डबल हेलिक्स यानी दोहरी कुंडली डीएनए की रचना है जिसकी खोज के लिए जेम्स वॉटसन, फ्रांसिस क्रिक और मॉरिस विल्किन्स को 1962 में चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। डीएनए वह अणु है जो सजीवों के गुणधर्म निर्धारित करता है और इन गुणधर्मों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाता है। डीएनए की रचना की खोज ने हमारे जीवन को सबसे गहराई में प्रभावित किया है, खास तौर से जीव विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में।
दी डबल हेलिक्स एक पुस्तक का नाम भी है जो विज्ञान की लोकप्रिय पुस्तकों में से शायद सबसे विवादास्पद रही है। इस पुस्तक के लेखक और कोई नहीं, स्वयं जेम्स वॉटसन हैं। सर्वप्रथम 1968 में प्रकाशित दी डबल हेलिक्स: ए पर्सनल अकाउंट ऑफ दी डिस्कवरी ऑफ दी स्ट्रक्चर ऑफ डीएनए, वास्तव में डीएनए की रचना की खोज का आत्मकथात्मक विवरण है। इस अत्यंत महत्वपूर्ण खोज का अंतरंग विवरण होने के बावजूद यह पुस्तक प्रकाशन से पहले ही विवादों में उलझ गई थी। शुरू में इसका प्रकाशन हार्वड युनिवर्सिटी प्रेस करने वाली थी किंतु सह-खोजकर्ता फ्रांसिस क्रिक और मॉरिस विल्किन्स के विरोध के चलते उसने यह विचार छोड़ दिया और पुस्तक का प्रकाशन दो अन्य प्रकाशकों द्वारा किया गया।
उपरोक्त युगांतरकारी खोज के समय वॉटसन बमुश्किल 25 वर्ष के थे। दी डबल हेलिक्स में उन्होंने इससे जुड़ी घटनाओं का निहायत निजी दृष्टिकोण साझा किया है। इस पुस्तक की तारीफ की एक वजह यही रही है कि इसमें वैज्ञानिक शोध का निजी अनुभव पेश हुआ है जो रोज़ाना प्रकाशित होने वाले सैकड़ों-हज़ारों शोध पत्रों में कहीं नहीं झलकता। इस मायने में यह अपने ढंग की पहली पुस्तक मानी जा सकती है।
प्रकाशन से पूर्व जब इसकी प्रति प्रसिद्ध भौतिक शास्त्री व नोबेल विजेता रिचर्ड फाइनमैन को दी गई तो उनकी प्रतिक्रिया थी, “सामान्य जीवन की मामूली बातों के साथ विज्ञान के उबड़-खाबड़ रास्तों पर चहलकदमी और नाकामियां से लेकर सत्य तक पहुंचते-पहुंचते नाटकीय एकाग्रता और अंत में खोज का उल्लास (और साथ में कभी-कभी संदेह के दौरे) - विज्ञान इसी तरह तो किया जाता है। पुस्तक में सुंदर ढंग से वर्णित खोज का अनुभव मैंने स्वयं महसूस किया है।”
अलबत्ता, दी डबल हेलिक्स की कटु आलोचना भी हुई है। एक आलोचना तो यह है कि इसमें पूरा ध्यान सिर्फ इस बात पर लगाया गया है कि खोज का श्रेय किसे मिलेगा। पुस्तक में लेखक ने यह भी दावा किया है कि उन्होंने अन्य लोगों के आंकड़े खुफिया ढंग से हासिल किए थे ताकि श्रेय लूट सकें।
पुस्तक की आलोचना का एक प्रमुख बिंदु यह था कि इसमें रोज़लिंड फ्रेंकलिन के प्रति लिंगभेदी रवैया अपनाया गया। रोज़लिंड फ्रेंकलिन मॉरिस विल्किन्स की सहकर्मी थीं और ऐसा माना जाता है कि उनके आंकड़ों की इस खोज में अहम भूमिका थी। अन्य लोगों के अलावा स्वयं वॉटसन ने भी आगे चलकर स्वीकार किया था कि यदि 1962 में फ्रेंकलिन जीवित होतीं तो उन्हें नोबेल पुरस्कार अवश्य मिलता।
बहरहाल, इस आलोचना का पूर्वाभास शायद वॉटसन को था, और उन्होंने भूमिका में स्पष्ट किया था कि पुस्तक में प्रस्तुत विवरण उन एहसासों पर आधारित है जो उनके मन में घटनाएं घटित होते वक्त थे, ये एहसास पुस्तक लिखते समय के नहीं हैं। उन्होंने लिखा था, “चूंकि फ्रेंकलिन के बारे में मेरी शुरुआती छवि, वैज्ञानिक व निजी दोनों, प्राय: गलत थी, इसलिए मैं उनकी उपलब्धियों के बारे में कुछ कहना चाहता हूं।” इसके बाद उन्होंने फ्रेंकलिन के उत्कृष्ट कार्यों का विवरण देते हुए बताया है कि इसके बावजूद उन्हें एक महिला होने के नाते विज्ञान के क्षेत्र में किस तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ा था।