के. आर. शर्मा
सितंबर महीने की दोपहरी का समय है। मैं अपने घर में बैठा हूं, तभी देखता हूं कि एक कत्थई पीले रंग का पंखदार कीट बार-बार गुनगुन करता हुआ घर में घुसता है। और लौट जाता है। अगली बार मैं उसको ध्यान से देखता हूं तो पता चलता है कि उसने अपनी टांगों में कोई हरी चीज़ पकड़ी हुई है। उस हरे रंग की लंबी-सी चीज़ को उसने कमरे में रखी मूर्ति पर मिट्टी के घरौंदे में घुसा दिया और फिर रवाना हो गया।
मेरी रुचि जागृत होती है कि आखिर मामला क्या है? अगली बार वह जब फिर घर के भीतर आया तो मैंने उसे पकड़ लिया। पता चला कि उसने अपनी टांगों में एक इल्ली को पकड़ रखा है। यानी उस मिट्टी के घरौंदे में वह इल्लियों को दफन कर रहा है। इससे मामला काफी दिलचस्प मोड़ ले लेता है।
पंखदार कीट को देखकर पता चल गया कि यह एक ततैया (Wasp) है। ततैया, चींटी, मधुमक्खी एक ही समूह (हायमेनोप्टेरा) के कीट हैं। हमारे आसपास बहुतायत में पाई जाने वाली बर्र (पेपरवास्प) सामाजिक जीवन व्यतीत करने का एक उदाहरण है।
जिस ततैया की हम बात कर रहे हैं वह मिट्टी का घरौंदा बनाती है। सबसे पहले मादा ततैया गीली मिट्टी की गोलियां बनाती है और मुंह तथा टांगों की मदद से नियत स्थान पर लाकर उनसे मटके के समान घरौंदा तैयार करती है। चूंकि मटके की आकृति से मिलता-जुलता घरौंदा बनाती है। इसी कारण इसका अंग्रेज़ी में नाम पड़ा 'पॉटर वास्प' यानी मटका बनाने बाली ततैया।
आगे बढ़ने के पहले संदर्भ के अंक 24-25 में सिकोड़ा किलर के बारे में प्रकाशित जानकारी की चर्चा करना मौजूं होगा कि किस प्रकार एक किस्म की ततैया सिकाड़ा को मारकर उसमें अंडे देती है। एक अन्य ततैया होती है जो अपने से ताकतवर मकड़ी को घायल करके ज़मीन में दफना देती है तथा उसके शरीर में अंडे देती है।
पॉटर बास्प अपने संतान की परवरिश के लिए मिट्टी का घरौंदा बनाती है तथा उसमें इल्लियों को दफन करके रखती है। इसी घरौंदे में मादा ततैया अंडा देती है जिसमें से निकला बच्चा इन इल्लियों को अपना आहार बनाकर विकसित होता है।
पॉटर वास्प सामाजिक जीवन नहीं जीती, बल्कि एकांतवासी (Solitory) होती है। यह बर्फ से आकार में बड़ी होती है। सबसे पहले मादा ततैया गीली मिट्टी का स्रोत ढूंढती है और किसी सुरक्षित स्थान पर घरौंदा बनाने की शुरुआत करती है। बार-बार गीली मिट्टी के स्रोत तक जाना, मिट्टी लाना और घरौंदा बनाना काफी थका देने वाला काम है। घरौंदे को मजबूत बनाने के लिए वह अपने मुंह से कुछ तरल पदार्थ मिलाती है। एक घरौंदे में एक से लेकर तीन या चार कक्ष होते। हैं। प्रत्येक कक्ष स्वतंत्र होता है। अब अगला चुनौती भरा काम होता है।
भोजन की व्यवस्था: मादा ततैया अपने तैयार किए घरौंदे में अंडे देने के बाद अपनी संतान के लिए खाने की भरपूर व्यवस्था करके रखती है। यहां मादा एक बड़ी-सी इल्ली को बेहोश करके घरौंदे में रख रही है।
ततैया के घरौंदे; आमतौर पर इस ततैया के घरौंदे घर में या पेड़-पौधों की डालियों पर देखे जा सकते हैं। आपने भी खिड़की-दरवाज़ों की चौखट पर या काफी दिनों से एक ही जगह पड़े सामान पर इस किस्म के मिट्टी के घरौंदे देखे होंगे। यहां चित्र में एक मूर्ति पर बनाया गया घरौंदा दिख रहा है। इसमें एक इल्ली भी रखी हुई है।
दाहिनी ओर के चित्र में ततैया के घरौंदे के दो-तीन कक्ष दिखाई दे रहे हैं। इनमें से एक कक्ष में दो इल्लियां रखी हुई हैं। इनमें से मोटी इल्ली ततैया की है जो ज्यादा चल-फिर नहीं पाती और पतली इल्ली भोजन के लिए है।
खाने का लुत्फ : मोटी वाली ततैया की इल्ली अपने भोजन के लिए परोसी इल्ली का रस चूस रही है।
इल्लियों को ढूंढकर लाना। ततैया और इल्ली का वजन लगभग बराबर होता है यानी कि ततैया अपनी बराबरी का वज़न लादकर लाती है।
यह देखा गया है कि वह एक कक्ष में 6-8 इल्लियां दफन करती है। अर्थात अपनी एक संतान के भोजन के लिए इतनी इल्लियों की व्यवस्था करनी पड़ती है। जब मादा ततैया को यह यकीन हो जाए कि उसकी संतान के लिए आहार की व्यवस्था हो गई तो फिर वह उस कक्ष में एक अंडा देती है और फिर कक्ष को मिट्टी से बंद कर देती है।
हम देखते हैं कि तितली और पतिंगे की इल्लियां काफी सक्रिय होती हैं। इनकी परवरिश माता-पिता नहीं करते। तितली किसी पेड़-पौधे पर अंडे दे देती है और फिर उनकी तरफ मुड़कर भी नहीं देखती। अंडों से इल्लियां निकलती हैं जो स्वतंत्र रूप से जीवन जीती हैं। लेकिन ततैया की अनेक प्रजातियां ऐसी हैं जो अन्य जंतुओं को पकड़कर तथा उनको बेहोश करके उनके शरीर में अंडे देती हैं। इन अंडों से निकलने वाली इल्ली, जो बिना टांगों वाली होती है, उस कड़ी इल्ली को खाती है।
पॉटर वास्प बरसात के दिनों में प्रजनन करती है जब खूब सारी इल्लियां पौधों पर मौजूद रहती हैं और घरौंदा बनाने के लिए गीली मिट्टी भी मिल जाती है।
पॉटर वास्प के अंडों से निकली इल्ली एक-एक करके इल्ली को अपना आहार बनाती जाती है। यह देखा गया है कि ततैया की इल्ली अपने आहार यानी दूसरी इल्ली को पूरा नहीं खाती बल्कि उसके अंदर का रसीला पदार्थ चूसती है और अंत में बचा रहता है खोल। यह भी देखा गया है कि यह वास्प एक खास किस्म की इल्लियों को ही पकड़कर घरौंदे में दफन करती है।
है न दिलचस्प मामला कि जो वयस्क ततैया फूलों का रस चूसकर अपना पोषण करती है वही अपनी संतान की परवरिश के लिए इल्लियों को बेहोश करके उनके भोजन की व्यवस्था करती है।
के. आर. शर्माः एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम से जुड़े हैं। उज्जैन में रहते है।