उबाऊ भाषण सुनते-सुनते उबासी आना आम बात है मगर ये उबासियां शर्मिंदा कर देती हैं - व्याख्याता को भी और श्रोता को भी। उबासी स्तनधारी जंतुओं का एक ऐसा लक्षण है जो कई प्रजातियों में पाया जाता है। इसकी व्यापकता को देखते हुए चार्ल्स डारविन ने 1838 में अपने नोट्स में लिखा था कि “कुत्तों, घोड़ों और मनुष्यों को उबासियां लेते देखकर मेरे मन में ख्याल आता है कि जंतु किस हद तक एक ही ढांचे पर विकसित हुए हैं।”
अब उबासियों पर किए गए एक ताज़ा अध्ययन ने इस पर कुछ और रोशनी डाली है। वैसे आज तक वैज्ञानिकों के बीच सहमति नहीं है कि उबासी आती क्यों है और क्या शरीर क्रिया में इसका कोई गहरा कारण है। बायोलॉजी लेटर्स में प्रकाशित ताज़ा अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 29 अलग-अलग जंतुओं के उबासी लेते हुए यू-ट्यूब फुटेज देखे। इनमें चूहे, बिल्लियां, लोमड़ियां, वालरस, हाथी और मनुष्य शामिल थे।
शोधकर्ताओं ने एक पैटर्न देखा। छोटे मस्तिष्क वाले प्राणि, जिनके दिमाग के कॉर्टेक्स वाले हिस्से में तंत्रिकाओं की संख्या कम होती है, उनकी उबासी बड़े मस्तिष्क वाले प्राणियों की तुलना में कम अवधि की थीं।
यह भी देखा गया कि प्रायमेट जंतु गैर-प्रायमेट जंतुओं के मुकाबले ज़्यादा लंबी उबासी लेते हैं। मनुष्यों का दिमाग काफी बड़ा होता है और उसके कॉर्टेक्स में लगभग 1200 करोड़ तंत्रिकाएं पाई जाती हैं। मनुष्य की उबासी औसतन 6 सेकंड की होती है। दूसरी ओर, छोटे-से दिमाग वाले चूहे की उबासी की अवधि 1.5 सेकंड ही होती है।
इस अध्ययन से उबासी को लेकर प्रस्तुत की गई एक परिकल्पना की पुष्टि होती लगती है। इस परिकल्पना के मुताबिक उबासियां मस्तिष्क में खून का प्रवाह बढ़ाने का काम करती हैं और संभवत: उसे ठंडा रखने में मददगार होती हैं। (स्रोत फीचर्स)