कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के रिचर्ड गैलो और उनके साथियों ने पता लगाया है कि मुहांसों के लिए ज़िम्मेदार बैक्टीरिया दरअसल एक हानिरहित बैक्टीरिया है मगर परिस्थिति बदलने पर वह मुंहासे पैदा करता है। साइन्स इम्यूनॉलॉजी शोध पत्रिका में प्रकाशित इस निष्कर्ष के आधार पर मुंहासों का नया इलाज उभरने की उम्मीद है।
गैलो और उनके साथियों ने अपने प्रयोगों में पाया कि मुंहासों के लिए ज़िम्मेदार बैक्टीरिया पायोनीबैक्टीरियम एक्नेस (pionibacterium acnes) हमारे शरीर की सतह पर वास करता है। यदि उसका वातावरण ऑक्सीजन की कमी से ग्रस्त हो जाए तो वह त्वचा पर पाए जाने वाले एक तैलीय पदार्थ (सीबम) को कुछ वसा अम्लों में बदलने लगता है। ये वसा अम्ल त्वचा की कोशिकाओं में सूजन पैदा करते हैं। इसे समझने के लिए गैलो की टीम ने इन बैक्टीरिया को मानव त्वचा व बाल की कोशिकाओं के संपर्क में रखा। उन्होंने पाया कि बैक्टीरिया द्वारा पैदा किए गए वसा अम्ल कोशिकाओं में एक एंज़ाइम को निष्क्रिय कर देते हैं। यह एंज़ाइम सामान्यत: सूजन पर रोक लगाता है। जब बैक्टीरिया के वसा अम्लों के प्रभाव से यह एंज़ाइम निष्क्रिय हो जाता है तो सूजन पैदा होना स्वाभाविक है। और मुंहासे इसी सूजन का परिणाम हैं।
ये बैक्टीरिया (पी. एक्नेस) काफी ज़िद्दी होते हैं। ये आपस में जुड़कर एक संरचना बना लेते हैं जिसे जैव-झिल्ली कहते हैं। इसकी वजह से उनकी त्वचा से चिपकने की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है। इसलिए इन्हें मात्र रगड़कर हटाया नहीं जा सकता। आम तौर पर देखा गया है कि किशोर वय के लोग मुंहासों के ज़्यादा शिकार होते हैं। गैलो का मत है कि इस उम्र में हारमोन सम्बंधी परिवर्तनों के चलते त्वचा ज़्यादा सीबम का निर्माण करती है जिसे ये बैक्टीरिया ऐसे वसा अम्लों में बदल देते हैं जो सूजन-रोधी एंज़ाइम की क्रिया को रोकते हैं। गैलो का यह भी विचार है कि हो सकता है कि कुछ लोगों के जीन्स उन्हें इन वसा अम्लों के प्रति संवेदी बना देते हैं।
बहरहाल, कारण जो भी हो मगर गैलो का विचार है कि उनकी इस नई खोज के बाद मुंहासों के लिए नए उपचार जल्द ही विकसित हो पाएंगे। (स्रोत फीचर्स)