नीलम भोंड

सामाजिक अध्ययन की पढ़ाई को विद्यार्थी बोरियत भरा मानते हैं। लेकिन यदि शिक्षक इस विषय को थोड़ा लीक से हटकर पढ़ाएं तो ज़रूर बोरियत खत्म हो सकती है।

होशंगाबाद के नवोदय न विद्यालय में पढ़ती थी। नवोदय विद्यालय की अपनी एक परम्परा है कि वहां पढ़ने वाले। विद्यार्थियों को दो साल किसी दूसरे राज्य में जाकर पढ़ना होता है। हमें नवोदय विद्यालय कुकनूर (जिला रायचूर) कर्नाटक में जाकर पढ़ना था। इस परम्परा के तहत हम 9वीं कक्षा से ही कुकनुर आ गए थे। नई जगह, नए माहौल में एक साल किस तरह गुज़र गया पता ही न  चला। फिर आ गई 10वीं की बोर्ड परीक्षा बोर्ड परीक्षा होने के कारण मैंने पहले से ही पढ़ाई पर विशेष ध्यान देना शुरू कर दिया था। खासकर गणित और विज्ञान पर क्योंकि शिक्षकों/विद्यार्थियों की यह धारणा होती है कि गणित और विज्ञान अन्य विषयों की अपेक्षा कुछ कठिन होते हैं। अन्य विषयों में अंग्रेजी और हिन्दी तो छात्रों को सरल ही लगते हैं और इन विषयों में कुछ विशेष तैयारी की जरूरत भी नहीं होती। बचता है सामाजिक अध्ययन, जो छात्रों को अक्सर बोरियत भरा लगता है और इसमें तीन विषय भी पढ़ने पड़ते हैं - इतिहास, भूगोल तथा नागरिक शास्त्र। सामाजिक अध्ययन को लेकर विद्यार्थियों में अक्सर अरुचि ही रहती है। हमें भी लगता था कि पता नहीं तीनों विषयों की एक साथ तैयारी कैसे करेंगे? इतना समय कैसे निकालेंगे? मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। हमारी सारी चिंताएं फिजूल थीं। हमारे सामाजिक अध्ययन के अध्यापक दत्तात्रेय जी बिल्कुल अलग थे। उनकी पढ़ाने की शैली भी कुछ हटकर थी, जो छात्रों को बहुत भाती थी। कक्षा में उनका पहला पीरियड था क्योंकि वे हमारे कक्षा शिक्षक भी थे। वैसे तो, वे थोड़े। सख्त मिजाज़ के व्यक्ति थे मगर छात्रों से काफी सहृदयता से पेश आते थे। उन्होंने हमें पहले ही बता दिया था कि कक्षा के अलावा हमें रोज शाम दो घंटे के लिए विद्यालय आना होगा और सामाजिक अध्ययन पढ़ना होगा। चूंकि हमारा विद्यालय आवासीय विद्यालय था इसलिए दो घंटे अतिरिक्त आकर पढ़ना हमारे लिए मुश्किल नहीं था। हमारे विद्यालय में सामाजिक अध्ययन के लिए संग्रहालय भी था। इसमें विभिन्न मॉडल, चित्र, मानचित्र और विषय से संबंधित सामग्री में जानकारी रहती थी। संग्रहालय में ग्लोब, ज्वालामुखी, ग्रामीण जन-जीवन आदि के मॉडल मौजूद थे।

इनमें से कुछ मॉडल तो छात्रों द्वारा ही तैयार किए जाते थे। कभी-कभी हमारी कक्षा संग्रहालय में भी । लगती थी। वहां हमें अध्यापक चित्रों एवं मानचित्रों की सहायता से पढ़ाया करते थे।
कक्षा को हमारे अध्यापक ने विभिन्न समूहों में विभाजित किया था। प्रत्येक समूह में पांच विद्यार्थी होते थे। पांच विद्यार्थियों में से एक विद्यार्थी होशियार होता था, दो। विद्यार्थी औसत और दो विद्यार्थी कुछ कमज़ोर होते थे। जब हम शाम को 6 बजे वापस विद्यालय जाते थे, तब हम अपने समूहों में बैठते थे। फिर हमारे अध्यापक हमें इतिहास, भूगोल या नागरिकता से संबंधित प्रश्न दिया करते थे, जिनके जवाब किताब से ढूंढकर समूहवार आपस में चर्चा करनी होती थी। जो छात्र पढ़ने में कमज़ोर होते थे उन्हें वे जवाब लिखकर अध्यापक को देने होते थे, जिसमें समूह के अन्य लोग भी मदद किया करते थे। ये तरीका छात्रों को आकर्षित भी करता था और मजेदार भी लगता था।

इतिहास कुछ ऐसा
इतिहास में भारतीय सांस्कृतिक धरोहर' एक अध्याय था जिसमें विभिन्न राजाओं द्वारा बनवाए गए मंदिरों एवं वास्तुकला के बारे में जानकारी थी। अगर हमारे अध्यापक कक्षा में उस अध्याय को पढ़ते और हम सुनते ही रहते तो ज़रूर बोर हो जाते। लेकिन हमारे अध्यापक ने इस अध्याय को एक अलग तरीके से पढ़ाया। विद्यालय के संग्रहालय में एक प्रोजेक्टर मौजूद था और विभिन्न स्लाइड्स भी थीं। ये स्लाइड्स राजाओं द्वारा निर्मित भवनों, महलों और मंदिरों तथा विभिन्न वास्तुकला के नमूनों से संबंधित थीं। हमारे अध्यापक हमें इन स्लाइड्स को प्रोजेक्टर द्वारा दिखाते और फिर इनके बारे में बताते थे। इस तरह से विभिन्न वास्तुकला के नमूनों को प्रोजेक्टर की सहायता से समझना और उनकी विशेषताओं को विस्तारपूर्वक अध्यापक द्वारा समझाना, ये बात सभी विद्यार्थियों को आकर्षित करती थी।
अब इतिहास जैसा बोर विषय विद्यार्थियों को रुचिपूर्ण लगता हैं। मनोरंजक भी। हमारे अध्यापक हमें मैसूर, श्रीरंगपट्टन तथा हम्पी लेकर गए जहां पुराने महल एवं मंदिर हैं। इससे हमें वास्तुकला को प्रत्यक्ष देखने का अवसर मिला। जब हम संग्रहालय में स्लाइड्स द्वारा मंदिरों, महलों आदि को देखते तब अध्यापक हमें उन्हें पहचानने के लिए भी कहते। इससे विद्यार्थियों की उत्सुकता और बढ़ जाती।

भूगोल की पढ़ाई    
भूगोल में विभिन्न बांध, अभ्यारण्य आदि से संबंधित एक अध्याय था। हमारे अध्यापक के पास इन विषयों से संबंधित ऑडियो केसेट्स थे। अध्यापक ने हमें इस विषय से संबंधित जानकारी कक्षा में पहले ही दे दी, बाद में । संग्रहालय में शांतिपूर्वक बैठकर इन ऑडियो टेप को सुनकर, महत्वपूर्ण जानकारियों को अपनी कॉपियों में लिखने के लिए कहा। इस तरह यह विषय भी काफी रोचक बन गया। और हमें ऐसी जानकारी मिली जो पाठ्यपुस्तक में मौजूद नहीं थी। इसके बाद अध्यापक ने हमें अभ्यारण्य से संबंधित कुछ स्लाइड्स भी दिखाई।
भूगोल-इतिहास में मानचित्र से संबंधित प्रश्न पूछे जाते थे। ये । हमेशा संभव नहीं हो पाता था कि पुरा मानचित्र ब्लैक-बोर्ड पर बनाया जाए। हमारे अध्यापक हमें मानचित्र भी प्रोजेक्टर की सहायता से ही पढ़ाया करते थे। इससे छात्रों को समझने में आसानी होती थी। इस तरह भूगोल में भी अच्छे से तैयारी हो जाती। बाकी बचे अध्याय हम लोग सामूहिक चर्चा द्वारा तैयार किया करते थे।

चुनाव आयोग, पार्टी, मतदान
नागरिकता में विभिन्न अध्याय थे जिनमें निर्वाचन, न्यायपालिका, विधानसभा एवं लोकसभा आदि प्रमुख थे। ये सभी अध्याय हमें अध्यापक द्वारा प्रयोगात्मक तरीके से पढ़ाए गए। हमारे अध्यापक का ये प्रयोगात्मक तरीका काफी कारगर साबित हुआ। जैसे निर्वाचन अध्याय को पढ़ाने के लिए अध्यापक ने हमारी कक्षा में निर्वाचन कराया। सबसे पहले कक्षा के ही छात्रों में से पार्टियों का गठन किया गया, जिनमें से दो पार्टियां लड़कों की थीं और दो लड़कियों की। चारों पार्टियों के पार्टी अध्यक्ष बनाए गए व उनके नाम तथा चुनाव चिन्ह भी निर्धारित किए गए। कक्षा के अन्य छात्र किसी भी पार्टी को मत देने के लिए मुक्त थे। किसी को कोई बंधन नहीं था कि कौन-सी पार्टी के सदस्य बनो। इस प्रक्रिया के दौरान सभी छात्र उपस्थित थे, सभी में उत्साह था। चुनाव के लिए खड़े प्रत्याशियों के लिए पोशाक निर्धारित की गई, लड़कियों के लिए साड़ी एवं लड़कों के लिए धोती एवं कुर्ता (सामान्यतः हमारे यहां नेता लोग यही पोशाक पहनते हैं)। तत्पश्चात निर्वाचन की तारीख निश्चित की गई। चुना आयोग का भी गठन किया, जिसमें अन्य कक्षाओं के विद्यार्थियों को भी लिया गया।
अध्यापक ने कक्षा में पहले ही निर्वाचन प्रक्रिया से संबंधित सारी जानकारी एवं आवश्यक बातें लिखवा दी थीं। फिर जोर-शोर से प्रचार कार्य आरंभ हुआ। हमारे विद्यालय में कम्प्यूटर भी मौजूद थे, इसलिए कम्प्यूटर से बैनर, प्रचारपत्र एवं मतपत्र बनाए गए। चुनाव प्रक्रिया को विद्यालय के सभागृह में आयोजित किया गया था जिसे देखने के लिए विद्यालय के प्राचार्य, शिक्षक एवं अन्य कक्षाओं के सभी विद्यार्थियों को आमंत्रित किया गया था। प्रचार की समय सीमा समाप्त होने से पूर्व सभी पार्टियों की रैली निकाली गई। तत्पश्चात पार्टी अध्यक्ष ने अपने अपने भाषण दिए व लोगों को अपना एजेंडा सुनाया। फिर आरंभ हुआ चुनाब का कार्य।

गुप्त मतदान के लिए एक अलग जगह बनाई गई थी जहां मतपेटी रखी हुई थी। मतपत्रों पर उम्मीद्वारों के नाम एवं चुनाव चिन्ह अंकित थे। एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि केवल दसवीं कक्षा के छात्र ही । मतदान करने के पात्र थे। सभी मतदाता कतार में खड़े थे। वहां पर एक पीठासीन अधिकारी को बैठाया गया था जिसके पास मतदाताओं के नाम की सूची थी। प्रत्येक मतदाता बारी-बारी से अपना-अपना मत दे रहा था। पूरी प्रक्रिया शांतिपूर्वक हो रही थी। साथ में सभी विद्यार्थी इस प्रक्रिया को भी समझ रहे थे। इस तरह मतदान पूर्ण हुआ। मतपेटी को संपूर्ण सुरक्षा के साथ सुरक्षित स्थान तक ले जाया गया। ऐसा केवल सुरक्षा को समझाने के लिए। किया गया था। फिर मतों की गणना की गई और परिणाम घोषित किए गए। विजयी उम्मीद्वारों को सभी ने बधाई दी और इस तरह चुनाव संपन्न हुआ।
इसी तरह हमारे अध्यापक ने झूठ-मूठ की लोकसभा का भी गठन किया जिसमें कक्षा के विद्यार्थियों को सांसद बनाया गया और दो। पक्ष बनाए गए। एक पक्ष सरकार का जिसमें विद्यार्थियों को अलग-अलग मंत्री पद सौंपे गए व दूसरा था विपक्ष। एक लोकसभा अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया।
हमें एक विषय दिया गया जिस पर सभी सदस्यों ने बहस की। इस तरह से विभिन्न कार्यकलापों द्वारा सामाजिक अध्ययन की तैयारी हुई। रोज़ शाम को तीनों विषयों से संबंधित प्रश्नों पर सामूहिक चर्चा से हर विषय की अच्छी तैयारी हो रही थी। ये तरीका हम सभी विद्यार्थियों के लिए नया था मगर सभी को बहुत पसंद आया। सामाजिक अध्ययन जैसा बोर विषय अब रोचक ब मनोरंजक लगने लगा था। साथ में सभी विद्यार्थियों की परीक्षा की अच्छी तैयारी हो गई थी, ब परीक्षा से संबंधित परेशानियां दूर हो गई थी।
हमारे अध्यापक द्वारा अपनाई गई अध्यापन की शैली सचमुच अलग थी, जो छात्रों को अधिक भाती थी। अगर सभी विद्यालयों में अध्यापन की ऐसी ही शैली अपनाई जाए तो विद्यार्थी सामाजिक अध्ययन जैसे विषय को भी उत्साह से पड़ेंगे। अध्यापन का प्रयोगात्मक तरीका शायद ज्यादा सार्थक व कारगर साबित होगा।


नीलम भों: नर्मदा महाविद्यालय, होशंगाबाद में बी. एस सी. (कम्प्यूटर्स) की पढ़ाई कर रही है।

ज़रा सिर खुजलाइए 

इस बार का सवाल : 

आनरेजी के अक्षर E की तरह दिखने वाली इस आकृति को एक कागज़ पर उतार कर किनारों से काट लीजिये। अब इसे चार सीधे कट लगा कर 7 ऐसे टुकड़े करें की उन सबको जोड़ कर आप एक वर्ग बना सके। आपने किस तरह के टुकड़े काटे? अपने जबाब मे हमे लिख भेजिए।