पुणे IUCAA के श्री अरविंद परांजपे ने मुझे संदर्भ की सदस्यता लेने का सुझाव दिया। खगोल शास्त्र में रुचि की वजह से मैंने उनसे संपर्क किया था। खगोल शास्त्र में मेरा अब तक जितना ज्ञान है वह मीर व प्रगति प्रकाशन की ही कुछ पुस्तकों के कारण है। मुझे यह कहते हुए बहुत ही अफसोस हो रहा है, और शायद आपने भी ऐसा महसूस किया होगा कि हमारे देश में इस प्रकार की पुस्तकों का बहुत ही अभाव है। वैज्ञानिकों और विद्वानों को चाहिए कि वे जिस विषय से संबंधित हों उस विषय की पुस्तकें लिखते रहें। यही कारण है की 'शैक्षिक संदर्भ देखकर मुझे जो खुशी हुई वह पहले किसी अन्य विज्ञान पत्रिका को देखकर नहीं हुई थी। मैं उम्मीद करता हूं कि 'संदर्भ' का पूरे देश में प्रचार प्रसार हो पाएगा।
संदर्भ के 31वें अंक के मुखपृष्ठ ने तो मन ही मोह लिया। इस मुखपृष्ठ से संबंधित पूर्णिमा भार्गव का लेख पढ़ कर महसूस हुआ कि प्रकृति को जितना समझने की कोशिश करो वह उतनी ही ज्यादा रहस्यमयी लगने लगती है। सभी लेख बहुत अच्छे थे।
कमलेश जी का लेख 'बच्चे और उनके खिलौने' पढ़कर अपने बचपन के दिन बरबस याद आ गए जब हम भी ये सब किया करते थे।
अंक 31 में प्रदीप गोठोस्कर का लेख 'सावन का महीना और इंद्रधनुष' पढ़ा। इसे पढ़ने के बाद मुझे इंद्रधनुष बनाने का एक और तरीका याद आ गया। इस तरीके से इंद्रधनुष बनाने के लिए सावन के महीने का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। बस, करना यह है कि किसी धूप वाले दिन सूरज की ओर पीठ करके खड़े हो जाइए और फिर एक स्प्रेयर में पानी भरकर अपने सामने की ओर बौछार कीजिए। आपको गिरती बूंदों में इंद्रधनुष की छटा दिखेगी। इसी तरह जलप्रपातों के पास या झरनों के पास भी इस किस्म का इंद्रधनुष दिखाई दे जाता है।
एक और बात जिस पर मैंने गौर किया है कि बारिश की रातों में अक्सर चांद के चारों ओर एक रंगीन पट्टी दिखाई देती है, जो इंद्रधनुष की तरह लगती है। मैंने चांद के आकार (लगभग आधा डिग्री) से यह अनुमान लगाया कि यह रंगीन पट्टी हमारी आंखों पर 8 डिग्री का कोण बनाती है। मैं लेखक से यह जानना चाहता हूं कि यह रंगीन पट्टी क्या है?
आसिफ अली खान
फतेहपुर, उ. प्र.

किसी आगामी अंक में आपके सवाल का जवाब देने की कोशिश करेंगे।
- संपादक

संदर्भ के अंक 33 में प्रकाशित लेख 'त्रिज्या का परिधि से संबंध' बहुत रुचि के साथ पढ़ा। पाई के विषय में इससे काफी विस्तृत जानकारी मिली, साथ ही मिस्र और ग्रीस में पाई का मान निकालने का रोचक इतिहास पता चला।
 
कुछ जिज्ञासाएं रह गईं हैं....
अंक 31 में प्रकाशित लेख में इंद्रधनुष के बारे में पढ़ा। बहुत अच्छी जानकारियां प्राप्त हुई। द्वितीयक इंद्रधनुष के बारे में पढ़कर प्रसन्नता हुई व उसे देखने की इच्छा बढ़ गई, पर कुछ जिज्ञासाएं रह गई हैं। इन सवालों को लेखक तक पहुंचाने की कृपा करें। चूंकि लेखक दूसरी भाषा के हैं अतः उन्हें सीधे पत्र लिखने में परेशानी है।
मेरा पहला सवाल यह है कि इंद्रधनुष अर्धवृत्ताकार ही क्यों दिखता है? दूसरे शब्दों में इंद्रधनुष ही क्यों, इंद्र-तलवार या इंद्र-भाला क्यों नहीं बनता? मैंने यह प्रश्न बहुतों से पूछा लेकिन कोई खास उत्तर नहीं मिल पाया। किसी ने कहा कि पृथ्वी गोल है, वायुमंडल गोल है, अतः इंद्रधनुष हमें वृत्ताकार दिखता है; लेकिन पृथ्वी के बड़े होने के कारण यह आधा दिखता है। परंतु मैंने देखा कि यदि किसी गोल बर्तन (जैसे बल्ब) में पानी भरकर इंद्रधनुष बनाएं तब भी अर्ध वृत्ताकार होता है। अतः उपरोक्त मान्यताएं सही नहीं हैं।
इंद्रधनुष के अर्घवृत्ताकार होने के बारे में मुझे ऐसा लगा कि शायद मामला तरंग दैर्ध्य से जुड़ा है। यानी जिस रंग का तरंग दैर्घ्य अधिक होगा वह कम फैलेगी व जिस रंग का तरंग दैर्ध्य कम होगा वह अधिक फैलेगी। इसी कारण रंगों का फैलाव अलग-अलग होता है - जैसे बैंगनी का कम व लाल का ज्यादा, अतः बैंगनी रंग नीचे व लाल ऊपर होता है। मुझे लगता है कि शायद इसी कारण इंद्रधनुष अर्घवृत्ताकार होता है।
परंतु यह उत्तर भी द्वितीयक इंद्रधनुष की व्याख्या करते समय गलत सिद्ध होता है क्योंकि द्वितीयक इंद्रधनुष में बैंगनी रंग ऊपर व लाल नीचे होता है। लेखक महोदय कृपया इसका जबाब खोजकर प्रकाशित करवाएं।
यह पत्रिका वाकई लाजवाब है। मैं अपने स्थानीय स्कूल की लाइब्रेरी में इसे पढ़ता हूँ।
आशीष शर्मा
अकलतारा, बिलासपुर

संदर्भ के अंक 16 में इंद्रधनुष के आकार के बारे में चर्चा की गई है। आपके सवाल भी लेखक तक पहुंचा दिए गए हैं। जवाब मिलते ही उन्हें प्रकाशित करेंगे।
- संपादक
 
आपसे अनुरोध है कि यदि संभव हो सके तो इस प्रकार के लेखों में प्रयोग किए गए महत्वपूर्ण तकनीकी शब्दों का अंग्रेजी अनुवाद भी साथ-साथ दिया कीजिए। इससे उन पाठकों को बहुत सुविधा होगी जो हिन्दी तो जानते हैं। परंतु गणित अथवा विज्ञान की तकनीकी शब्दावली से मुख्यतः अंग्रेजी में ही परिचित हैं।
अमर फारुकी
रीडर, इतिहास विभाग,
हंसराज कॉलेज, नई दिल्ली
अंक 33 का मुखपृष्ठ देखकर ही लगा ज़रूर इस अंक में कुछ अत्यधिक रोचक सामग्री है। ‘परिधि का त्रिज्या से संबंध' तथा 'सांप की चाल' लेख इतने रोचक लगे कि अब तक पांच-पांच बार पढ़ चुका हूं परंतु फिर भी पढ़ने का मन कर रहा है।
अरविंद कुरील
मुंबई
अंक 34 पड़ा। प्रत्येक लेख न केवल सूचनापरक था बल्कि रोचक भी था। 'कांटों का घरौंदा' बहुत पसंद आया। लेख के अंत में और जानकारी के लिए आह्वान किया गया था। मैंने नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किताब 'कीट' (लेखक एस. एस. मणि। हिन्दी अनुवाद नरेद्र सिंह चौहान) में कुछ जानकारी पढ़ी जो इस प्रकार है:
“साइकिड शलभ (क्लेनिया कैमेराई)
की इल्ली कांटों और तिनकों का खोल अपनी सुरक्षा के लिए चारों तरफ बुनती है। इल्ली इस खोल के भीतर रहती हैं। और जहां भी जाती है इसे साथ ले। जाती है। इल्ली अपना सिर केवल भोजन करते समय ही बाहर निकालती है।"
एक बात संदर्भ से और कहनी है कि संदर्भ के लेखों के अंत में लेखकों का पूरा नाम और पता देना चाहिए। कई बार सीधा संवाद ज्यादा द्रुत व लाभकारी होता है।
बजरंगलाल जेठू
मुकामः जेवास, पोस्ट दांतरू
लक्ष्मणगढ़, सीकर, राजस्थान
संदर्भ एक बहुत ही रोचक, ज्ञानवर्धक एवं सभी आयुवर्ग के व्यक्तियों के लिए सर्वोत्तम प्रकाशन है। यह रीडर डाइजेस्ट के समान ही अमूल्य पत्रिका है।
ओमप्रकाश मिश्रा
73, रबिन्द्र नगर
ओल्ड पलासिया, इंदौर, म, प्र,
कृपया वैदिक गणित के बारे में बताएँ। वैदिक गणित क्या है? यह सामान्य विद्यार्थियों और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिए किस तरह उपयोगी हो सकता है।
सुभाष
घोरघाटी, बिहार
अंक 34 मिला। इसका कवर काफी आकर्षक लगा। एक छोटी-सी गलती की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूंगा।
 
आपने मेरा खत 'आपने लिखा' में शामिल किया लेकिन गलती से मेरे पते में शुजालपुर की जगह शाजापुर लिखा था।
अजय नेमा
शुजालपुर, म. प्र.
वैसे पहली बार इस पत्रिका से रुबरु होने का मौका मिला जब अगस्त-सितंबर 2000 का अंक हाथ लगा। लेकिन अफसोस कि यह पत्रिका यहां के बुक स्टॉल पर नहीं मिलती। इस पत्रिका को लेकर मेरे कुछ सुझाव हैं: आप पत्रिका का आकार बड़ा कर दें और भीतर रंगीन चित्र दिया कीजिए। इससे यह पत्रिका जिज्ञासु पाठकों की पहली पसंद होगी।
शंकर प्रसाद तिवारी
रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड
मैं कक्षा बारहवीं का छात्र हूं। संदर्भ का पुराना पाठक हूं। संदर्भ का 34 वां अंक मिला। हमेशा की तरह इस बार भी रोचक लेख थे। ‘सुरज पर धब्बे....', 'वे दौड़ते-दौड़ते उड़ने लगे?' ज्ञानवर्धक लगे।
‘सूरज पर धब्बे' लेख में पेज 13 पर रह गई एक गलती की ओर आपका ध्यान खींचना चाहूंगा। पेज 13, दिए गए चित्र के साथ सूरज के केन्द्र का तापमान 15 लाख डिग्री केल्विन लिखा है। केल्विन ताप की आदर्श परिस्थितियों में आंकी गई इकाई है अतः इसके साथ डिग्री नहीं लिखा जाता। इसलिए यह कहना उचित होगा कि सूरज के केन्द्र का तापमान 15 लाख केल्विन है।
'80 दिनों में दुनिया की सैर' काफी रोमांचकारी रही।
मैंने इस पत्रिका को स्कूल के कई अध्यापकों को दिखाया। हर जगह तारीफ ही मिली। लेकिन ज्यादातर अध्यापकों को यही शिकायत थी कि इस पत्रिका का अंग्रेजी संस्करण क्यों नहीं प्रकाशित होता। मैं चाहता हूं कि यह पत्रिका विज्ञान को गौरव बने अतः आशा करता हूं कि आप इस पत्रिका को लोकप्रिय बनाने के लिए इसके अंग्रेजी संस्करण के बारे में भी विचार करेंगे।
अगले अंक का इंतज़ार रहेगा।
कौस्तुभ सिंह जादौन
नीमच माता स्कीम, उदयपुर
राजस्थान
अब संदर्भ बिना इंतजार करवाए मिल रही है। कांटों का घरौंदा' बढ़िया लेख लगा। इसने मेरी कांटों के कीड़े के बारे में जिज्ञासा शांत की।
गणित की पाठ्य पुस्तक में ‘पाई' के बारे में पढ़ा तो तुरंत संदर्भ निकाल कर पाई वाला लेख पढ़ा और ‘पाई' को लेकर अपनी उत्सुकता को शांत किया।
सोमिल दुबे, कक्षा -8
सरबाइट कॉन्वेंट स्कूल, होशंगाबाद
मैं संदर्भ के मार्फत यह बताना चाहता हूं कि एन. सी. ई. आर. टी. द्वारा आयोजित विद्यालय शिक्षा में नवाचार पर अखिल भारतीय प्रतियोगिता में मेरे आलेख 'बहुस्तरीय शिक्षण
 
परिस्थितियों से उपजा एक प्रयोग' को पुरस्कृत किया गया। यह पुरस्कार मुझे गत मार्च 2000 को प्राप्त हुआ।
यह आलेख संदर्भ के अंक 22-23 (संयुक्तांक) मार्च-जून 1998 में प्रकाशित हुआ था।
मुकेश मालवीय
पावर झंडा, जिला बैतूल, म.प्र.
हम लोग क्षेत्रीय स्तर पर गुंजार छत्तीसगढ़ मासिक बुलेटिन - शैक्षिक, साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, कृषि एवं स्वास्थ्य विषयों पर - जनवरी 2000 से प्रकाशित कर रहे हैं।
आपकी पत्रिका में से कुछ-न-कुछ सामग्री का इस्तेमाल हम कर रहे हैं। संदर्भ के अगस्त-सितंबर 2000 अंक में प्रकाशित लेख 'बच्चे और जंग' लेखिका शुभदा जोशी, पसंद आया। यहां पर उसका नाट्य रुपांतरण करके उसका मंचन कर रहे हैं।
हितेश हंस दीवान
पोस्ट नर्रा (बाग बहरा)
जिला महासमुद, छत्तीसगढ़

सवालीराम से पूछे हैं सवाल
1. हम कहते हैं कि वायुमंडलीय गैसें निरतंर बनती रहती हैं। ओजोन जो हमारे वायुमंडल में है वो भी लगातार बनती होगी। फिर ओजोन परत में छेद कैसे । बना? ओजोन की परत तो बनी रहनी चाहिए?
2. चांद क्या है, किसका बना है?
3. भूकंप क्या है?
4. नाखून क्या हैं, कैसे बनते हैं?
5. सेल में क्या है जिससे बल्ब जलता है?
इन सवालों को बलदेव जुमनानी, होशंगाबाद, सिपिका बर्मा, कक्षा नवमी, इटारसी, ब्रजेश साहू एवं अन्य साथी, कक्षा सातवीं, पचमड़ी, ने पूछा है।
यदि आपके पास इन सवालों में से किसी सवाल का जवाब हो तो कृपया हमें लिया भेजिए। इन्हें संदर्भ के आगामी अंकों में प्रकाशित किया जाएगा। - संपादक मंडल