पौधों पर घाव लग जाए, तो आम तौर पर इनकी मरम्मत तुरंत हो जाती है। इसका फायदा यह होता है कि खुले घाव पर संक्रमण से बचाव होता है और मूल्यवान पौष्टिक पदार्थों का नुकसान भी नहीं होता। मगर बिटरस्वीट रातरानी (Solanum dulcamara) के पौधे में देखा गया है कि उसके घाव जल्दी से नहीं भरते और उनमें से बूंद-बूंद रस निकलता रहता है। ऐसा क्यों?
कई पौधे ऐसे हैं जो फूलों के अलावा अन्य स्थानों पर मकरंद का स्राव करते हैं। इसे पुष्पेतर (extra-floral) मकरंद कहते हैं। हाल ही में शोधकर्ताओं ने दर्शाया है कि यह पुष्पेतर मकरंद स्राव ऐसे कीटों को आकर्षित करता है जो पौधों को कुतरने-चबाने वाले शाकाहारी जंतुओं पर हमला कर देते हैं। इस तरह से पुष्पेतर मकरंद स्राव पौधों की परोक्ष सुरक्षा व्यवस्था है।
मज़ेदार बात यह है कि घावों से निकलने वाला मकरंद एक विशेष किस्म का पुष्पेतर मकरंद है क्योंकि यह किसी विशेष अंग से नहीं निकलता और न ही इसके स्राव का कोई विशेष स्थान होता है। मगर अन्य पुष्पेतर मकरंद स्राव के समान ही इसका नियमन भी जेस्मोनेट नामक पदार्थ द्वारा किया जाता है और पौधे इस स्राव के रासायनिक संघटन का नियमन भी करते हैं।
घाव से निकलने वाला स्राव चींटियों को आकर्षित करता है और सोलेनम डल्कामारा पर किए गए प्रयोगों में पता चला है कि यदि इस स्राव को सामान्य पौधों पर लगा दिया जाए तो चींटियां ज़्यादा आकर्षित होती हैं और शाकाहारियों का हमला कम होता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि ये चींटियां सोलेनम डल्कामारा को कम से कम दो शाकाहारियों से सुरक्षा प्रदान करता है। इकॉलॉजी में मकरंद को एक शर्करा युक्त स्राव माना जाता है जो पौधों और जंतुओं के बीच की परस्पर क्रिया में भूमिका निभाता है। इससे लगता है कि घावों से निकलने वाला मकरंद शायद विशिष्ट पुष्पेतर मकरंद स्राव से पहले विकसित हुआ होगा और धीरे-धीरे इसके लिए विशेष अंग बने होंगे। (स्रोत फीचर्स)