वर्ष 2005 में एक बौना ग्रह खोजा गया था। यह हमारे सौर मंडल में प्लूटो से भी दूर है। इसका नाम रखा गया था मेकमेक। यह एक बर्फीला पिंड है जिसका व्यास 1400 किलोमीटर है। अब इसका एक साथी भी खोज लिया गया है। मेकमेक के इस चंद्रमा को एमके-2 नाम दिया गया है।
एमके-2 की पहली तस्वीरें हबल अंतरिक्ष दूरबीन ने अप्रैल 2015 में भेजी थी। इसकी खोज में जो इतना समय लगा उसके कई कारण बताए गए हैं। जैसे खगोल शास्त्री कहते हैं कि यह चंद्रमा बहुत छोटा है - इसका व्यास मात्र 160 किलोमीटर है। इसके अलावा, यह एकदम काला है और मेकमेक के आसपास इसकी कक्षा पृथ्वी से देखने पर साइड से दिखाई पड़ती है। इन सब कारणों से इसे देखना मुश्किल रहा है।
एमके-2 जिस कक्षा में मेकमेक की परिक्रमा करता है वह अभी स्पष्ट नहीं है। इतना ज़रूर पता चला है कि यह मेकमेक से करीब 21,000 किलोमीटर की औसत दूर पर रहता है। यदि इसका परिक्रमा पथ वृत्ताकार है तो आंकड़ों से पता चलता है कि इसे मेकमेक की परिक्रमा करने में 12 दिन का समय लगता होगा। परिक्रमा पथ का सही निर्धारण होने के बाद ही इसकी संहति के बारे में कुछ सटीक अनुमान लगाए जा सकेंगे। संहति का अंदाज़ लगने के बाद बताया जा सकेगा कि ये दोनों पिंड किस पदार्थ से बने हैं।
परिक्रमा पथ के आधार पर मेकमेक और एमके-2 की उत्पत्ति के बारे में भी कुछ खुलासा होगा। यदि परिक्रमा पथ बहुत अधिक लंबा हुआ तो इसका मतलब होगा कि यह चंद्रमा कहीं और से आया था और मेकमेक ने इसे अपने गुरुत्वाकर्षण के दम पर परिक्रमा में बांध लिया है। दूसरी ओर, वृत्ताकार पथ का अर्थ होगा कि ये दोनों एक साथ बने थे।
तो अब खगोल शास्त्री इन दूरस्थ पिंडों के बारे में और आंकड़े जुटाने और निष्कर्ष निकालने में जुटे हुए हैं। (स्रोत फीचर्स)