पूरी दुनिया के समान दक्षिण अफ्रीका में जीवन शैली से जुड़े रोग (डायबिटीज़, मोटापा, ह्मदय रोग) तेज़ी से बढ़ रहे हैं। संक्रामक रोगों की बजाय ऐसे गैर-संक्रामक रोगों का बढ़ना विकाससील देशों के लिए चिंता का एक प्रमुख विषय है। इन पर काबू पाने के लिए कई देश शकर-युक्त पेय पदार्थों पर विशेष टैक्स लगाते हैं क्योंकि प्रमाण बताते हैं कि ऐसे पेय पदार्थ स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देते हैं। अब दक्षिण अफ्रीका भी शकर-टैक्स लगाने जा रहा है।
वैसे शकर के अति उपभोग के हानिकारक असर हाल ही में सामने आने लगे हैं। ताज़ा अध्ययनों से पता चला है कि शकर के ऐसे हानिकारक प्रभावों को जानबूझकर छिपाया गया था। अत्यधिक शकर का सेवन मोटापे और ह्मदय रोगों का प्रमुख कारण लगता है।
समस्या का एक पहलू यह भी है कि फास्ट फूड तथा शकर-युक्त सॉफ्ट डिं्रक्स की खपत उन देशों में तेज़ी से बढ़ी है जहां आमदनी हाल में बढ़ी है। परिणाम यह है कि बढ़ी हुई आमदनी से स्वास्थ्य सम्बंधी लाभ मिलना तो दूर, उल्टे नुकसान ज़्यादा हो रहा है। ये देश संक्रामक रोगों का बोझ तो झेलते ही हैं, आमदनी बढ़ने के साथ गैर-संक्रामक रोगों में भी तेज़ी से वृद्धि हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि वर्ष 2015 में दुनिया में 5 वर्ष से कम उम्र के 1 करोड़ बच्चे ज़्यादा वज़न या मोटापे से पीड़ित थे।
अलबत्ता, ऐसे पेय पदार्थों पर शकर टैक्स लगाने के परिणाम मिले-जुले रहे हैं। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि शकर-युक्त पेय पदार्थों पर टैक्स लगाने से इनकी खपत में कमी आती है तथा स्वास्थ्य में सुधार होता है। खास तौर से वयस्क अवस्था में उत्पन्न होने वाले डायबिटीज़ व मोटापे में कमी के प्रमाण मिले हैं। दक्षिण अफ्रीका में किए गए एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि शकर-युक्त पेय पदार्थों पर टैक्स लगने से लोग अन्य पेय पदार्थों की ओर बढ़ते हैं। इसी प्रकार से मेक्सिको में देखा गया कि प्रति लीटर 10 प्रतिशत टैक्स लगाने के दो वर्षों के अंदर ऐसे पेय पदार्थों की बिक्री में 10 प्रतिशत की कमी आई। इसके अलावा साधारण पानी की बिक्री 13 प्रतिशत बढ़ी। यह सही है कि शकर-युक्त पेय पदार्थ एकमात्र दोषी नहीं हैं किंतु इन अध्ययनों से एक बात साफ है कि टैक्स लगाकर लोगों की उपभोग सम्बंधी आदतों को बदला जा सकता है। मगर इस उपाय की एक दिक्कत यह है कि परिवर्तन अस्थायी ही रहता है। मेक्सिको में कुछ समय तक बिक्री घटी किंतु फिर अपने सामान्य स्तर आ गई थी।
लिहाज़ा पोषण विशेषज्ञों का कहना है कि टैक्स के उपकरण का उपयोग तात्कालिक फायदा तो दे सकता है किंतु दूरगामी असर के लिए भोजन सम्बंधी जागरूकता बढ़ाना ही एकमात्र उपाय होगा। (स्रोत फीचर्स)