वैज्ञानिक निजेल वॉलब्रिज ने एक कंपनी बनाई वाइवेंट और इस कंपनी ने एक यंत्र बनाया फायटिलसाइन। वॉलब्रिज का दावा है कि पौधे विद्युत संकेतों के रूप में अपनी बात कह सकते हैं, ज़रूरत है तो उसे सुनने-समझने की।
पीस लिली नामक एक पौधे पर यह यंत्र लगाया गया है। इस यंत्र में दो इलेक्ट्रोड हैं। एक इलेक्ट्रोड को गमले की मिट्टी में लगा दिया गया है और दूसरा इलेक्ट्रोड लिली के पौधे की पत्ती या तने पर लगाया जाता है। इस तरह बने परिपथ में एक स्पीकर भी लगा है। कभी-कभी इस स्पीकर में से आवाज़ निकलती है। आवाज़ निकलने का मतलब है कि दो इलेक्ट्रोड के बीच वोल्टेज बदल रहा है। जितनी तेज़ आवाज़ निकलती है, वोल्टेज परिवर्तन उतना ही तेज़ हो रहा है।
यानी फायटिलसाइन ने लिली के पौधे को एक आवाज़ दे दी है। मगर अभी यह कोई नहीं जानता कि इस आवाज़ (यानी वोल्टेज परिवर्तन) का अर्थ क्या है।
वनस्पति वैज्ञानिकों को बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं है कि जब इस तरह का वोल्टेज परिवर्तन होता है, तो पौधे के अंदर क्या चलता है। अलबत्ता इतना तय है कि समय-समय पर वोल्टेज परिवर्तन होता है। वैज्ञानिक मानकर चल रहे हैं कि यह किसी प्रकार के संवाद का संकेत है। जैव-भौतिक शास्त्री जेरहार्ड ओबरमेयर का मानना है कि इस यंत्र ने बताया है कि समय-समय पर पौधे के अंदर कुछ परिवर्तन होते हैं और हमें इन्हें समझने की ज़रूरत है।
स्विटज़रलैण्ड के पादप वैज्ञानिक एडवर्ड फार्मर ने यह पुष्टि करने का प्रयास किया है कि ये संकेत वास्तव में पौधे से ही निकल रहे हैं। उन्होंने यह रिकॉर्ड करने की कोशिश की कि जब पौधे पर कोई घाव बनता है तो किस तरह के विद्युत संकेत उत्पन्न होते हैं। उन्होंने देखा कि ऐसा होने पर पौधे में से विद्युतीय संकेत पैदा होते हैं और फायटिलसाइन में पकड़े गए संकेत इनसे मेल खाते हैं।
मगर अभी कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता। जैसे यह देखा गया है कि पौधे पर पानी का छिड़काव किया जाए, तो तत्काल वोल्टेज में परिवर्तन होता है। ये परिवर्तन बहुत त्वरित होते हैं और पौधे के द्वारा उत्पन्न नहीं किए जाते। तो एक मत यह बना है कि समय-समय पर होने वाले ये वोल्टेज परिवर्तन पौधे के पर्यावरण में या स्वयं पौधे में चल रहे रासायनिक परिवर्तनों के द्योतक हैं - यानी ये पौधे द्वारा किसी संप्रेषण के सूचक नहीं हैं।
अब वॉलब्रिज और उनकी कंपनी की कोशिश है कि कई सारे लोग इस यंत्र का उपयोग करें ताकि किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - September 2016
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