हाल ही में रेडियो तरंगों की दुनिया में एक भारतीय मूल के शख्स दिनेश भराड़िया ने अपनी खोज से नई क्रांति ला दी है। भराड़िया ने भारत में उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद आगे की पढ़ाई तथा शोध विदेश में किया। डुप्लेक्स रेडियो तकनीक की खोज के लिए मार्कोनी सोसायटी द्वारा इस साल के पॉल बैरन यंग स्कॉलर अवार्ड उन्हें देने की घोषणा की गई है। यह पुरस्कार मार्कोनी के सम्मान में उनकी बेटी जियोइया मार्कोनी ब्रागा ने प्रारंभ किया था।
रेडियो तरंगों की दुनिया में मार्कोनी जाना-माना नाम है। रेडियो तरंगों को लेकर उन्होंने कई खोजे कीं। किंतु एक गुत्थी वे भी नहीं सुलझा पाए थे - एक ही तरंग बैंड पर एक समय में सूचनाओं को प्राप्त करना तथा उसी दौरान प्रसारित करना संभव है या नहीं। उनके बाद भी कई वैज्ञानिकों ने इसे लेकर कई शोध किए लेकिन किसी को भी यह सफलता अब तक हासिल नहीं हो पाई थी।
दिनेश मूल रूप से भारत में महाराष्ट्र राज्य के कोल्हापुर के रहने वाले हैं। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा के बाद आईआईटी कानपुर से 2010 में ग्रेजुएशन किया। यहां उन्हें इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विषय में गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया। तरंगों में उनकी गहरी रुचि थी और इसी से जुड़े विषयों पर उन्होंने आगे अध्ययन जारी रखा।
कानपुर आईआईटी से उपाधि प्राप्त करने के बाद शोध करने के लिए दिनेश ने यूएसए में स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में पीएच.डी. का कार्य सचिन कट्टी के मार्गदर्शन में प्रारंभ किया। उनके शोध विषयों में आधुनिक वायरलेस कम्यूनिकेशन सिस्टम का डिज़ाइन तैयार करना, सेंसर नेटवर्क और डाटा सेंटर नेटवर्क आदि विषय थे। शोध के दौरान दिनेश ने अपने शोध कार्यक्रम को स्थगित करते हुए जर्मन कंपनी डॉइश टेलीकॉम में वैज्ञानिक के रूप में डुप्लेक्स रेडियो तरंगों पर आधारित कम्यूनिकेशन सिस्टम पर गहन शोध कार्य किया। आखिरकार उन्होंने डुप्लेक्स रेडियो तरंगों की गुत्थी को सुलझा ही लिया।
दिनेश भराड़िया के अनुसार “तरंग प्रणाली की यह समस्या बेहद जटिल थी। इसमें जब रेडियो कार्य करता है तो उसे प्राप्त होने वाली तरंगों को लगभग 100 अरब गुना शोर प्रभावित करता है। प्राप्त होने वाले सिग्नल आसपास के माहौल पर तथा वहां मौजूद तरंगों से भी प्रभावित होते हैं। इस वजह से एक समय पर सूचनाएं प्राप्त करने तथा उन्हें भेजना संभव नहीं हो पाता था।”
किन्तु भराड़िया ने प्रयोगों के आधार पर ऐसी तकनीक बनाने में कामयाबी पा ही ली, जिसके माध्यम से 150 साल पुरानी गुत्थी का समाधान हो गया। भराड़िया ने यह खोज मैसाचूसेट्स इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नालॉजी के सहयोग से की। सफलता की इस नई इबारत से आमजन को बेहद लाभ होने वाला है। कई क्षेत्रों में इस नवीन तकनीक से आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिलने वाले हैं।
डुप्लेक्स रेडियो तकनीक के कई फायदे हैं। जैसे इससे इमेजिंग तकनीक, चालकरहित कार जैसे अनुप्रयोगों में मदद मिलेगी और दो तरफा बातचीत करने वाले रेडियो का निर्माण संभव हो सकेगा। दृष्टिहीनों को भी इस तकनीक से लाभ मिलेगा। (स्रोत फीचर्स)