डॉ. डी. बालसुब्रामण्यन
हालांकि हमने दो अग्रणी वैज्ञानिकों को खो दिया है लेकिन उनका ‘कर सकते हैं’ और ‘कभी असंभव नहीं कहना’ का जज़्बा हमारे बीच जीवित रहेगा।
24 जुलाई मायूस सोमवार रहा। उस दिन भारत ने अपने दो महान पुत्रों को खो दिया: विज्ञान के दो उत्कृष्ट पुरुष डॉ. उडुपी रामचंद्र राव (यू. आर. राव) जिन्होंने भारत को अंतरिक्ष राष्ट्र बनाया और वैज्ञानिक शिक्षक डॉ. यश पाल जिन्होंने विज्ञान को भारत में घर-घर पहुंचाने का काम किया।
बैंगलुरु से प्रकाशित पाक्षिक विज्ञान पत्रिका करंट साइंस में ‘लिविंग लेजेंड्स इन इंडियन साइंस’ नामक लेखों की श्रृंखला आती है। डॉ. यू. आर. राव और डॉ. यश पाल ऐसे ही दो महान वैज्ञानिक थे जिन्होंने अपने वैज्ञानिक योगदान से भारत को आगे बढ़ाया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के डॉ. वी. जयरामन ने करंट साइंस के 10 जून 2014 के अंक में डॉ. राव के जीवन और भारतीय अंतरिक्ष में उनके योगदान के बारे में लिखा था। लेख के कुछ अंश यहां दोहराना चाहूंगा।
डॉ. राव का जन्म 1932 में हुआ था। 1963 में जब वे 31 वर्ष के थे तब उन्होंने कई वैज्ञानिक लेख लिखे थे। उन्होंने 2011 (79 साल की उम्र में) जब एक और पर्चा प्रकाशित किया तो एक साथी वैज्ञानिक डॉ. रोन क्रेम ने टिप्पणी की थी, “क्या ये वही यू. आर. राव हैं जिन्होंने 1963 में रिसर्च पेपर लिखे थे? या क्या ये उनके पोते हैं?” ऐसे थे डॉ. राव। उन्होंने अपनी ज़िन्दगी के लगभग आखरी दिनों तक रोज़ाना बैंगलुरु स्थित इसरो के मुख्यालय में जाकर काम किया।
डॉ. राव ने अंतरिक्ष विज्ञान का अपना सफर विक्रम साराभाई के मार्गदर्शन में पीएच.डी. डिग्री के साथ शुरू किया। साराभाई ने ही भारत को अंतरिक्ष युग में प्रवेश करने और उपग्रह तकनीकों का उपयोग करने के लिए तैयार किया था। यूएस में उपग्रह भौतिकी और उपग्रह अध्ययन के क्षेत्र में कुछ वर्ष गुज़ारने के बाद राव 1966 में भारत लौट आए। लौटने के बाद साराभाई ने उन्हें भारत में उपग्रह तकनीक को विकसित करने के लिए एक खाका तैयार करने को कहा। डॉ. राव ने यह काम उत्साह के साथ किया और पहला भारतीय उपग्रह आर्यभट विकसित किया (इसका नामकरण 5वीं सदी के भारतीय गणितज्ञ के नाम पर किया गया था)। आर्यभट और साथ में उसके छोटे आकार के मॉडल 36 महीनों के भीतर निर्धारित बजट में तैयार किए गए थे। जयरामन लिखते हैं, “राव ने कहा, हां, मेरे पास अनुभवहीन युवा टीम थी लेकिन वे बहुत ही समर्पित थे। उनका बेजोड़ उत्साह, समर्पण, कठोर परिश्रम, और ज़बरदस्त आत्मवि·ाास, और उनका ‘कभी असंभव नहीं कहना’ छूत की तरह फैला और इसरो की संस्कृति का हिस्सा बन गया।”
राव के नेतृत्व में कई उपग्रह बनाए गए - भास्कर 1 व 2, रोहिणी और संचार उपग्रह ऐपल (एरियन पैसेंजर पैलोड एक्सपेरिमेंट)। इस ऐपल उपग्रह को बैल गाड़ी (विद्युत चंुबकीय सुसंगता की जांच के लिए) पर ले जाया गया था, जो पुराने और नए भारत के बीच के सम्बंध का द्योतक है। यह अर्थव्यवस्था और दक्षता पर नज़र के साथ उच्च तकनीकी में महारत हासिल करने का प्रयास था जिसने भारत को अंतरिक्ष में ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। किसी अन्य देश ने मात्र 450 करोड़ में मंगल पर अंतरिक्ष यान भेजा हो तो बताएं।
जहां कर्नाटक के यू. आर. राव शांति और संयम के धनी थे, वहीं उनके दोस्त और साथी पंजाब के डॉ. यश पाल उत्साह से भरपूर थे। प्रोफेसर रामनाथ कौशिक ने 10 जुलाई 2015 के करंट साइंस के अंक में उनके बारे में बहुत ही खूबसूरती से लिखा है। यश पाल भी भौतिकी में दक्ष थे और उन्होंने मुंबई के टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में कॉस्मिक किरणों पर शोध किया था। वहीं उन्हें अहमदाबाद स्थित स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (एसएसी) के प्रमुख डॉ. सतीश धवन ने महत्वाकांक्षी शैक्षिक कार्यक्रम सेटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविज़न एक्सपेरिमेंट (SITE) के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने उत्सुक युवाओं का एक समूह जुटाया जिसने शिक्षा, कृषि, स्वास्थ और स्वच्छता सम्बंधी विषयों पर कार्यक्रम तैयार किए। इन्हें एटीएस-6 उपग्रह पर अपलोड किया जाता था और फिर इनका प्रसारण शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पूरे 2400 टीवी सेट पर किया जाता था। इन्हें दर्शकों ने उत्साह से स्वीकार किया था।
अपनी तरह का यह पहला और सफल प्रयोग था। यश पाल की टीम ने यह कैसे किया? कौशिक ने यश पाल को इस प्रकार उद्धरित किया है: “जो सभ्यता अपने युवाओं को खुद कुछ करने की झंझटों से बचाती है, वह उन्हें खुशी से वंचित करती है, और आखिरकार अपने समाज को स्थायी पराश्रय की ओर ले जाती है।...तो क्यों न हम इसे खुद करें।” याद कीजिए यू.आर. राव ने भी यही बात दूसरे शब्दों में कही थी।
यश पाल ने सरकार द्वारा दिए गए अन्य कार्यों को भी किया। इनमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की अध्यक्षता, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव पद आदि शामिल हैं। उन्होंने जो कई सारी पहल और नवाचार शुरू किए उनमें आम लोगों में विज्ञान की समझ महत्वपूर्ण रही। यूजीसी के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने एजुकेशनल मीडिया रिसर्च सेंटर (ईएमआरसी) को प्रोत्साहित किया और दूरदर्शन पर ‘राष्ट्रव्यापी कक्षा’ जैसे नियमित कार्यक्रमों के प्रसारण की शुरुआत की, जो आज भी जारी है।
इसके अलावा यशपाल ने टीवी सीरियल ‘टर्निंग पाइंट’ के ज़रिए करोड़ों भारतीयों का दिल जीता, जहां वे लगातार स्कूली बच्चों के सवालों के जवाब दिया करते थे और सफलतापूर्वक विज्ञान को निहायत सरल तरीके से लोगों को समझाते थे। कई बच्चों के बीच वे यश पाल अंकल के रूप में चर्चित हो चुके थे।
व्यक्तिगत तौर पर मैंने और मेरी पत्नी शक्ति ने एक सरोकारी और उत्साही दोस्त खो दिया है। मेरी पत्नी ने उनके साथ हैदराबाद के सेंट्रल इंस्टिट्यूटऑफ इंग्लिश लैंग्वेज (जो अब इंग्लिश एंड फॉरेन लैंग्वेज युनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है) के ईएमआरसी के लिए विज्ञान और कला में ‘राष्ट्रव्यापी कक्षा’ के लिए कई कार्यक्रमों का निर्माण किया और मैं अक्सर टर्निंग पाइंट में उनके साथ आया करता था। और मेरी पत्नी के जीजा स्वर्गीय डॉ. मनमोहन चौधरी ने कुछ समय के लिए ‘टर्निंग पाइंट’ को प्रोड्यूस किया था।
हमने डॉ. यू. आर. राव और प्रोफेसर यश पाल जैसे दो महान विज्ञान नेताओं को खो दिया। एक ने अंतरिक्ष में ले जाकर ब्राहृांड को समझने में हमारी मदद की और दूसरे ने अंतरिक्ष का उपयोग शिक्षण में किया। (स्रोत फीचर्स)