कई लोगों को यकीन होता है कि वे ताड़ लेते हैं कि बच्चा कब झूठ बोल रहा है। उनका दावा होता है कि बच्चा झूठ बोलते समय आंखें चुराएगा, नाखून चबाएगा, इधर-उधर देखकर बातें करेगा वगैरह। मगर क्या यह दावा अनुभवों की कसौटी पर खरा उतरता है?
हाल ही में लॉ एंड ह्युमन बिहेवियर नामक शोध पत्रिका में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ है जो इस दावे को झुठलाता है। शोधकर्ताओं ने पहले किए गए 45 प्रयोगों के आंकड़े लेकर उनका विश्लेषण करके कुछ निष्कर्ष निकालने की कोशिश की है। इन 45 अध्ययनों में 10 हज़ार से ज़्यादा बच्चे और वयस्क शामिल रहे थे। इस अध्ययन से पता चलता है कि वयस्क चाहे जो दावा करते हों मगर तथ्य यह है कि वे झूठ बोलते बच्चे के बारे में 47 प्रतिशत बार ही सही रहे। यानी बच्चे के हावभाव, आंखों की गति वगैरह के आधार पर उन्होंने झूठ बोलने के बारे में जो निष्कर्ष निकाले थे, वे 50 प्रतिशत से भी कम मामलों में सही साबित हुए थे। अब 50 प्रतिशत सही साबित होना तो कोई बड़ी बात नहीं है। यदि आप आंख मूंदकर भी निष्कर्ष निकालें तो संयोग से ही आप 50 प्रतिशत बार सही हो सकते हैं - लगभग सिक्के को उछालकर चित-पट आने जैसा। और तो और, पेशेवर लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुमान भी लगभग इतने ही सही बैठते हैं।
अध्ययन का यह भी निष्कर्ष है कि पुराने ज़माने से मानी जा रही यह बात सही लगती है कि उम्र बढ़ने के साथ बच्चे ज़्यादा झूठ बोलने लगते हैं।
वैसे शोधकर्ताओं का कहना है कि उनका अध्ययन पहले किए गए प्रयोगों पर आधारित है, इसलिए इसकी सीमाएं हैं। एक तो ये सारे प्रयोग एक-सी परिस्थितियों में नहीं किए गए थे। हो सकता है कि एक-सी परिस्थिति में किए जाएं तो निष्कर्ष थोड़ा इधर-उधर हो सकते हैं। मगर इतना तय है कि पालकों, शिक्षकों वगैरह को यकीनी तौर पर कुछ कहने से पहले थोड़ा सोचना चाहिए क्योंकि उनके अनुमान आधे से कम बार ही सही होते हैं। (स्रोत फीचर्स)