डॉ. किशोर पंवार
कोशिका जीवन की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है, यह हम पढ़ते-पढ़ाते रहे हैं। सभी जीव, चाहे पौधे हों या जन्तु, इन्हीं इकाइयों से बने हैं। इसी इकाई से ऊतकों की दहाई-सैकड़ा बनती है। और फिर हज़ारों कोशिकाओं से विभिन्न अंग बनते हैं और ऐसे कई अंग मिलकर एक जीव बनाते है।
जीवन को चलाए रखने के लिए लगातार पदार्थ व ऊर्जा की आवश्यकता बनी रहती है। जो कोशिकाएं अपने पर्यावरण के साथ यह आदान-प्रदान करती रहती हैं उन्हें या उनसे बने जीवों को हम जीवित कहते हैं। और जो जीव यह आदान-प्रदान बन्द कर देते हैं उन्हें मृत कहा जाता है।
जीवों के द्वारा अपने पर्यावरण के घटकों अर्थात मिट्टी, जल और वायु से पदार्थ का जो आदान-प्रदान है वह किसी भी कोशिका की बाहरी झिल्ली द्वारा ही होता है। इसे प्लाज़्मा झिल्ली कहते हैं। यह झिल्ली ही कोशिका के जीवद्रव्य को बाहरी पर्यावरण से अलग करती है। यह ऐसा कैसे कर पाती है? आखिर इस झिल्ली में ये गुण कैसे आए? एक पुस्तक में इनके बारे में पढ़ा तो लगा कि ये झिल्लियां तो अद्भुत हैं, और यदि यह समझना है कि जीवन क्या है तो कोशिका झिल्लियों की रचना और कार्य प्रणाली को समझना ज़रूरी है। पुस्तक के झिल्ली सम्बंधी अध्याय की पहली लाइन “किनारों पर जीवन” ही मुझे भा गई। और लगा कि जिस जीवन को हम समझना चाहते हैं वह झिल्लियों के आसपास ही तो नहीं। झिल्लियां ही किसी जीव को जीवित बनाती हैं। झिल्लियां अपना काम करना बन्द कर दें तो जीव धीरे-धीरे मर जाता है। जीवित और मृत में यही एक बड़ा अंतर है। तो आइए झिल्लियों को जाने। जीवन को समझें।
झिल्ली क्या है?
प्लाज़्मा झिल्ली को जीवन का किनारा कहा गया है। यह वह सीमा है जो कोशिका को उसके परिवेश से अलग करती है। साथ ही कोशिका के अन्दर-बाहर पदार्थों के आवागमन को नियंत्रित करती है। यह कुछ पदार्थों को अन्य पदार्थों की तुलना में आसानी से आर-पार जाने देती है। इसे चयनात्मक पारगम्यता कहते हैं। कोशिका द्वारा अपने पर्यावरण के साथ रासायनिक आदान-प्रदान में विभेद करने की क्षमता जीवन के लिए मूलभूत महत्व का गुण है। इस गुण को चयनात्मकता कहते हैं और प्लाज़्मा झिल्ली और उसके घटक ही इस चयनात्मकता को सम्भव बनाते है।
झिल्ली की बनावट
प्लाज़्मा झिल्ली लिपिड्स, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट से बनी होती है। अधिकांश झिल्लियों में प्रचुरता से पाए जाने वाले लिपिड्स फॉस्फोलिपिड्स होते हैं। फास्फोलिपिड्स द्वारा झिल्ली बनाने की क्षमता उनकी आणविक संरचना में समाई है।
फॉस्फोलिपिड अणु उभय संवेदी होते हैं अर्थात इनका एक हिस्सा जलस्नेही और दूसरा सिरा जलद्वैषी होता है। जलस्नेही हिस्सा पानी के संपर्क में रहना चाहता है जबकि जलद्वैषी हिस्सा पानी से दूर रहना चाहता है। फॉस्फोलिपिड्स की दोहरी परत बन जाए तो दो जलीय प्रकोष्ठों के बीच एक टिकाऊ अहाता बन जाता है। क्योंकि फॉस्फोलिपिड के जलद्वैषी हिस्से इस परत में अंदर की ओर जम जाते हैं जबकि इनके जलस्नेही सिरे पानी के सम्पर्क में होते हैं।
जैसा कि ऊपर कहा गया, प्लाज़्मा झिल्ली फॉस्फोलिपिड्स और प्रोटीन की बनी हुई एक दोहरी परत है। झिल्ली में पाए जाने वाले लिपिड्स के समान ही झिल्ली में पाए जाने वाले अधिकांश प्रोटीन भी उभय-संवेदी होते है। ऐसे प्रोटीन फॉस्फोलिपिड्स की दोहरी परत के बीच-बीच में रहते हैं और उनके जलस्नेही हिस्से झिल्ली के बाहर झांकते रहते है। झिल्ली में इस तरह का आणविक उन्मुखीकरण कोशिका द्रव और कोशिका के बाहर के द्रव के साथ प्रोटीन के जलस्नेही हिस्सों का सम्पर्क जल से बनाए रखता है जबकि इन प्रोटीनों के जलद्वैषी हिस्सों को झिल्ली के अंदर का गैर-जलीय पर्यावरण उपलब्ध रहता है। प्लाज़्मा झिल्ली में लिपिड और प्रोटीन की जमावट के वर्तमान में मान्य इस मॉडल को तरल पच्चीकारी (मोज़ेइक) मॉडल कहते हैं। आपके घर की फर्श पर लगी मोज़ेइक टाइल्स में जिस तरह सीमेन्ट के बीच-बीच में काले-सफेद संगमरमर के टुकड़े जड़े होते हैं उसी तरह प्लाज़्मा झिल्ली में फॉस्फोलिपिड की पृष्ठभूमि में प्रोटीन के दाने होते हैं। फॉस्फोलिपिड्स झिल्ली का बुनियादी ढांचा बनाते हैं जबकि अधिकांश कार्यों का निर्धारण प्रोटीन्स करते हैं।
झिल्ली में तरह-तरह के प्रोटीन पाए जाते हैं और समूहों में पाए जाते हैं जो लिपिड की दोहरी पर्त में यहां-वहां धंसे रहते हैं। लाल रक्त कोशिका की प्लाज़्मा झिल्ली में ही अब तक लगभग 50 अलग-अलग प्रकार के प्रोटीन खोजे जा चुके है। अलग-अलग प्रकार की कोशिकाओं में अलग-अलग किस्म के झिल्ली प्रोटीन मिलते हैं। और तो और, एक ही कोशिका की विभिन्न झिल्लियों में भी झिल्ली प्रोटीन अलग-अलग होते हैं।
दो तरह के झिल्ली प्रोटीन
झिल्ली में प्रोटीन की स्थिति के आधार पर दो तरह के प्रोटीन चिंहित किए गए हैं। अंतरंग प्रोटीन और परिधीय प्रोटीन। अंतरंग प्रोटीन झिल्ली की लिपिड की दोहरी परत में आंतरिक जलद्वैषी भाग में अन्दर तक धंसे होते हैं। इनके जलस्नेही भाग झिल्ली के दोनों ओर जलीय विलयनों के सम्पर्क में रहते हैं। कुछ प्रोटीन्स में एक या एक से अधिक जलस्नेही प्रवाह मार्ग होते हैं जो झिल्ली में से जल और जलस्नेही पदार्थों को भी पार होने देते हैं।
दूसरी ओर, परीधीय प्रोटीन्स लिपिड की दोहरी पर्त में धंसे हुए नहीं होते। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है वे ऊपर-ऊपर रहते हैं। ये झिल्ली की सतह से ढीले-ढाले ढंग से जुड़े रहते है और प्राय: अंतरंग प्रोटीन्स के हिस्सों के सम्पर्क में रहते हैं।
एक अकेली कोशिका पर ऐसे कई सतही झिल्ली प्रोटीन हो सकते हैं जो अलग-अलग काम करते हैं जैसे कोशिका से परिवहन, एंज़ाइमी गतिविधि या कोशिका को आसपास की अन्य कोशिकाओं से जोड़ना इत्यादि।
चिकित्सा में सतही प्रोटीन्स
कोशिका की सतह पर पाए जाने वाले प्रोटीन्स का बड़ा चिकित्सीय महत्व है। जैसे प्रतिरक्षा कोशिकाओं की सतह पर मौजूद सीडी-4 नामक प्रोटीन एड्स वायरस (एच.आई.वी) को इन कोशिकाओं को संक्रमित करने में मदद करता है, जिसके कारण एड्स पैदा होता है। हालांकि यह भी पता चला है कि कुछ लोगों में एचआईवी संक्रमण के बावजूद भी एड्स रोग नहीं होता। और न ही इनमें एचआईवी संक्रमित कोशिकाओं का कोई प्रमाण मिलता है। ऐसे लोगों के जीन्स की तुलना संक्रमित व्यक्तियों के जीन्स से करने पर पता चला कि प्रतिरोधी लोगों में प्रतिरक्षा कोशिका की सतह के प्रोटीन सीसीआर-5 के निर्माण के लिए ज़िम्मेदार जीन का एक असामान्य रूप पाया जाता है।
आगे शोध से पता चला कि सतह प्रोटीन सीडी-4 यद्यपि प्रमुख एचआईवी ग्राही है किन्तु अधिकांश कोशिकाओं को संक्रमित करने के लिए एचआईवी को एक सह-ग्राही के रूप में सीसीआर-5 से भी जुड़ना पड़ता है। प्रतिरोधी व्यक्तियों की कोशिका की सतह पर सीसीआर-5 के अभाव की वजह से यह वायरस कोशिका में प्रवेश नहीं कर पाता।
यह जानकारी एचआईवी का उपचार विकसित करने में महत्वपूर्ण सिद्ध हुई है। सीडी-4 के साथ छेड़छाड़ के अन्य खतरनाक प्रभाव हो सकते थे क्योंकि कोशिकाओं में यह कई महत्वपूर्ण कार्य करता है। जबकि सीसीआर-5 सह-ग्राही की खोज ने ऐसी औषधियों के विकास हेतु एक अपेक्षाकृत सुरक्षित मार्ग उपलब्ध कराया है जो सीडी-4 प्रोटीन को ओझल कर देती है। अत: इसके अभाव में एचआईवी का प्रवेश नहीं होता और व्यक्ति संक्रमण से बच जाता है। इसी आधार पर मेरावायरॉक नामक एक दवाई बनाई गई जिसे 2007 में एचआईवी के उपचार हेतु स्वीकृत किया गया। 2012 में इस बात का पता लगाने के लिए क्लीनिकल परीक्षण किए गए थे कि क्या इस दवा का उपयोग अ-संक्रमित किन्तु संक्रमण के जोखिम से घिरे लोगों में किया जा सकता है।
अपने पराए की पहचान
झिल्ली पदार्थों के आवागमन पर नियंत्रण, संदेशों के आदान-प्रदान और आसपास की कोशिकाओं को जोड़ने के अलावा एक महत्वपूर्ण कार्य और करती है। यह है अपने-पराए की पहचान। किसी भी जीव के कामकाज़ के लिए यह जानना ज़रूरी है कि कौन अपना है, कौन पराया। उदाहरण के लिए यह क्षमता जन्तु भ्रूण में कोशिकाओं को ऊतकों और अंगों के रूप में व्यवस्थित करने के लिए ज़रूरी है। झिल्ली का यह गुण प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा किसी पराई कोशिका को अस्वीकार करने का भी आधार है। कोशिकाएं एक-दूसरे की पहचान प्लाज़्मा झिल्ली की बाहरी सतह पर उपस्थित अणुओं से करती है जो प्राय: कार्बोहाइड्रेट होते हैं।
झिल्ली के कार्बोहाइड्रेट आम तौर पर छोटे-छोटे (15 से कम शर्करा इकाइयों वाले) और शाखित होते हैं। कुछ कार्बोहाइडेट्स लिपिड्स से जुड़े होते हैं। इस तरह बने अणुओं को ग्लायकोलिपिड्स कहते हैं। वैसे अधिकांश कार्बोहाइड्रेट प्रोटीन्स से जुड़े होते हैं। इन्हें ग्लायकोप्रोटीन्स कहते हैं।
प्लाज़्मा झिल्ली की बाहरी सतह पर उपस्थित कार्बोहाइड्रेट अलग-अलग प्रकार के होते हैं। यहां तक कि एक ही जीव की अलग-अलग प्रकार की कोशिकाओं में अलग-अलग कार्बोहायड्रेट पाए जाते हैं। ये झिल्ली-कार्बोहाइड्रेट पहचान चिंह के रूप में कार्य करते है और एक कोशिका को दूसरी कोशिका से अलग बनाते हैं। उदाहरण के लिए, मनुष्य के रक्त समूह (ए, बी, एबी तथा ओ) लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर ग्लायकोप्रोटीन्स की विविधता के कारण है।
झिल्ली प्रोटीन्स और झिल्लियों के प्रमुख कार्य
1. परिवहन - जो प्रोटीन झिल्ली की पूरी चौड़ाई में फैले रहते हैं, वे झिल्ली के आर-पार जलस्नेही प्रवाह मार्ग उपलब्ध कराते हैं। कुछ झिल्ली प्रोटीन ऊर्जा के स्रोत के रूप में एटीपी का जल विच्छेदन करते हैं और उससे प्राप्त ऊर्जा का उपयोग पदार्थों को आर-पार पहुंचाने में करते हैं।
2. एंज़ाइमी गतिविधियां - झिल्ली में धंसा हुआ कोई प्रोटीन एंज़ाइम भी हो सकता है। झिल्ली में कई एंज़ाइम एक टीम के रूप में व्यवस्थित होते है जो शरीर-क्रिया के चरणों को क्रमिक रूप से अंजाम देते हैं। श्वसनक्रिया के एंज़ाइम माइटोकॉण्ड्रिया की झिल्ली में ही पाए जाते हैं।
3. संदेश प्रसारण - कुछ झिल्ली प्रोटीन में ऐसे विशिष्ट आकार के जुड़ाव स्थल होते हैं जो किसी संदेशवाहक (जैसे हॉरमोन) के आकार में फिट हो जाएं। ऐसे प्रोटीन बाहरी संदेशों को कोशिका के अन्दर पहुंचाते हैं।
4. कोशिका की पहचान - प्लाज़्मा झिल्ली की सतह पर उपस्थित ग्लायकोप्रोटीन पहचान चिंह की तरह काम करते हैं जिन्हें अन्य कोशिकाओं के प्रोटीन पहचानते हैं।
5. कोशिका कंकाल और बाहरी कोशिका मैट्रिक्स- कोशिका कंकाल के सूक्ष्म तंतु अन्य झिल्ली घटकों से जुड़ सकते हैं। ऐसा करने से कोशिका का आकार बना रहता है। जो प्रोटीन्स बाह्र कोशिकीय मैट्रिक्स से जुड़ते हैं वे कोशिका के अन्दर और बाहर होने वाले परिवर्तनों का समन्वय करते हैं।
प्लाज़्मा झिल्ली कोशिका के व्यर्थ पदार्थों को बाहर निकालने और बाहरी पदार्थों, जीवों को निगल कर अन्दर करने का काम भी करती है। इन क्रियाओं को क्रमश: कोशिका बहिर्वेशन और कोशिका अंर्तवेशन कहते हैं। संक्षेप में कहें तो झिल्लियां ही प्रकृति के विभिन्न तत्वों को अपने अन्दर समेटकर उन्हें जीवद्रव्य का रूप देती है जो हर जीव का एक खास जीवित हिस्सा होता है।
झिल्ली संक्रामक जीवों को कोशिका में प्रवेश नहीं करने देती। और व्यर्थ हानिकारक पदार्थों को चुन-चुन कर बाहर फेंकती है। झिल्ली ही संदेशों को पढ़ती है, उनका आदान-प्रदान करती है, कोशिका के आंतरिक पर्यावरण पर नियंत्रण रखती है। यही झिल्ली नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम और सोडियम जैसे पदार्थों को कोशिका के अंदर जाने के रास्ते उपलब्ध करती है और ये अन्दर जाकर सेलुलोज़, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, और वसा जैसे पदार्थों में बदल जाते हैं। अत: यह कहना गलत नहीं है कि जीवन झिल्लियों के अंदर या आसपास ही कहीं बसता है। (स्रोत फीचर्स)