सवाल:
दूध में नींबू डालने से वह फटता क्‍यों है?

जवाब: एक छोटी-सी खबर से शुरू करें तो कैसा रहेगा? पिछले साल जब अखबारों में पढ़ा था कि दिल्‍ली के आसपास के गांवों में लोग यूरिया, तेल, डिटरजेंट वगैरह को पानी मे घेलकर दूध (सिंथेटिक मिल्‍क) बना रहे हैं तो ताज्‍जुब हुआ कि ऐसे भी दूध बनाया जा सकता है।

हमारी जानकारी में तो प्राकृतिक दूध एक बढि़या घेल होता है जिसमें ढेर सारे पानी में कुछ वसा, कुछ प्रोटीन (मुख्‍यत: कैसीन), कुछ लवण और कुछ  विटामिन घुले होते हैं। आमतौर पर दूध में 4-7 प्रतिशत वसा और 2-4 प्रतिशत प्रोटीन और अल्‍प मात्रा में दुग्‍ध शर्करा, लवण आदि होते हैं। शेष हिस्‍सा पानी होता है।

अब देखते हैं कि दुध इतना बढि़या घेल कैसे बन जाता है। जैसा कि हम जानते हैं कि वसा पानी में नहीं घुलता। यदि हम अपने दैनिक जीवन के अनुभवों को ही देखें तो पता चलता है कि तेल या घी को पानी में डालने पर तेल और पानी अलग-अलग रहते हैं। इस प्रकार प्रोटीन भी पानी में अघुलनशील है। लेकिन प्रोटीन कुछ शर्तों पर पानी में घुलने को तैयार हो जाता है। जैसे प्रोटीन हल्‍के क्षारीय माध्‍यम में घुलनशील है। दूध में लवणों का संतुलन ऐसा होता है कि दूध की प्रकृति हल्‍की क्षारीय होती है। अत: दूध में प्रोटीन घेले रहते हैं। फिर भी यह सवाल तो अभी भी वहीं है कि दूध में वसा किस तरह घुला रहता है? वास्‍तव में देखा जाए तो वसा दूध में घुली हुई अवस्‍था में नहीं, लगभग लटकी हुई अवस्‍था में होता है। और यह लटकना भी प्रोटीन के कारण ही संभव हुआ है। विज्ञान की भाषा में कहें तो वसा निलंबित (सस्‍पेंडेड) रहता है। दूध में प्रोटीन के अणु वसा की छोटी-छोटी बूंदों (ड्रपलेट्स) को घेर लेते हैं जिससे वसा एक बड़ा गोला नहीं बना पाता और छोटी-छोटी बूंदों के रूप में प्रोटीन के साथ दूध में बना रहता है।

यानी दूध एक जटिल किस्‍म का घोल है जिसमें पानी में घुले लवणों के कारण घोलक की प्रकृति क्षारीय बनी रहती है; इस क्षारीय घोल में प्रोटीन (कैसीन) आसानी से घुलने के लिए राज़ी हो जाता है। यह प्रोटीन वसा को इस घोल में लटकी हुई अवस्‍था में बांधकर रखता है। यदि किसी तरह से प्रोटीन को घोल से बाहर निकाल दिया जाए तो दूध नाम का यह घोल भी खत्‍म हो जाएगा। कैसीन के निकलते ही वसा भी घोल में अपनी लटकी हुई अवस्‍था से अलग हो जाएगा। और बच जाएगा पानी और कुछ लवण।

जब दूध में नींबू निचोड़ते हैं तो दूध की अम्‍लीयता बढ़ जाती है। अम्‍लीय माध्‍यम में प्रोटीन घोल में नहीं रह पाता। वसा की बूंदों को घेरता हुआ प्रोटीन जैसे ही घेल से अलग होता है तो वसा भी घोल से बाहर हो जाता है और दूध में खूब सारे थक्‍के बनने लगते हैं। इसे हम दूध का फटना कहते हैं।

वैसे प्रोटीन-वसा की यह जिगरी दोस्‍ती तोड़ने के और भी तरीके हैं। जैसे यांत्रिक क्रिया द्वारा सप्रेटा दूध बनाकर या, लवणों के असर से – फिटकरी को दूध में डालकर देखिए। यानी जिस किसी भी तरह से जिससे प्रोटीन को घुलनशील बनाया जा सके। ऐसे तरीकों में दूध में नींबू निचोड़ना भी शामिल है।

हो सकता है आप सोच रहे हों कि दूध में नींबू निचोड़ने पर तो ‘छेना’ बनता है लेकिन दूध में ‘जामन’ डालने से दही बनता है, तब दूध क्‍यों नहीं फटता? सोचिए यह कैसे होता होगा और संदर्भ के माध्‍यम से अन्‍य पाठकों को भी बताइए।