बहु-औषधि प्रतिरोधी टीबी के लगातार बढ़ते प्रकोप की पृष्ठभूमि में यह अच्छी खबर आई है कि एक उपचार क्रम खोजा गया है जो काफी कारगर साबित हुआ है। बहु-औषधि प्रतिरोधी टीबी यानी ऐसा टीबी जो कई सारी एंटीबायोटिक दवाइयों का प्रतिरोधी हो।
2015 में विश्व स्तर पर 5,80,000 लोग बहु-औषधि प्रतिरोधी टीबी से ग्रस्त पाए गए थे। इनमें से मात्र 20 प्रतिशत को उपचार मिला दुखद समाचार यह था कि इनमें से लगभग आधे मौत के शिकार हो गए। बहु-प्रतिरोधी टीबी के लगभग आधे मामले भारत, चीन व रूस में देखे गए हैं।
हाल ही में सात एंटीबायोटिक के मिश्रण से बने एक नए उपचार क्रम के परीक्षण के नतीजों की घोषणा ने नई आशा जगाई है। नौ अफ्रीकी देशों में जिन 1006 लोगों को यह उपचार दिया गया उनमें से 821 स्वस्थ हो गए। यानी यह उपचार 82 प्रतिशत मामलों में कारगर रहा। इन नतीजों की घोषणा फेफड़ा सम्बंधी बीमारियों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने लिवरपूल में आयोजित एक सम्मेलन में की है।
इससे पूर्व किए गए प्रारंभिक परीक्षणों के नतीजे भी इसी प्रकार के थे। उन्हीं नतीजों से आशान्वित होकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सिफारिश की थी कि सरकारों को इस उपचार क्रम को अपने राष्ट्रीय कार्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए। इस नए उपचार क्रम की दो अच्छी बातें हैं। एक तो यह वर्तमान उपचार से तीन गुना सस्ता है और दूसरी कि इसे पूरा करने में मात्र 9 माह का समय लगता है जबकि वर्तमान में उपलब्ध उपचार दो साल तक चलता है जिसकी वजह से मरीज़ इसे बीच में ही छोड़ देते हैं।
मगर इन नतीजों की घोषणा करते हुए एक चेतावनी भी दी गई है। यह नया उपचार उन मामलों में कारगर नहीं रहता है जहां मरीज़ पहले ही द्वितीय श्रेणी के उपचार के प्रतिरोधी हो चुके हैं। इसका मतलब है कि दुनिया के बहु-औषधि प्रतिरोधी टीबी के मात्र एक-तिहाई से लेकर आधे मरीज़ ही इससे लाभान्वित होंगे। जो मरीज़ प्रथम श्रेणी की दवा के प्रति प्रतिरोधी होते हैं उनके लिए द्वितीय क्षेणी की दवाइयों का उपयोग किया जाता है। यदि मरीज़ बीच में ही इलाज छोड़ दे तो बैक्टीरिया प्रतिरोधी हो जाता है और फिर फैलता रहता है। इस तरह का टीबी ज़्यादातर रूस में देखा गया है। भारत में नया उपचार काफी कारगर रहेगा ऐसी उम्मीद है। (स्रोत फीचर्स)