर होती है
- बंदरों के आयात पर रोक
- रसोई गैस का विकल्प तलाशने की आवश्यकता
- रेल पटरियों के बीच बनेगी बिजली
- पृथ्वी पर कौन शासन करता है?