जेनेटिक संपादन की नवीनतम तकनीक क्रिस्पर का उपयोग करके त्वचा पर लगाने के लिए कोशिकाओं की एक ऐसी पट्टी तैयार की गई है जो मधुमेह की दवाइयों से छुटकारा दिला सकती है। कहने की ज़रूरत नहीं है कि प्रयोग अभी चूहों पर किए गए हैं और मनुष्यों में प्रयोग से पहले काफी अनुसंधान ज़रूरी हैं किंतु शुरुआती नतीजे उत्साहजनक हैं।
सेल स्टेम सेल शोध पत्रिका में शिकैगो विश्वविद्यालय के ज़ियाओयांग वू और उनके साथियों ने बताया है कि उन्होंने चूहों की स्टेम कोशिकाएं पृथक की और फिर उनमें क्रिस्पर तकनीक की मदद से जीएलपी-1 एंज़ाइम बनाने वाला जीन जोड़ दिया। इन कोशिकाओं को पनपने दिया गया और जब एक पट्टी-सी बन गई तो इसे मोटे व मधुमेह से पीड़ित चूहों की त्वचा पर प्रत्यारोपित कर दिया गया। जीएलपी-1 वह एंज़ाइम है जो शरीर में इंसुलिन के निर्माण का संकेत देता है। इस जीन को इस तरह जोड़ा गया था कि यह तभी सक्रिय होता था जब चूहे को एक एंटीबायोटिक डॉक्सीसायक्लीन की खुराक दी जाए।
मधुमेह से ग्रस्त जिन चूहों को यह जेनेटिक पट्टी लगाई गई थी उनमें मधुमेह के लक्षण प्रकट नहीं हुए और अच्छा वसायुक्त भोजन करने के बाद भी उनके वज़न में वृद्धि नहीं हुई।
तकनीक के उपयोग में एक मुख्य बाधा यह रही है कि आम तौर पर बाहर से प्रत्यारोपित त्वचा को शरीर स्वीकार नहीं करता है। वू की टीम ने स्टेम कोशिकाओं की मदद से ऐसी त्वचा तैयार करने में सफलता प्राप्त की है जिसे शरीर अस्वीकार नहीं करता।
एक मायने में यह मधुमेह ग्रस्त चूहों को मुंह से दवा देने जैसा ही है। हर बार जब शरीर में इंसुलिन का उत्पादन शुरू करना हो तब चूहे को डॉक्सीसायक्लीन दी जाती है। मगर यदि इसका उपयोग मनुष्यों में करना है तो डॉक्सीसायक्लीन से मुक्ति पाना होगी। डॉक्सीसायक्लीन एक एंटीबायोटिक है और बार-बार इसका उपयोग किया गया तो इसके साइड प्रभाव भी हो सकते हैं। अत: तकनीक के विकास में अगला कदम यह होगा कि डॉक्सीसायक्लीन के स्थान पर कोई अन्य ऐसा रसायन दिया जा सके जो हानिरहित हो। (स्रोत फीचर्स)