शिकार को फंसाने के लिए शिकारी ने जाल बिछाया . . . लेकिन ये किसी कहानी का वाक्य नहीं बल्कि हकीकत है जनाब। इस जाल को तो पहले भी कई बार देख चुके थे लेकिन शिकारी के बारे में सिवाय पढ़ने के अभी तक कुछ नहीं किया था। तो सोचा क्यूं न इस बार इन महोदय से मिल ही लिया जाए।
. . . और इनकी खोज में हमें जाना पड़ा ऐसी ज़मीन की तलाश में जो भुरभुरी हो, थोड़ी रेतीली हो और जहां इंसानों या मवेशियों कम आवाजाही कम हो।
अब चलिए रहस्य की घटा को हटा ही देते हैं . . . शिकारी है – चींटीखोर, कहीं इन्हें ऊंट, कहीं भंवरी तो कहीं चींटीशेर के नाम से भी पुकारा जाता है। और जैसा कि नाम से स्पष्ट है शिकार है चींटी। लेकिन शिकार करने के लिए ये इसके पीछे-पीछे नहीं भागते बल्कि जाल बिछाकर बड़े आराम से उसके फंसने का इंतज़ार करते हैं।
हो सकता है कि कहीं आपने भी ज़मीन में बने शंकुनुमा छोटे-छोटे गड्ढों को देखा हो। जिन्हें देखकर तुरंत यह लगता है कि किसी ने बड़े जतन से इन्हें बनाया है। कई बार तो दो-तीन फुट ज़मीन के दायरे में दस-बारह ऐसे गड्ढे देखने को मिल जाते हैं।
चींटीखोर के मुंह के पास दो डंकनुमा रचनाएं दिख रही हैं। इनसे यह शिकार भी पकड़ता है और गड्ढा भी खोदता है। हमने जैसे ही चींटीखोर को पकड़कर मिट्टी से भरे कांच के बर्तन में छोड़ा ये तुरंत मिट्टी के अंदर घुस गया। थोड़ी देर बाद लगा कि कोई मिट्टी हवा में फेंक रहा है। ध्यान से देखा तो पाया कि डंकनुमा बेलचे से मिट्टी फेंकने का काम ये महाशय कर रहे हैं। सिर्फ डंकनुमा हिस्सा थोड़ा-सा बाहर निकला हुआ दिखता है और बाकी पूरा शरीर मिट्टी में गुम। थोड़ी देर में ये गड्ढा शंकुनुमा, और गहरा हो जाता है, करीब एक से डेढ़ इंच।
जैसे ही कोई चींटी इस गड्ढे के किनारे पर पहुंचती है संतुलन खोकर नीचे की ओर फिसलने लगती है, क्योंकि दीवार की मिट्टी बहुत ढीली होती है। और चींटी उस पर अपनी पकड़ नहीं बना पाती।
और रही सही कसर नीचे मिट्टी में धंस कर बैठा चींटीखोर पूरी कर देता है। जैसे ही कोई छोटा जीव नीचे गिरता है ये उसे अपने डंकों के बीच फंसा लेता है। जब उसे पूरी तरह चूस लिया तो बेलचे की मददसे उसे ऊपर फेंक दिया।
दरअसल यह चींटीखोर एक उड़ने वाले कीट की लार्वा अवस्था है। जब ये वयस्क होगा तो उसके पंख आ जाएंगे और ये उड़ जाएगा। लेकिन तब तक तो इसे यूं ही फंदा बनाकर शिकार फंसाना है।
शिकारी का फंदा: 1. शेर चींटी 2. ज़मीन में उसके द्वारा बनाया गया शंकुनुमा गड्ढा, 3. गड्ढे के बाहर मंडराती चींटी।
यह चींटी खोर एक उड़ने वाले कीट का लार्वा है। इसके आगे जो डंकनुमा बेलचे जैसी रचना दिख रही है यह इससे मिट्टी खोदकर शंकुनुमा गड्ढा बनाता है। और नीचे मिट्टी में धंसकर बैठ जाता है। जैसे ही कोई चींटी इस गड्ढे में गिरती है वो ऊपर चढ़ने की कोशिश करती है। लेकिन इस शंकुनुमा गड्ढे की दीवारें इतनी ढीली होती हैं कि वो बार-बार खिसक-खिसक कर नीचे ही जाती है। रही-सही कसर चींटी खोर ऊपर चढ़ने की कोशिश में लगी चींटी पर मिट्टी फेंक-फेंक कर पूरी कर देता है। और जैसे ही चींटी नीचे गिरती है ये उसे अपने डंकों के बीच दबोच लेता है।