डॉ. डी. बालसुब्रामण्यन
हाल ही में प्रकाशित पीटीआई रिपोर्ट का शीर्षक “दो बाघों को बचाना मंगलयान से ज़्यादा मूल्यवान है” बहुत ही दिलचस्प था, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि दो बाघों को बचाने से 520 करोड़ का लाभ होता है जबकि मंगलयान की लागत 450 करोड़ है। यह शीर्षक रोमांचक भी था और दुखी करने वाला भी। इससे रोमांचित होकर मैंने इंडियन इंस्टिट्यूटऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट (आईआईएफएम) भोपाल की प्रोफेसर मधु वर्मा से संपर्क किया और उन्होंने मेरे साथ 2015 की विस्तृत रिपोर्ट साझा की “भारत में टाइगर रिज़र्व का आर्थिक मूल्यांकन: एक वैल्यूअ दृष्टिकोण” और हाल में इकोसिस्टम सर्विसेस पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र “ओझल को सामने लाना: भारत में टाइगर रिज़र्व का आर्थिक मूल्यांकन”। दोनों ही पर्चे आंखें खोलने वाले हैं।
प्रकृति की कीमत लगाना और उसको वस्तु मानना हमारी संवेदनाओं को ठेस पहुंचा सकता है। दूसरी तरफ उपरोक्त पर्चे के लेखकों ने इस ओर इशारा किया है कि आर्थिक विश्लेषण हमें यह बता सकता है कि किस वस्तु का कितना दोहन किया जा सकता है। जैसे, स्थानीय समुदायों को अन्य इकोसिस्टम सेवाओं के साथ संतुलन बनाकर जलाऊ लकड़ी और चारे की कितनी मात्रा के निस्सारण की अनुमति दी जा सकती है। इस तरह के आर्थिक विश्लेषण ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि बाघ जैसे हिंरुा जानवर के लिए इतना बड़ा क्षेत्र आरक्षित क्यों है जबकि हमें मनुष्यों के लिए और ज़्यादा ज़मीन की ज़रूरत है।
टाइगर रिज़र्व के लिए 18 रेंज में कुल कितनी ज़मीन आवंटित है? यह 68 हज़ार वर्ग कि.मी. है जो भारत के भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 2 प्रतिशत है। किंतु टाइगर रिज़र्व केवल बाघों के लिए नहीं है। टीम ने जिन छ: रिज़र्व (कॉर्बेट, कान्हा, काजीरंगा, पेरियार, रणथंभौर, सुंदरबन) का अध्ययन किया उनमें हाथी, गैंडा, लंगूर, बारहसिंगा, नेवला, नदी डॉल्फिन, छोटे कछुए, मगरमच्छ जैसे कई अन्य पशुओं के साथ-साथ लाखों जड़ी-बूटियां, पेड़-पौधे भी संरक्षित हैं।
बाघ को क्यों बचाएं?
इस हिंरुा जंतु को क्यों बचाना है? संरक्षणवादी बाघों को छतरी प्रजाति कहते हैं। इन्हें बचाकर हम इस पारिस्थितिक छतरी के नीचे स्थित सभी को, उनसे जुड़े सभी को बचाते हैं। इसमें दुनिया के अंतिम महान जंगल भी शामिल हैं, जिनका कार्बन भंडारण जलवायु परिवर्तन को कम करता है। विद्या वेंकट ने इस विषय पर और ज़्यादा विस्तार में लिखा है।
बाघ का संरक्षण क्या-क्या देता है? विद्या वेंकट के पर्चे में इन्हें सूचीबद्ध किया गया है: 1. रोजगार सृजन, 2. कृषि (प्रसंगवश, प्रसिद्ध आईआर-8 चावल की खोज ऐसे ही एक रिज़र्व में जंगली रूप की गई थी), 3. मत्स्याखेट, 4. जलाऊ लकड़ी, 5. चारा और चराई, 6. इमारती लकड़ी, 7. पौधों के परागणकर्ता, 8. केंदू पत्ते, 9. कार्बन को सोखकर जमा करके रखना (ग्लोबल वार्मिंग की दृष्टि से महत्वपूर्ण), 10. पानी और उसका शुद्धिकरण, 11. मृदा संरक्षण, 12. पोषक तत्वों का चक्रण, 13. चक्रवात, तूफान, बाढ़ जैसी अतिवादी घटनाओं में संतुलन बनाए रखना। इनमें पर्यटन, शिक्षा, शोध और विकास, और आध्यात्मिक शांति को भी जोड़ा जा सकता है।
उपरोक्त समूह ने वैल्यूअ नामक जिस दृष्टिकोण का उपयोग किया है उसमें दो घटक इस्तेमाल किए हैं। वैल्यू वाला घटक इस ओर इशारा करता है कि इन छ: टाइगर रिज़र्व की व्यवस्था और रख-रखाव का सालाना खर्च 23 करोड़ के लगभग आता है। लेकिन फिर उनसे “मिलने वाले लाभों” का क्या? उदाहरण के तौर पर पेरियार टाइगर रिज़र्व को लेते हैं। वैल्यू का अनुमान है कि यह रिज़र्व 17.6 अरब रुपए (या 1.9 लाख रुपए प्रति हैक्टर) उत्पादन देता है। कैसे? उदाहरण के लिए यह तमिलनाड़ु के ज़िलों में पानी उपलब्ध कराने में मदद करता है जिसकी कीमत 4.05 अरब रुपए प्रति वर्ष है।
या प्रसिद्ध कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान को लेते हैं (जो “कुमाऊं के आदमखोर” का निवास है)। इससे मिलने वाला लाभ प्रति वर्ष 14.7 अरब रुपए (1.14 लाख रुपए प्रति हैक्टर) है। और यह उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों (1.61 अरब रुपए प्रति वर्ष) और दिल्ली (5.30 करोड़ रुपए प्रति वर्ष) को पानी उपलब्ध करवाता है। कुल मिलाकर मिलने वाले लाभों और लागत का अनुपात 200 से 530 के बीच है। तो यह निवेश करने और प्रबंधन करने लायक है!
और अध्ययन में अ का चिन्ह उन लाभों का द्योतक है जिनका मौद्रिक मूल्यांकन फिलहाल उपलब्ध नहीं है।
क्या ये आंकड़े आंखें खोलने वाले नहीं हैं? <NTCA_Report 2015.pdf>नामक यह रिपोर्ट अर्थशास्त्र, व्यवसाय प्रबंधन, पर्यावरण और जीव विज्ञान के छात्रों के लिए अनिवार्य पठन सामग्री होनी चाहिए। शहरी स्कूली बच्चों और उनके माता-पिता से बातचीत करके उन्हें पास के रिज़र्व क्षेत्र में ले जाना चाहिए ताकि वे उनसे सीख सकें और उनका सम्मान करें। हमें इस तरह के रिज़र्व के लिए बजट बढ़ाने के प्रयासों का समर्थन करना चाहिए। आईआईएफएम और इसी तरह के संस्थानों के वैज्ञानिकों और संरक्षणवादियों के उत्कृष्ट कार्यों के प्रति सम्मान प्रकट करना चाहिए।
अब, क्यों पीटीआई की उस रिपोर्ट के शीर्षक से दुखी होना, जिसमें कहा गया था कि दो बाघों को बचाने की कीमत मंगलयान की कीमत से ज़्यादा है। मुझे लगा कि ये विचित्र तुलना इसरो के प्रयास का मज़ाक उड़ाना है। इस सम्बंध में मुझे मेरी पीएच.डी. की मौखिक परीक्षा के दौरान प्रसिद्ध रसायनज्ञ प्रोफेसर इरविन शार्गफ द्वारा की गई टिप्पणी की याद आ गई। उन्होंने कहा था नौजवान, क्यों तुम यहां प्रोटीन संरचना पर अध्ययन कर रहेे हो जबकि तुम्हें भारत जाकर चारे से सल्फ्यूरिक एसिड बनाना चाहिए। भारत में हमें प्रोटीन संरचना और सल्फ्यूरिक एसिड दोनों की ज़रूरत है वैसे ही जैसे टाइगर रिज़र्व और मंगलयान दोनों की। मंगलयान शायद सीधे तौर पर रिज़र्व की मदद न कर सके लेकिन इसरो के उपग्रह सर्वेक्षण ज़रूर करते हैं। (स्रोत फीचर्स)